नाम मे क्या रखा है bhavyani द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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नाम मे क्या रखा है

मैं, सविता वर्मा, अब तक अपनी जिंदगी के साठ सावन देख चुकी थी। इस दौरान जिंदगी में जहां कई खुशियों की दस्तक हुई तो कुछ गम भी आए, पूरे सफर के दौरान हंसी भी और कभी कभी रोई भी पर पिछले दिनों से जब अचानक पेट में दर्द रहने लगा तो मेरा बेटा मुझे शहर के सबसे बडे अस्पताल ले गया जहाँ कुछ टैस्टों के दौरान पता चला मेरे पेट में पानी भर चुका है जिसके लिए फौरन आप्रेशन करवाना पडेगा। आप्रेशन का नाम सुनते ही मैं बुरी तरह से घबरा गई। मेरा बेटा, बहू यहां तक की नन्ही पोती भी मुझे समझाने लगी, दादी!! आप इतनी चिंता क्यों करते हो?? एक मामूली सा आप्रेशन ही तो है परन्तु मेरा मन कुछ समझने को तैयार नहीं था। मुझे अस्पताल, दवाइयां, इंजैक्शन आदि के बारे में सोच सोचकर घबराहट होने लगी परन्तु और कोई चारा भी तो नहीं था। आखिर मुझे अस्पताल दाखिल होना पडा। अगली सुबह मेरा आप्रेशन था। इससें पहली शाम मैं अस्पताल के कमरे में अकेले बडी मुश्किल से बिताने की कोशिश कर रही थी।
अगली सुबह मुझे नर्स ने जगाया और आप्रेशन के लिए तैयार करने लगी। मेरा परिवार मेरे साथ था फिर भी मन में एक डर सा था।जाते हुए उसकी तरफ देखा तो उसने मुझे 'आल द बैस्ट' कहते हुए हंस कर वदा किया। मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। अच्छे से आप्रेशन हुआ और मुझे मेरे बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया गया। थोड़ी देर में होश आई तो इस बार मेरी वह अनजान सहेली टकटकी लगा मेरी तरफ ही देख रही थी। उसने मेरा हाल पूछा तो मैंने भी हंसने की नाकाम कोशिश करते हुए जवाब दिया। शरीर में बहुत दर्द महसूस हो रहा था। इस उपरांत मेरा पूरा परिवार मुझसे मिलने पँहुचा। नन्ही पोती तो मुझे यूं छोड़ कर घर ही नहीं जाना चाहती थी। बडी मुश्किल से समझाबुझाकर भेजा।

परिवार के जाने के बाद वह बोली, "बहन!! बहुत प्यारा है तुम्हारा परिवार। सब आपसे बहुत प्यार करते हैं।" मैंने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा तो वह बोली, "मेरे माँबाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। शादी मैंने नहीं करवाई। इसलिए मेरा तो कोई परिवार नहीं।" शादी न करवाने का कारण पूछा तो बोली, "जिसे सच्चा प्यार किया था वह धोखेबाज निकला परन्तु मेरा प्यार तो हमेशा से सच्चा था इसीलिए उसे भुलाकर किसी और को अपना न सकी।" बातचीत का सिलसिला घरबार से आगे बढते हुए हर बार नया मोड़ ले लेता। उसने बताया वह गुजरात में पली बढी और अब तक वहीं रही।यहां पंजाब में उसकी एक सहेली रहती थी जिसके पास रहकर वह अपना आखिरी समय बिताना चाहती थी परन्तु यहाँ आकर पता चला मेरी सहेली अब इस दुनिया में नहीं रही। इसी समय जब मुझे अपनी बिमारी के बारे में पता चला तो मैं उसके बच्चों पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। खुद ही उन्हें कहा किसी अच्छे से अस्पताल में दाखिल करवा दे और फिर वे मुझे यहां छोड़ गए। उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई भला इतना कुछ सहने के बाद कोई इतना खुशदिल कैसे रह सकता हैं
इतने में कमरे का दरवाजा खुला और एक नए मरीज का आगमन हुआ। बिल्कुल मेरी हमउम्र, जिसका अभी-अभी आप्रेशन होकर हटा था। मैं उससे बातें करते हुए अपना समय काटना चाहती थी परन्तु वह अभी बेहोश थी। मेरी आँखें बार-बार उसके चेहरे पर जा टिकती। मन मे विचार आया, न जाने इसको क्या प्राब्लम है और यह अकेली क्यों है?? अब तक इसे कोई मिलने क्यों नहीं आया?? विचारों में गुम अचानक उस पर नजर पडी तो देखा, उसे होश आ चुकी थी। मैं तो न जाने कितनी देर से उससे बात करना चाह रही थी। शुरुआत उसका नाम पूछने से की परन्तु उम्मीद के विपरीत आगे से जवाब मिला 'नाम मे क्या रखा है??' ऐसा जवाब सुनकर मुझे लगा शायद दवाइयों की वजह से अभी नींद में है, बात नहीं करना चाहती होगी और मैं पलटकर सो गई।
अगली सुबह मुझे नर्स ने जगाया और आप्रेशन के लिए तैयार करने लगी। मेरा परिवार मेरे साथ था फिर भी मन में एक डर सा था।जाते हुए उसकी तरफ देखा तो उसने मुझे 'आल द बैस्ट' कहते हुए हंस कर वदा किया। मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। अच्छे से आप्रेशन हुआ और मुझे मेरे बिस्तर पर शिफ्ट कर दिया गया। थोड़ी देर में होश आई तो इस बार मेरी वह अनजान सहेली टकटकी लगा मेरी तरफ ही देख रही थी। उसने मेरा हाल पूछा तो मैंने भी हंसने की नाकाम कोशिश करते हुए जवाब दिया। शरीर में बहुत दर्द महसूस हो रहा था। इस उपरांत मेरा पूरा परिवार मुझसे मिलने पँहुचा। नन्ही पोती तो मुझे यूं छोड़ कर घर ही नहीं जाना चाहती थी। बडी मुश्किल से समझाबुझाकर भेजा।



