खौफनाक हकीकत Raj द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खौफनाक हकीकत

अध्याय 1: अनजान गांव की दहलीज
 

राजेश ने जैसे ही गांव की ओर कदम बढ़ाया, उसे महसूस हुआ कि यहां कुछ असामान्य है। हवा में अजीब सा सन्नाटा था, जैसे कोई अदृश्य शक्ति हर ओर फैली हो। राजेश के साथ उसके तीन साथी - मोहित, स्नेहा और विक्रम थे। यह चारों एक खौफनाक रहस्य की खोज में निकले थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि वे खुद उस रहस्य का हिस्सा बनने जा रहे थे।

गांव के मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही उनकी मुलाकात एक बूढ़े आदमी से हुई, जो बेहद डरावनी आंखों से उन्हें घूर रहा था। उसकी आंखों में अजीब सा खौफ था, मानो वह कुछ कहना चाह रहा हो लेकिन बोल नहीं पा रहा हो। राजेश ने उससे गांव के बारे में पूछने की कोशिश की, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह सिर्फ इशारा करते हुए उन्हें अंदर जाने से मना कर रहा था।

"इस गांव में मत आओ।" बूढ़े ने कांपती आवाज़ में कहा, "यहां जो आता है, वो लौटकर नहीं जाता।"

राजेश ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया और अपने साथियों के साथ गांव के अंदर कदम रख दिया। जैसे ही उन्होंने गांव में प्रवेश किया, अजीबोगरीब घटनाएं शुरू हो गईं। आसमान में अचानक बादल घिर आए, हवा तेज़ हो गई और एक अजीब सी ठंडक महसूस होने लगी। गांव की गलियां सुनसान थीं, और हर घर का दरवाजा बंद था।

गांव के हर कोने से उन्हें ऐसा लगा, जैसे कोई छुपकर उन्हें देख रहा हो। कुछ समय बाद, वे एक पुराने खंडहरनुमा किले के पास पहुंचे। यह वही किला था, जिसके बारे में राजेश ने पहले सुना था। किले की दीवारों पर अजीबोगरीब निशान थे, जो खून के धब्बों जैसे दिख रहे थे।

किले की ओर बढ़ते हुए, राजेश के दिल में एक अजीब सा खौफ पैदा हुआ। लेकिन वह जिज्ञासु था। उसे इस गांव के रहस्यों का पर्दाफाश करना था, चाहे इसके लिए उसे अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े।

आगे क्या हुआ, यह जानने के लिए पढ़ें अगला अध्याय...

 

 

अध्याय 2: बंद दरवाजों के पीछे छिपा अतीत

 

गांव के अंदर घुसने के बाद, राजेश और उसकी टीम को एहसास हुआ कि यह गांव वास्तव में उतना साधारण नहीं था जितना उन्होंने सोचा था। हर तरफ़ अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। हर घर का दरवाजा बंद था और खिड़कियों पर मोटी लकड़ी की शटरें चढ़ी हुई थीं। किसी भी घर से न तो कोई आवाज़ आ रही थी और न ही किसी के होने का कोई संकेत। यह मानो एक मूक निवास था, जहां समय ठहर सा गया हो।

जैसे ही वे गांव की मुख्य सड़क पर आगे बढ़े, उनकी नज़र एक पुरानी हवेली पर पड़ी। हवेली का दरवाजा भी बाकि सभी घरों की तरह बंद था, लेकिन यह हवेली बाकियों से काफी अलग थी। यह हवेली गांव के बाकी घरों की तुलना में कहीं ज्यादा विशाल और भव्य थी, हालांकि अब यह भी खंडहर में तब्दील हो चुकी थी। इसके विशाल लकड़ी के दरवाजे पर जंग लगे हुए थे, और दीवारों पर काई जम चुकी थी।

"यह जगह कितनी पुरानी है?" स्नेहा ने धीमे स्वर में पूछा, जैसे कि उसकी आवाज़ हवेली के अंधेरे कोनों में गूंजकर किसी अनजानी चीज़ को जगा न दे।

"सैकड़ों साल पुरानी होगी," राजेश ने अनुमान लगाया, "लेकिन यह हवेली सिर्फ समय के प्रभाव से नहीं टूटी है। यहां कुछ और है।" उसकी आवाज़ में चिंता थी, जैसे वह महसूस कर रहा हो कि यहां कुछ भयानक घट चुका है।

विक्रम ने हवेली के दरवाजे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या हम अंदर जाएं? शायद हमें यहां कुछ सुराग मिल जाएं।"

राजेश ने एक पल के लिए सोचा, फिर सिर हिलाया। "हमें अंदर जाना चाहिए। हमें इस गांव के रहस्यों को समझना है, और यह हवेली इसका केंद्र हो सकती है।"

विक्रम ने दरवाजे को धक्का दिया, लेकिन वह अपनी जगह से हिला तक नहीं। "यह बंद है," उसने कहा, और फिर से ज़ोर लगाया। दरवाजा जंग लगा होने के कारण खुलने में कठिनाई कर रहा था, लेकिन कुछ ही देर बाद यह एक अजीब सी आवाज़ के साथ खुल गया। उसके खुलते ही हवेली के अंदर से एक ठंडी, सीली हवा का झोंका बाहर आया, जिसने सबकी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी।

वे अंदर घुसे तो सामने एक बड़ा सा हॉल था, जिसकी दीवारों पर धूल और जाले फैले हुए थे। फ़र्श पर बिखरी हुई लकड़ियों और टूटे फर्नीचर के टुकड़े इस बात का सबूत थे कि यहां काफी समय से कोई नहीं आया था। हालांकि, यहां की ख़ामोशी में भी एक अजीब सी बेचैनी थी, मानो यह जगह उन लोगों के लौटने का इंतज़ार कर रही हो, जो इसे कभी छोड़कर गए थे।

"यह जगह तो मानो एक समय में बहुत भव्य रही होगी," मोहित ने कहा, जो टीम में सबसे ज्यादा चीज़ों का निरीक्षण करने में माहिर था। उसकी आंखें हर छोटी से छोटी चीज़ को ध्यान से देख रही थीं।

