सदाबहार के फूल Sharovan द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सदाबहार के फूल

सदाबहार के फूल 

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यदि सदाबहार ने उसका साथ दिया तो गोद तो उसकी भरेगी ही, घर का आंगन भी किलकारियों की तंरग से भर जायेगा। यह भेद भी केवल वह जानेगी और सदाबहार। इन्हें तो कुछ पता ही नहीं चल सकेगा। रश्मि जब भी ऐसा सोचती तो एक ओर जहां उसका मन तरंगों के स्पन्दन से पुलकित हो जाता वहीं दूसरी तरफ एक अपराथबोध की भावना से भी ग्रसित हो जाता। सोचती, एक विवाहित, दूसरे की धरोहर होते हुये वह क्या करने की सोच बैठी है? एक केवल संतानसुख ही न देने के सिवा रॉवी ने उसे क्या कुछ नहीं दिया है? उसकी कौन सी इच्छा का दमन किया है?

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         स्त्री धोख़ा देती है, या धोख़ा देने के लिये बाध्य हो जाती है? वेश्यायें खुद बनती हैं, या बनाईं जाती हैं? सृष्टि की पहली औरत हव्वा ने पाप का फल खाया और फिर अपने पति आदम को भी दिया। इस प्रकार से क्या हव्वा ही पाप के लिये जिम्मेदार है और आदम नहीं? मजबूरियों, कमज़ोरियों और बिगड़े हुये हालातों में यदि औरत के पैर फिसलते हैं तो क्या इन सबके लिये मात्र औरत ही जिस्म्मेदार है? आदमी नहीं? यह कहानी आपको कुछ इसी प्रकार के सवालों के घेरे में कसने का प्रयत्न करेगी।

रश्मि के विवाह के पन्द्रह सालों के एक लंबे अंतराल के पश्चात भी कभी भी उसके जीवन में विवाह के वास्तविक सुख और स्वरूप की रश्मियां उदय नहीं हो सकी थीं। ऐसा भी नहीं था कि उसका पति रॉवी उसका ख्याल नहीं करता था। सचमुच रॉवी रश्मि को बेहद प्यार करता था। हर तरह से वह उसका न केवल ख्याल ही किया करता था बल्कि उसकी जरूरत की छोटी से छोटी वस्तु का प्रबन्ध बगैर किसी भी विलंब के कर देता था। रॉवी के दिल में अपनी पत्नि रश्मि के लिये उतना ही उफनता हुआ प्यार का सैलाब था जैसे कि सचमुच रॉवी नदी में उसकी बाढ़़ सी लहरें हिचकोलें मारती रहती हैं।

जीवन में हरेक वस्तु रॉवी ने पाई थी। उसके घर में किसी भी चीज़ का अभाव नहीं था। अच्छी नौकरी, आलीशान घर तथा इसके साथ ही प्यारी और सुन्दर पत्नि रशिम। इतना सब कुछ होने पर भी यदि घर में किसी वस्तु का अभाव था तो वह था उसकके घर का आंगन बच्चों की किलकारियों से सूना पड़ा था। शादी के पन्द्रह वर्षों के बाद भी रॉवी अपनी पत्नि की गोद भर नहीं सका था। ऐसा भी नहीं था कि कमी उसकी पत्नि रशिम में थी। वह बिल्कुल ही स्वस्थ नारी थी। और इस बात को जानते समझते हुये भी वह रॉवी को कोई दोष नहीं देती थी। सोच लेती थी कि जो कुछ उसके भाग्य में है, वही उसे मिला भी है। मनुष्य सांसारिक वस्तुओं के अभाव तो मेहनत और परिश्रम के बल पर पूरा कर लेता है, पर संतान का अभाव केवल ईश्वर के हाथों ही से पूरा हो पाता है। शायद परमेश्वर ने उसकी गोद रिक्त ही रखी हो? फिर क्या पता कि उसे संतान मिले भी तो देर में? अब्राहम की पत्नी सारा, मानोह की पत्नी और समसून की मां तथा नबी शमुएल की मां को भी संतान सुख बड़ी देर के बाद मिला था। यही सब सोचकर रश्मि स्वंय को समझा लेती थी।

