शैतान का कुचक्र - 2 LM Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शैतान का कुचक्र - 2

अभिमन्यु फस तो गया शैतानों के चक्रव्यूह में परंतु निकालना उसे आया नहीं । धीरे-धीरे मानव भी अभिमन्यु के समान विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के चक्रव्यूह में फस तो गया । अब वह निकल ने का प्रयास कर रहा है। उन्नति की इस यात्रा में वह यह भूल गया कि वह मकड जाल में फंस रहा है। वह यह भी भूल गया कि इस उन्नति की चका चोंध में प्रवेश करना आसान है परन्तु निकल ने की कीमत खून के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से चुकानी पड़ती है।  कैसा डरावना संसार है?

विषय वचारणीय है कि अभिमन्चु चक्रव्यूह में प्रवेश तो कर गया परंतु निकल न सका। अतः वह शैतानों द्वारा मारा गया। आज का मानव भी अभिमन्यु है। नित्य नये-नये चक्रव्यूहों में फंसता जा रहा है। उसे निकलने के रास्ते ज्ञात नहीं। शैतान उसको मार कर रहेगा,  क्योंकि उसने अपने खून से दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रखे हैं। संसार एक कुचक्र है जहां पर सुबह से शाम तक हेरा फेरी के अलावा कुछ नहीं होता । इस शैतान के ससार में दया नाम का कोई शब्द नहीं है। श्मशान घाट में लकड़ी बिक्री करने वाला आदमी भी यह सोच रहा है कि आज कोई शव नहीं आया, आज कोई आमदनी नहीं हुई। जब कोई मरेगा तब उसकी आमदनी होगी।  

इस संसार में एक व्यक्ति का मरना दूसरे व्यक्ति की आमदनी होना है। एक व्यक्ति का दुख दूसरे व्यक्तिक का आनंद है। 

प्रतिदिन कोई न कोई आपकी जेब काट रहा है। आवश्यक नहीं, कैंची से ही काटे, हो सकता है आज बाजार में कोई नई मोटरसाइकिल या नई कार आई हो, और आपका मन उसे खरीद ने का हो जाए। चलो इसे आज खरीद लें। यह भी एक जेब काटने का तरीका है। मनुष्य मॉल में जाता है और आवश्यककता ना होते हुए भी वहां से काफी खरदारी कर लाते हैं। माल एक सबसे बड़ा चका चोंध का केंद्र है। ये सब जेब काटने के माध्यम है। ये दिन दहाड़े ढाका डालने वाले हैं। बिना कैंची के ही जेब काट लेते हैं। एक तरफ जेव कट रही है तो दूसरी तरफ प्रसन्नता घट रही हैं।

हवा कुछ ऐसी चली मेरी जेब कट गई। 

उन्नति कुछ ऐसी हुई

मेरी खुशी गम में बदल गई

जेब कटेगी तो दुख तो होगा। यदि पैसा है तो जेब काटने वाले बहुत मिल जायेंगे।  प्रसन्नता किसी पंसारी की दुकान से खरीदी नहीं जा सकती। प्रसन्नता प्राप्त  करने के लिए बहुत त्याग और तपस्या करनी पड़ती है।

प्रसन्नता ढूंढो, किसी भी कीमत पर ढूंढो। दुख में भी प्रसन्नता ढूंढो।

इटली  देश में एक सुंदरी रहा करती थी, जिसका नाम रुबेका था। वह अपनी सुंदरता के लिए पहचानी जाती थी। एक बार रुबेका चार बलात्कारियों के चंगुलमें फस गई, उसे पक्का विश्वास हो गया कि अब बचाना मश्किल है। मरता क्या न करता, रुबिका ने निश्चय कर लिया क्यों ना इस अवसर का प्रसन्नतापूर्वक आनंद लिया जाए। इंग्लिश में इसे कहते हैं (when rape was invitable Rubika enjoyed it) ओखली में सिर रख दिया तो मूसल से क्यों डरना।

मानव विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के कुचक्र में फस तो गया अब अच्छा होगा की कुचक्र को शुभ चक्र बना लिया जाए। क्यों न उस में प्रसन्नता ढूंढी जाए। रुबेका की कहानी कितनी सत्य या असत्य है इसका महत्व नहीं, महत्व इसका है कि हमको विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्न रहना चाहिए। (कहना आसान है परंतु उसका अनुसरण करना मुश्किल है)

समाजशास्त्री आजकल बहुत प्रयास कर रहे हैं कि मानव को इस कुचक्र से कैसे निकाला जाए? कैसे नाकालें?