स्नेहा ने दीवारों पर लगे कुछ चित्रों की ओर इशारा किया। "देखो, ये चित्र कितने पुराने हैं। इनमें कौन लोग होंगे?" उसने उत्सुकता से पूछा।

राजेश ने एक चित्र के पास जाकर देखा। यह एक परिवार का चित्र था, जिसमें एक आदमी, एक औरत, और दो बच्चे दिखाई दे रहे थे। आदमी के चेहरे पर कठोरता थी, जैसे वह किसी बड़े ज़मींदार या प्रमुख व्यक्तित्व का हो, जबकि औरत की आँखों में डर का भाव था। बच्चे भी असामान्य रूप से गंभीर दिख रहे थे।

"यह वही परिवार हो सकता है जिसने इस हवेली को बनाया होगा," राजेश ने अनुमान लगाया। "लेकिन उनके चेहरे पर डर क्यों है? यह सामान्य पारिवारिक चित्र नहीं लगता।"

विक्रम ने हवेली के अंदर और आगे बढ़ने का इशारा किया। "हमें और देखना चाहिए। शायद हमें कुछ और मिले।"

जैसे ही वे आगे बढ़े, हवेली का अंधेरा और घना होता गया। हवेली में न कोई खिड़की थी और न ही कोई प्राकृतिक प्रकाश आ रहा था। हर कोना डरावना था, और वहां की ठंडक असहनीय होती जा रही थी। वे एक लंबे गलियारे में पहुंचे, जहां कई बंद दरवाजे थे।

"यहां तो जैसे दरवाजों का जाल बिछा हुआ है," मोहित ने हंसते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में घबराहट साफ झलक रही थी।

"हम इन दरवाजों को खोल सकते हैं, या पहले पूरी हवेली का दौरा कर लें?" स्नेहा ने पूछा।

"हमें दरवाजों के पीछे क्या है, यह जानना चाहिए," राजेश ने कहा। "हर दरवाजा कुछ न कुछ छिपा रहा है। और जब तक हम इसे खोलेंगे नहीं, हम सच्चाई तक नहीं पहुंच पाएंगे।"

पहले दरवाजे के पास जाकर, विक्रम ने उसे धक्का दिया। यह दरवाजा आसानी से खुल गया। अंदर एक कमरा था, जो लगभग खाली था। लेकिन फ़र्श पर कुछ अजीब से निशान बने हुए थे, जैसे किसी ने उसे ज़बरदस्ती घसीटा हो।

"यह क्या है?" मोहित ने कमरे के कोने में कुछ देखा। वह एक पुराना संदूक था, जिस पर धूल की मोटी परत चढ़ी हुई थी। विक्रम ने उसे खोलने की कोशिश की, लेकिन वह बंद था।

"यह संदूक यहां क्यों रखा है?" स्नेहा ने हैरानी से पूछा।

राजेश ने संदूक को ध्यान से देखा। "शायद इसमें कोई महत्वपूर्ण चीज़ छिपी हो। हमें इसे खोलने का कोई तरीका ढूंढना होगा।"

लेकिन जैसे ही उन्होंने संदूक को और ध्यान से देखने की कोशिश की, हवेली के बाहर से अजीब आवाज़ें आने लगीं। ऐसा लग रहा था, मानो कोई हवेली के बाहर घूम रहा हो।

"यह आवाज़ें कैसी हैं?" स्नेहा ने डरते हुए पूछा।

राजेश ने बाहर झांकने की कोशिश की, लेकिन हवेली के बाहर का दृश्य स्पष्ट नहीं था। आवाज़ें कभी तेज़ हो जातीं, और कभी बिल्कुल गायब हो जातीं।

"शायद यह सिर्फ हवाओं का शोर हो," राजेश ने खुद को और अपनी टीम को दिलासा देते हुए कहा। "हमें ध्यान भटकाना नहीं चाहिए।"

वे फिर से दूसरे दरवाजे की ओर बढ़े। इस बार दरवाजा खोलते ही उन्हें अंदर से बहुत पुरानी किताबें और दस्तावेज़ मिले। स्नेहा ने उन्हें उठाकर देखा और पढ़ने लगी।

"यहां कुछ लिखा हुआ है," उसने कहा, "यह पुराने ज़माने के दस्तावेज़ लगते हैं।"

राजेश ने उसे ध्यान से पढ़ा। "ये दस्तावेज़ बताते हैं कि इस हवेली में कभी एक ज़मींदार रहा करता था। वह आदमी बहुत अमीर और शक्तिशाली था, लेकिन उसकी ताकत के पीछे बहुत से रहस्य और अपराध छिपे हुए थे।"

"क्या मतलब?" विक्रम ने पूछा।

"यह ज़मींदार अपने इलाके के लोगों पर अत्याचार करता था। उसके अधीन काम करने वाले लोग उसकी क्रूरता से परेशान थे। लेकिन सबसे बड़ा रहस्य यह है कि उसकी पत्नी और बच्चे अचानक गायब हो गए थे। गांव में अफवाह थी कि उसने खुद अपनी पत्नी और बच्चों को मार दिया था, लेकिन किसी के पास इसका कोई सबूत नहीं था।"

स्नेहा ने कंपकपाते हुए कहा, "शायद इस हवेली के बंद दरवाजों के पीछे ही इस रहस्य का जवाब छिपा है।"

वे अब तीसरे दरवाजे की ओर बढ़े, जो सबसे बड़ा और सबसे भारी लग रहा था। दरवाजा खोलते ही एक भयानक बदबू ने उनका स्वागत किया। अंदर एक पुराना कमरा था, जिसमें कई कंकाल और हड्डियों के ढेर थे। यह एक तरह का तहखाना था, जहां मानो किसी ने वर्षों से इंसानों की लाशें छिपाई हों।

"हे भगवान!" स्नेहा ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा। "यहां क्या हुआ होगा?"

