लोग मर के भी कैसे जिंदा हो जाते हैं S Sinha द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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लोग मर के भी कैसे जिंदा हो जाते हैं

 

                                 लोग मर के भी कैसे जिंदा हो जाते हैं  


      किसी व्यक्ति को मृत दो कारणों से घोषित किया जा सकता है  . 


क्लीनिकल डेथ - जब किसी व्यक्ति के  पल्स , हार्ट बीट्स और सांसें बंद हो जाती हैं और मेडिकली  उन्हें वापस नहीं ला सकते हैं तब उसे क्लिनिकली डेड घोषित किया जाता है  . 


बायोलॉजिकल डेथ - जब किसी व्यक्ति के ब्रेन में रक्त संचार और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाने के कारण उसका ब्रेन काम करना बंद कर देता है तब उसको  बायोलॉजिकली डेड कहा जाता है  . ब्रेन डेड को रिवर्स ( वापस ) नहीं कर सकते हैं  . 


व्यक्ति का क्लीनिकल डेथ  कानूनन  मान्य  नहीं भी हो सकता है और दूसरी तरफ क्लीनिकल डेथ नहीं होने पर भी कानूनन ब्रेन डेड हो सकता है  . 


बहुत मामलों में रोगी की मेडिकल स्थिति ऐसी हो जाती है जिस से वह मृत प्रतीत होता है और इसी गलतफहमी में उसे मृत घोषित कर देते हैं  , उदाहरण -


2014 में अमेरिका  में एक 80 वर्षीय महिला को मृत घोषित कर शवगृह के फ्रीजर में रखा गया  . बाद में वह महिला जीवित हो उठी और कहने लगी - मुझे बहुत ठंड लग रही है  . 


2014 में ही अमेरिका के न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में एक महिला को ड्रग ओवरडोज़ के बाद ब्रेन डेड घोषित किया गया था   . जब महिला को ऑपरेशन टेबल पर उसके ऑर्गन सेव करने के लिए ले जाया गया तब वह जीवित हो उठी  .  


एक उदाहरण तीन स्थितियां 

 

कोई नर्स या डॉक्टर किसी रोगी को चेक करने जाता है और अगर रोगी के पल्स , हार्ट बीट और सांसें नहीं चल रही हैं तब उसे क्लिनिकली डेड समझा जा सकता है  . पर इसके बाद भी मेडिकल स्थिति के अन्य पहलू भी हैं - 


सीन 1 - रोगी को अन्य मेडिकल सहायता ( वेंटिलेटर या अन्य मैकेनिकल डिवाइस ) और CPR देकर  रोगी के पल्स और सांसें वापस लाने का  प्रयास जारी रख सकते हैं  , ऐसे में क्लिनिकल या ब्रेन डेथ नहीं कहा जा सकता है  


सीन - 2 उपरोक्त उपायों से भी अगर रोगी के हार्ट बीट्स और साँसे बहाल नहीं होती हैं तब इसके बाद रोगी को एक्जामिन कर ब्रेन डेथ सुनिश्चित किया जाता है और अंत में एक सक्षम डॉक्टर डेथ सर्टिफिकेट पर डेथ का  समय और तिथि लिख कर  साइन कर सकता है  . यह कानूनन मान्य है  और लीगल डेथ है . 


CPR बंद होने के बाद कम से कम 5 - 10 मिनट तक इंतजार करने के बाद ही क्लीनिकल डेथ का सर्टिफिकेट देना चाहिए  . 


सीन -3  कभी ऐसी भी स्थिति हो सकती है जब रोगी CPR , वेंटिलेटर आदि मेडिकल सुविधा के फॉर्म पर साइन करने के लिए तैयार नहीं है , इसे DNR कहते हैं  . तब धीरे धीरे रोगी की सांसें , हार्ट बीट्स और ब्रेन में ब्लड सप्लाई भी बंद हो जायेगी  . अंत में रोगी को एक्जामिन करने के बाद  एक सक्षम डॉक्टर डेथ सर्टिफिकेट पर डेथ का  समय और तिथि लिख कर  साइन कर सकता है , जो लीगल डेथ है और यह भी  कानूनन मान्य है  . 


लीगल डेथ क्लीनिकल डेथ नहीं भी हो सकता है - आजकल मेडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है और वेंटिलेटर , मैकेनिकल वेंटिलेशन , अतिविशिष्ट दवाइयां , एक्सटर्नल हार्ट पेसिंग डिवाइस आदि द्वारा ब्रेन डेड होने के बावजूद रोगी का  हार्ट बीट कर सकता है और शरीर को ऑक्सीजन युक्त ब्लड की पूर्ति हो सकती है  . ऐसे में रजिस्टर्ड ऑर्गन डोनर के ऑर्गन सेव करने की संभावना रहती है  ,  


कभी गलतफहमी से मौत का कारण हाइपोथर्मिया ( बहुत कम तापमान ) के चलते रक्त संचार बंद या लगभग बंद होना  . ऐसे में हार्ट बीट और सांसें बंद हो जाती हैं या इतनी कमजोर कि उन्हें महसूस नहीं किया जा सकता है  . जब तापमान  बढ़ जाता है तब व्यक्ति में जीवन के सिंप्टम्स  पुनः आ सकते  हैं  . 