मानव उन्नति तो करेगा इसमें कोई सन्देह नहीं। इसमें भी कोई संदेह नहीं की मानव अपनी परेशानियों का कारण भी ढूंढ लेगा। यदि वह विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के मकड़ जाल में फंस गया है तो उसे उसमें से निकलने का रास्ता भी ढूंढना चाहिए। 

कहते हैं कि प्रवचन देना बहुत आसान है परंतु उनके ऊपर अमल करना बहुत ही कठिन है। प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए हमको अपनी मनोवृति बदलनी होगी। अपनी आवश्यकताओं को कम करना पड़ेगा। मनुष्य को छोटी-छोटी वस्तुओं में प्रसन्नता ढूंढनी पड़ेगी। निर्जीव वस्तु जैसे नया मोबाइल या नई कार आपको थोड़े समय के लिए प्रसन्नता देगा, परंतु बाद में आपका मन उस से हट जाएगा। प्रसन्न रहने के लिए आप और कोई नई चीज लाएंगे।  इस  मनोवृति का कोई अंत नहीं। इसलिए कबीर ने कहा है 'रूखी सूखी खा के ठंडा पानी पी, देख पराई चूपड़ी क्यों ललचाए जी'।  यह शाश्वत सत्य है। 

इस सांसारिक चका चौंध का सबसे बड़ा असर मानव मस्तिष पड़ा है। वह मन को शैतान के यहां गिरवी रख कर प्रसन्नता प्राप्त करना चाहता है।

इस सांसारिक रूपी शैतान ने मानव को एकांकी पन में ढकेल दिया है। समाजशास्त्री कहते हैं कि आने वाले समय में मनुष्य बीमारी से इतना नहीं मरेगा जितना अकेलेपन से।इसका कारण बहुत सरल है, क्योंकि मनुष्य ने अपना मन तो शैतान को दे दिया, ढूंढता है प्रसन्नता। आदत तो उसे शैतान से बात करने की पड़ गई है, मनुष्यों से कैसे बात करें।

मानव निर्दिय होता जा रहा है उसके आंसू सूख गए हैं।

एकांकी पन या अकेलापन मनुष्य को दीमक की तरह खा जाएगा। 

मनुष्य एक दूसरे से बात करके अपना मन हल्का कर लेता है। मानसिक भार शारीरिक भारसे बहुत अधिक खतरनाक है। शारिक भार से तुरंत राहत प्राप्त की जा सकती है। कुली एक भारी बॉक्स सर उठा कर नीचे रख कर हल्का हो सकता है। आराम कर सकता है। परंतु मानसिक भार के साथ यह उदाहरण सही नहीं । मानसिक भार बॉक्स की तरह नहीं उतर सकता।  मानसिक भार के कारण कई मानसिक रोग हो जाते हैं। अतः संक्षेप में यह कहना उचित है कि शामके समय टीवी ना देख कर थोड़ी बहुत देर तक गपशप लगा लेनी चाहिए। मेलजोल बढा  लेना चाहिए, इससे मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहेगा। मन को प्रसन्न रखने क लिए सबसे आसान तरीका और सबसे कारगर तरीका प्रभु स्मरण या उसका चिंतन है। प्रभु स्मरण या चिंतन प्रसन्नता का भंडार है इसलिए हमें समय निकाल कर शाम के समय कम से कम 15, 20 मिनट उसका स्मरण करना चाहिए। 

टीवी मोबाइल समाचार पत्र आदि साधनों ने मनुष्य की मिलने की प्रवृत्ति समाप्त कर दी है। पूर्व समय में गांव की चौपाल, मानसिक भार या तनाव को कम करने का सबसे अच्छा माध्यम था, खेद है! वह सब कुछ समाप्त हो गया ! 