राजेश ने तहखाने के फर्श पर उकेरे गए कुछ चिह्नों की ओर इशारा किया। "यहां कुछ काले जादू के निशान हैं। यह ज़मींदार सिर्फ क्रूर ही नहीं था, बल्कि वह तंत्र-मंत्र और काले जादू में भी लिप्त था। यह कमरा शायद उसकी उन काली शक्तियों का गवाह है, जिनका इस्तेमाल वह लोगों पर करता था।"

"शायद इसीलिए उसकी पत्नी और बच्चे गायब हो गए थे," मोहित ने कहा। "वह उन्हें इन काले जादूओं में बलि के रूप में इस्तेमाल करना चाहता होगा।"

"लेकिन फिर वो खुद क्या हुआ?" विक्रम ने सवाल किया। "यह ज़मींदार और उसकी कहानी का अंत कैसे हुआ?"

"शायद वह भी इन शक्तियों का शिकार बन गया," राजेश ने अनुमान लगाया। "यह हवेली इन सब रहस्यों का गवाह है, और इसका हर दरवाजा एक नई खौफनाक हकीकत छिपाए हुए है।"

लेकिन इस बात को समझने से पहले ही, हवेली के अंदर और बाहर की आवाज़ें और तेज़ हो गईं। ऐसा लग रहा था, मानो हवेली के बाहर कोई अदृश्य ताकत उनका पीछा कर रही हो।

"हमें यहां से निकलना होगा," राजेश ने घबराते हुए कहा। "यह जगह अब हमारे लिए सुरक्षित नहीं है।"

लेकिन जैसे ही वे दरवाजे की ओर बढ़े, अचानक से दरवाजा खुद-ब-खुद बंद हो गया। पूरे कमरे में अंधेरा छा गया, और उनके सामने कुछ अनजानी आकृतियां उभरने लगीं। ये आकृतियां इंसानी नहीं थीं, बल्कि कुछ भयावह और अमानवीय थीं। वे हवा में तैरती हुई उनके पास आने लगीं।

राजेश ने समझ लिया कि वे अब एक खतरनाक जाल में फंस चुके थे। यह हवेली सिर्फ एक खंडहर नहीं थी, बल्कि एक जीवित मकान था, जिसमें छिपी हुई आत्माएं और शक्तियां उन्हें अपने जाल में फंसा रही थीं।

क्या वे इस खौफनाक जाल से निकल पाएंगे, या यह हवेली उनका आखिरी ठिकाना बनेगी?

 

अध्याय 3: रहस्यमयी आहटें
 

रात घिर चुकी थी। गांव की सड़कों पर सन्नाटा छा गया था, और हवाओं में ठंडक बढ़ गई थी। राजेश और उसकी टीम अब तक कई भयानक घटनाओं का सामना कर चुके थे। हर कोने में किसी न किसी रहस्य की गहरी परतें छिपी हुई थीं। लेकिन जिस चीज़ ने सबसे ज्यादा डराया था, वह थी उन अनजानी आहटों का सिलसिला जो हवेली के हर दरवाजे, हर कमरे और हर कोने से आती थीं।

जब वे हवेली के अंदर दाखिल हुए थे, तब सब कुछ ठीक लग रहा था, लेकिन अब जैसे ही रात गहराने लगी, अजीबोगरीब आवाजें उठने लगीं। ये आहटें इतनी रहस्यमयी थीं कि मानो कोई अदृश्य शक्ति उनकी मौजूदगी को महसूस कर रही हो।

राजेश, स्नेहा, मोहित और विक्रम, सभी एक बड़े हॉल में जमा हुए थे। उन्होंने कई दरवाजों और कमरों की जांच की थी, लेकिन अब कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा था। हर जगह एक अजीब सा डरावना माहौल था।

"तुम्हें भी यह आवाज़ें सुनाई दे रही हैं?" स्नेहा ने कंपकंपाती आवाज़ में पूछा।

"हां," राजेश ने धीरे से कहा। "यह आहटें पहले से नहीं थीं। लगता है जैसे कोई हमारे आसपास चल रहा है, लेकिन दिखाई नहीं दे रहा।"

"यहां कोई है," विक्रम ने घबराते हुए कहा। "मैं इसे महसूस कर सकता हूं। यह जगह किसी अजीब ऊर्जा से भरी हुई है।"

अचानक, कमरे के कोने से एक तेज़ ध्वनि आई, जैसे किसी ने लकड़ी के फर्श पर भारी कदम मारे हों। सभी चौंक गए और आवाज़ की दिशा में देखने लगे। लेकिन वहां कुछ नहीं था, सिर्फ अंधेरा।

"क्या यह हवा हो सकती है?" मोहित ने किसी तार्किक व्याख्या की कोशिश की।

"नहीं," राजेश ने सिर हिलाया। "यह हवा नहीं है। यह कुछ और है। यह आवाज़ें हमसे कुछ कहना चाहती हैं।"

उन्होंने ध्यान से चारों ओर देखा। हॉल के कोने में एक पुरानी अलमारी खड़ी थी, जिसके दरवाजे आधे खुले थे। स्नेहा ने डरते-डरते उसकी ओर इशारा किया। "वहां देखो। उस अलमारी के पीछे कुछ है।"

राजेश और विक्रम धीरे-धीरे अलमारी की ओर बढ़े। जब उन्होंने अलमारी के दरवाजे को पूरी तरह से खोला, तो अंदर कुछ पुराने कागज़, तस्वीरें, और एक चमड़े का बैग मिला। बैग पर धूल की मोटी परत जमी थी, लेकिन अंदर जो था, वह कुछ बेहद महत्वपूर्ण हो सकता था।

"यह क्या है?" विक्रम ने बैग से एक किताब निकालते हुए पूछा। यह किताब बहुत पुरानी लग रही थी, मानो कई सालों से उसे किसी ने छुआ तक न हो। किताब के पन्ने पीले और नाजुक हो चुके थे। किताब के कवर पर एक नाम उकेरा हुआ था: "रतन सिंह।"

"रतन सिंह?" मोहित ने हैरानी से कहा। "क्या यह वही आदमी है जो इस हवेली का मालिक था?"

