एमी - भाग 5 (अंतिम भाग) Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एमी - भाग 5 (अंतिम भाग)

भाग -5

मगर इस डिसीज़न ने मेरे कॅरियर पर बहुत बुरा प्रभाव डाला। मदर से एक लंबे गैप या यह कहें कि ना के बराबर कम्युनिकेशन होने, इमोशनल रिश्ते के कमज़ोर से धागे से जुड़े होने के कारण मेरा कॅरियर बिखर गया। मैं स्वयं कॅरियर के लिए पूरा एफ़र्ट नहीं कर पा रही थी। ड्रीम डॉक्टर बनने का था लेकिन वीक एफ़र्ट, मौज-मस्ती की तरफ़ ज़्यादा झुकाव के चलते डॉक्टर नहीं बन सकी। किसी तरह नर्स बन गई।

यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि मदर से अच्छे रिलेशन होते और वह अपनी ख़ुशियों को सेलिब्रेट करते हुए एक गुड मदर, गुड पेरेंट्स का भी रोल अच्छे से प्ले करतीं तो मैं डॉक्टर बन जाती। पढ़ने में क़तई कमज़ोर नहीं थी। हाँ तब मेरा स्वभाव ऐसा था कि उसे देखते हुए मुझ पर गुड पैरेंट की एक पतली सी छड़ी की छाया बनी रहनी चाहिए थी। जो मुझे ठीक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती, उस पर चलने के लिए प्रेशर बनाए रखती। पतली सी छड़ी की छाया ना होने का रिज़ल्ट यह हुआ कि डिसीज़न डे के तीन साल बाद ही मैं बुलेट बाइक ले आई। मदर से पूछा तक नहीं। पूछती भी क्यों, उनसे कोई रिश्ता रह ही कितना गया था।

उन्होंने घर में नई बाइक देखी लेकिन कुछ पूछा तक नहीं। उनके पास अपनी ख़ुशी सेलिब्रेट करने के बाद इतना समय कहाँ रहता था कि वह यह देखतीं कि मैंने कुछ साल पहले डैड द्वारा साइकिल दिए जाने पर बाइक लाने की ज़िद की थी। और पढ़ाई पूरी किए बिना ही ले आई। मेरी पढ़ाई कैसी चल रही है, क्या पढ़ रही हूँ, क्या करूँगी? कभी कुछ नहीं पूछा। वैसे उनसे यह अपेक्षा करना मूर्खता ही थी। डिसीज़न डे के बाद हर महीने में दो तीन बार ऐसा होता था कि वह उसी आदमी के साथ ही कहीं जाकर रहती थीं। यह तक नहीं बताती थीं कि कहाँ हैं। कब आएँगी। किसके साथ हैं। हालाँकि मुझे यह तो मालूम ही रहता था। पहली बार जब ग़ायब हुई थीं तब ज़रूर पूछा था, लेकिन जो रिप्लाई मिला उसके बाद मैंने कभी नहीं पूछा।

असल में एक मकान में ही हम दो अजनबियों की तरह रह रहे थे। एक दूसरे के कमरे में जाते तक नहीं थे। इस बीच मैंने जस्टिन के बारे में जानने की बहुत कोशिश की लेकिन पता नहीं चला। उसके घर छोड़ने के क़रीब पाँच साल बाद एक रिश्तेदार से बाई चांस ही मालूम हुआ कि वह बेंगलुरू में है। वहीं कोई बिज़नेस कर रहा है। और मैरिज भी कर ली है, एक बेटा भी है। यह सुनकर मैं बहुत ख़ुश हुई थी। मदर को भी बताया था तब उन्होंने धीरे से कहा, "ओह जीसस, थैंक्यू।" उनकी आँखों में तब मैंने ख़ुशी की चमक देखी थी। मैंने सोचा चलो ठीक है, कोई किसी के साथ नहीं है। सब अलग रह कर ख़ुश हैं तो यही सही।

मैं नर्स की जॉब से कुल मिलाकर संतुष्ट थी। कुछ बड़ा करने की इच्छा कहीं गहरे दब चुकी थी। नर्स की जॉब करते-करते मुझे पाँच साल बीत गए थे। और साथ ही कार्लोस के साथ रिश्ते बने हुए तीन साल। वह बड़ा ही सक्सेसफ़ुल मेडिकल रिप्रेज़िंटेटिव था। हॉस्पिटल में ही मुलाक़ात हुई थी। हम दोनों एक ही तरह की लाइफ़ स्टाइल पसंद करते थे। इसलिए जल्दी ही बहुत क्लोज़ हो गए। कुछ दिन बाद ही मैंने मदर से उसका परिचय करा दिया था। मैंने देखा उन्होंने उसे कोई इंपॉर्टेंस नहीं दी। हालाँकि तब-तक मेरे लिए इस तरह की बातें कुछ मैटर भी नहीं करती थीं।