लेकिन रॉवी इस तरह से अपने आपको कभी भी समझा नहीं पाता था। एक हीनभावना और अपराध बोध की सोच में वह अधिकतर खुद में ही उलझा रहता था।अपनी पत्नि को विवाह के पश्चात उसके सच्चे सुख संतान से वंचित रखना, इससे बड़ी सजा एक पत्नि के लिये और क्या हो सकती थी। सही मायनों में विवाह के पश्चात स्त्री की गोद संतान से भरने के बाद ही वह पूर्ण स्त्रीत्व को प्राप्त कर पाती है। नहीं तो बांझ, संतान हीन और कुलटा जैसी न जाने कितनी ही दिल को छीलने वाली बातें और कटाक्षों का सामना उसे हर पल अपने ही लोगों से करना पड़ता है। रॉवी जानता था कि वह रश्मि की गोद कभी भी नहीं भर सकेगा। ऐसा भी नहीं था कि यह कमी रॉवी में जन्म से ही थी, या शादी से पहले ही थी।अपने विवाह के दो वर्षों के पश्चात जब उसका प्रोस्टेट का आप्रेशन हुआ था, तभी डाक्टर ने उसको बता दिया था कि उसकी सर्जरी के समय ऐसा हो चुका है। उसका कैंसर का इलाज तो हो गया है पर वह अब कभी संतान नहीं दे सकेगा। यह बात केवल रॉवी को ही पता थी। रश्मि को भी यह बात उसने नहीं बताई थी। हांलाकि, रॉवी ने सोचा भी था कि वह अपनी इस कमी को रश्मि को बता दे, पर कभी भी बहुत चाहते हुये भी वह साहस नहीं जुटा सका था। रॉवी यह भी सोचता था कि वह बेबी टयूब या फिर किसी बच्चे को गोद लेकर रश्मि की इस कमी को पूरा कर दे, पर बात तो वहीं आकर अटक जाती थी, कि यह करने से पहले वह अपनी पत्नी को अपनी शारीरिक कमी और सारी परिस्थिति से अवगत् कराये। लेकिन रश्मि इतनी अधिक सीधी, अपने पति पर आंख बंद करके विश्वास करनेवाली और हर तरह से अपने पति को समर्पित स्त्री थी कि रॉवी ऐसा कहकर उसका दिल भी नहीं तोड़ना चाहता था। यह रश्मि का प्यार और उसकी पतिव्रता का ही परिणाम था कि उसने रॉवी की शराब पीने की आदत भी छुड़ा दी थी। वरना शादी से पहले और बाद में भी कई वर्षों तक रॉवी, रश्मि के अलावा यदि किसी दूसरी चीज़ को पसंद करता था तो वह थीं विन्टिज की वे बोतलें और सोडा, जिससे उसका अतिरिक्त रेफ्रीजरेटर सदा ही भरा रहता था।

रश्मि और रॉवी के दिन इसी प्रकार से बीत रहे थे। रॉवी सुबह दस बजे ही अपनी कार लेकर अपने काम पर चला जाता था। उसके जाने के पश्चात रश्मि फिर किसी प्रकार घर के कामों में, पुस्तकें पढ़कर अपना समय काटती और शाम तक रॉवी के वापस आने का इंतजार करती थी। दो लोगों का बड़ा सा घर था। घर में थोड़ा सा काम रहता था। बाजार की सब्जी आदि घर का रसोइया ही ले आता था। वही खाना भी पका देता था। किचिन के बर्तन भी वही साफ कर देता था। लेकिन कभी-कभी रश्मि रसोइये को छुट्टी दे दिया करती थी और घर तथा किचिन का काम करके अपना समय बिताती थी। लेकिन फिर भी जब उसका समय काटना कठिन हो जाता था तो वह बाहर बरामदे में पड़ी किसी कुर्सी पर आकर बैठ जाती थी और फिर सोचों-विचारों में उलझकर अपने जीवन का गुणा-भाग करने लगती थी।