शैतान ने हमारे मन में विशालता के स्थान पर  संकुचिता भर दी है। हमारा मन और विचार बहुत संकीर्ण हो गए हैं। छोटी-छोटी बातों पर तनाव तमस और उग्रता बढ़ गई है। मोटरसाइकिल या कार यदि दूसरे की कार से थोड़ी सी भी छू जाए तो मारपीट एक साधारण स्थित है कभी-कभी हत्या भी हो जाती है । जिसे रोडरेज़ कहते हैं।   

हमारे पूर्वज कहते थे कि गम खा, इस कथन का बहुत बड़ा अर्थ है। अर्थात शांति रख कोई पहाड़ नहीं गिर जाएगा। क्षण भर का तामस या उग्रता जीवन भर जेल की यात्रा करवा देता है। ये जीवन भर का शोक बन जाता है। कभी कभी जब हम ठंडे दिमाग से सोचते हैं तो पश्चाताप होता है। खेद होता विलाप करने बैठ जाते हैं, काश शान्ति रख लेते,  गम खा लेते बहुत अच्छा होता। दुख है कि हमारे ऊपर शैतान सवार है। अब विलाप करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। चिड़ियों ने जब खेत चुग लिया तो पछताने से क्या फायदा,।

मनुष्य को सहनशक्ति बढ़ानी चाहिए जैसे-जैसे सहनशक्ति बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे तमस उग्रता कम होती जाएगी। समाज और परिवार में लड़ाई झगड़े कम होते जाएंगे। यह मामूली सा प्रयास बहुत बड़ी सफलता को जन्म दे सकता है। प्रयास कीजिए। 

जब कभी भी समाज में बड़े फेरबदल हुए हैं वे केवल छोटे छोटे परिवर्तनों के कारण हुए हैं। महात्मा गांधी कहते हैं कि ईश्वर सबको इसकी आवश्यकता के अनुसार देते हैं परंतु ईश्वर कभी भी मानव को उसके लालच के अनुसार नहीं देते। बंदर के सामने केले रख दिया जाएं तो वह दोनों हाथों में तीन-चार केले भर लेगा, इसका तात्पर्य यह हुआ कि उसमें लोभ की प्रवृत्ति है। लोभ हमेशा अशांतिको जन्मदेता है, लोभ हमेशा दूसरे का हिस्सा झपट ने की चेष्टा करता है । जो भी दूसरे का हिस्सा मारेगा वहीं पर लड़ाई झगड़ा हो जाएगा ।  पाप का बाप लोभ है। जीवन की आय और व्यय की बैलेंस शीट  साफ रखें।

आजकल सामाजिक शास्त्री भी वैज्ञानिकों तथा तकनीकी विशेषज्ञों की तरह दिन-रात काम कर रहे हैं। प्रत्येक मानव में केवल एक मन होता है उसके पास दस बीस मन नहीं होते। अब यह सामाजिक विशेषज्ञों का काम है कि उसे मन को शैतान से खींच कर संतो के चरणोंमें लगा दे। पश्चात देशों के नागरिक मन की शांति प्राप्त करने के लिए भारत की यात्रा करते हैं और साधु संतों की संगत  करते हैं।    हम सांसारिक उन्नति करते हुए भी मन को ईश्वर में लगा सकते हैं।  यह नामुमकिन नहीं। मन की शांति प्राप्त करने के लिए थोड़ा सा प्रयास तो करना ही पड़ेगा।पहाड़ पर चढ़ने पर नानी याद आ जाती है परंतु उतरने में किसी की याद नहीं आती। गिरना आसान है चढ़ना मश्किल है परंतु नामुमकिन नहीं।

LMSharma