एक अनकही दास्तान Ankur Saxena Maddy द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एक अनकही दास्तान

कॉलेज का पहला दिन था। मैं हमेशा की तरह सबसे आगे की बेंच पर जाकर बैठ गया। यही मेरी आदत थी। क्लास शुरू होने से कुछ मिनट पहले, एक लड़की क्लासरूम में अन्दर आई। यह पहली बार था जब मेने उसे देखा था - सलिखे से सेट किये हुए लंबे घुंघराले बाल, बड़ी-बड़ी काली आंखें, और होठों पर वो मासूम लेकिन हल्की-सी शरारती मुस्कान! उसकी चाल में एक आत्मविश्वास झलक रहा था। वो मेरे पास से गुजरी और पीछे वाली बेंच पर बैठ गई। मैं उसे चुपके चुपके कनखियों से देख रहा था, और शायद उसने भी मेरी नजरों को महसूस किया। मुझे आज भी उसका नाम याद है| उसका नाम स्वाति था…

वो उस समय हमारे पूरे कॉलेज में अपनी बोल्डनेस, हाजिर-जवाबी और अक्खड़ रवैये के लिये जानी जाती थी| उसकी चाल-ढाल बिल्कुल एयर फाॅर्स के ऑफिसर्स के जैसी थी| वो एकदम लड़कों की तरह से तनकर चलती थी| और जैसा मेने पहले कहा, उसकी चाल में एक अलग स्तर का आत्मविश्वास झलकता था|

स्वाति बुरे लोगों के लिए एकदम बोल्ड, बेबाक और अक्खड़ लड़की थी| यदि उसे कोई भी परेशान या छेड़ने की कोशिश भी करता, तो वो उसे अपने स्टाइल से सुलट लेती थी, और यदि बात हाथ से निकलती हुयी लगती, तो वो उस बन्दे के साथ दो-दो हाथ करके उसे ठिकाने पर भी ले आती थी| मगर इसके उलट, वो सही लोगो के प्रति काफी सहज और कोमल लहजे में बर्ताव करती थी| और मैं अक्सर उसके स्वभाव में ये बात महसूस करता था कि स्वाति पूरे कॉलेज में चाहे किसी से भी किस में लहजे, और कितनी भी अक्कड़ तरीके से बात कर लेती थी| मर, मेरे प्रति उसका व्यवहार हमेशा सहज, कोमल और शालीनता भरा रहता|

जब कभी स्वाति कॉलेज टाइम के दौरान कोमल स्वर और शालीनता के साथ मुझसे बातें किया करती, तो मैं उसके बात करने के तरीके को देखकर आश्चर्य में पड़ जाता था, और इस बात पर विश्वास नहीं कर पाता था कि यह वही लड़की है, जो पूरे कॉलेज में अपने बोल्ड और अक्कड़ स्वाभाव के लिये प्रसिद्ध है|

स्वाति की ये बातें ही मुझे प्रभावित किया करती थीं| और शुरू शुरू में तो मुझे समझ ही नहीं आया कि ये सब मेरे साथ क्या हो रहा था? मैं दिन दिन भर उसके बारे में सोचता रहता था| फिर जैसे जैसे थोड़ा समय आगे बीता, तो मुझे ये बात साफ हो गई थी, कि मेरे दिल में स्वाति के लिए एक बेहद ही खास जगह बन गयी थी| शायद मैं उससे  प्यार करने लगा था| मगर उसके प्रति मेरा ये प्यार कोई आकर्षण या फिल्मी तरह का प्यार नहीं था| बल्कि, मेरे दिल में उसके लिए बेहद ही सकारात्मक, सम्मान की, और पवित्रता वाले भाव थे| 

