दादीमा की कहानियाँ - 3 Ashish द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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दादीमा की कहानियाँ - 3

  *!! संगत का असर !!*

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*आइंस्टीन के ड्राइवर ने एक बार आइंस्टीन से कहा - "सर, मैंने हर बैठक में आपके द्वारा दिए गए हर भाषण को याद किया है।"*

*आइंस्टीन हैरान!*

*उन्होंने कहा- "ठीक है, अगले आयोजक मुझे नहीं जानते। आप मेरे स्थान पर वहां बोलिए और मैं ड्राइवर बनूंगा।*

*ऐसा ही हुआ, बैठक में अगले दिन ड्राइवर मंच पर चढ़ गया और भाषण देने लगा...*

*उपस्थित विद्वानों ने जोर-शोर से तालियां बजाईं।*

*उस समय एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा - "सर, क्या आप उस सापेक्षता की परिभाषा को फिर से समझा सकते हैं?"*

*असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा!*

*इस बार वाहन चालक पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वे हैरान रह गए...*

*ड्राइवर ने जवाब दिया, क्या यह आसान बात आपके दिमाग में नहीं आई?*

*मेरे ड्राइवर से पूछिए, वह आपको समझाएगा।"*

*शिक्षा:-*

*यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं, तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति हो जाएगी..!!*

*!! दो पत्थरों की कहानी !!*

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*नदी पहाड़ों की कठिन व लम्बी यात्रा के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के असंख्य पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था। इनमें से दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा। दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे। इनमें से एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार के, खुरदरा व अनाकर्षक था।*

*एक दिन इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’*

*यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं… ना जाने मैंने कितने तूफानों का सामना किया है… कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को  काटा है… तब कहीं जाकर मैंने ये रूप पाया है।*

*जानते हो, मेरे पास हमेशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ…पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है? नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है!*

*तुम भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुम्हें अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहे तो एक दिन तुम मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाओगे।*

*मत स्वीकारों उस रूप को जो तुम्हारे अनुरूप ना हो… तुम आज वही हो जो मैं कल था... कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ… या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।*

*शिक्षा:-*

*दोस्तों, संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है। आज आप चाहे कितनी ही विषम पारिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये… अपने प्रयास बंद मत करिए। आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये। और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।*

Ashish Shah, Motivational Trainer