माफी - भाग 3 Suresh Chaudhary द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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माफी - भाग 3

अनमने ढंग से सोफे पर से खड़ी हो कर थके हुए और धीमे कदमों से सुधा ने किचन का रुख किया, लगभग पांच मिनट बाद ही चाय का कप लेकर पुन: सोफे पर आ कर बैठ गई। न जाने क्यों आज सुधा के चेहरे पर थकी हुई परेशानी स्पष्ट दिखाई देने लगी।
चाय को हल्के से शिप किया, कप सामने टेबल पर रख दिया और पुन: सोफे से उठ कर मैनहोल की बाहर की ओर खुलने वाली खिड़की के पास आ कर बाहर देखने लगी। सूनी आंखों से ऊपर सूने आसमान को देखने लगी। कब गाड़ी आ कर मैनहोल के बाहर रुकी और कब पंकज गाडी से उतर कर अंदर आ कर सुधा के पीछे खड़ा हो गया पता ही नहीं चला। एक दो पल के लिए पंकज पीछे खड़ा होकर सुधा को निहारता रहा, लेकिन सुधा अपने ही ख्यालों में गुम सूम
"सुधा जी"। धीमी आवाज में कहा पंकज ने
पंकज की आवाज सुनते ही सुधा जैसे सोते से जाग गई हो।
"ओह, आप,,। अचकाचाते हुऐ कहा सुधा ने, आप शायद अभी अभी,,,।
"हां अभी कुछ देर पहले, आप न जाने कहां "।
"मुझे पता ही नहीं चला कि आप हो "। पंकज के शब्दों को काटते हुए कहा सुधा ने,"लेकिन आप तो एक सप्ताह के लिए गए थे "। सुधा की आवाज से जान गया पंकज कि यह सब फॉर्मल पूछ रही हैं सुधा
,"हां गया तो था एक सप्ताह के लिए ही, लेकिन काम जल्दी हो गया तो, आओ सोफे पर बैठते हैं,,। मशीनी यंत्र की भांति पंकज के आदेश को फ़ॉलो किया सुधा ने और सोफे पर बैठ गई।
"सुधा जी अगर आपको आपकी सबसे प्यारी चीज मिल जाए तो आप मुझे क्या देंगी,,। सुधा के बराबर मे बैठते हुए कहा पंकज ने
"सबसे प्यारी चीज,,। संश्यात्मक नजरों से सुधा ने पंकज की ओर देखा
""मान लो,,।
"मेरी ज़िन्दगी में अब कुछ भी मानने के लिए नही रह गया, पंकज जी,,। सुधा को अपनी ही आवाज कहीं दूर से आती हुई सुनाई दी
"सुधा जी, प्यारी चीज से मेरा मतलब आपके प्यार से है, अगर मैं आपको आपका प्यार लौटा दूं तो,,।
"मुझसे मजाक न करों पंकज जी,। कहते कहते सुधा की पलकें भीग गई
"मैं मजाक नहीं कर रहा हूं, सुधा जी, मैं एक सप्ताह के लिए गया था मुझे कोई और काम नहीं था, मैं केवल और केवल सुमेश को तलाश करने के लिए गया था,,। पंकज के शब्दों पर सहसा सुधा को विश्वाश नही हुआ। तभी पंकज ने बाहरी गेट की ओर देखते हुए आवाज दी।
"सुमेश अंदर आ जाओ,,। सुधा की आंखे बरबस ही गेट की ओर उठ गई।, एक युवक ने गेट से अंदर प्रवेश किया, बढ़ी हुई दाढ़ी और सिर के उलझे हुए बाल, और थके हुए कदमों से वह आ कर सामने खड़ा हो गया।
"मैने आपसे वायदा किया था कि मैं एक दिन सुमेश को तलाश करके लाऊंगा, यह रहा आपका सुमेश, आप मेरी ओर से आजाद हो, तलाक का प्रोसीस मैं पूरा करवा दूंगा,,।
अपने सामने सुमेश को देख और पंकज के शब्द सुनते ही सुधा सोफे से खड़ी हो गई और चलती हुई सुमेश के ठीक सामने आ गई।
"सुमेश, मेरे सुमेश,,। धीमी आवाज में बड़बड़ाई सुधा
"नही सुधा नही अब तुम शादीसुदा हो और मैं ठहरा,।
"मैं अब भी तुम्हारी सुधा ही हूं, मेरा यकीन करों सुमेश, मुझे आज तक भी पंकज ने नही छुआ,,।
"सुधा तुम्हारा पति इंसान नही देवता हैं जो तुम्हारे प्यार के लिए अपनी इच्छा का गला दबा सकता है, भूल जाओ मुझे और मेरे प्यार को,,। कहते कहते अचानक सुमेश ने एक हिचकी ली और खून की उल्टी हुई, सुमेश जमीन पर गिर गया, देखते ही देखते सुमेश पीछे की ओर लुढ़क गया, यह देख पंकज भी सहम गया और सोफे से खड़ा हो गया।
"नही, नही यह नहीं हो सकता, सुमेश तुम मुझे छोड़कर नही जा सकते,,। चीख पड़ी सुधा और चीखने के साथ ही निर्जीव सुमेश के ऊपर गिर गई।
"हे भगवान, क्या कोई इतना भी प्यार कर सकता है,,। पंकज के शब्द आंसुओ में भीग गए और पंकज अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर बैठ गया।