एक दिन क्लास खत्म होने के बाद मैंने सोचा कि उससे जाकर बात करूं और उसके प्रति मेरे माइंड में जो भाव हैं, उससे जाकर साझा करुं, लेकिन जब मेने ऐसा सोचा तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई उसके पास जाकर कुछ कहने की| मैं अपने स्थान से पल भर के लिए खड़ा हुआ, पीछे की तरफ देखा, और फिर मन मसोजकर वापस अपनी बेंच पे बैठ गया| लेकिन मेने महसूस किया कि शायद स्वाति दबी नजरों से मेरी हर गतिविधि पर नजर रखे हुये थी|

कुछ दिनों बाद प्रोफेसर ने ग्रुप प्रोजेक्ट्स के लिए टीम बनाईं। किस्मत से, वो मेरी टीम में थी। उसने मेरे पास आकर कहा, "तुम सिद्धार्थ हो, सही?" मैंने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया, "हाँ! और तुम शायद... स्वाति?" उसने सिर हिलाया और कहा, "बिल्कुल! याद रखना, मैं टीम लीडर हूं। और मुझे सबकुछ परफेक्ट चाहिए।" मैं उसकी इस बेबाकी भरी बात को सुनकर थोड़ा हैरान हुआ, मगर साथ ही उसके व्यक्तित्व से प्रभावित भी हुआ।

यह पहली बार था, जब मैं उसे इतने पास से देख पा रहा था, और उसकी सकारात्मक व्यक्तित्व वाली उपस्थिति को महसूस कर पा रहा था| उसमें कुछ तो ऐसी अलग बात थी कि उसकी उपस्थिति से ही मैं अपने अन्दर एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा और मोटिवेशन को महसूस करने लगता था| उसकी वो काली बड़ी बड़ी आँखें, जैसे मेरे दिल की गहराईयों तक उतरे जा रही थी| उसकी आँखों में हमेशा एक अलग ही तरह की ऊर्जा और चमक देखने को मिलती थी|

प्रोजेक्ट पर काम करते हुए हमारी बातचीत बढ़ने लगी। और धीरे धीरे हम एक दूसरे के सच्चे मित्र बन गए| समय के साथ, हम दोनों के बीच की अंडरस्टैंडिंग और बॉन्ड इतना मजबूत हो गया कि अब हम दोनों एक दूसरे की बातों, और मन के भावों को बिना कुछ कहे ही बस एक दूसरे का चेहरा देखकर समझ जाया करते थे|

स्वाति मेरे साथ हमेशा आगे वाली बेंच पर बैठती। और बेंच में एक और विद्यार्थी के लिए बैठने का स्थान होने के वाबजूद वो और किसी को वहाँ नहीं बैठने देती| और जब भी वो ऐसा करती, तो उसकी हरकत को देखकर मैं हँसने लगता| 

एक दिन मैंने उससे मजाक में पूछा, "स्वाति, तुम तो पहले वहाँ पीछे वाली बेंच पर बैठती थीं न! तो अब क्या हुआ? अब तुम्हें पीछे वाली बेंच पसंद नहीं आती क्या?" उसने तुरंत जवाब दिया, "मैं सिर्फ उन्हीं के पास बैठती हूं, जो पढ़ाई में अच्छे हों। वैसे, ये मेरी सीट है, कोई और बैठने की कोशिश भी ना करे।" उसकी इस बात पर मैं हंस पड़ा। मुझसे ये बात कहकर वो बिना अपनी आँखों की पलकों को झपकाये शांति से एकटक मुझे देखती रही| वो चँचल  थी, लेकिन उसमें एक अजीब सी मासूमियत भी थी।

उसकी बेबाकी और हाज़िरजवाबी पूरे कॉलेज में मशहूर थी। लेकिन मेरे साथ उसका व्यवहार हमेशा अलग होता। वो जो बाकी लोगों के लिए निडर और तीखी जवाब देने वाली स्वाति थी, मेरे लिए हमेशा नरम और सुलझी हुई रहती। कभी-कभी वो मुझे देखकर मुस्कुराती और अपनी आंखों से इशारे करती। मुझे लगता, जैसे वो कहना चाहती हो, "सिद्धार्थ, कुछ तो बोलो! कुछ कहो मुझसे!" लेकिन मैं हमेशा चुप रह जाता।

