पथरीले कंटीले रास्ते - 23 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

पथरीले कंटीले रास्ते - 23

 

23

 

कमरे में आये हुए उसे काफी देर हो गयी थी । ज्यों ज्यों वक्त बीत रहा था , उसकी घबराहट बढती जा रही थी ।
क्या आज उसे बेटे से बिना मिले ही लौटना पङेगा । पाँच बजते ही मुलाकात का समय समाप्त हो जाता है । उसके बाद यहाँ किसी की मुलाकात नहीं होती और जिस तरह से वह दोपहर का आया अभी तक बेटे की एक झलक तक नहीं देख पाया , पाँच बजने में कितनी देर लगेगी । वह उठ कर बाहर के कमरे में खङे सिपाही के पास गया –
हुजूर मेरा बेटा ... , बुलवा दीजिए ।
भाई बैठो , अभी आदमी गया हुआ है न उसे बुलाने । बस आता ही होगा । अभी तुम्हारी ही मुलाकात की बारी है । अभी वहीं इंतजार करो ।
वह फिर आकर उस सीलनभरे कमरे में अपनी कुर्सी पर जम गया था और उसके पास कोई चारा भी तो नहीं था । ये वकील भी न जाने कौन से पाताल में उतर गया था । यहाँ आकर एक बार भी दिखाई ही नहीं दिया । ऊपर से उसका फोन ही नहीं लग रहा था । कितनी बार बात करने की कोशिश की पर हर बार आउट आफ कवरेज एरिया की धुन बजा कर मोबाइल चुप हो जाता है ।
करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद आखिर यह घङियाँ समाप्त हुई । दो सिपाही रविंद्र को लिये हुए भीतर आए और उसे बग्गा सिंह के सामने छोङ कर चले गये । बग्गा सिंह को अभी यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा उसके सामने आ चुका है । उसने दोनों हथेलियों से अपनी आँखें मली । कुछ देर आँखें बंद करके बैठा रहा फिर धीरे धीरे दोबारा खोली । नहीं यह सपना नहीं था । रविंद्र सचमुच उसके सामने खङा था । उसके पैरों को हाथ लगा रहा था । उसे सत श्री अकाल पापा कह रहा था । बग्गा सिंह ने मन में रब का शुक्र किया और बेटे को गले से लगा लिया । रविंद्र बचपन का चीटू बन गया था । वह भी अपने पापा से चिपक गया । दोनों बहुत देर तक एक दूसरे को थामे गले से लगे रहे । आँसू उनके गालों को भिगोते रहे । बग्गा सिंह ने अपने आप को संभाला – और बेटा कैसा है तू ?
मैं ठीक हूँ पापा जी । आप कैसे हैं और माँ , उनका क्या हाल है ?
हम ठीक है बच्चे । बस तेरे घर वापिस आने का रास्ता देख रहे हैं । वकील कह रहे हैं , तू जल्दी छूट जाएगा ।
रविंद्र ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया ।
यहाँ का माहौल कैसा है ?
ठीक है पापाजी । जो लोग जेल के नियमों का ईमानदारी से पालन करते हैं , उन्हें यहाँ कोई दिक्कत नहीं है । जो कानून को नहीं मानते , जाने अनजाने कानून तोङते हैं , उन्हें दिक्कत होती है वरना भीतर सब लोग अच्छे हैं ।
पता है , पापा जी यहाँ सब को सुबह पाँच बजे उठा दिया जाता है फिर सब लोग फ्रैश होकर योगा और एक्सरसाईज करते हैं । एक घंटे बाद वापिस आकर अपनी कोठरी और आसपास की सफाई करते हैं । नहाते धोते हैं । फिर सब नाश्ता करने मैस में जाते हैं । अक्सर वहाँ दलिया , खिचङी , सूजी का हलवा , ब्रैड जैसी चीजें मिलती हैं । त्योहार पर पूरियाँ छोले मिलते हैं ।
