सच्चा प्यार Dr. Pradeep Kumar Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सच्चा प्यार

सच्चा प्यार

"रमेश, मुझे लगता नहीं है कि मेरे परिवार वाले हमारी शादी के लिए कभी भी तैयार होंगे ।" रजनी बहुत ही उदासी भरे लहजे में बोली ।

"हां रजनी, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि वे शायद ही हमारे रिश्ते के लिए तैयार होंगे । वर्तमान में हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में जमीन और आसमान का फर्क जो है ।" रमेश भी बहुत निराश था ।

"पर मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती रमेश । किसी और के साथ जीवन बिताने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती ।" 

"वही हाल मेरा भी है यार रजनी, पर मेरे समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो आखिर क्या करें ?" 

"एक बार बात करके देखते हैं, यदि वे नहीं मानें, तो हम दोनों भागकर शादी कर लेंगे ।"

"नहीं यार, हम लोग ऐसा कभी भी नहीं करेंगे ।" 

"क्यों ? क्या तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है या फिर..." 

"अरे यार, तुम तो बुरा मान गई । तुम्हारे अलावा किसी दूसरे के बारे में तो मैं सपने में भी नहीं सोचता ।" रमेश बहुत भावुक होकर बोला ।

"फिर भागकर शादी करने के लिए डर क्यों रहे हो ?"

"तुम्हें पता है कि मैं किसी से भी डरता नहीं । पर भागकर, अपने माता-पिता के विरुद्ध जाकर शादी करना मुझे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं लग रहा है ।" 

"इसमें उचित-अनुचित की क्या बात है ? दुनिया में हजारों लोग भागकर शादी करते हैं । एक हम कर लेंगे, तो कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा ? आफ्टरऑल हम एक दूसरे से प्यार करते हैं और हमारा प्यार सच्चा प्यार है ।"

"ऑफकोर्स हमारा प्यार सच्चा प्यार है, पर हमारे माता - पिता का प्यार भी झूठा और दिखावा तो नहीं है न ? कैसे भूल जाएं हम  उनके प्यार को ? हम तो एक दूसरे को पिछले तीन-चार साल से ही जानते और प्यार करते हैं, जबकि हमारे मम्मी - पापा तो हमारे पैदा होने से आठ - नौ महीने पहले से ही हमें जानते और हमसे बेपनाह प्यार करते आए हैं । हम उन्हें यूं एक झटके में ही कैसे नज़रअंदाज़ कर दें ? नहीं यार रजनी, हम ऐसा हरगिज नहीं कर सकते । सोचो जरा, क्या बीतेगी उन पर, जब उन्हें हमारे घर से भागकर शादी करने की बात पता चलेगी ? क्या वे समाज में सर उठाकर चलने लायक रहेंगे ? नहीं रजनी, नहीं । हमारा प्यार सच्चा है, एकदम चौबीस कैरेट सोने जैसा, पर इतना स्वार्थी नहीं, कि हम अपने माता-पिता को ही दगा दे दें ।" रमेश दार्शनिक अंदाज में बोलता चला गया ।

"...."

"अरे, अरे...? क्या हुआ...? और तुम ये क्या... रोने क्यों लगी ? क्या मैंने कुछ ग़लत बात कह दी ? सॉरी यार रजनी, तुम तो जानती ही हो कि मैं बहुत जल्दी भावुक हो जाता हूं ? और अपनी ही धुन में कुछ भी कह देता हूँ । सॉरी यार, यदि मेरी बात तुम्हें बुरी लगी हो तो..." रमेश कान पकड़ कर बोला ।

"नहीं रमेश, तुम्हारी कोई भी बात मुझे बुरी नहीं लगी । पता नहीं कैसे मैं तुम्हारे प्यार में अंधी होकर स्वार्थी हो गई थी ? तुम्हारे बातें सुनकर मुझे अपनी ग़लती का एहसास हो रहा है । पता नहीं मेरे मन में ऐसे गंदे विचार कैसे आ गए ? थैंक्स यार रमेश, तुमने मुझे सही समय पर आइना दिखा दिया । आशा है कि भविष्य में भी तुम मुझे ऐसे ही इमोशनल सपोर्ट देते रहोगे ।" रजनी अपने आंसू पोंछते हुए बोली ।