एक दिन क्लास के मध्य ब्रेक के दौरान मेने धीरे से अपने बगल में बैठी स्वाति से पूछा, “अच्छा, स्वाति! अगर तू बुरा नहीं माने, तो क्या मैं तुझसे एक बात पूछूँ?” इसपर उसने अपने चिरपरिचित अन्दाज में मुस्कुराते हुये मुझसे कहा, “वैसे तो मुझसे इस पूरे कॉलेज में कोई बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकता| मगर सिद्धार्थ, तुम मेरे बेस्ट फ्रेंड हो, और सच कहूँ, तो बहुत खास भी| इसलिए, पूछो! क्या पूछना चाहते हो मुझसे?”

मेने संकोच करते हुये उससे पूछा, “स्वाति मुझे एक बात बता! तू हमेशा मेरे पास ही आकर क्यों बैठती है? जबकि, क्लास में तो कितनी जगह खाली ही रहती है…”

इसपर स्वाति ने बिना समय बर्बाद किये गम्भीर स्वर में मुझे उत्तर दिया, “क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ बैठना अच्छा लगता है| और जब भी मैं तुम्हारे साथ होती हूँ, तो ज्यादा सहज और सेफ फील करती हूँ|” और फिर वो बिना कुछ बोले अपनी आँखों से शान्त भाव से मुझे घूरने लगी| वो पहला मौका था, जब स्वाति की घूरती आँखों में झाँकने पर मुझे उसकी आँखों में भी अपने लिए वही भाव नजर आये थे, जो शायद मैं उसके लिए महसूस करता था| लेकिन, अपने रिज़र्व नेचर और मर्यादा के चलते कभी उसे अपनी फीलिंग्स के बारे में नहीं बता पाया|

और इस बात के संकेत स्वाति ने मुझे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारी कॉलेज लाइफ के दौरान कई बार दिए थे| मगर पता नहीं क्यों? मैं ये सब देखकर भी उसे इग्नोर ही करता रहा, और हम दोनों हमेशा एक दूसरे के अच्छे दोस्त ही बने रहे| न तो मैं कभी उससे अपने रिज़र्व नेचर और मर्यादा की वजह से कुछ कह पाया, और न ही स्वाति लिहाज की वजह से शायद मुझसे कुछ बोल पाई|

मगर ये बात भी पक्की थी कि वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती थी, उतना ही सम्मान करती थी, जितना मैं उससे करता था| उसका ऐसे पूरी क्लास में हमेशा सिर्फ मेरे ही पास आकर बैठना, और बेंच पर जगह होने के बाद भी कभी हमारे साथ किसी और विद्यार्थी को नहीं बैठने देना, हमेशा मुझसे बड़े सहज और लिहाज भरे अन्दाज में पेश आना और बड़े कोमल और हमेशा मर्यादित तरीके से बात करना, हमेशा मेरे हर काम में पूरा साथ और सहयोग करना ये सब सीधे इसी तरफ इशारा करते थे कि वो भी मुझसे बहुत प्यार करती थी|  

फिर कॉलेज लाइफ के दौरान एक बार कॉलेज में मेरा जन्मदिन पड़ा| मेरा यह जन्मदिन मेरी जिंदगी का सबसे यादगार दिन था। आज से पहले स्वाति ने किसी के लिए भी ऐसा कुछ नहीं किया था, जैसा उस दिन उसने मेरे लिए किया था| और उसके इस व्यवहार को देखकर उस दिन क्लास में मौजूद सभी लोगों के मुँह खुले रह गए थे|

उस दिन स्वाति अचानक एक बड़ा सा चॉकलेट केक लेकर आई। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "सिद्धार्थ, आज तुम्हारा बर्थडे है, और इसे हम सबके साथ सेलिब्रेट करेंगे।" मैं चौंक गया। "तुम्हें ये कैसे पता?" उसने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा, "मुझे सब पता होता है।" जब मैंने केक काटा, तो उसने बड़े गर्व से सबको बताया, "ये पहली बार है जब मैंने किसी के लिए केक मंगाया है। और ये और कोई नहीं, बल्कि मेरा बेस्ट फ्रेंड है!"

