जरूरी था - 2 Komal Mehta द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • कीमत

     प्रशांत ने सुबह का अखबार खोला ही था कि उसकी निगाह एक खबर पर...

  • शोहरत का घमंड - 123

    आलिया आर्यन के बारे में सोच सोच कर रो रही होती है।सुबह होती...

  • Nafrat e Ishq - Part 17

    शॉपिंग के बाद जब सभी कैब में बैठे, तो माहौल पहले से ही मस्त...

  • अनोखा विवाह - 13

    अनिकेत को पता था कि सुहानी छोटी छोटी बातों पर भी रो पड़ती है...

  • रानी कुंद्रा - 1

    यह कहानी वर्षों पहले की है जब केशवापुर में रानी शुभांगी दर्द...

श्रेणी
शेयर करे

जरूरी था - 2

जरूरी था तेरा गिरना भी,
गिरके उठना भी,
जिंदगी के मुकाम को ,
हासिल करना भी।


जब तुम टूट जाते हो पूरी तरह से , तभी तुम खुद को पा सकते हो,खुदको पाने की राह कभी भी आसान होती ही नहीं। दुख के बिना सुख नहीं आंसू के बिना हसी नई, कुछ खोए बिना कहा कुछ पा सका है इंसान।


जब लगे टूट चुके हो तुम, तो ये करो।

1. फूटी फूट कर रोना है रो लो मेरे यार।

2.खुद को कुछ समय के लिए isolated  कर दीजिए कोई दिक्कत नहीं है।

3. अपने मन को अपने वश में कीजिए, अपने विचारों को।नियंत्रण कीजिए और खुद को अपना लीजिए।

*फिर शुरू कीजिए अपनी बाहर की दुनिया में आने का काम।

1. अपने काम को अपना असली मकसद बनाए, जीवन में कुछ भी नहीं पीछे छूटता, ये समझना ही तो अंत है और वो अंत ही अनंत का सफर है।

2.कुछ गलतियां इतनी बड़ी नहीं होती कभी भी तो सीखो आगे बढ़ो, क्यू की रुक जाना हमारा सफर कि मंजिल तक नहीं पहुंच सकते।

3. कभी किसी के सामने इतने कमजोर मत हो जाना, कोई तुम्हारे जीवन की दस्ता को तुम्हारे सामने बोले, उसका मजाक बनाए, तुम्हारी भावना को आहत करे।

4.खुद को physically & Maintally strong रखना सिर्फ़ तुम्हारी responsibility है।

5.में हु मेरे साथ का नारा खुद के लिए लगाते जाओ और जीवन के हर कदम पर आगे बढ़ते जाओ।


Nida fazali ki likhi ek kavita hai,

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
(सफर में धूप तो है और यहां भीड़ की कोई कमी तो है ही नहीं,तो यह धूप को ओर भीड़ को जेल सको तो तुम भी बाहर आ करके चलो।)

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
(किसी के भी लिए यह रस्ते बदलते नहीं है, यही तुम अपनी राह खुद बदल सकते हो तो तुम चलो)

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो
(रास्ता तो किसी को मिलते है नहीं, यदि तुम किसी को गिराके खुद सम्भल सकते तो चलो)

कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो
(की ठंडी के मौसम का धुआं धुआं हर तरफ है, यही इस धुएं से तुम बाहर निकल सको तो चलो।)

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
(यही जिंदगी के कुछसपने है, ओर थोड़ी सी उम्मीदें है तो इन्हीं खिलौने से बहल जाओगे आगे जाके तो चलो।)


यह कविता बहुत कुछ सीखती है,

जीवन में जब कुछ पुराना छोड़ नया शुरू करते है तो लगता है कुछ बहुत अज़ीज़ था चला गया, कुछ समय बाद महसूस होता है वैसा कुछ तो था ही नहीं जिसके बिना मैं अपना जीवन जी नहीं सकता था।


जब हम यह अवस्था में आते है, तब समझना हमने जीवन का असली चरण समझ लिया है कि, अकेले आए है जीवन में, अकेले जान है हमें इस दुनिया से। 

क्यों कि यही दुनिया की रीत है।

जीवन का असली मतलब है, खुद को जानना, जरूरी है अपने आप के लिए जीना क्यों कि तुम खुद को पा कर ही जीवन में खुश रह सकते हो।