डिप्रेशन - भाग 2 Neeta Batham द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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डिप्रेशन - भाग 2

"में जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हु छोड़ के घर।                   ये क्या की घर की उदासी भी साथ हो गई "

वो नन्हा सा बचपन जो खुद अपने मम्मी - पापा के झगड़ों में खोजता है वो एक अकेले कमरे में बैठकर रोता है वो सोचता है कोई तो चुप करने आयेगा मेरे मन मैं उठ इस तूफान को पर वह अकेला सा बचपन खुद को ढूंढ रहा है किसी और के आंगन में क्यों उसका घर आंगन इतना छोटा पड़ गया उसकी सोच इतनी गहरी कैसे एक रुपएक टॉफी खाने के उम्र मैं वह कहानियां गढ़ रहा है मन में वह उसे दुनिया को जीना चाहता हैं जहां खुशियां हो हजार पर कभी झगड़े कभी मार में कही दबती जा रही हैं उसकी सांसे अब उसे सारी दुनिया ही छलावा लग रही हैं उसका आत्मविश्वास मर गया है अब छोटी-छोटी बातों पर मायूस होने लगा है धीमी आवाज भी उसे डरने लगी है वह बचपन अब लोगों के बीच जाने से घबराता है इतना घबराता है शायद इतना डर तो उसे साइकाइट्रिक वार्ड के उस पलंग पर भी नहीं लगा था जितना लोगों से लगता है खुशी क्या होती है वह जनता ही नहीं यह वही बचपन है जिसमें खुशियों के मायने ही कुछ और होते है मैडम से कॉपी में मिला हुआ वैरी गुड, कैंडी, तितली पकड़ना किसी के घर के पेड़ से अमरुद तोड़ लाना गुड़ियों से खेलना, मम्मी की साड़ी पहनकर मटकना, बारिश में भीगना, और ना जाने ऐसी कितनी बातें जो उस बचपन में खुशियां थी वो उसे महसूस नही होती कैसे जीने के उम्र में वो मरने का ख्याल पाल रही हैं वो डिप्रेशन की उस स्टेज पर हैं जहां रोना बेचैन होना उसे मामूली लगता है वो हर पल दिमाग़ में ये सोच रही हैं कि आख़िर मरा कैसे जाए जिससे लोगों को उसकी मृत्यु नॉर्मल लगे ना कि आत्महत्या वो इस बात को सोचते सोचते दिन में कितनी बार आत्महत्या करती है वो जिस बचपन ने अभी तक उम्र का एक भी पड़ाव पार नहीं किया उसने डिप्रेशन की आखरी स्टेज पार कर ली ख्यालों में वो कहते है ना सपनों मे बड़ी ताकत होती हैं फिर चाहे वो पूरे हो या अधूरे बस कुछ ना कुछ तो देके जाते है मेरे सपनों ने मुझे डिप्रेशन, एंजायटी, बैचेनी, मायूसी, घबराहट, आत्मविश्वास ना करना इतना सब कुछ सिखा दिया बस जो नहीं सिखा पाया वो थी जीने की उम्मीद वो खत्म कर दी में कभी कभी सोचती हु............                        "कि मुझे ऐसा भी क्या पाना था,                                   कि मैंने खुदको ही खो दिया।।                      पर एक चेहरा है जो मुझे मरने नही देता मेरी मम्मी का वो शख्स है जिन्होंने मुझे जीवन दिया अब मैं उन्हें ये दुःख दू मुझे इसका हक नहीं है हां पर ये भी सच है की में जीते जी एक जिंदा लाश से ज्यादा कुछ बची नहीं पर मैं हु इस दुनिया में और मुझे इससे लड़ना है उनके लिए..........                   "डिप्रेशन दिमाग पर ऐसा खतरनाक प्रेशर है,                  जो आपको आत्महत्या के लिए महत्वपूर्ण जोखिम में         डालता है,,                                                      वो कहते है ना ये जिंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है.       