वह कुछ कहतीं भी तो क्या? जल्दी ही कार्लोस घर पर रुकने भी लगा। वह एक ज़बरदस्त बाइकर था। मैं जान छिड़कती थी उसकी बाइकिंग पर। उसकी बाइक भी बुलेट ही थी। छुट्टी मिलते ही हम दोनों लंबी राइड पर निकल देते थे। एक बार हम दोनों ने अपनी बाइकिंग कैपेबिलिटी को चेक करने की सोची। तय किया कि इस बार छुट्टी में किसी हिल एरिया के लिए निकलेंगे। 

छुट्टी मिलते ही हम दोनों एक ही बाइक पर हफ़्ते भर के टूर पर निकल दिए। लखनऊ से हरिद्वार, देहरादून होते हुए चंपावत तक गए। यह लम्बा रास्ता था। हमें लखीमपुर होते हुए सीधा रास्ता पकड़ना चाहिए था। मगर मस्ती में चूर हमारा जिधर मन हुआ उधर ही चल दिए। सीधा या टेढ़ा कुछ भी हमारे मन में नहीं था। छुट्टियाँ कम पड़ रही थीं, लेकिन हम दोनों ने तय किया कि हम अपना टूर चंपावत तक पूरा करके ही लौटेंगे।

हम अपनी जर्नी के आख़िर में चंपावत स्थित बनबसा के उस स्कूल और अनाथालय भी गए जिसके बारे में फ़ादर ने कई बार बताया था। उनके अनुसार हमारे ग्रैंड फ़ादर उस स्कूल में पढ़े थे। हमें जब पता चला कि स्कूल के संचालक ब्रिटेन के एक नागरिक हैं तो हमने वहाँ के लोगों से उनका संपर्क नंबर माँगा, मगर न जाने क्यों उन लोगों ने नंबर नहीं दिया। मगर हम निराश नहीं हुए और अपनी रोमांचक जर्नी पूरी कर वापस चल दिए।

जैसी ख़ूबसूरत मस्ती भरी हमारे टूर की रवानगी थी, वापसी उसके उलट अत्यंत दुखद रही। रास्ता पूरा करने के बाद घर के क़रीब पहुँचे तो रिंग रोड पर हमारी बाइक एक पेट्रोल टैंकर से टकरा गई। कार्लोस ऑन द स्पॉट हमें छोड़कर प्रभु यीशु के पास चला गया। मेरा एक पैर, हाथ, कई पसलियाँ टूट गर्ईं। दो महीने हॉस्पिटलाईज़ रही। घर पर भी एक महीना बिस्तर पर ही बीता। इस दौरान मदर ने जिस तरह मेरी देखभाल की वह बहुत अच्छी थी। लेकिन एक माँ की तरह नहीं, एक इनक्रेडिबल नर्स की तरह।

इस सारे समय मुझे डैड की बहुत याद आई। कार्लोस ने मुझे बहुत आँसू दिए। मैं बेड पर पड़े-पड़े उसके लिए बहुत रोती। मदर यह देख कर एक बार सिर्फ़ इतना बोलीं, "जो नहीं रहा उसके लिए रोते नहीं। जो दुनिया में सामने है उसे देखो।" मैंने सोचा क्या देखूँ, जो देख रही हूँ वह कहीं से कम से कम मेरे लिए तो अच्छा नहीं है। कितनी बार मुझे आपके हेल्प की तुरन्त ज़रूरत पड़ी, लेकिन आप अपने कमरे में उस बास्टर्ड आदमी के साथ बंद रहीं। आप दोनों की आवाज़ मुझ में कितनी खीज पैदा करती थी इसका अंदाज़ा आप नहीं लगा सकतीं।