राजेश ने किताब के पहले पन्ने को ध्यान से पढ़ा। यह एक डायरी थी, जो हवेली के पूर्व मालिक रतन सिंह द्वारा लिखी गई थी। डायरी में उसकी जिंदगी की कई बातें दर्ज थीं—उसका परिवार, उसकी संपत्ति, और सबसे महत्वपूर्ण, उसकी अजीबोगरीब रुचि।

"यह आदमी एक सामान्य ज़मींदार नहीं था," राजेश ने गंभीरता से कहा। "यह तंत्र-मंत्र और काले जादू में रुचि रखता था।"

"तंत्र-मंत्र?" स्नेहा ने घबराकर कहा। "क्या वह इसी के कारण अपनी शक्ति और संपत्ति हासिल कर पाया था?"

"शायद," राजेश ने कहा। "लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि उसकी डायरी में कई बार आत्माओं का ज़िक्र किया गया है। वह आत्माओं से संवाद करता था, उनसे आदेश प्राप्त करता था।"

"आत्माएं?" विक्रम ने डरते हुए कहा। "क्या इसका मतलब है कि यहां जो आहटें हैं, वो उन्हीं आत्माओं की हैं?"

"संभव है," राजेश ने धीरे से कहा। "यह हवेली इन आत्माओं का घर बन चुकी है। रतन सिंह ने अपनी शक्तियों के लिए इन आत्माओं का इस्तेमाल किया होगा, और अब ये आत्माएं यहां फंसी हुई हैं।"

उनकी बातचीत के बीच एक बार फिर वही रहस्यमयी आहटें सुनाई देने लगीं। इस बार आवाजें और भी करीब थीं। ऐसा लग रहा था, मानो कोई उनके पीछे चल रहा हो। सभी ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। हॉल के चारों ओर की दीवारें अजीब सी हलचल कर रही थीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत उन पर दस्तक दे रही हो।

"यहां से हमें तुरंत निकलना चाहिए," मोहित ने घबराते हुए कहा। "यह जगह अब सुरक्षित नहीं है।"

लेकिन जैसे ही वे दरवाजे की ओर बढ़े, अचानक दरवाजा खुद-ब-खुद बंद हो गया। पूरे हॉल में एक भयानक सन्नाटा छा गया, और अंधेरा और घना हो गया। अब आहटें और भी साफ हो गईं, जैसे कोई उनके बिल्कुल पास ही हो।

"यह क्या हो रहा है?" स्नेहा ने कांपती हुई आवाज़ में पूछा।

राजेश ने अपने चारों ओर देखा। "यह आत्माएं हमसे कुछ कहना चाह रही हैं। शायद यह उनकी सजा है, या फिर हमें कुछ बताने की कोशिश कर रही हैं।"

तभी, अचानक दीवारों पर उभरते हुए कुछ छायाचित्र दिखाई देने लगे। ये चित्र बिल्कुल असली लग रहे थे, मानो कोई पुरानी फिल्म चल रही हो। चित्रों में एक आदमी दिखाई दिया, जो रतन सिंह जैसा लग रहा था। वह एक बड़े कमरे में खड़ा था, उसके सामने कुछ लोग बैठे हुए थे। उनकी आँखों में डर और घबराहट थी। रतन सिंह एक अजीब सी भाषा में कुछ मंत्र पढ़ रहा था, और उसके हाथ में एक चमकता हुआ पत्थर था।

"यह वही पत्थर है जिसके बारे में मैंने सुना था," राजेश ने कहा। "यह पत्थर काले जादू का स्रोत था।"

चित्रों में फिर से हलचल हुई, और अब दिखाई दिया कि वह आदमी उन लोगों पर कुछ अजीब सा जादू कर रहा है। एक-एक करके सभी लोग तड़पते हुए ज़मीन पर गिरने लगे, और उनकी आत्माएं उनके शरीर से निकलकर हवा में घुलने लगीं। रतन सिंह उन आत्माओं को अपने पत्थर के अंदर कैद कर रहा था।

"ओह भगवान," स्नेहा ने कंपकपाते हुए कहा। "इसने उन लोगों की आत्माओं को कैद कर लिया था। यही वजह है कि यह हवेली इतनी डरावनी है। ये आत्माएं अब भी यहां हैं, और हम पर नजर रख रही हैं।"

"हमें यहां से निकलने का कोई रास्ता खोजना होगा," मोहित ने कहा। "अगर हम जल्दी नहीं गए, तो हम भी इन आत्माओं के शिकार बन सकते हैं।"

वे चारों तेजी से दरवाजे की ओर बढ़े, लेकिन दरवाजा अब भी बंद था। राजेश ने दरवाजे को ज़ोर से धक्का देने की कोशिश की, लेकिन वह टस से मस नहीं हो रहा था। आहटें अब और तेज़ हो गईं, और ऐसा लगने लगा कि वह अदृश्य ताकत उनके और करीब आ रही है।

"हमें किसी और रास्ते से बाहर निकलना होगा," राजेश ने कहा। "शायद इस हवेली में कोई गुप्त दरवाजा हो।"

वे चारों हॉल से बाहर निकलकर हवेली के अन्य हिस्सों की ओर दौड़ पड़े। हर कदम पर वे आहटों का पीछा करते हुए भाग रहे थे। हवेली के कोने-कोने में वही अजीब सी आवाज़ें गूंज रही थीं।

कुछ समय बाद, वे एक छोटे से कमरे में पहुंचे, जहां एक खिड़की थी। खिड़की से बाहर का रास्ता दिखाई दे रहा था, लेकिन खिड़की को खोलना आसान नहीं था। विक्रम ने खिड़की को खोलने की कोशिश की, लेकिन वह जंग लगने के कारण अटक गई थी।

"जल्दी करो!" स्नेहा ने घबराते हुए कहा। "वे हमारे और करीब आ रहे हैं।"

विक्रम ने ज़ोर लगाया और अंततः खिड़की खुल गई। उन्होंने एक-एक करके खिड़की से बाहर निकलना शुरू किया। जैसे ही वे बाहर निकले, उन्हें महसूस हुआ कि वे अब सुरक्षित हैं। हवेली के अंदर की रहस्यमयी आहटें अब सुनाई नहीं दे रही थीं, लेकिन उनके मन में अब भी उस भयानक अनुभव की छवि बनी हुई थी।

"यह जगह... यह जगह शापित है," राजेश ने कहा। "रतन सिंह ने जो किया, उसकी सजा यहां की आत्माएं आज भी भुगत रही हैं। हमें यहां से जल्दी से जल्दी दूर जाना होगा।"

वे गांव की ओर वापस चल पड़े, लेकिन उनके मन में अब भी सवाल थे। हवेली के अंदर जो कुछ भी हुआ, वह उनके समझ से परे था। वे जान चुके थे कि उस हवेली में जो ताकतें थीं, वे सामान्य नहीं थीं।

"अब क्या?" मोहित ने पूछा। "क्या हम इस गांव के रहस्यों को उजागर कर पाएंगे?"

