"अरे तीन महीने तो एक-दूसरे को समझने में ही निकल जाते हैं। इंसान की आदतें और व्यवहार तक सही तरह से सामने नहीं आता है। शादी के बाद तो सभी, चाहे वह लड़की हो या लड़का 'गुडी गुडी' बने रहते हैं और इस वजह से उनका असली चेहरा या स्वभाव सामने आते कई महीने निकल जाते हैं। लड़के अगर अपनी नई दुल्हन को इंप्रेस करने के चक्कर में उसके आगे-पीछे घूमते रहते हैं तो लड़कियां भी तो उन्हें खुश करने की चाह में कुछ समय के लिए ही सही, अपनी इच्छाओं को दरकिनार कर देती हैं। जान ही कितना पाई थीं तुम ईशान को? मैं तो शादी के डेढ़ साल बाद भी तुम्हारे भाई को समझने की कोशिश कर रही हूं," राम्या की भाभी ने उसे समझाया था।
भाभी से ज्यादा दोस्त है सुरेखा। कुल चार महीने ही बड़ी है राम्या से। भाई ने तो उसकी दूसरी शादी के बारे में सोचना भी शुरू कर दिया था। किसी न किसी बहाने जिक्र छेड़ देता है कि 'फलां बहुत बड़ी कंपनी में काम करता है, फलां इंजीनियर है और फलां तो प्रोफ़ेसर है तेरी खूब जमेगी उसके साथ। तू भी टीचर है तो दोनों मिलकर कोई कोचिंग इंस्टिट्यूट भी खोल सकते हो।'
राम्या सुनती है केवल। कोई जवाब या प्रतिक्रिया दिए बिना अपने कमरे में चली जाती है। ईशान को तीन महीनों में जितने अच्छे से उसने जाना, कौन जान सकता है! वरना सारे रिश्तों से ऊपर उठकर जिनके साथ उसने बरसों गुजारे हैं, वह उसका इतना अपना बन पाता? उसके दिल के इतने करीब आ पाता? दिल में ऐसा बस गया है कि उसे इंच भर भी वहां से सरकाना मुश्किल है तो किसी दूसरे के लिए वहां जगह कैसे बन सकती है?
ससुराल दूसरे शहर में है, इसलिए मायके में ही रह रही थी नौकरी की वजह से।
दोपहर होते-होते होली की मस्ती शुरू हो गई। कॉलोनी के लोगों को होली मिलन के लिए आते देख वह कमरे में बंद हो गई थी। लेकिन जब उसे बाहर आने के लिए पुकारा जाने लगा तो उसकी उपस्थिति से पड़ोसियों को किसी तरह की असहजता महसूस न हो, यह सोचकर वह छत पर ही चली आई थी। वैसे भी पिछले एक साल से घर में कहां कोई त्योहार मना है? सभी तो चुप हैं। भीतर ही भीतर राम्या के साथ उसके दुख से लड़ रहे हैं। लेकिन पड़ोसियों या रिश्तेदारो को आने से नहीं रोक सकते
!पार्क में खूब रौनक थी। कॉलोनी में भी हुड़दंग हो रहा था। चेहरे इस तरह पुते थे कि पता ही नहीं चल रहा था कि कौन है। बच्चों की अपनी टोलियां थीं और स्त्रियों, पुरुषों की अपनी। बुजुर्ग पार्क के बैंचों और मंदिर के चबूतरे पर बैठे थे जो कॉलोनी के अंदर ही था।
"अगर इंद्रधनुष आकाश में न सजे तो विशाल विस्तार कितना सूना लगता है। और रंग तो ऐसे जादुई होते हैं कि वे खाली कैनवास को भी एक अर्थ दे देते हैं तो तुम्हारे गालों पर रंग न सजें तो उनका अपमान करना नहीं होगा क्या?" एक आवाज राम्या के कानों के बहती हुई वातावरण में फैल ग
ई।
उसकी बगल में एक प्लेट में हर रंग का गुलाल लिए मंजुल खड़ा था। वही प्रोफेसर जिसका जिक्र भाई बहुत बार कर चुके थे। वह उनके कुलीग का भाई था।
"तुम्हारी शादी में भी आया था। मेरे कुलीग ने बताया मुझे कि इसे तो कोई लड़की ही पसंद नहीं आती। लेकिन तुझे शादी में देख इसने मुझसे कहा था कि इनसे मेरी बात चलाते तो फौरन हां कर देता।" भाई कई बार किसी न किसी बहाने राम्या को यह बता चुके थे।
"जब जिंदगी आपके साथ खेल खेलने का मन बना ले तो रंगों से नाता सबसे पहले छूटता है। रंग इंसान की खुशी को व्यक्त करते हैं। गम का कोई रंग नहीं होता
"
"माना जिंदगी ने तुमसे खुशियां छीन लीं, लेकिन तुम यादों की डोरबेल सुनने की इतनी आदी हो गई हो कि प्यार भरी धुन सुनाने वाली डोरबेल की आवाज को अनुसना कर रही हो। समय लो राम्या, लेकिन इतना नहीं कि समय इतना थक जाए कि कुछ फिर तुम्हें दे न पाए। ईशान जितना प्यार दे सकूंगा, मैं नहीं जानता, लेकिन तुम जितना प्यार डिजर्व करती हो, उतना देने का विश्वास जरूर दे सकता हूं। तुम्हारे गालों पर उसी विश्वास का क्या एक चुटकी रंग लगा सकता हूं?"
राम्या उसे एकटक देखती रही। उसने प्लेट के अंदर अपनी हथेलियां रखीं और उनकी छाप मंजुल के गालों पर लगा दी। मंजुल ने राम्या के माथे पर रंग-बिरंगे गुलाल से छोटा-सा एक गोल घेरा बना दिया। राम्या के सूने माथे पर इंद्रधनुष उतर आया था।
नीचे डोरबेल बजने की आवाज आई तो राम्या को लगा कि इस बार उसके साथ कोई प्यारी-सी धुन बजते हुए छत तक पहुंच रही है।