आप दोनों की आवाज़ सुनकर बार-बार डैडी की याद आ जा रही थी। लगता जैसे वह अभी कमरे से निकल कर मेरे पास आएँगे, प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछेंगे, "कैसी हो माय चाइल्ड।" मदर से मैंने यह भी बताया कि हम उस स्कूल और अनाथालय भी गए थे जहाँ ग्रैंडफ़ादर ने अपना समय बिताया था। लेकिन मदर ने हमारी बात का कोई रिस्पांस नहीं दिया। वह जब हॉस्पिटल चली जातीं तो मैं दस-बारह घंटे के लिए एकदम अकेली हो जाती। शुरुआती एक महीने तो दस-बारह घंटे मैं डायपर के सहारे ही बिता पाती थी। उस तक़लीफ़ के क्षण कई बार मन में आया कि मैं भी कार्लोस की तरह मर जाती तो अच्छा था। जीसस ने मुझे इस तरह की तक़लीफ़ झेलने के लिए क्यों बचा लिया।

मुझे बड़ा याद आता अपना तब का परिवार जब जस्टिन, मैं, पैरेंट्स पूरा परिवार ख़ुशियों से भरा था। सब एक दूसरे को ख़ूब प्यार करते थे। किसी को जरा भी तक़लीफ़ हो जाए तो बाक़ी सारे लोग उसकी देखभाल में रात-दिन एक कर देते थे। मगर क्या से क्या हो गया था। मदर ने ख़ुद को, परिवार को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया था। बेड पर मैंने जो लम्बा समय बिताया उस दौरान जीवन के कई लेशन भी पढ़े, समझे। मदर को लेकर मेरा जो नज़रिया था उसमें भी बड़ा चेंज आ गया।

अब उन्हें मैं मदर से पहले एक फ़्रेंड मानने लगी। ऐसी फ़्रेंड जो अपनी लाइफ़ को एंज्वाय करे, ऐसी फ़्रेंड जिसे अपनी लाइफ़ को एंज्वाय करने से कोई भी स्थिति रोक नहीं सकती। कोई मर्यादा, सीमा है उसके लिए तो यही कि उसे अपनी लाइफ़ अपने एंज्वायमेंट से प्यार है। परिवार उसके एंज्वायमेंट में एक रोड़ा था जिससे छुटकारा पाने में उसे कोई संकोच नहीं हुआ। उसी समय मैंने महसूस किया कि मैं उनके रास्ते से पूरी तरह नहीं हट पाई हूँ, इसलिए अब मुझे भी पूरी तरह हट जाना चाहिए। मगर कैसे यह तय नहीं कर पा रही थी। काफ़ी समय इसी उधेड़बुन में बीत रहा था। क़रीब छः महीने बाद मैंने ऑफ़िस ज्वाइन कर लिया था। लेकिन बाइक चलाने लायक़ नहीं हो पाई थी। ऑटो से ही जाना-आना हो पा रहा था। उस समय भावेश सान्याल मेरे क़रीब आया। ऑफ़िस में मेरी बड़ी मदद करने लगा। कुछ समय बाद मैं उसी के बाइक पर आने-जाने लगी।

उसके विहेवियर में मुझे अक्सर कार्लोस की झलक मिलती, जब वह मेरी किसी काम में हेल्प करता तो लगता जैसे डैडी उतर आए हैं। मैं ऑफ़िस जाते समय एक बार अपनी बाइक को अवश्य छूती थी। उसे भरपूर एक नज़र अवश्य देखती थी। उस पर नज़र पड़ती तो कार्लोस की याद एकदम ताज़ा हो उठती। मैं तब डॉक्टर से बार-बार पूछती थी कि मैं फिर से बाइक चलाने लायक़ कब तक हो जाऊँगी। वह मुस्कुरा कर कहतेे, "मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा हूँ।" मैं और ज़ोर देती तो कहते, "एक वर्ष तो लग ही जाएगा।" जब वह एक वर्ष कहते, वह भी निश्चित नहीं तो मेरा दिल बैठ जाता। बड़ी मायूसी होती। एक नर्स होने के नाते मैं भी इतना जानती हूँ कि मेरी मेन प्रॉब्लम क्या है। पसलियों, प्रपादास्थि या तलुओं की [मेटाटार्सल] हड्डियों में भयानक टूट-फूट इतनी जल्दी ठीक होने वाली नहीं है। डॉक्टर की बात सुनकर जब मैं सीरियस हो जाती थी तो भावेश बहुत ढांढ़स बँधाता था।