"शायद नहीं," राजेश ने गंभीरता से कहा। "लेकिन एक बात तय है—हमें इन रहस्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें छेड़ना हमारे लिए घातक साबित हो सकता है।"

वे गांव से दूर जाते हुए उन रहस्यमयी आहटों को अब भी महसूस कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वह हवेली अब भी उन्हें बुला रही थी, और शायद वे इस खौफनाक हकीकत से कभी दूर नहीं जा पाएंगे।

 

अध्याय 4: काली रात का आगमन
 

 

गांव में अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी। दिन ढल चुका था, और सूर्य की आखिरी किरणें पहाड़ों के पीछे छिपने लगी थीं। आसमान पर बादल गहराने लगे थे, मानो किसी बड़ी घटना की आहट हो। गांव के लोग अपने-अपने घरों में दुबक चुके थे, और हर दरवाजा बंद हो चुका था। राजेश और उसकी टीम इस बात से अनजान थी कि वे एक ऐसी रात का सामना करने जा रहे थे, जिसे गांव के लोग "काली रात" के नाम से जानते थे।

काली रात, गांव की प्राचीन कहानियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यह रात साल में सिर्फ एक बार आती थी, और उस रात गांव के लोग अपने घरों में छिपकर भगवान से दया की प्रार्थना करते थे। काली रात के दौरान कोई भी इंसान घर से बाहर नहीं निकलता था, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि उस रात कुछ अनजानी शक्तियां गांव में घूमती हैं, जो हर जीवित आत्मा का शिकार करती हैं।

राजेश, स्नेहा, मोहित और विक्रम उस रहस्य की तह तक जाने के लिए गांव में ही रुके थे। दिन भर की थकान के बाद वे गांव के बाहर स्थित एक पुरानी हवेली में ठहरे थे, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि आने वाली रात उनके जीवन की सबसे खतरनाक रात साबित होने वाली थी।

शुरुआत की बेचैनी
रात के पहले पहर में ही हवेली के चारों ओर की हवा में अजीब सा तनाव महसूस होने लगा। स्नेहा बालकनी में खड़ी थी, जब उसने महसूस किया कि हवाएं अब और तेज़ हो गई हैं। हर दिशा से अंधकार तेजी से फैल रहा था, और उसे ऐसा लग रहा था कि आसमान पूरी तरह से काले बादलों से ढक चुका है।

"यह बहुत अजीब है," स्नेहा ने डरते हुए कहा। "यहां की हवा में कुछ गलत है।"

राजेश ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "यह सिर्फ मौसम का असर है। पहाड़ी इलाके में अक्सर ऐसे मौसम होते हैं।"

लेकिन मोहित और विक्रम भी बेचैन थे। मोहित ने अपने चारों ओर के माहौल को ध्यान से देखा और कहा, "यह सामान्य मौसम नहीं है। यह कुछ और है।"

तभी अचानक हवेली के दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक हुई। सभी चौंक गए और दरवाजे की ओर देखने लगे। दस्तक लगातार बढ़ती जा रही थी, जैसे कोई बाहर खड़ा होकर ज़बरदस्ती अंदर आना चाहता हो। विक्रम ने हिम्मत करके दरवाजे के पास जाकर देखा, लेकिन बाहर कोई नहीं था।

"यह क्या था?" विक्रम ने कांपते हुए पूछा।

"कोई मज़ाक कर रहा होगा," राजेश ने कहा। लेकिन उसकी आवाज़ में भी एक अनजाना डर साफ झलक रहा था।

काली रात की शुरुआत
रात के गहराने के साथ ही अजीबोगरीब घटनाएं शुरू हो गईं। हवेली के अंदर अचानक से ठंडक बढ़ गई, और हर कोने से अजीब आवाज़ें आने लगीं। ऐसा लग रहा था कि दीवारों के पीछे कुछ चल रहा हो।

स्नेहा ने डरते हुए कहा, "मुझे यह जगह अब सही नहीं लग रही। हमें यहां से निकल जाना चाहिए।"

मोहित ने सहमति में सिर हिलाया। "शायद यह वही काली रात है, जिसके बारे में गांव के लोग बात कर रहे थे। हमने उनसे इस बारे में ज्यादा सवाल नहीं किए, लेकिन अब मुझे लगता है कि यह रात सामान्य नहीं है।"

राजेश ने अपनी घड़ी की ओर देखा। रात के दस बज चुके थे। अचानक हवा के साथ एक अजीब सी फुसफुसाहट सुनाई देने लगी। यह फुसफुसाहट नज़दीक और दूर दोनों तरफ से आ रही थी, जैसे कोई अदृश्य ताकत उनसे बात कर रही हो।

"यह आवाज़ें कहां से आ रही हैं?" स्नेहा ने घबराते हुए पूछा।

राजेश ने चारों ओर देखा, लेकिन कहीं कुछ भी असामान्य दिखाई नहीं दिया। लेकिन फुसफुसाहट की आवाजें बढ़ती जा रही थीं। तभी अचानक एक ज़ोरदार चीख सुनाई दी, जो पूरे हवेली के अंदर गूंज उठी। यह चीख इतनी भयानक थी कि सभी के रोंगटे खड़े हो गए।

"यह क्या था?" विक्रम ने घबराते हुए पूछा।

"यहां कुछ बहुत गलत हो रहा है," मोहित ने कहा। "हमें तुरंत यहां से निकलना होगा।"

