राज घराने की दावत भाग -5
"चलो सीताराम !!तुम तुम्हारे पिताजी का नाम बताओ
सीताराम :-"रानी साहिबा,, दौलत राम शास्त्री है मेरे पिता श्री का नाम "
रानी जी बोलते हैं कि यह तो बहुत ही हो हर बच्चे हैं
अब बच्चों से प्रतीक्षा नहीं हो रही थी क्योंकि वह अपनी परीक्षा देने के लिए बहुत ही ज्यादा उत्सुक थे अब महारानी जी ने सीताराम की तारीफ कर दी तो तभीराधेश्याम बोल पड़ता है..... "मेरे पिताजी का नाम बुद्धू राम है "
"जी मेरा नाम देवराम शास्त्री"
"देवराम आप बताइए आपके पिता का क्या नाम है???अब महारानी जी पूछने लगती हैं
देवराम :-"बिरजू राम शास्त्री "
फिर महारानी जी तीसरे पुत्र से पूछती हैं
"आप बताइए आपका क्या नाम है?"
"जी! मेरा नाम मंगलुराम राम शास्त्री "
महारानी :-"आपके पिता श्री का क्या नाम है?? "
मंगलुराम :-"छोटे राम शास्त्री "
अब पंडित जी का पांचवा पुत्र बचा था वैसे तो वह बहुत ही समझदार था,, वह बीच में एक बार भी नहीं बोला बाकी पुत्र आपस में बातें कर रहे थे अब महारानी जी ने सबसे उनके पिता के नाम पूछ लिए लेकिन मतकु राम का पांचवा पुत्र रह गया लेकिन महारानी जी ने उसके तरफ ध्यान न देते हुए आगे जाने लगी,,,, तभी ना जाने क्या सोचकर महारानी जी ने पलट कर पूछ लिया.....
"और आपका नाम क्या है"
वेदराम :-" जी मेरा नाम वेदराम शास्त्री है "
फिर महारानी जी फिर से वेदराम से कहती हैं कि "आपके पिताजी का नाम क्या है???? "
लेकिन वेदराम को अपने पिताजी का नाम याद नहीं रहता है और वह भूल जाता है
तब वेदराम कहता है की" महारानी जी!!!!! मुझे तो अपने पिताजी का याद नाम याद नहीं है,,,,, आप हमारे भैया से ही पूछ लीजिए उनका क्या नाम है"
इतने में ही राधेश्याम बोल पड़ता है की "महारानी जी!!!! हमारे भैया तो भूल गए हैं,,,हम बता दे हमारे पिता का क्या नाम है"
रानी है यह सुनकर एकदम से चकित हो जाती है और पूछती है कि "यह भला कैसे हो सकता है कि तुम अपने पिताजी का नाम भूल गए????
भला कोई पुत्र अपने पिताजी का नाम कैसे भूल सकता है??? यह तो हमने पहली बार ही हमारे जीवन में सुना है!!""
तभी मतकू राम वेदराम के पास जाकर उसके कान में कहता है "छ!!!"
'छ..........सुनते ही वेदराम बोलता है ':-"छुटकु राम....
महारानी जी!!!!! हमारे पिता श्री का नाम छूटकू राम शास्त्री है "
महारानी जी:-
" फिर तुम अब तक चुप क्यों थे????जब हम तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम पूछ रहे थे"
मतकू राम :-
" महारानी जी!!!! इसको कुछ ऊंचा सुनाई देता है"
महारानी जी:-
" मैंने सामान तो बहुत ज्यादा बनवा लिया है......लेकिन अब सब खराब होगा,,,,यह छोटे बच्चे तो क्या ही खाएंगे,,,, "
मतकू राम :-
" महारानी जी!!!!!इन बच्चों को कम न समझिए,,, आप यह बच्चे बहुत ज्यादा खाते हैं और वह जो सबसे छोटा वाला दिख रहा है ना वह तो दो पतल खाकर ही उठेगा "
फिर महारानी जी भंडारी को उन्हें बैठाने के लिए कहती है और वह बैठ जाते हैं मतकू राम और उसके पुत्रों और उसकी पत्नी के सामने पत्तल रख दी जाती है और फिर भंडारी उनके अंदर खाना डालता है चांदी की पत्रों में इतने स्वादिष्ट व्यंजन देखकर मतकू राम की तो आंखें खुली की खुली रह गई,,,क्योंकि उसे निमंत्रण तो बहुत जगह से आए थे और बहुत स्वादिष्ट व्यंजन उसने खाए हुए हैं,,,, लेकिन ऐसे अद्भुत और इतने स्वादिष्ट व्यंजन तो उसने जिंदगी में पहली बार देखे हैं,,,
" यह की इतनी सोंधी सुगंध तो उसने जीवन में पहले कभी नहीं सुंघी....."
प्रत्येक वस्तु पर गुलाब की पंखुड़ियां लिपटी हुई थी और प्रत्येक वस्तु से ही घी टपक रहा था मतकू राम व्यंजनों को देखता रहता है और फिर सोचता है कि" भला ऐसे व्यंजन खाने से क्या कभी पेट भर सकता है.....
इनको तो मैं खा जाऊं और बाद में भी इनको खाते रहने का ही जी करता रहेगा मन तो भरने वाला है ही नहीं इन व्यंजनों से????,,,,
देवता गन भी इनसे उत्तम तो क्या ही पदार्थ खाते होंगे
फिर मतकू राम को अपने मित्र सुदी राम की याद आ जाती है ''''''
यदि वह हमारे साथ होता तो इन व्यंजनों को देखकर उसका भी मन ऐसे ही कर रहा होता और वह भी बिल्कुल रम जाता
उनके बिना तो रंग किसी का है
और एक यह मेरे पुत्र हैं यह दो-दो पत्रों में ही चीं बोल जाएंगे यह भी ज्यादा नहीं खा पाएंगे
और एक मेरे धर्मपत्नी है यह तो मेरा साथ देगी लेकिन कब तक
सच में सुधी राम के बिना तो रंग ही बिल्कुल फीका है
यदि वह होते तो वह मुझे ललकार दिखाने के लिए और मैं उनको ललकारता इसी ललकार के बीच में कहां पतलो की गिनती होती