उस दिन उसकी आंखों में जो खुशी थी, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। उसने उस दिन मुझे प्यार भरे भाव से निहारते हुए अपनी आँखों के इशारों से शायद वो सब कह दिया था, जो मैं सुनना चाहता था। लेकिन फिर भी, मैं चुप रहा!...

हम लोग जब भी कभी पार्टी या कही आउटिंग पर जाया करते, तो स्वाति हमेशा वहाँ भी मेरे पास आके बैठ जाया करती और लोगों की नजरें बचाकर चुपके से धीरे धीरे से खिसककर मेरे से सट के बैठ जाती, और भावों से भरी हुई नजरों से मुझे देखा करती थी| वो इन पार्टीज में हमेशा मुझे सम्बोधित करते हुए दोस्तों और क्लासमैट्स के बीच अपने अतरंगी और चुलबुले जोक्स सुनाकर सबको हँसाया करती|

एक दिन हम कैंपस के गार्डन में बैठे थे। उसने कहा, "सिद्धार्थ, तुम्हें पता है, मैं बहुत कम लोगों पर भरोसा करती हूं। लेकिन तुम... तुम अलग हो।" मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, "अलग कैसे?" उसने मुस्कुराकर कहा, "बस, तुम्हारे साथ मैं सहज महसूस करती हूं।" उस पल मुझे लगा, जैसे वो मुझसे कुछ कहना चाहती है, लेकिन फिर चुप हो गई।

धीरे धीरे समय बीता और कॉलेज की फेयरवेल पार्टी आ गयी| इसके ठीक एक महीने के बाद हमारे फाइनल एग्जाम आरम्भ होने वाले थे, और शायद उसके बाद हम सब दोस्त हमेशा के लिए अलग हो जाने वाले थे। पार्टी खत्म होने के बाद स्वाति ने मुझे गार्डन में बुलाया। उसने अपने बैकपैक में से अपनी डायरी निकालकर मुझे दी और कहा, "सिद्धार्थ, प्लीज इसे पढ़ना! और जब तुम इसे पूरा पढ़ लो, तो मुझे जवाब देना!" 

मैंने वो डायरी खोली। उसमें स्वाति ने अपने दिल की प्रत्येक बात, हम दोनों के साथ में बिताये गये सारे यादगार लम्हों को विस्तार के साथ डॉक्यूमेंट किया था| उसने लिखा था कि मैं उसकी जिंदगी में सबसे खास हूं। लेकिन आखिरी पन्ने पर लिखा था, "अगर तुम्हें मुझसे कुछ कहना है, तो आज ही कहना! मैं इंतजार करुँगी…”

उस रात मैं उससे कुछ नहीं कह पाया। मेरा डर मेरे प्यार पर हावी हो गया। मुझे ऐसे शांत देखकर स्वाति की आखों से आँसू छलक आये, और वो बिना मुझसे कुछ बोले वहाँ से चली गयी| 

अब हमारे फाइनल एग्जाम शुरू होने से पहले वाले अन्तिम महीने में स्वाति का कॉलेज आना बहुत कम हो गया था| वो कभी कभार ही कॉलेज आया करती| अचानक से ही उसके व्यवहार में काफी बदलाव दिखने लगा था| वो क्लास में आती, और बिना किसी से कुछ कहे सुने गुमसुम सी पीछे वाली बेंच पे जाकर अकेली ही बैठी रहती, और मन ही मन कुछ सोच सोच कर पपरेशान होकर रोती रहती| मैं उसे इस हालत में इतनी परेशानी में देखकर खुद भी परेशान हो जाता, और उसकी मदद भी करना चाहता था| पर फिर मर्यादा के दायरे की वजह से कभी उससे कुछ कह सुन नहीं पाता| 