कभी केटालेप्सी के चलते मौत की गलतफहमी हो सकती है  . केटालेप्सी में साँसें बहुत धीमी हो जाती हैं , व्यक्ति की संवेदनशीलता ( sensitivity ) लगभग नहीं के बराबर रहती है और शरीर पूर्णतः स्थिर हो जाता है  . यह स्थिति कुछ मिनटों से लेकर हफ्तों रह सकती है  . यह एक बेहोशी या समाधि की स्थिति है और जिन्दा दफन हो जाने की आशंका है  . 


दुनिया में अनेकों मामले ऐसे भी मिले हैं जब लोग मर के फिर दोबारा  जिंदा हो जाते हैं  . इनमें कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी मृत्यु और दोबारा जीवित होने के बीच की आश्चर्यजनक बातें या कहानियां सुनाते हैं  .  इनकी कहानियों की चर्चा आगे के लेख  में किया जाएगा , पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर मुर्दा पुनः कैसे जीवित हो उठता है  .   

 


लेज़ारस सिंड्रोम -  अक्सर किसी रोगी के  पल्स , हार्ट बीट्स और सांसें बंद हो जाने पर जब  मेडिकल टीम उन्हें वापस नहीं ला सकते हैं तब उसे क्लिनिकली डेड घोषित किया जाता है  .पर बाद में उनमें कुछ मामलों में रोगी को पुनः जिन्दा पाया गया है  .  इस के अतिरिक्त विरले मामले ऐसे भी देखे गए हैं जब ब्रेन डेड पेशेंट भी जिन्दा हो उठा है  . आखिर इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं  . 1982 में पहली बार मेडिकल साइंस में नया नाम आया - लेज़ारस सिन्डोम या लेजारस इफ़ेक्ट  . 


लेज़ारस सिन्डोम या लेजारस इफ़ेक्ट क्या है - जब किसी व्यक्ति की मौत कार्डियक अरेस्ट या अचानक हार्ट बीट्स बंद होने के कारण होती है और CPR ( cardiopulmonary resuscitation )  देने के बावजूद उसका हार्ट बीट वापस नहीं आता है तब उसे डॉक्टर द्वारा  क्लिनिकली डेड बता दिया जाता है  . परन्तु कभी  कुछ समय बाद उस  व्यक्ति में पुनः जिन्दा होने  के सिम्पटम्स वापस मिलते हैं ( प्रायः साँस लेने  के ) तो इस प्रक्रिया को मेडिकल साइंस में लेज़ारस सिन्डोम या लेजारस इफ़ेक्ट या Autoresuscitation कहते हैं  . ज्यादातर मामलों में लेजारस सिंड्रोम CPR बंद होने के 10 - 15 मिनट बाद ही ऐसा देखा जाता है हालांकि इससे ज्यादा समय भी लग सकता है  . दरअसल कुछ मृत समझ लिए मामलों में CPR के रिस्पॉन्स मिलने में ज्यादा समय लगता है और वाइटल ऑर्गन को रक्त सप्लाई देर से हो पाता  है और इसी बीच वे क्लिनिकली डेड घोषित हो जाते हैं   .  


 लेज़ारस  ROSC ( return of spontaneous circulation ) के कारण होता है , इसे ह्रदय का रीस्टार्ट  कहा जा सकता है  . हालांकि हमें गलतफहमी होती है कि यह  मृत्यु के बाद पुनर्जन्म है जबकि दरअसल उस व्यक्ति की मृत्यु हुई ही नहीं थी  . ऐसा विरले होता है और इसका सटीक कारण पता नहीं है  . जब व्यक्ति में पुनः जीवन के प्रमाण मिलते हैं तब तत्काल व्यक्ति को सघन मेडिकल ट्रीटमेंट ( जैसे ICU ) में भेज कर आगे इलाज जारी किया जाता है  . 


एक रिपोर्ट के अनुसार 1982 से 2018 तक लेजारस के मात्र 65 लिखित और प्रामाणिक मामले मिले हैं जिनमें 18 व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए थे  . माना जाता है कि वास्तव में लेजारस के मामले कहीं  ज्यादा हैं क्योंकि उन्हें रिपोर्ट नहीं किया  जाता है  . लेजारस के बारे में आम आदमी को कितना पता है या कितनों ने महसूस किया है ,यह कहना संभव नहीं है  .   लगभग 70 % ज्ञात मामले 60 साल से ज्यादा आयु के लोगों का है   .   


लेजारस सिंड्रोम के संभावित कारण - हालांकि इसका सही कारण किसी को पता नहीं पर सम्भवतः माना गया है कि CPR के बाद चेस्ट में एक प्रेशर बन जाता है  . पर कुछ समय बाद जब यह प्रेशर रिलीज होता है तब हार्ट  किक स्टार्ट कर एक्शन में लाता है  . दूसरा संभावित कारण हो सकता है व्यक्ति को दी गयी दवाओं / इंजेक्शन ( CPR के आसपास ) का  असर विलम्ब से होना  . कुछ का कहना है कि शरीर में पोटेशियम का लेवल ज्यादा होने से लेजारस सिंड्रोम होता है  . इसके अतिरिक्त CPR समुचित समय के पहले ही बंद करना मौत का कारण हो सकता है  . 

 
                                                             समाप्त 

 

 नोट - उपरोक्त जानकारियां देश विदेश के कुछ समाचार पत्रों / पत्रिकाओं और गूगल पर उपलब्ध लेखों का यथासंभव अनुवाद है  .  E & O  संभावित  

नोट - अगले लेख में कुछ लोगों के मरने और पुनः जीवित होने और मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच के अनुभव पर चर्चा होगी