कही अभी तो मुझे खुद - खुशी नहीं करनी।।             डिप्रेशन सिर्फ मेरा ख्याल नहीं है झुंज रही हूं अपने ही सवालों से जिनके जवाब मुझे जिंदगी दे नही पा रही मैं बहुत खुशमिजाज किस्म की लड़की थी पर आज मैं खुद को नहीं पहचान पा रही हूं मैं अब जिंदगी के इस मोड़ पर आई मुझे समझ हीं नहीं आया कि कब ये मायूसी मुझमें समाई और समाकर मुझमें घर कर गई और कब में हंसते - हंसते रोने लगी बैठे - बैठे खोने लगी एक पल मैं खुशी तो दूजे पल में उदासी ये मन का जो फेर हुआ है ,वो  मुझ में एंजायटी से कब डिप्रेशन की ओर ले गया पता ही नही चला, पर मैं आज उन आत्महत्या करने वालोंकी मनोस्थिति बहुत अच्छे से समझा पा रही हूं जिन्हें कभी मैं भी पागल बोलती थी कि ऐसा नहीं करना था जो भी बात थी लड़ना था जिंदगी से पर अब समझ आया डी+ प्रेशन का दिमाग पर इतना प्रेशर होता है कि चीजें हो जाती है जब तक हम समझ पाए तब तक अब खत्म हो जाता हैं वो लोग पागल नहीं होते वो अपने आप पर विश्वास नहीं कर पाते की वो खुद को क्या कर बैठेंगे वह अब लोगों से नहीं  खुद से खदको बचाना चाहते है पर हम एक ऐसे ही समाज में रहते हैं जहां हमें यह बताने से  ज्यादा की हम डिप्रेशन के शिकार हैं हमारा साइकाइट्रिक ट्रीटमेंट चल रहा है इससे आसान हमें मरना लगता है क्योंकि ऐसा बताने से लोग हमें जज करेंगे हम जितना अभी खुद से परेशान हैं उससे कही ज्यादा लोग हमें बोल बोल कर परेशान करेंगे वो हमारी मनोस्थिति नही समझेंगे क्योंकि वो समझना नही चाहते वो सिर्फ और सिर्फ जजमेंटल है हर बात ओर हालात को लेकर कई तो कहेंगे पागल है डिप्रेशन - कुछ नही होता ये सब नाटक हैं पर ये नाटक किसी हम जैसे कि जिंदगी की वो हकीकत है जो हमें अन्दर ही अंदर मार रही है आज हम है क्योंकि दवाइयों का सहारा है काउंसलिंग हमने सिर्फ सुनी थी आज हम करवा रहे है ये दवाईयां इतनी हाईपॉवर है कि हम सो सके इसके लिए खा रहे है हमारे विचारों पर अंकुश लगा रहे बस इसलिए खा रहे हैं कभी सोचा ही नही था कि अपनी ही सोच हमें मार सकती हैं अपनी ही सोच को काबू करने के लिए हमें दवाईयां लेनी पड़ेगी सोचा ही नही था ,एक जीवन जिंदगी से इतना परे भी होता है हमें तो लगा था की बस जिंदगी एक पहेली है और मौत इसकी सच्चाई पर उसके बीच भी एक मौत हो सकती हैं वो भी इतनी दर्द नाक की हर पहर जीना भी मर मरकर पड़ता है डिप्रेशन मामूली नहीं होता ये अब समझ आया है तो कभी कोई आपसे कहे कि मुझे डिप्रेशन हैं तो उसका मज़ाक मत उड़ाना उसका साथ देना वो एक ऐसी जिन्दगी जी रहा है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।।.....

   "   डिप्रेशन इतना बढ़ रहा है कि दिमाग की सारी नशे दर्द कर रही हैं 

लेकिन मजाल है एक भी फट कर मेरा काम आसान कर दे "

।। माना बिना प्रेशर के कोई जिंदगी नहीं होती

पर जीना ही भुला दे ऐसा भी डिप्रेशन न हो किसी को 

जहां जिंदगी सुकून न दे और दिल दुआओं में रब से सिवाए मौत के कुछ चाहे ना।।