उसकी ऐसी हालात देखकर कभी कभी तो मुझे लगता कि कहीं मेने फेयरवेल वाली नाईट स्वाति को कोई उत्तर न देकर उसके साथ जो बर्ताव किया था, कहीं स्वाति की ये हालात उसी की वजह से तो नहीं है| मगर फिर अपने मन को काबू करके वापस नार्मल एक्ट करने की कोशिश करता|

मगर फाइनल एग्जाम शुरू होने से ठीक एक हफ्ते पहले, उस दिन जब स्वाति शायद क्लास में आखिरी बार आयी थी, मुझसे रहा नहीं गया, और मैं लोगों से नजरें बचाता हुआ उसके पास पार्क में जाकर बैठ गया| मेने बिना कुछ कहे शान्त रहकर उसे थोड़ा समय दिया, ताकि वो स्वयं मुझसे बात करे और मुझे वो बात बताकर, जिसने उसे परेशान किया हुआ था, अपने मन का बोझ हल्का कर सके| पर काफी इन्तजार करने के बाद भी स्वाति ने मुझसे एक शब्द नहीं कहा| और न ही उसने मेरी तरफ आँख उठाकर देखा|

जब मुझे स्वाति से कोई रिएक्शन नहीं मिला, तो मेने स्वयं धीरे से फुसफुसाते हुये उससे पूछा, “स्वाति! क्या हुआ है? सब कुछ ठीक है न? कुछ बात है, तो तू मुझसे शेयर कर सकती है!”

मेरी बात सुनकर स्वाति ने अपना चेहरा उठाकर मेरी तरफ आँखों से छलक रहे आँसुओं और दुःखी भाव से मुझे उम्मीद भरी नजरों से देखा, और बिना कुछ बोले कुछ देर तक उसी भाव से देखती रही| उस समय मुझे ये देखकर विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि ये मेरी वही मित्र स्वाति थी, जिसके चेहरे पर हमेशा मन को तरोताजा कर देने वाला खुशी के भाव बिखरे रहते थे, और आज उसी मासूम चेहरे पे ऐसे मातम के भाव दिख रहे थे|

स्वाति ने उस दिन मुझे कुछ कहा तो नहीं, मगर उसकी दर्द भरी आँखों से मिल रहे संकेतों और चेहरे के भावों से जो बात बिना शब्दों के मुझ तक पहुँच रही थी, उससे मैं इतना तो समझ गया था कि बीते दिनों उसके साथ कुछ तो ऐसा घटित हुआ था, जिसकी वजह से वो बहुत दुखी और परेशान थी| और उसकी आँखों के इशारों से मैं ये भी महसूस कर पा रहा था कि जैसे उसपर कोई निरन्तर छुपकर नजर रखे हुए था, और शायद वो नहीं चाहता था कि स्वाति कॉलेज में किसी से भी मिले, या मिलकर कोई बात करे…

थोड़ी देर तक मेरे पास बिना कुछ बोले बैठने के बाद स्वाति अपनी आँखों से रगड़कर आँसुओं को पोंछते हुये अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और एक अन्तिम बार अपनी आँखों में वही प्यार भरे और उम्मीद वाले मिश्रित भाव लिए मुझे देखा और धीरे से फुसफुसाते हुए बोली, “अच्छा, सिद्धार्थ! चलो, अब मैं चलती हूँ| और हाँ, अपने मन में कभी कोई बात मत रखना| ये जो कुछ भी है, वो तुम्हारी वजह से बिल्कुल भी नहीं है|” और ये कहते कहते वह मौन हो गई| 

