मझली दीदी S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मझली दीदी

 

                                             मझली दीदी 

 

 कोई नहीं जानता है उस गाँव का नाम चिंतापुर क्यों पड़ा या किसने यह नाम रखा था  . उस गांव के ज्यादातर लोग चिंतित रहते थे या नहीं पता नहीं पर एक आदमी हमेशा चिंतित रहता था  . उसका नाम  चिंतामणि था  . चिंतामणि को इतनी संपत्ति  थी  जिससे उसके परिवार का गुजारा आराम से हो जाता था  . 


चिंतामणि को तीन   बेटियां थीं  . बेटे  की प्रतीक्षा में उसे तीन बेटियां हुई  . पर तीन  बेटियों की शादी करना इतना आसान नहीं था , इसी को ले कर वह चिंतित रहता था  . सबसे बड़ी बेटी  की शादी  चिंतामणि ने पत्नी के जीवन काल में संपन्न कर दिया था  . बड़ी बेटी की शादी के कुछ ही दिनों के बाद उसकी पत्नी चल बसी  . इसके कुछ माह के बाद वह भी बीमार रहने लगा  . अब वह और भी चिंतित रहने लगा  .  उस की दूसरी  बेटी का नाम माया था जिसे वह प्यार से मझली कहा करता था  . 


चिंतामणि की बड़ी बेटी  शादी के बाद ससुराल में अपने परिवार के साथ खुश थी  . माया अपने बीमार पिता की भरपूर सेवा मन लगा कर करती  . चिंतामणि की बड़ी बेटी बीच बीच में दो चार दिनों के लिए आ कर पिता का हाल पूछ कर चली जाती थी  . चिंतामणि माया से कहा करता   “ आखिर उस  को  अपने परिवार की जिम्मेवारी भी निभानी है  . बाकी दोनों  बेटियों की शादी के बाद मैं घर में अकेला रहूंगा  . न जाने आगे मुझे कैसे कैसे दिन देखने होंगे  .  “   इन सब बातों के चलते दिन पर दिन उसकी उदासी और चिंता बढ़ती जा रही थी  . यह  सब देख और सुन कर  एक दिन माया ने पापा से कहा “ पापा आप नाहक चिंता न किया करें  . आपकी मंझली है न  . आप मुझसे छोटी  बहन की शादी कर दें  .जब तक आपकी साँसें हैं  मैं आपके साथ रहूंगी और आपका पूरा ध्यान रखूंगी  . “


“ मझली मुझे तुम पर पूरा भरोसा है पर तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो कि तुम्हारी शादी न कर बाकी छोटी की शादी कर दूँ  . मुझे ऐसा कर के  न  कभी चैन मिलेगा न ही मैं सुकून से मर सकूंगा  . “ 


“ पापा मैंने भगवान् के सामने शपथ ली है कि मैं आजीवन आपके साथ रहूंगी  . मैंने ऐसा निर्णय अपनी ख़ुशी और सुकून के लिए लिया है  . आप मेरी  छोटी बहन की शादी  निःसंकोच कर सकते हैं  . वैसे भी मुझे भनक मिली है कि उसने अपने लिए लड़का  पहले से ही चुन लिया  है  . कुछ दिनों से वह उस  लड़के से प्यार कर रही है और दोनों ने शादी करने का फैसला किया है  . पर संकोचवश छोटी  अभी इसे स्वीकार नहीं कर रही है क्योंकि मेरी शादी अभी नहीं हुई है  . आप उस  को बुला कर पूछ सकते हैं और उसकी शादी कर सकते हैं  .  पापा मैं आपके साथ ही रहूंगी  . “ 


“ मझली मुझे तेरा प्रस्ताव तर्कसंगत नहीं लग रहा है  . “ चिंतामणि ने कहा 


“ कभी कभी आदमी को मजबूर हो कर ऐसा करना पड़ता है पापा  . “ 


“ तब क्या तुम शादी नहीं करोगी ? “ 


“ करूंगी पापा , पहले आप छोटी की शादी कर दें  . उसके बाद अगर कोई सच्चा जीवन साथी मिला जो मुझे आपके साथ स्वीकार करे ,  उस से मैं शादी की सोच सकती हूँ  . “  मझली ने कहा 


चिंतामणि ने अपनी  छोटी बेटी को बुला कर जब उस से पूछा तब उसने अपनी प्रेम कहानी को स्वीकार किया  . कुछ ही मास के अंदर माया ( मझली ) की  छोटी बहन की शादी हो गयी  .  चिंतामणि ने अपनी तीनों बेटियों को बुला कर कहा “ हमारे पास संपत्ति के नाम पर यही एक घर बचा है  . जब तक मझली की शादी नहीं हो जाती , यह घर नहीं बिकेगा  . उसकी शादी के बाद ही इसे बेचना तुमलोग  . इसे मेरी अंतिम इच्छा मान कर इसका आदर करना  . “    तीनों बहनों की ख़ामोशी को चिंतामणि ने उनका स्वीकार समझ कर चैन की साँस ली  . 


 इसके एक साल के अंदर चिंतामणि  चल बसे  . अब  घर में माया अकेली बच गयी थी  . 