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। हवेली के बाहर का दरवाजा खुद-ब-खुद बंद हो गया, और सभी खिड़कियों पर अजीब सी छायाएं उभरने लगीं। ऐसा लग रहा था कि कोई अनजानी ताकत हवेली के अंदर घुस चुकी थी, और अब वह उन्हें अपनी चपेट में लेना चाहती थी।

बंद दरवाजे और बढ़ता खौफ
राजेश ने दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा जैसे किसी अदृश्य शक्ति के कारण जाम हो गया था। "यह दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा?" उसने गुस्से और घबराहट में कहा।

मोहित ने खिड़की से बाहर झांकने की कोशिश की, लेकिन खिड़की के बाहर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। सिर्फ काले बादल और घना अंधेरा था, जिसमें कुछ भी देख पाना असंभव था।

"यह कोई साधारण रात नहीं है," विक्रम ने कंपकंपाती आवाज़ में कहा। "हम काली रात का शिकार बन रहे हैं।"

सभी को अब यह एहसास हो गया था कि वे एक ऐसे जाल में फंस चुके हैं, जहां से निकलना आसान नहीं होगा। हवेली के अंदर की हर चीज़ अब उन्हें डराने लगी थी। दीवारों पर अजीब सी परछाइयां उभरने लगीं, और हर कोने से अजीब-अजीब सी आहटें आने लगीं।

"हमें कोई रास्ता ढूंढना होगा," राजेश ने कहा। "अगर हम यहां रुके रहे, तो हम सब मारे जाएंगे।"

वे चारों एक साथ रहने का फैसला करते हुए हवेली के अंदर और गहराई में चले गए। रास्ते में उन्हें कई बंद दरवाजे मिले, लेकिन हर दरवाजे के पीछे अजीब सी आवाज़ें और आहटें सुनाई दे रही थीं। ऐसा लग रहा था कि हर दरवाजा किसी बड़े रहस्य को छिपा रहा हो।

"यह हवेली सिर्फ एक इमारत नहीं है," स्नेहा ने कहा। "यह एक जिंदा मकान है, और यह हमें अपने अंदर समा लेना चाहती है।"

भयानक रहस्य का खुलासा
आखिरकार, वे हवेली के एक गुप्त तहखाने में पहुंचे। यह तहखाना बहुत पुराना और रहस्यमय था। इसके चारों ओर की दीवारें काले पत्थरों से बनी हुई थीं, और फर्श पर अजीबोगरीब चिह्न उकेरे हुए थे। तहखाने के बीचोंबीच एक पुराना पत्थर का चबूतरा था, जिस पर एक अजीब सा बक्सा रखा था।

"यह क्या है?" विक्रम ने पूछा, जब उसने बक्से को देखा। बक्सा पुराना था, और उस पर तंत्र-मंत्र के चिह्न बने हुए थे।

राजेश ने बक्से को खोलने की कोशिश की, लेकिन यह बहुत भारी था। जैसे ही उसने बक्से को ज़ोर से खींचा, बक्से का ढक्कन खुल गया। अंदर एक पुरानी किताब थी, और उसके साथ एक चमकता हुआ काला पत्थर।

"यह वही पत्थर है जिसके बारे में हमने पहले सुना था," मोहित ने कहा। "यह पत्थर तंत्र-मंत्र और काले जादू का स्रोत है।"

राजेश ने किताब को उठाया और उसे पढ़ना शुरू किया। किताब में कई तरह के मंत्र लिखे हुए थे, जो काले जादू और आत्माओं को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।

"यह रतन सिंह की डायरी हो सकती है," राजेश ने कहा। "उसने इन मंत्रों का इस्तेमाल करके आत्माओं को कैद किया होगा।"

लेकिन जैसे ही उन्होंने किताब को पढ़ना शुरू किया, तहखाने के चारों ओर की हवा बदलने लगी। एक अजीब सी ऊर्जा महसूस होने लगी, और अचानक चारों ओर की दीवारों से भयानक चीखें आने लगीं। यह चीखें इंसानी नहीं थीं, बल्कि आत्माओं की थीं।

"हमें यहां से निकलना होगा!" स्नेहा ने चिल्लाते हुए कहा। "यह जगह हमें मार देगी।"

मौत का सामना
चीखें अब और भी तेज़ हो गईं, और हवा में एक अजीब सी हलचल होने लगी। ऐसा लग रहा था कि तहखाने की दीवारें टूटने वाली थीं। राजेश ने पत्थर को वापस बक्से में डालने की कोशिश की, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। तहखाने के अंदर का अंधकार अब जिंदा हो चुका था, और वह चारों की ओर बढ़ने लगा।

"भागो!" विक्रम ने चिल्लाते हुए कहा।

वे चारों तहखाने से बाहर की ओर भागने लगे, लेकिन अंधकार उनके पीछे-पीछे आ रहा था। हवेली के अंदर का हर दरवाजा बंद हो चुका था, और उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा था।

राजेश ने अपनी पूरी ताकत लगाकर दरवाजे को खोलने की कोशिश की, लेकिन वह बंद ही रहा। तभी अचानक एक ज़ोरदार धमाका हुआ, और हवेली की छत से बड़ी-बड़ी लकड़ियां गिरने लगीं।

अंधकार अब पूरी तरह से उनके सामने था। उसकी कोई शक्ल नहीं थी, लेकिन उसकी उपस्थिति इतनी भयानक थी कि सभी की सांसें रुक गईं।

"यह अंत है," मोहित ने डरते हुए कहा।

अचानक, अंधकार ने विक्रम को अपनी चपेट में ले लिया। उसकी चीखें पूरे हवेली में गूंज उठीं, और देखते ही देखते वह अंधकार में समा गया।

"विक्रम!" स्नेहा ने चिल्लाते हुए कहा, लेकिन अब उसे बचाने का कोई रास्ता नहीं था।

अंतिम संघर्ष
अब राजेश, स्नेहा और मोहित ही बचे थे। उन्होंने आखिरी कोशिश करते हुए दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की, और आखिरकार दरवाजा टूट गया। वे तीनों बाहर की ओर भागे, लेकिन विक्रम अब नहीं था।