जाते जाते स्वाति के मुझसे बोले गए अन्तिम शब्द थे, “चलती हूँ, सिड! अपना ध्यान रखना| और हमेशा उसी काम को करना, जो तुम्हें अपने लिए सही लगे| और देखना एक दिन तुम अपनी लाइफ में बहुत आगे जाओगे!...” और ये कहते हुए स्वाति तेजी से दौड़ते हुए वहाँ से चली गई| और मैं स्तब्ध अवस्था मैं दुखी मन से उसे पार्क में अपनी जगह पर बैठे हुए पीछे से जाते हुये देखता रह गया| वो हमारी आखिरी मुलाकात थी| उस दिन के बाद से हम दोनों एक दूसरे से फिर कभी नहीं मिले|

स्वाति हमेशा के लिए अपनी पढ़ाई पूरी किये बिना फाइनल एग्जाम से पहले ही कॉलेज छोड़कर जा चुकी थी| एग्जाम पूर्ण हो जाने के बाद हम दोस्तों को पता चला कि स्वाति की शादी हो गई है| ये खबर सुनकर मुझे थोड़ी-सी पीड़ा तो महसूस हुई, मगर साथ ही मैं अपनी सच्ची दोस्त के लिए, उसके नए जीवन के लिए अन्दर ही अन्दर मन से खुश भी था| 

उस दिन मेने अपने मन में दृढ़ निश्चय करते हुए खुद से वादा किया कि मैं स्वाति और अपनी बात किसी को नहीं बताऊँगा| तब से ये बात मेरे दिल के कोने में सुरक्षित है|

खैर, कॉलेज के दिन पूरे हुए, और हम सभी क्लासमैट्स अच्छे अंकों से एग्जाम पास करके अपने अपने क्षेत्रों में आगे बढ़ गए| स्वाति की भी शादी हो चुकी थी, और वो अपनी नई दुनियां में बहुत खुश थी| इधर मेने अपने लाइफ के सबसे प्रिय काम, अपने पैशन को फॉलो करते हुए लेखक और ब्लॉगर के रूप में अपना कैरियर बनाया|

आज भी जब मुझे कभी स्वाति की यादें आती हैं, तो उसकी हँसी, उसकी आँखों की गहराई, और उसके वो कभी न भूल पाने वाले एक्सप्रेशन, उसके साथ कॉलेज लाइफ के दौरान बिताये गये यादगार पल, मेरे दिल में गूंजते हैं, और मन की गहराई तक उतरकर समान समय पर मुझे विचलित भी करते हैं, और हँसा भी जाते हैं| 

पर कभी कभी जब मैं इन बातों को मन ही मन याद करता हूँ, और स्वाति को अपनी लाइफ में खुश देखता हूँ, तो ये सोचता ही कि शायद उस वक्त मेने स्वाति के साथ जो किया, और जो भी परिस्थितियाँ उस समय उत्पन्न हुईं, वो शायद हमारे अच्छे के लिये ही थीं| और ये विचार करते हुए मैं अपने मन को हिम्मत देता हूँ और फिर से पूरी ताकत और समर्पण के साथ अपने काम में जुट जाता हूँ… 

पर सत्य तो यही है कि शायद मैं स्वाति को कभी भुला ही नहीं पाया| वो मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत अधूरा किस्सा बनकर रह गई। अब वो और उसकी अच्छी यादें मेरी लाइफ में मेरे साथ मेरा ऊर्जा स्त्रोत और प्रेरणा बनकर मेरी यादों में जीवित है…

 

लेखक,

अँकुर सक्सेना “मैडी”

[ANKUR SAXENA “MADDY”]

author88ankur@outlook.com

सांगानेर, प्रताप नगर,

जयपुर, राजस्थान

दिनांक: 29-नवंबर-2024