एक कहानी उपन्यास की Neeraj Sharma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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एक कहानी उपन्यास की

----जंगल -----                            आज हम जो भी पढ़ने की क्लासे पढ़ के नवयुवक बड़े बड़े ओहदो पर लग गए है, या लगने जा रहे है, उनमे से कुछ बन रहे है, परवार का निर्वहन हम कुछ चलाकिया से करते है, कुछ आने वाली संतान से बच जाये। उसको हम समुचित धन कहते है, जो सब खर्चो को निकाल कर बनता है।जुड़े हुए पैसे बच्चो के काम आये गे.... यही सोच है सब की। अच्छी सोच है, अक्सर माँ - बाप ही सब कुछ  सोचते है,  हमारी औलाद दर दर की ठोकर न खाये ।                            आदि काल से यही चला आता था... कया ज़ब हम आदिमानव हम ही  थे कया... ये हमें कोई ऐसा कहे तो पता नहीं अंदर जो जंगल है न, उसमे आग लग जाती है... कहना पड़ ता है, हाँ, हम ही थे, हमारे पूर्वज...                             कया मास खाते थे वो भी कच्चा, नहीं नहीं... हमारे पूर्वज.. ऐसा काम करते थे।मान भी जाओ, मानना ही होगा। बस बताना कठिन है। धीरे धीरे आग का अविष्कार हुआ, फिर पकने लगा मास, फिर..... पेट की भूख                जिंदगी की रफ्तार आज की मेट्रो से तेज है, वक़्त ऐसे निकल जाता है, जैसे पूछो मत। आज हम एक पढ़े लिखें समाज के नागरिक अच्छे व्यक्ति बने हुए है। औऱ जो हमारे पुरख पुराने रीती रिवाजो का गला घोट के आगे आ रहे है। दिशा है किस औऱ  शयद युवा पास नहीं है,  मुकाम कया होगा कोई न मुराद नहीं जानता। ग़रीबी हमारा पीछा नहीं छोड़ रही, कयो, हम कमाने वाले एक है खाने वाले पांच से लगभग,हमारे अंदर आज भी उतनी ही तपश है जितनी पहले भूख लगण्ड पे हिरण को मार देना। या सूयर को मार कर खाना। भूख एक हमारे देश मे नहीं सब देशो की जड़ है।भूख पेट की इतनी जोर पकड़ लेती है, कि हम न मांगने से, न खोने से, न लड़ने से, पीछे है। भूख सस्कारी नहीं है, ये बाते पेट भर कर होती है। महजब एक नया डिवाइस है।जो राजनीती मे चलता है। वैसे इसे जोड़ो गे तो लोग वहम कहेगे। धर्म के नाम पे मांगो वोटस, भारत की राजनीती जही तक है, गरीब बहुत ही गरीब है  ------------------------------------!!!!!! कुछ करती रही है.... कया से कया।।        ये कहानी नहीं है, सत्य है, पहले ही बता दू।ज़िन्दगी मे एक तूफान कभी कभार उठता है, औऱ खत्म होते होते सब जंगल की भस्म हो जाता है, जंगल की आग भी तभी खतरनाक होती है, ज़ब हम खुद भी उनमे फ़स के निकल नहीं सकते।शेयर मार्किट की चढ़ती बुलदी, गवह थी, कपनी  कितना मुनाफा कमा रही है... हौसला देने के लिए शुक्रिया। राहुल  के विचार गर्म थे, बोल कर वो सब को सोचने पे मजबूर करने वाला, एक कपनी के अच्छे अहुदे पे कार्य कर  रहा था। राहुल न होता, तो शायद सब खत्म हो जाता। बचाने वाला आज हजारों लोगो को रोजगार देने वाला संसार की दूसरी बुलदी पर था। चुप रहने की वजह नहीं थी। करोड़ो की आयी चलायी थी।तपती आग मे सब पक जाता है। बस पाने का एक तरीका हो, जानने का माध्यम हो। जिंदगी कब सुबह औऱ शाम की दरे तेह कर जाए, कोई नहीं जानता।