रॉवी के कार्यालय में एक उसका सहायक लिपिक था- सदाबहार। बिल्कुल नया लड़का था। आठ माह पहले ही उसने अपनी नौकरी रॉवी के साथ इस कम्पनी में आरंभ की थी। सदाबहार की यह पहली और नई नौकरी थी। बड़ी मेहनत और लगन से वह काम किया करता था। चूंकि वह दूसरे राज्य और शहर का रहनेवाला था, इसलिये उसका कहीं अतिरिक्त आना जाना भी नहीं था। अपने कमरे से कार्यालय और कार्यालय से कमरे तक। यही उसकी प्रतिदिन की दौड़ थी। अगर वह अपने घर भी जाता था तो लंबी छुट्टी लेकर ही। वरना एक दो दिन की छुट्टियों में वह वहीं रहता था। कार्यालय में जब कभी काम अधिक होता था तो वह देर रात तक भी काम कर लेता था। जरूरत पड़ने पर रॉवी उसे अपने घर पर भी बुलाकर काम करवा लेता था। रॉवी की कम्पनी का काम ऐसा था कि प्राय: उसे एक-एक सप्ताह के लिये दूसरे शहरों में भी जाना पड़ जाता था। सदाबहार जब कभी भी रॉवी के घर पर काम करता था तो खाना आदि भी उसे रॉवी अपने घर पर ही खिला दिया करता था। बच्चों की मोहताज़, एक अकेली चिडि़या के समान सूने आसमान में, बगैर मंजिल के उड़ती मंडराती रश्मि जब भी सदाबहार को देखती तो फिर न जाने क्यों वह उसमें दिलचस्पी लेने लग जाती थी। सदाबहार भी अन्य युवाओं के समान नौजवान युवक था। एक युवती को आकर्षित करनेवाले सारे गुण उसमें विराजमान थे। रश्मि अपनी कमी और रॉवी की कमजोरी से भली भांति परिचित थी। सोचती थी कि आज के इस युग में क्या कुछ जायज नहीं है। शायद कोई भी तो अधूरा और असन्तुष्ट नहीं रहता होगा? जैसी कि वह है। चमन के हर सौन्दर्य से विभूषित महकते हुये पेड़ के समान, एक पक्षी का बसेरा क्या हुआ कि अब कोई दूसरा पक्षी बगैर उसकी मर्जी के वहां पंख भी नहीं मार सकता है? पहले का जमाना और था, जब औरत किसी एक के लिये कैसै भी हो, अभावों में, अपनी इच्छाओं का दमन करके, एक पंख कटे हुये परवाज़ के समान जीवन स्वाह कर देती थी। पर आज समय बदल चुका है। लड़कियां स्वंय ही अपने जीवन साथी का चयन करती हैं। विवाह से पहले बाकायदा अपने साथी के साथ एक पति-पत्नि के समान एक लंबा समय व्यतीत करती हैं। इतने में भी यदि आवश्यकता हुई तो विवाह किया, वरना ऐसे ही सारा जीवन गुजा़र देती हैं। विवाह भी नहीं करतीं, किसी पर बोझ भी नहीं बनती, किसी का अतिरिक्त भार भी नहीं लेतीं, समयानुसार पिल्स खाती हैं। ना अधूरी रहती हैं और ना ही असन्तुष्ट। यदि सदाबहार ने उसका साथ दिया तो गोद तो उसकी भरेगी ही, घर का आंगन भी किलकारियों की तंरग से भर जायेगा। यह भेद भी केवल वह जानेगी और सदाबहार। इन्हें तो कुछ पता ही नहीं चल सकेगा। रश्मि जब भी ऐसा सोचती तो एक ओर जहां उसका मन तरंगों के स्पन्दन से पुलकित हो जाता वहीं दूसरी तरफ एक अपराथबोध की भावना से भी ग्रसित हो जाता। सोचती, एक विवाहित, दूसरे की धरोहर होते हुये वह क्या करने की सोच बैठी है? एक केवल संतानसुख ही न देने के सिवा रॉवी ने उसे क्या कुछ नहीं दिया है? उसकी कौन सी इच्छा का दमन किया है?