बाहर निकलते ही उन्होंने देखा कि आसमान साफ हो चुका था। गांव की सड़कों पर अब वही अजीब सा सन्नाटा था। काली रात का अंत हो चुका था, लेकिन उसकी भयानक यादें हमेशा के लिए उनके साथ रह गईं।

"यह जगह शापित है," राजेश ने कहा। "हमें यहां से हमेशा के लिए दूर चले जाना चाहिए।"

वे गांव को पीछे छोड़ते हुए वहां से निकल गए, लेकिन काली रात का खौफ हमेशा उनके दिलों में बना रहा।

 

अध्याय 5: भूली-बिसरी यादें


 
सूरज की पहली किरणों के साथ राजेश और उसकी टीम ने महसूस किया कि वे एक और भयानक रात से जीवित बच निकले थे। विक्रम का खो जाना उनके दिलों पर एक भारी बोझ बन चुका था, लेकिन अब उनके पास केवल एक ही विकल्प बचा था—सच्चाई की गहराइयों में उतरना और उस अज्ञात गांव के रहस्यों को उजागर करना।

जब वे सुबह हवेली से बाहर निकले, तो उन्हें गांव की एक बुजुर्ग महिला मिली। उसके चेहरे पर गहरी झुर्रियां और आंखों में किसी अदृश्य बोझ का प्रभाव था। उसने राजेश की ओर देखा, और बिना कुछ कहे उसके पास चली आई। उसके हाथ में एक पुरानी माला थी, जो सदियों पुरानी लग रही थी।

"तुम लोग यहां क्यों आए हो?" उसने धीमे और थके हुए स्वर में पूछा।

राजेश ने उससे गांव के अजीबोगरीब रहस्यों के बारे में जानने की कोशिश की, लेकिन महिला ने कोई सीधा उत्तर नहीं दिया। उसकी आंखों में किसी अतीत की छवि तैर रही थी, और वह अतीत शायद इस गांव की सबसे भयानक सच्चाई थी।

"तुम्हें यहां की भूली-बिसरी यादों से कुछ नहीं मिल सकता।" उसने धीरे से कहा। "यह गांव सिर्फ़ समय के साथ नहीं बंधा है, यह उन आत्माओं के साथ बंधा हुआ है जो कभी यहां बसती थीं।"

राजेश को उसकी बातों में कुछ गंभीरता महसूस हुई। उसने महिला से गांव के बारे में और जानने की कोशिश की, लेकिन उसने फिर चुप्पी साध ली और अपने घर की ओर बढ़ गई।

राजेश ने एक निर्णय लिया कि अब वे सिर्फ इस गांव के ऊपर मंडरा रहे रहस्य को हल करने पर ध्यान देंगे। उन्हें ये मालूम करना था कि यहां हर किसी के मन में इतना खौफ क्यों था। स्नेहा, मोहित और राजेश ने फिर गांव की गलियों में जाने का फैसला किया, यह सोचकर कि शायद उन्हें कुछ नए सुराग मिल सकें।

अतीत की छाया
गांव के अंदर हर गली मानो किसी भूतकाल की छाया हो। दीवारों पर उकेरे गए पुराने चित्र, टूटे-फूटे घर और जर्जरित खंडहर यह दर्शाते थे कि कभी यह जगह समृद्ध रही होगी। लेकिन अब हर जगह वीरानी छाई थी। जैसे ही वे एक पुरानी गली में आगे बढ़े, उन्हें एक पुराना मंदिर दिखाई दिया। मंदिर के ऊपर के पत्थर टूट चुके थे और मंदिर की मूर्तियां धूल और जाले से ढकी हुई थीं।

"यह गांव कभी बहुत समृद्ध था," मोहित ने चारों ओर देखते हुए कहा। "लेकिन अब यह खंडहर में बदल चुका है। ऐसा क्यों हुआ होगा?"

राजेश ने मंदिर के पास की एक टूटी हुई पट्टी को देखा, जिस पर किसी अज्ञात भाषा में कुछ लिखा था। "शायद इसका उत्तर हमें इस गांव के इतिहास में मिलेगा," उसने कहा। "यह गांव अपने अतीत में छिपी किसी गहरी पीड़ा का गवाह है।"

जैसे ही वे मंदिर के अंदर गए, स्नेहा की आंखें एक खास जगह पर जाकर ठहर गईं। मंदिर के बीचोंबीच एक बड़ा सा पत्थर रखा था, जिस पर कुछ तस्वीरें उकेरी हुई थीं। उन तस्वीरों में कुछ लोग दिख रहे थे, जो एक विशाल पेड़ के नीचे खड़े थे।

"यह पेड़ कौन सा है?" स्नेहा ने पूछा।

राजेश ने चित्र को ध्यान से देखा। "यह शायद इस गांव के केंद्र में मौजूद प्राचीन पेड़ है," उसने अंदाजा लगाया। "इस पेड़ से शायद इस गांव का कोई गहरा संबंध है।"

मोहित ने मंदिर के कोने में रखी एक पुरानी किताब उठाई, जो धूल से ढकी हुई थी। उसने किताब को साफ करते हुए पढ़ना शुरू किया। "यह किताब गांव के इतिहास के बारे में है," उसने कहा। "यहां लिखा है कि इस गांव में एक समय बहुत सारी प्राकृतिक आपदाएं आई थीं, जिससे गांव पूरी तरह तबाह हो गया था।"

"लेकिन यह सब कैसे हुआ?" स्नेहा ने पूछा।

भूतकाल की काली परछाइयां
जैसे ही मोहित ने किताब के पन्ने पलटे, उसने गांव के एक काले अतीत का जिक्र पाया। "यहां लिखा है कि इस गांव पर एक श्राप था। गांव के मुखिया ने अपनी ताकत और धन के लालच में काले जादू का सहारा लिया था। उसने गांव के लोगों की बलि देकर अपनी संपत्ति बढ़ाई थी, और उस समय से यह गांव श्रापित हो गया।"

स्नेहा ने चौंकते हुए कहा, "तो यह गांव इसलिए तबाह हुआ क्योंकि यहां काला जादू किया गया था?"