फिर सारे काम पर चले जाते हैं । कोई सब्जी लगाने , कोई फूलों की क्यारियां , कोई किसी वर्कशाप में । मैं दफ्तर जाता हूं । कम्प्यूटर पर काम करने । शाम को चाय पीकर हम लोग कोई खेल खेलते हैं या लाइब्रेरी चले जाते है । रात की रोटी खाकर सो जाते हैं । पापा आपको पता है , कुछ लोग जानबूझ कर ऐसा काम करते हैं कि सरकार उन्हें जेल भेज दे । वे झगङा करते हैं या छोटी मोटी चोरियां करते हैं । फिर उन्हें दो चार महीने की जेल हो जाती है और वे नाचते हुए यहाँ रहने आ जाते हैं ।
अच्छा , ऐसा अच्छा सुन तेरी मम्मी ने तेरे लिए रोटी भेजी है ।
दो फिर ।
ले खा ले । बग्गा सिंह रोटी वाले सारे डिब्बे और टिफिन रविंद्र के आगे खोल दिये ।
चूरी और साग ? वाह ! जिओ मम्मी ।
वह साग और कद्दू की सब्जी से रोटियाँ खाने लगा । जब आधी से ज्यादा रोटी खा चुका तो उसे ख्याल आया कि इसमें तो पापा की रोटियाँ भी थी ।
पापा आप भी खाओ । मुझे तो एकदम ख्याल ही नहीं आया ।
तू खा बेटे । मैं तो घर से खाकर चला था ।
पर पापा , एक दो तो ले लो । रोटी खाई को तो कई घंटे हो चुके ।
चल ला एक रोटी खा लेता हूँ तेरे साथ ।
बग्गा सिंह ने एक फुलका लेकर साग उसके ऊपर ही रख लिया और खाने लगा ।
रविंद्र ने थोङी सी चूरी खाई और पानी पी लिया ।
बस कर गया बेटे और ले ले ।
नहीं पापा , मैं तो पहले ही जरूरत से ज्यादा खा गया । और नहीं खाई जाएगी ।
चल, बाकी बची हुई रोटियाँ शाम को खा लेना और यह पिन्नियाँ है । आधे से ज्यादा तो यहाँ के सिपाही खा गये । जितनी बची हैं , तू खा लेना और वहाँ किसी को देना चाहे तो दे देना । अगली बार आऊँगा तो ढेर सारी बनवा कर ले आऊँगा ।
तभी वकील साहब प्रकट हुए । आते ही उन्होंने एक फाइल खोली – ले बेटा यहाँ साईन कर दे और यहाँ भी । ये तेरा वकालतनामा है । अब मैं तेरे जमानत के कागज कोर्ट में जमा कर सकूँगा । ईश्वर ने चाहा तो इस पहली ही पेशी पर जमानत मिल जाएगी ।
बग्गा सिंह कृतज्ञता से दोहरा हो गया ।
शुक्रिया वकील साहब । आपका सारी जिंदगी अहसान मानूँगा ।
लङके ! जेल में कोई दिक्कत तो नहीं ? कोई परेशानी , कोई मारपीट वगैरह ?
नहीं जनाब कोई तकलीफ नहीं ।
वकील साहब जैसे आए थे , वैसे ही लपकते हुए बाहर चले गये ।
बग्गा सिंह ने सारे डिब्बे बंद किये और कपङों वाला बैग खोल दिया
ये तेरे कुछ कपङे लाया हूँ । कोई धोनेवाला कपङा है तो दे दे । घर से धुल कर आ जाएंगे ।
नहीं पापा कपङा तो कोई नहीं है । सब कपङे धुले हुए हैं । वहाँ लङके मुझे धोने ही नहीं देते । खुद ही धो सुखा कर दे जाते हैं । वो छोटा राना और चीकू पढते हैं न ।
हां बेटे । पढ रहे हैं । स्कूल भी जाते हैं । तू किसी बात की फिकर मत कर । सब ठीक है ।

बाकी फिर ...