लेकिन कहते हैं कि प्यास चाहे पानी की हो और चाहे शारीरिक; फुहारें पड़ने पर इंसान का संयम टूट ही जाता है। पहले जब सदाबहार रॉवी के घर पर कार्यालय का काम किया करता था तो रश्मि उसको चाय, पानी और खाना घर के नौकर के द्वारा भिजवा देती थी। बाद में धीरे-धीरे वह स्वंय ही यह काम करने लगी। बाद में यह बात इसकदर बढ़ी कि रश्मि स्वंय ही अपने हाथों से चाय और खाना बनाकर सदाबहार को देने लगी। इतना ही नहीं, वह तब तक उसके सामने बैठी रहती जब तक कि सदाबहार खाना खाकर समाप्त नहीं कर लेता। फिर जब सदाबहार ने रश्मि को अपने में रूचि लेते देखा तो वह इस डर से पीछे नहीं हट सका कि उसके बॉस की पत्नि है, यदि उसका कहा नहीं माना तो उसकी नौकरी पर बन आयेगी। वह एक सशोपंज में पड़ गया। यदि वह अपने बॉस का ख्याल करता है और रश्मि को दुतकारता है, तो उसकी लगी लगाई नौकरी जा सकती है, और यदि हां करता है, तौभी वह ख़तरे में है। सदाबहार स्वंय कोई भी निर्णय नहीं कर सका। उसने अपने आपको भाग्य के हवाले कर दिया और सामान्य तरीके से अपना काम करता रहा। बाद में इन सब बातों का परिणाम, रॉवी की कमज़ोरी, घर के एकान्त की तनहाईंयां और जिन्दगी के बढ़ते हुये सूनेपन ने रश्मि का न केवल संयम ही तोड़ा बल्कि उसे लक्ष्मण रेखा को लांघने का साहस भी दे दिया।

रॉवी को अक्सर ही कर्यालय के काम से अपने शहर से बाहर जाना पड़ जाता था। इस काम में तब उसे कभी कभी एक सप्ताह से भी अधिक लग जाता था। जब भी वह बाहर जाता था, अपने कार्यालय के काम की जिम्मेदारी वह सदाबहार के ऊपर छोड़ जाता था। सो एक बार उसे अपने कार्यालय के लिये जब शहर के बाहर जाना पड़ा तो वह रश्मि से कह गया कि हो सकता है कि उसे वापसी में एक सप्ताह भी लग जाये। मगर जब वह गया तो अचानक ही उसकी मींटिग बर्खास्त हो गई, क्योंकि जिन लोगों के साथ मींटिग होनी थी, वे नहीं आ सके थे। तब रॉवी का वहां ठहरने का कोई प्रश्न ही नहीं होता था। उसने टिकट बुक कराई और दूसरे ही दिन वह वापस आ गया। यों वह प्राय: ही अपने आने की सूचना फोन से रश्मि को दे देता था, मगर जब ऐसा अचानक से हो गया तो उसने सोचा कि वह अचानक से जाकर रश्मि को सरप्राइज़ देगा। इसीलिये उसने फोन भी नहीं किया।

फिर जब वह अपने घर पहुंचा तो रात के ग्यारह बज रहे थे। लेकिन घर के बाहर सदाबहार का जब उसने स्कूटर देखा तो सोचा कि हो सकता है कि सदाबहार दफ्तर का काम कर रहा होगा। लेकिन जिस कमरे में बैठकर सदाबहार काम किया करता था उसमें अंधेरा था। रॉवी ने परिस्थिति का जायजा लेना चाहा। वह कुछ समझा और नहीं भी समझा। उसने चुपचाप अपने घर की चाबी से दरवाजा़ खोला और धीरे से अन्दर प्रविष्ट हो गया। लिविंग रूम में दरवाजे के पास सदाबहार की जैकिट लटकी देखकर उसके कान खड़े हो गये। फिर जब उसने बैडरूम में रश्मि को किसी से बातें करते हुये सुना तो फिर उसे सब कुछ समझते देर नहीं लगी। रॉवी बड़ी देर तक अपने स्थान पर ही खड़ा रहा। फिर बाद में ना जाने क्या सोचकर वह धीरे से पीछे पलटा। घर के बाहर आया, दरवाज़े को सावधानी के साथ आहिस्ते से बंद किया और सड़क पर आ गया। वहां से वह सीधा गिंगिया में गया और बॉर में बैठकर विन्टिज की शराब की बोतल का ऑर्डर दिया। बोतल सामने आते ही बगैर सोडा के वह गटागट आधी बोतल अपने कंठ से नीचे उतार गया। धीरे-धीरे जब बोतल की शराब ने अपना रंग दिखाना आरंभ किया तो इसके साथ ही उसके पिछले जिये हुये दिनों के रंग भी उसकी नज़रों के सामने एक के बाद एक करके सरकने लगे। इन्हीं रंगों में उसने देखा कि अगली साल उसके घर की बगिया में सदाबहार के फूल भी महकने लगे हैं। वे फूल जिन पर केवल रश्मि का हक है, उसका नहीं।

समाप्त।