"हां," राजेश ने कहा। "यह जगह सिर्फ़ एक गांव नहीं है, बल्कि यह एक भूतहा स्थान बन चुकी है। यहां के लोगों की आत्माएं अब भी इस जगह पर भटक रही हैं। यही कारण है कि हमें यहां रहस्यमयी आहटें और चीखें सुनाई देती हैं।"

"लेकिन यह सब कैसे जुड़ा है?" मोहित ने कहा। "काले जादू और गांव की तबाही का एक कारण होना चाहिए।"

तभी अचानक स्नेहा की नज़र एक पुरानी तस्वीर पर पड़ी, जो मंदिर के एक कोने में टंगी थी। यह तस्वीर एक छोटे बच्चे की थी, जिसकी आंखों में एक अजीब सा डर और दर्द था।

"यह बच्चा कौन है?" स्नेहा ने पूछा। "इसकी आंखों में इतना दर्द क्यों है?"

राजेश ने ध्यान से तस्वीर को देखा और कहा, "शायद यह उस समय का कोई बच्चा होगा, जिसने उस भयावह घटना का सामना किया होगा। या शायद यह वही आत्मा है, जो अब तक यहां फंसी हुई है।"

वर्तमान और अतीत का मेल
जब वे मंदिर से बाहर निकले, तो हवा और ठंडी हो चुकी थी। सूरज ढलने के करीब था, और गांव की गलियों में फिर से सन्नाटा पसरने लगा था। राजेश, स्नेहा और मोहित को अब एहसास हो चुका था कि यह गांव सिर्फ अतीत की कहानियों में कैद नहीं था, बल्कि इसका भूतकाल अब भी जीवित था।

जैसे ही वे गांव के प्राचीन पेड़ के पास पहुंचे, अचानक उन्हें महसूस हुआ कि वे किसी अदृश्य ताकत की निगरानी में हैं। पेड़ के पास की जमीन पूरी तरह से सूखी थी, लेकिन पेड़ की जड़ें अब भी गहरी और मजबूत दिख रही थीं।

"यह वही पेड़ है," राजेश ने धीरे से कहा। "यह पेड़ इस गांव की आत्माओं का साक्षी है। यहां कई लोगों की बलि दी गई थी।"

तभी पेड़ की छांव से एक अनजान आकृति निकलकर उनके सामने आ गई। यह एक बुजुर्ग महिला थी, लेकिन उसकी आंखों में जीवन का कोई संकेत नहीं था। वह धीरे-धीरे राजेश की ओर बढ़ी और उसने कहा, "तुम लोग यहां क्यों आए हो? यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है। यहां सिर्फ दर्द और पीड़ा है।"

स्नेहा ने डरते हुए पूछा, "आप कौन हैं?"

"मैं इस गांव की पुरानी निवासिनी हूं," महिला ने कहा। "मैंने अपनी आंखों से इस गांव की तबाही देखी है। मैंने देखा है कि कैसे लालच और ताकत की भूख ने इस गांव को बर्बाद कर दिया।"

राजेश ने गहरी सांस लेते हुए पूछा, "क्या आप हमें इस गांव के बारे में और बता सकती हैं?"

महिला ने कहा, "यह गांव कभी खुशहाल था। यहां के लोग समृद्ध थे, लेकिन फिर लालच ने सब कुछ खत्म कर दिया। हमारे मुखिया ने काले जादू का सहारा लिया और गांव के लोगों को बलि देने लगा। वह चाहता था कि उसकी ताकत और भी बढ़ जाए, लेकिन उसकी ये चालाकी उसे ही बर्बाद कर गई। गांव के लोगों की आत्माएं अब भी यहां फंसी हुई हैं। वे शांति पाने के लिए भटक रही हैं।"

"तो हम क्या कर सकते हैं?" मोहित ने पूछा।

महिला ने कहा, "तुम कुछ नहीं कर सकते। यह श्राप अब भी इस गांव पर है। जो भी यहां आता है, उसे इसका सामना करना पड़ता है।"

अतीत का अंतहीन चक्र
महिला की बातों से राजेश को अब समझ में आ चुका था कि यह गांव एक अंतहीन चक्र में फंसा हुआ था। अतीत की भूली-बिसरी यादें यहां के लोगों की आत्माओं को बांधे हुए थीं, और इस गांव के वर्तमान में लौटने की कोई उम्मीद नहीं थी।

"हमें यहां से जल्दी निकलना होगा," स्नेहा ने कहा। "अगर हम और देर करते हैं, तो हम भी इस श्राप का हिस्सा बन जाएंगे।"

राजेश ने सहमति में सिर हिलाया। वे तीनों गांव से बाहर निकलने की तैयारी करने लगे, लेकिन जैसे ही वे गांव की सीमा के करीब पहुंचे, उन्हें पीछे से वही बुजुर्ग महिला की आवाज़ सुनाई दी।

"याद रखना," उसने कहा, "यह गांव तुम्हारे मन में हमेशा रहेगा। यहां की आत्माएं तुम्हारे साथ चलेंगी। तुम यहां से निकल सकते हो, लेकिन इसका श्राप तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा।"

अंतिम विदाई
वे गांव से बाहर निकलने में सफल हो गए, लेकिन गांव की भयावह यादें अब भी उनके दिमाग में गूंज रही थीं। हर आहट, हर चीख, और हर आत्मा का दर्द उनके दिलों पर गहरा असर छोड़ चुका था।

स्नेहा ने गांव की ओर पीछे मुड़कर देखा और धीरे से कहा, "शायद हम इस गांव को कभी नहीं भूल पाएंगे।"

"शायद नहीं," राजेश ने गंभीरता से कहा। "यह गांव हमारे साथ हमेशा रहेगा, इसकी भूली-बिसरी यादें हमारे मन में छिपी रहेंगी।"

यह कहकर वे तीनों अपनी यात्रा की ओर बढ़ गए, लेकिन उनके दिलों में अब भी उन आत्माओं की आवाजें गूंज रही थीं, जो शांति की तलाश में थीं