चिंतामणि की शादी के बाद माया की बाकी दोनों  बहनों और उनके पति ने घर बेचने के लिए मझली  पर दबाव दिया  . तब माया ने कहा “ तुमलोग पापा को दिया वचन  भूल गए  . उन्होंने कहा था कि मेरी शादी के बाद ही घर बेचना है  . “ 


दोनों  बहनों ने कहा “ नहीं , हम तुम्हारी शादी तक इंतजार नहीं कर सकते हैं  . इस उम्र में तेरी शादी जल्द होने से रही   . हम घर बेच  देते हैं और तुम्हारा जो हिस्सा होगा ईमानदारी से तुम्हें दे दिया जायेगा  . “ 


उन्होंने अपने पिता के घर को बेच कर माया को उसके हिस्से का नगद रुपये दे दिया  . घर को खरीदने वाला एक अधेड़ उम्र का आदमी था  . जब उसने माया से घर  खाली करने के लिए कहा तब माया ने उस से कहा “ मुझे कुछ दिन का समय दें  . तब तक मैं शहर में अपने लिए कोई नया ठिकाना ढूंढ लूंगी  . “


“ ठीक है , मैं तुम्हें एक महीने का समय देता हूँ  . “ 


माया के पास जितनी रकम थी उस में घर खरीदने के अलावा उसकी अन्य जरूरतें भी पूरी करनी थी  . माया ने दूसरा घर ढूंढने का बहुत प्रयास किया पर एक महीने के अंदर उसे सफलता नहीं मिली  . एक महीना पूरा होते ही मकान मालिक ने आ कर घर खाली करने के लिए कहा  . तब माया बोली “सॉरी सर मैं अभी तक कोई घर नहीं खोज सकी हूँ  . क्या आप कृपा कर के कुछ और समय मुझे दे सकते हैं ? “ 


“ तुम्हें और कितना समय चाहिए ?  “ 


“ बस मात्र 15 दिन का समय और दें  . इसके बाद मैं घर खाली कर दूँगी  , आई स्वीयर सर  “ 


“ ठीक है ,  मैं तुम्हें एक महीने का अतिरिक्त समय दे रहा हूँ  . इसके बाद अब और न कहना  . “ 


“  धन्यवाद , आपकी बड़ी मेहरबानी  . उसके बाद मुझे कोई ठिकाना मिले या न मिले मैं यहाँ से चली जाऊंगी  . “ 


एक महीना और बीत गया पर माया को कोई दूसरा ठिकाना नहीं मिला  . मकान मालिक ने कहा “ अब तो दो महीने हो गए  .अब  तुम्हें घर खाली करना देना चाहिए   . “ 


माया ने अपना सामान पहले से ही पैक कर रखा था  . उसने कहा “ जी ,सर   मुझे कोई ठिकाना नहीं मिला है पर मैं अभी घर खाली किये देती हूँ  . “  बोल कर वह एक एक कर अपना सामान बाहर निकालने लगी  . यह देख कर मालिक बोला “ इस तरह तुम कहाँ जाओगी  . तुम्हारा कोई सगा संबंधी नहीं है ? “ 


“ नहीं , मेरा कोई भी नहीं है  . पर आप चिंता नहीं करें , बस कुछ घंटों के लिए मेरा  सामान यहीं  बरामदे में रहने दें  . मैं किसी आश्रम या निराश्रित महिला गृह में चली जाऊंगी  . “ 


मालिक कुछ देर तक गंभीर मुद्रा में सोचता रहा फिर बोला “ मुझे पता है कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है  . मेरे रंग रूप और कद को देख रही हो न  . शायद इसी  कारण किसी ने अभी तक मुझे पसंद नहीं किया है  . बुरा न मानो तो क्या तुम मुझसे शादी कर सकती हो ? फिर यह घर तुम्हारा भी  रहेगा  . “


यह सुन कर माया भी सीरियस हो खामोश हो सोच में पड़ गयी  . जब बहुत देर तक उसने  कोई उत्तर नहीं दिया तब मालिक ने कहा “ कोई बात नहीं है , तुम दुखी मत होना  . अगर तुम्हें मेरा प्रस्ताव नहीं मंजूर है फिर भी यह घर तुम्हारा ही रहेगा  . मैं चला जाता हूँ  .  भगवान् ने मुझे इतना दिया है कि इस घर के बिना भी हम आराम से रह सकते हैं  . “   इतना बोल कर उसने घर के मालिकाना हक़ के पेपर माया  को सौंपना चाहा  . 


माया ने अपना हाथ पीछे खींच लिया  . तब मालिक ने कहा “ तब मैं क्या समझूँ ? तुम्हें मेरा प्रस्ताव स्वीकार नहीं है ? “ 


“ नहीं सर , मैंने ऐसा तो नहीं कहा है  . “ 


“ इसका अर्थ है मेरा प्रस्ताव तुम्हें मंजूर है  . “ 


“ जी सर , आप मेरे जीवन में भगवान् बन कर  आये हैं , सर , मेरे पास आपको शुक्रिया अदा करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं है  . “ 


“  ये सर सर क्या लगा रखा है  ? क्रोधित होने का नाटक करते हुए मकान मालिक ने कहा


“ सॉरी , तब मैं और क्या कहूँ ? “


 अब सर नहीं चलेगा , एजी कहना होगा  . “   और उसने माया को आलिंगन में ले लिया  .इस  प्रथम आलिंगन से  माया का पूरा बदन स्पंदित हो उठा और साथ ही उसका चेहरा शर्म से आरक्त हो गया  . 


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नोट - यह पूर्णतः  काल्पनिक कहानी है