मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ महेश रौतेला द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२

मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२

मुनस्यारी से लौटते हुये हिमालय को देखा जहाँ से कहा जाता है पांडवों ने अन्तिम बार पाँच चूल्हे उन शिखरों पर लगाये, इसलिए इन्हें पंचाचूली कहा जाता है।वन से का जा रही है। पांडवों के वनवास के समय कहा जाता है कि एक बार द्रौपदी को दूर सुगंधित फूल दिखा और वह उसे पाना चाह रही थी। भीम उसे लेने गये तो रास्ते के किनारे एक बूढ़ा बैठा था और उसकी पूँछ रास्ते पर थी। भीम ने उनसे पूँछ हटाने को कहा। बूढ़े ने कहा ," तुम हटा लो यदि तुम्हें आगे जाना है तो।" भीम ने पूँछ हटाने की कोशिश की लेकिन वे उसे हटा नहीं सके। तब उन्हें हनुमानजी का स्मरण हुआ। और वे बोले प्रभु कृपा कीजिए। हनुमानजी ने फिर अपनी पूँछ हटा दी।  लौटते समय मुनस्यारी के वृक्ष पीछे छूटते जा रहे हैं। खलिया शिखर(टाप) की ओर सैलानी पर्वतारोहण करने जा रहे हैं। हिमालय शिखर सुनहरे से श्वेत हो चुके हैं। ऊपर पहाड़ से गिर कर एक गाय सड़क के किनारे पड़ी है। उसको  30-40 गिद्ध खा रहे हैं। पर्यटक इस दृश्य का विडिओ बना रहे हैं। जीवन किसी भी स्थिति में उत्सव बन सकता है,ऐसा लग रहा है। बिर्थी झरने पर कार रूकती है। झरना दृश्य और अदृश्य सौन्दर्य से परिपूर्ण है। सामने पहाड़ी पर दो महिलाएं घास काट रही हैं। "घास अब घास नहीं है

जानवरों का खाना है,

अब वह घास नहीं

दूध बन चुकी है,

घास अब घास नहीं

खेत की खाद बन चुकी है,

घास अब घास नहीं

लहलहाती फसल बन चुकी है।"

कौसानी आते-आते सूरज अस्ताचल की ओर दिखने लगा है। रानीखेत जाना है। कहते हैं रानीखेत का नाम रानी पद्मिनी के नाम पड़ा है जो कत्यूरी राजवंश से थी। उन्हें रानीखेत बहुत अच्छा लगता था। रानीखेत कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय भी है। "कटी पतंग" की शूटिंग यहाँ भी हुयी थी। घिघारिखाल पर पकौड़ों के साथ चाय पी। अँधेरा घिर चुका है। वाल्मीकि जयन्ती है। जुलूस निकल  रहा है। लेकिन वाल्मीकि जी का लिखा कुछ भी नहीं बज रहा है। प्राकृतिक सौन्दर्य अपने चरम पर है। बाल मिठाई यहाँ भी प्रचुर मात्रा में दिखाई दे रही है। रास्ते में मनभावन नाश्ता करने के अच्छे रेस्टोरेंट हैं। गरमपानी से आगे कैंची धाम पहुँचे हैं। रास्ता खुला है जाम की स्थिति नहीं मिली। "बाबा नीम करौरी" से मन ही मन  कहा बस रास्ता ऐसे ही खुला मिले यात्रियों को। भवाली होते हुए नैनीताल पहुँचे। नैनीताल को कुछ ऐसे याद किया-

"फिर उसी सुबह से 

मुलाकात हो गयी,

झील नाव विहीन थी

हवा परिवर्तनशील थी,

आश का स्पर्श था।

संग-संग टहलना

ठंड बहुत निकट थी,

राह पर दिखा था

परंपरा में बिगाड़ था।

समय एक कील सा

गड़ गया तो गड़ गया,

पाठ्यक्रम साफ था

नक्षत्र सब अस्त थे।

जिस जगह को देखता

पतझड़ वहाँ खड़ा था,

परिवर्तन मार्ग में

कील सा गड़ा था।

फिर उसी सुबह में 

एकाकार हो गया,

अपनी दौड़, दौड़कर

शान्त चित्त हो गया।

बात में तथ्य था

समय में गुरूर था,

पग जो शरमा गये

उनका भी कसूर था।"

नैनीताल का रूप पहले से बहुत कुछ बदल गया है। अब तल्लीताल से स्नोव्यू होते हुए मल्लीताल कार से जा सकते हैं। पहले पैदल स्नोव्यू चढ़ना पड़ता था। रोपवे की सुविधा भी है। झील में जल भरपूर है। मई २०१७ में झील का जल स्तर बहुत कम देखकर बहुत दुख हुआ था और मैंने लिखा था-

"प्रिय,     

मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ।कहते हैं कभी सती माँ की आँख यहाँ गिरी थी।नैना देवी का मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी।तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे।नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी।मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं।बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था।" वक्त" फिल्म का गाना" दिन हैं बहार के...।" तुम्हें अब भी रोमांचित करता होगा। प्रिय, अब मैं तुम्हारे कार्य कलापों से दुखी हूँ।तुमने गर्जों,गुफाओं में बड़े-बड़े होटल और कंक्रीट की सड़कें बना दी हैं।मेरे जल भरण क्षेत्रों को नष्ट कर दिया है।गंदगी से आसपास के क्षेत्रों को मलिन कर दिया है। यही गंदगी बह कर मुझमें समा जाती है।प्रिय, यह सब दुखद है।मेरे मरने का समय नहीं हुआ है लेकिन तुम मुझे आत्महत्या को विवश कर रहे हो। मैं मर जाऊँगी तो तुम्हारी भावनाएं, प्यार अपने आप समाप्त हो जाएंगे और तुम संकट में आ जाओगे।जो प्यार मेरे कारण विविध रंगी होता है, वह विलुप्त हो जायेगा।प्रिय, मेरे बारे में सोचो।अभी मैं पहले की तरह जीवंत हो सकती हूँ, यदि भीड़ , गंदगी और अनियंत्रित निर्माण को समाप्त कर दो।तुम मेरे सूखे किनारों से भयभीत नहीं हो क्या? मैंने बहुत सुन्दर कहानियां अतीत में कही हैं और बहुत सी शेष हैं।मैं जीना चाहती हूँ , यदि तुम साथ दो।

तुम्हारी प्यारी नैनी झील,नैनीताल"

 टिफिन टाप के बारे में अगस्त २०२४ में एक समाचार पत्र में छपा था-

"नैनीताल नगर की दक्षिणी पहाड़ी पर स्थित बेहद लोकप्रिय पर्यटक स्थल टिफिन टॉप चोटी पर बनी डोरोथी सीट मंगलवार देर रात्रि ढह गई। भूस्खलन के बाद यह पर्यटक स्थल इतिहास बन कर रह गया। रात 11 बजे के बाद तेज आवाज से शहर गूंज उठा और भारी भरकम बोल्डर टिफिन टॉप से नीचे आ गये। क्षेत्र में आबादी न होने से जानमाल की हानि की आशंका नहीं है।नैनीताल के दक्षिण की 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित टिफिन टॉप में हर वर्ष लाखों की तादाद में पर्यटकों सहित स्थानीय नागरिक बेहतरीन प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने आते रहे हैं।"

हमें पहाड़ के शहरों की समता को अनदेखा नहीं करना चाहिए। अत्यधिक निर्माण से भू धसाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। आखिर पहाड़ को कितना खोदा जा सकता है।

*** महेश रौतेला