"वाह... क्या बात है डार्लिंग ? हमारी बेबी तो बहुत समझदार निकली । अब लगी है चने के झाड़ पर चढ़ाने ।" रमेश मजाकिया अंदाज में बोला ।

"अरे नहीं यार, तुम्हारी इसी अदा पर तो फिदा हूं मैं । तुम कब सीरीयस हो जाते हो और कब रोड छाप मजनूं, कुछ पता ही नहीं चलता ।" 

"हूं... पर हमारी समस्या अभी भी सुलझी नहीं है रजनी ? उसका क्या ?" रमेश अपने मूल विषय की याद दिलाते हुए बोला ।

"जब इतने बड़े ज्ञानी-महात्मा बने हैं, तो इस बारे में भी कुछ तो सोचे ही होगे ? रजनी उसकी आँखों में आँखें डालते हुए बोली ।

"हां, सोचा तो है, पर उसमें मुझे तुम्हारी भी बराबरी का साथ चाहिए, क्योंकि यह काम मेरे एक अकेले के ही बस की बात नहीं है ।" 

"क्या हुक्म है मेरे आका ? आदेश फरमाइए । साथ तो क्या आपके लिए तो हमारी जान भी हाजिर है ?" रजनी नाटकीय अंदाज में बोली ।

"हमें आप प्यारी हैं मोहतरमा , हमें आपकी जान लेने का कोई शौक नहीं ।" रमेश भी उसी अंदाज में बोला ।

"देखो रमेश, तुम पहेलियाँ मत बुझाओ, सीधे-सीधे बताओ कि हमें मिलकर करना क्या है ?"

"हाँ, तो तुम ध्यान से मेरी बात सुनो । तुम्हारे पापा हैं एक बड़े ऑफिसर; जबकि मेरे पापा हैं एक मामूली से दुकानदार और मैं ठहरा तुम्हारे ही पापा के ऑफिस का एक अदना-सा क्लर्क । उस पर से तुम हो एक हूर - परी । तुमसे शादी के लिए तो एक से बढ़कर लड़कों की लाइन लग जायेगी ।  ऐसी स्थिति में मुझे ही अपनी स्टेटस को अपडेट करने की जरुरत होगी, जिसके लिए मैं लगातार प्रयास कर ही रहा हूँ । मुझे पूरा विश्वास है कि मैं बहुत जल्द अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर ही लूंगा । और मैं जब कुछ बन जाऊंगा तो तुम्हारे फॅमिली वाले मुझे अपना दामाद के रूप में जरूर स्वीकार कर लेंगे । तब तक तुम्हें मेरी प्रतीक्षा करनी होगी । और हाँ, बहरहाल तो तुम्हें अपनी पढ़ाई भी पूरी करनी है । इसके अलावा जब तक हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति न कर लें अपने - अपने अभिभावकों को यह विश्वास दिलाना न भूलें कि हम दोनों एक दूसरे के लिए परफेक्ट हैं ।" 

"हाँ रमेश, तुम एकदम सही कह रहे हो । अब से मैं ठीक वैसा ही करूंगी, जैसा कि तुम बता रहे हो । अब हम दोनों की पहली प्राथमिकता कैरियर होगी । तब तक हमें एक दूसरे से मिलना - जुलना भी कम करना होगा ।"

"और हाँ, कोई भी गुड न्यूज होगी, तो सबसे पहले हम उसे एक दूसरे से ही शेयर करेंगे ।" 

"बिलकुल, हम लोग ऐसा ही करेंगे रजनी । वो कहते हैं न कि 'हिम्मत ए मर्दा, मदद ए खुदा' । मुझे आशा ही नहीं, वरन पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर भी हमें एक दूसरे से मिलाने में हमारी मदद  जरूर करेंगे ।" 

"हाँ रजनी, पर आज से यह हमारा आदर्श होगा कि "खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बन्दे से पूछे, बता तेरी रजा क्या है ?" 

बहुत जल्द हमेशा के लिए मिलने के दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने खुशी-खुशी एक दूसरे से विदा ली ।

- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

रायपुर, छत्तीसगढ़