परिवार के जाने के बाद वह बोली, "बहन!! बहुत प्यारा है तुम्हारा परिवार। सब आपसे बहुत प्यार करते हैं।" मैंने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा तो वह बोली, "मेरे माँबाप अब इस दुनिया में नहीं रहे। शादी मैंने नहीं करवाई। इसलिए मेरा तो कोई परिवार नहीं।" शादी न करवाने का कारण पूछा तो बोली, "जिसे सच्चा प्यार किया था वह धोखेबाज निकला परन्तु मेरा प्यार तो हमेशा से सच्चा था इसीलिए उसे भुलाकर किसी और को अपना न सकी।" बातचीत का सिलसिला घरबार से आगे बढते हुए हर बार नया मोड़ ले लेता। उसने बताया वह गुजरात में पली बढी और अब तक वहीं रही।यहां पंजाब में उसकी एक सहेली रहती थी जिसके पास रहकर वह अपना आखिरी समय बिताना चाहती थी परन्तु यहाँ आकर पता चला मेरी सहेली अब इस दुनिया में नहीं रही। इसी समय जब मुझे अपनी बिमारी के बारे में पता चला तो मैं उसके बच्चों पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। खुद ही उन्हें कहा किसी अच्छे से अस्पताल में दाखिल करवा दे और फिर वे मुझे यहां छोड़ गए। उसकी बातें सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई भला इतना कुछ सहने के बाद कोई इतना खुशदिल कैसे रह सकता हैंआप्रेशन की वजह से लगे टांकों का दर्द मुझे रह रहकर तकलीफ पंहुचा रहा था परन्तु मेरी यह सहेली हर बार कोई नई बात शुरू कर लेती और मैं अपना सारा दर्ज भूल उससे बार करने मे व्यस्त हो जाती। बातों का सिलसिला खूब जोर पकडता।कमरे में दवाई देने आई नर्से भी हमारे साथ शामिल हो लेती। दो दिन खूब रोनक मे बीते। अब तक मैं अपनी तकलीफ़ बिल्कुल भूल चुकी थी और फिर डाक्टर ने भी शाम को कह दिया, अब आप अपने घर जा सकती हैं । कल तक मैं अस्पताल आने के ख्याल मात्र से घबरा रही थी आज अपनी प्यारी सहेली को यूं छोड़ कर जाते हुए बहुत दुखी थी।आखिर भरी आँखों से जल्द मिलने का वायदा करते हुए विदा ली। उस समय हमेशा खुश रहने वाली अपनी सहेली के चेहरे पर मैंने पहली बार उदासी की झलक दखी।



खैर हफ्ते बाद मुझे फिर से डाक्टर को दिखाने जाना था। उससे भी कही ज्यादा चाव अपनी प्यारी सहेली को मिलने का था। रास्ते में गाडी रुकवाकर मैंने उसके लिए फूल और फल खरीदे। डाक्टर से मिलने के बाद मैं पूरे उत्साह के साथ उनके कमरे की ओर चल पडी परन्तु वहां बिस्तर पर उसकी जगह कोई और पडा था। अस्पताल का स्टाफ भी शायद डयूटियां बदलने की वजह से मेरे लिए नया था। अब मैं किसी से अपने सहेली के बारे में पूछना चाहती थी मगर कैसे?? मुझे तो उसका नाम ही नहीं पता था। हे भगवान!! उसने कहा था नाम मे क्या रखा है, अब मैं कैसे उसका पता लगाऊं। इतने में मुझे एक पुरानी नर्स दिखाई दी। मुझे बिल्कुल ठीक देखकर वह बहुत खुश हुई। मैंने उससे अपनी सहेली के बारे मे पूछा परन्तु उसने जो बताया उसे सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। वह तो उसी दिन दिल का दौरा पड़ने से भगवान को प्यारी हो गई। दिल बुरी तरह से कराह उठा। अच्छे लोगों की तो इस दुनिया में बहुत जरूरत है परंतु हे भगवान!! क्या तुम्हारी जरूरत उससे भी अधिक है। आँखों में आंसू लिए घर वापिस आई उस शख्स के लिए जिसका मुझे नाम तक नहीं पता था
आज भी मैं जब किसी इंसान को दूसरों की मदद करते हुए देखती हूँ या मुश्किल वक्त में हिम्मत बंधाते देखती हूँ तो मुझे उस इंसान में अपनी सहेली का चेहरा नजर आता है। सच ही कहा था उसने नाम मे क्या रखा है, इंसान के काम ही उसे आम से खास बनाते हैं।