ऑफ़िस ज्वाइन किए हुए मुझे तीन महीने ही हुए थे कि एक दिन छुट्टियों में मैंने मदर को बाथरूम से बाहर आते देखा। वह हफ़्ते भर का कपड़ा मशीन में धुल कर बाहर निकल रही थीं। मैंने आँगन में नेचुरल लाइट में उनका चेहरा देखा तो नज़र उनके चेहरे पर टिक गई। फिर कई हिस्सों पर टिकी। मैं साफ़ देख पा रही थी कि उन्होंने अपने शरीर के कई हिस्सों को आल्टर कराया है। ख़ासतौर से अपने ऊपरी हिस्से में, उनके होंठ, गाल, थुड्डी, गर्दन हर जगह चेंज साफ़ नजर आ रहा था। उन्होंने बड़ी बारीक़ी से अपनी प्लास्टिक सर्जरी कराई थी। उन्हें देखकर मुझे ख़ुशी हुई। मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी।

मन ही मन कहा मॉम तो इस उम्र में भी इतनी ब्यूटी कॉन्शेयस हैं। वह अपनी उम्र से वाक़ई छः सात साल कम लग रही थीं। सच में ख़ूबसूरत लग रही थीं। मुझसे रहा नहीं गया।

मैंने बोल ही दिया मॉम आप वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत लग रही हैं। मेरी बात का आशय वह समझ गईं थीं। समझते ही बोलीं, "थैंक्यू।" उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। लेकिन मुझे लगा कि उन्होंने जो चेंज कराया है, हेयर स्टाइल उस हिसाब से मैच नहीं कर रही है। मैंने कहा मॉम हेयर स्टाइल भी चेंज कर लीजिए। मेलिना ट्रंप जैसी स्टाइल इस लुक को और इंप्रूव कर देगी। वह मुस्कुरा कर रह गईं। मॉम की ख़ुशी देख कर मुझे बहुत अच्छा फ़ील हुआ था।

तेज़ी से एक साल का समय बीत गया। लेकिन मेरा पैर ना मेरी और ना ही डॉक्टरों की अपेक्षानुसार इंप्रूव हो रहा था। हालाँकि फिर भी आराम से चलने-फिरने लगी थी। लेकिन बाइक चलाने के लायक़ नहीं हुई थी। इसी बीच एक दिन अचानक ही पता चला कि उस आदमी ने अपनी बीवी को डायवोर्स दे दिया है। और अब वह और मॉम दोनों मैरिज करने जा रहे हैं। उसने अपने को अपने परिवार से बिल्कुल अलग कर लिया है। उस दिन मैंने सोचा यह अच्छा हुआ दोनों लोग मैरिज करके आराम से ख़ुशी से रहें। मन में यह बात भी बड़ी गहराई से उठी कि यह उस परिवार के एंगल से अच्छा नहीं हुआ है। बहुत बुरा हुआ उसके परिवार के लिए। उसकी मिसेज तीन-तीन बच्चों को लेकर कैसे अपनी लाइफ़ जियेगी। वह ज़्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं है।

मॉम और इस आदमी ने अपने व्यक्तिगत सुखों के लिए अपने-अपने परिवार की बलि दे दी है। मैं मॉम से बहुत रिज़र्व रह रही थी। मुझे तभी लगा कि अब सही समय है मॉम के रास्ते से पूरी तरह हट जाने का। तो उस दिन सीधे पूछ लिया मैरिज के बारे में तो उन्होंने भी बिना किसी संकोच के बता दिया। समय भी बता दिया कि अगले हफ़्ते मैरिज करने जा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, "मैं आज ही बताने वाली थी लेकिन तुम्हें मालूम हो गया।" मैंने कहा मैं ख़ुश हूँ। मैं बहुत ख़ुश हूँ कि आपने यह डिसीज़न लिया। मैं समझती हूँ कि यह आपको और पहले ही कर लेना चाहिए था। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने सोचा शादी धूमधाम से होगी लेकिन मॉम ने कहा नहीं।

पाँच दिन बाद ही शादी थी। मॉम के मना करने पर भी मैंने पूरे घर को इतने दिनों में जितना रेनोवेट कराया जा सकता था, कराया। उनके कमरे में नया पेंट कराने से लेकर बेड, फ़र्नीचर, कॉरपेट सब नया बनवा दिया। पाँचवें दिन मैरिज के वक़्त चर्च में मैं उनके साथ थी। व्हाइट ड्रेस में मॉम वाक़ई बड़ी ख़ूबसूरत लग रही थीं। बड़ी मासूम सी। दोनों का पेयर ख़ूब अच्छा लग रहा था। लेकिन आदमी के चेहरे पर नज़र जाते ही मुझे उबकाई सी महसूस होने लगती थी। उसकी तरफ़ से मैं तुरंत मुँह फेर लेती थी। मुझे वह दोनों परिवारों को नष्ट करने वाला निहायत गंदा घिनौना व्यक्ति नज़र आ रहा था।

