सुबह जलेश्वर मंदिर के लिए निकला। जलेश्वर मंदिर
भगवान शिव को समर्पित पहाड़ी पर स्थित है। यहां
से महेश्वर नदी और नर्मदा नदी का भी संगम देखा जा
सकता है। नर्मदा के किनारे एक छोटे से रास्ते से होते
हुए मैं अपनी सोच में मग्न चल रहा था। मन में उसी का
ख्याल बसा हुआ था। तभी किसी की सुरीली आवाज
सुन पीछे मुड़कर देखा तो दिल की धड़कनों ने एक
मीठी संगति देनी शुरू कर दी। वही थी। एक बच्चा जो
स्कूल जा रहा था, उसी से बात कर रही थी। फिर पर्स
में से टॉफियां निकाल कर उसकी हथेलियां में भर दीं।
आज उसने नीले रंग की कुर्ती और टाइट पैंट पहनी
हुई थी। ऊपर से प्रिटेंड स्टोल डाला हुआ था जो हवा
से लहरा रहा था। साड़ी में जितनी अच्छी लग रही थी
उतनी ही यह ड्रेस भी उस पर फब रही थी।kl
चलते-चलते वह बिल्कुल मेरे करीब आ गई थी। "अरे आप तो वही हैं न जो कल बोट राइड में थे? और उससे पहले होल्कर फोर्ट में?" सुरीली आवाज मेरे कानों से गुजरती मेरे दिल के अंदर जाकर सरगम बजाने लगी। जलतरंग कहीं आसपास बजता महसूस हुआ। यानी इसका ध्यान गया था मुझ पर। मैं किसी तरह से अपनी खुशी व्यक्त करना चाहता था, लेकिन उस समय तो उसे जवाब देने के लिए शब्द भी नहीं निकले। मैंने केवल हां में सिर हिला दिया।
"छोटा शहर है, लेकिन खूबसूरत है।" शुक्र है उसने बातों का सिलसिला कायम रखा। रास्ता इतना संकरा था कि वह मेरे करीब चल रही थी अब। मेरे लिए तो खुद पर काबू रखना ही मुश्किल हो रहा था।
उसकी बात यह तो समझ आ गया कि वह यहां नहीं रहती है। “घूमने आई हैं क्या?" मैंने पूछ ही लिया।
"आई तो काम के सिलसिले में हूं, पर इस बहाने घूमना भी हो जाता है," वह मुस्कराई। सामने पत्थर आने की वजह से उसका पांव मुड़ा तो उसने मेरी कलाई थाम ली। यह एक सहज प्रतिक्रिया थी। चलते-चलते गिरने लगें तो हम साथ वाले का हाथ पकड़ ही लेते हैं। पर मेरे लिए उसका वह स्पर्श किसी फूल की मखमली पखुड़ियां छू जाने जैसा था! सांसों में खुशबू सी घुलने लगी।
अचानक मुझे जवाब मिल गया था कि मैं क्यों व्याकुल था उसके बारे में जानने के लिए? कुछ एहसास जाग गए थे... प्रेम, प्यार, इश्क... या किसी का अच्छा लगना... कोई पसंद आ जाना... कुछ भी कहा जा सकता है।
"सॉरी," कह उसने हाथ हटा लिया। "देहरादून में मेरा बुटीक है। जगह-जगह से साड़ियां और ड्रेस मैटिरियल खरीदकर ले जाती हूं और बेचती हूं। साड़ियां ज्यादा, क्योंकि मुझे खुद उन्हें पहनना अच्छा लगता है। साड़ी का लहराता पल्लू उड़ान भरने जैसी फीलिंग देता है। और मैं खुले आकाश में उड़ना चाहती हूं।"
मैं कहना चाहता था कि तुम साड़ी में गजब लगती हो। "मेरी बातें गूढ़ लग रही होंगी? कभी-कभी मेरे अंदर की संवेदनशीलता मुझे दार्शनिक बना देती है। पति को टाइम नहीं मिलता, इसलिए अकेले ही यहां-वहां जाती हूं। मेरी उड़ान पर रोक नहीं लगाते वह। बातों-बातों में जलेश्वर मंदिर आ भी गया।" कहते हुए वह तेज कदम रखते हुए आगे बढ़ गई।
मैं उसे जाते देखता रहा। कुछ देर के लिए कदम जड़ हो गए। वह शादीशुदा है... मैं धीरे-धीरे चलने लगा। जलतरंग अभी भी आसपास बज रहा था। कोई अच्छा लगे तो क्या किया जा सकता है? उसका स्टोल पल्लू की तरह लहराता मुझे दिख रहा था!