राज घराने की दावत..... - 1 piku द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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राज घराने की दावत..... - 1

अजगर करे ना चाकरी,पंछी करे न काम,दास मलूका कह गए,सबके दाता राम.....

सेठ मतकू राम अंदर  आते हुए अपने पेट पर हाथ फेरते हुए यह कहता है..

तभी अंदर से आवाज आती है कोई नई ताजी खबर है क्या
मार लिया आज मैं मार लिया मैंने एक बार में ही सारे चारों खाने चित कर दिए.....
सारे घर का न्योता है सारे घर का.....
अब ऐसे हाथ बैठ कर मैं सब कुछ कर लूंगा तुम देखना.........

" अरे कहीं पहले की तरह धोखा ही तो नहीं खाया है यह बात सच तो है ना"
अंदर से फिर आवाज आती है


मतकू राम अपने मूंछों पर तू देते हुए कहते हैं तो "ऐसा अपशगुन तो मत बोल
बड़े पूजा पाठ बड़े जब तक की है तब जाकर कहीं यह दिन आया है

तुम्हें जो भी तैयारी करनी है वह जल्दी-जल्दी से कर लो "

" वह तो करूंगी क्या इतना भी नहीं जानते सारी उम्र तुम्हारे घर में ठंडा पीटने के लिए थोड़ी ना बैठी हूं इतनी तो समझ आई गई है...... "

" अरे आप और तुम्हें कैसे समझाऊं पूरे घर भर का है तुम भी विद्वानों की बात ऐसे ही थोड़ी समझ लोगे मुझसे पूछो ना 
और यदि हम विद्वानों की बात ऐसे ही सब समझ ले तो फिर हम विद्वान कहां हुए.... "

" बताओ!!! तुम कुछ समझी भी??? मैं इतनी सरल भाषा में बोल रहा हूं फिर भी तुम नहीं समझ रही.........."

....... तुम्हें पता है लखनऊ के राजघराने की महारानी हमें हमारी इच्छा के अनुसार भोजन करना चाहती है, कौन-कौन मेरे साथ जाएगा.. इस बात का निर्णय मैं ही करूंगा....
सीताराम शास्त्री, राधेश्याम शास्त्री, मंगलूराम शास्त्री, वेद राम शास्त्री, देवाराम शास्त्री और मतकू राम शास्त्री जब हमारे घर में इतने पंडित हैं तो बाहर कौन पंडित ढूंढने जाएगा........ "

" और सातवां कौन है"?
अंदर से जो आवाज आ रही है वह फिर से पूछते हैं यह आवाज किसी और कि नहीं यह मतकू राम शास्त्री की पत्नी की है उसका नाम देवा है....

" अरे तू बुद्धि दौड़ना"   मतकू राम शास्त्री उसको कहता है....

"एक पत्तल और घर लेकर आनी है" वेदा ने कहा......

मतकू राम- " फिर से नीचे बात करदी ना....
. छि... छि..... ऐसे पत्तल घर कैसे लेकर आऊं.. घर लाई हुई पत्थर में वह सवाद कहां जो जजमान के घर बैठकर भोजन करने में है और सुनो!!!!  सातवें है सोनाराम शास्त्री..... "

" भला में कैसे जाऊंगी अब " देवा ने कहा...
" यही तो कमी है तुमने तुम समझ कहां पाती हो.......
विद्वान लोग होते हैं वह अवसर को अपना बना लेते हैं और जो मूर्ख लोग होते हैं वह अपनी किस्मत को रोकते हैं....
अरे भगवान देवा में और सोनाराम में तुम्हें पता भी है क्या अंतर है...? "

मतकू राम फिर से बोलता है" केवल परिधान का अंतर है....." और फिर वह हंस देता है 

" अब तुम अपनी इसी साड़ी को मेरी तरह से बंद लो.....पगड़ी मैं पहना दूंगा ऊपर से ओढ लेना बताओ कोई फर्क रह गया??? और कौन पहचानेगा?"

देवा हंसकर कहती हैं" मुझे तो शर्म आएगी"

मतकू -" तुम्हें करना क्या है??? बात तो हम ही करेंगे.. तुम बस वहां पर आराम से खड़े रहना...... "

देवा   अब जो भोजन वहां पर राज करने में उनको खाने के लिए मिलने वाला था उसका स्वाद लेते हुए देवा पहले ही जीभ ललचाकर कहती है "ओहो....वह बड़ा स्वाद आएगा "

मतकू -" बस भागवन......अब देर ना करो जल्दी से चलने की तैयारी करो"

"कितनी फंकी बना लूं? " देवा पूछती है

मतकू.-" मुझे नहीं पता बस इतना ध्यान रखो कि वहां पर ऐसा आदर्श हमें पेश करना है कि ज्यादा से ज्यादा लाभ हो...... "
फिर देव कहते हैं "इन बिछयों का क्या करूंगी "

मतकू उसको देखते हुए "करोगी क्या उतार कर रख दो इन्हें "

"हां जी जरूर आपने कहा है मैं इनको उतार कर रख दू? "देव मुंह बनाते हुए कहती है 

" अरे तो क्या मैं तुम्हारे बिछिया पहने हुए रहने से जिंदा हूं क्या...... "मतकू चिड़ते हुए कहता है.......

" नहीं जी मैं बिछिया नहीं उतरूंगी"
मतकू कुछ सोच कर कहता है" कि कोई बात नहीं चलो पहन कर चलो और तुम इन पांव में थोड़ा कपड़ा ज्यादा लपेट लेना मैं वहां पर कह दूंगा कि इन पंडित जी के पैर में लगी हुई है दर्द हो रहा था तो इसलिए थोड़ा कपड़ा ज्यादा लपेटा हुआ है..... "

और फिर शाम के समय मतकू पंडित अपने पांचो पुत्रों को बुलाता है और कहता है कि....