सुरासुर - 2 Sorry zone द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुरासुर - 2

"क्या मैं मर गया पर मुझे तो कोई दर्द महसूस नहीं हुआ मैं जिंदा भी हूँ कि नहीं मफ्फ इतना समय क्यों लग रहा है"? 

दाईं पलक खोलने पर वह आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि अब उसके सामने लार टपकाने वाले असुर के बजाय वही खामोश सड़क थी। 

"क्या बड़बड़ा रहे हो चिंता मत करो तुम अब सुरक्षित हो" 

बाईं ओर से एक आवाज़ आई उस ओर मुड़ने पर सफेद शर्ट और काले जीन्स में एक व्यक्ति उसे अपनी ओर आते दिखा। लुटेरों की तरह एक आँख में पट्टा लगाए युवक कर्ण के पास आतें हीं मुस्कुराकर अपना हाथ आगे बढ़ाता है-

"तुम्हारा नाम"?

"क..क.. कर्ण" मुट्ठियों को भींचतें हुए उसने जवाब दिया। 

"कर्ण बड़ा रोचक नाम है मेरा नाम मयंक" घुटनों को मोड़कर वह खुद नीचे बैठ गया।

मयंक का दृष्टिकोण
फटेहाल मटमैला बनियान,एक पैर में चप्पल दूसरे में नहीं शरीर ऐसा कि मानो हड्डियाँ त्वचा से कभी भी बाहर आ जाए निशान पड़ी कलाई पेड़ की डाली जितनी सूखी हुई,ना जाने क्यों यह दृश्य मुझे मेंरे बीतें दिनों की याद दिला रहा है खैर कम-से-कम इसकी आँखें तो सलामत है पर ये लाल पुतलियाँ और होंठ में लगा खून इसके इंसान ना होने का प्रमाण दे रहे हैं।

"घबराने की जरूरत नहीं है मुझे पता है तुम एक दैत्यासुर हो"

यह सुनते ही कर्ण बाहें फैलाकर इंतजार करने लगा जिसपर मयंक उलझन में बोला-"ये क्या कर रहे हो"?

"मुझे पता है आप एक क्षत्रिय हैं और आपको भी पता है कि मैं एक असुर हूँ तो इसका नतीजा तो हम दोनों जानते ही हैं"

"हाँ पर नतीजतन तो हम दोनों को अभी लड़ना चाहिए पर तुम तो अब तक असुर रूप में ही नहीं आए"

"वों मैं एक नौसिखिया हूँ मुझे अपनी निधि चलाने नहीं आती" सुर को धीमा करते हुए कर्ण बोला।

"हम्म तभी मैं सोचूं कि एक असुर कालकेय से डरकर क्यों भाग रहा हैं" मयंक के उठते ही कर्ण की नज़र पीछे पड़े असुर की ओर जाती है जो अब खुद यमलोक सिधार चुका है।"तुम्हारी निधी कहाँ है"?

वह कांपते हुए अपना बायां हाथ आगे कर देता है जिसमें एक काला अंडाकार रत्न हथेली के ठीक बीचोबीच जुड़ा हुआ था। 

"तुम अनाथ हो"? 

"हाँ"

इसके बाद मयंक चुप्पी साधे कर्ण को ऐसे घूरने लगा मानों कोई पुलिस अधिकारी मुज़रिम की पूछताछ के बाद इस दुविधा में हों कि इसका एनकाउंटर करु या ना करु। 

वातावरण की शांति को भौंकते कुत्तों ने भंग कर दिया और मयंक ने अपनी जेब से मोबाइल निकालकर किसी को फोन मिलाया जिसका एकतरफा वार्तालाप कुछ इस प्रकार था-

"नमस्कार गुरुजी मै दल क्रमांक ८ से मारुत मयंक बोल रहा हूँ मुझे माफ़ कीजियेगा कि इतनी रात गए मैंने आपको तकलीफ दी दरअसल मुझे एक नौसिखिया अनाथ दैत्यासुर मिला है"
....
"मैं इसे अपने दल में शामिल करना चाहता हूँ"
....
"कर्ण"
.... 
"हाँ मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी संभालूंगा तो मैं इसको कल लेकर आ जाऊं"?
....
"अच्छा धन्यवाद गुरुजी और शुभरात्रि"।  

कर्ण को इस वार्तालाप का कुछ सार समझ नहीं आया और वों बस अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा में बैठा था लेकिन मयंक का अप्रत्याशित सवाल सुनते ही उसकी भौंहें फिसल गई-

"भूख लगी है"?
"क्या"?
"भूख"

बोलने से पहले पेट के चूहों ने उत्तर दे दिया।

"चलों मेरे साथ कुछ ना कुछ तो फ्रिज में रखा ही होगा" 

यह कहे वह अपना हाथ वापस बढ़ाता है और भोजन की लालच में वों इस बार मयंक का हाथ थाम लेता है।