चर्च में गिने-चुने लोगों को ही इनवाइट किया गया था। एक होटल में छोटी सी पार्टी दी गई थी। शादी करके घर पहुँचने पर मैंने ही मॉम को रिसीव किया। कई रस्मों को भी पूरा किया। मॉम नहीं चाहती थीं लेकिन मैं नहीं मानी। मैंने ही उन्हें उनके कमरे में पहुँचाया। जिसे मैंने बहुत प्यारे ढंग से सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वह निहायत गंदा आदमी नए ढंग से सजे ड्रॉइंग रूम में बैठा था। उसके कुछ दोस्त उसके साथ थे। वो लोग उसे भी हैंडसम कह रहे थे। लेकिन वह मुझे गंदा ही लग रहा था। जल्दी ही सारे गेस्ट चले गए। मॉम अपने कमरे में थीं। मॉम को मैंने गोल्ड का एक ख़ूबसूरत गिफ़्ट, बुके देकर नए जीवन की शुरुआत के लिए ख़ूब बधाई दी। उन्हें गले से लगाया। उन्होंने भी "माय चाइल्ड, माय चाइल्ड", कहकर मेरी पीठ थपथपाई।

मैंने उन्हें गुड नाईट बोलते हुए कहा, ओके मॉम, कल मिलती हूँ। लास्ट में मैंने मैनर्स के चलते उस गंदे इंसान को भी विश किया, गिफ़्ट दिया। और भावेश के साथ घर से पाँच किलोमीटर दूर उस घर में आ गई जिसे मैंने रेंट पर अपने लिए लिया था। इसी एक हफ़्ते में मैंने अपना नया आशियाना भी बना लिया था। इस पूरे एक हफ़्ते में भावेश सारे काम में मेरे साथ रहा। मेरा हाथ बँटाता रहा।

घर से जितना मेरा अपना पर्सनल सामान था वह मैं ले आई थी। नेक्स्ट डे सुबह ही मॉम का फोन आया "माय चाइल्ड कहाँ हो?" मैंने कहा मैं अपने नए घर में हूँ। उन्हें शॉक लगा, बोलीं, "क्या! तुम्हें घर छोड़कर जाने की क्या ज़रूरत है।" मैंने कहा मॉम अब वह मेरा घर नहीं रहा। कम से कम मैं यही मानती हूँ, डैड रहे नहीं, जस्टिन ने छोड़ दिया। और अब आप भी आप नहीं रहीं। सरनेम चेंज हो गया है। आप ही सोचो मॉम घर में हर जगह डैड, जस्टिन, मेरी मॉम की अनगिनत यादें हैं, वहाँ मैं किसी और को कितनी देर देख पाऊँगी। वह भी उसे जो मेरे घर की इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है। इसलिए प्लीज़ मॉम जैसे आप डैड, जस्टिन को भूल गईं वैसे ही अब मुझे भी भूल जाइए। अपने नए जीवन को एँज्वॉय करिए। मेरा जब मन होगा, ऑफ़िस में आपसे मिल लिया करूँगी। लेकिन वहाँ कभी नहीं आऊँगी। क्योंकि अब वह मेरा घर नहीं रहा। इसलिए प्लीज़ मुझे क्षमा कीजिए।

मॉम आप इस बात को भी ठीक से समझ लें कि हमारे आपके लिए यही अच्छा है कि हम दूर रहें। हमारी खुशियाँ अब इसी दूरी पर डिपेंड करती हैं। मॉम ने मुझे समझाने की कोशिश की लेकिन मैंने अपना मत स्पष्ट बता दिया। मॉम अब आपकी दुनिया अलग है। मेरी अलग, इस सच को स्वीकारिए। मॉम ने जब यह समझ लिया कि मैं अपनी बात पर अडिग हूँ तो उन्होंने भी मुझे अच्छे जीवन की ख़ूब शुभकामनाएँ दीं और बात ख़त्म कर दी। लास्ट में यह बोले बिना नहीं रह सकीं कि माय चाइल्ड कभी-कभी मिलने आओगी तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी। उनसे बात ख़त्म कर मैं भावेश के साथ सामान पैक करने लगी थी। हम एक हफ़्ते के लिए चंपावत घूमने जा रहे थे। मगर बुलेट से नहीं। मेरे पैर तब भी मेरा साथ नहीं दे रहे थे। बुलेट मैंने कपड़े से कवर करके पोर्च में खड़ी करवा दी थी। कई बार मन से चाहते हुए भी हम कई चीज़ों को अपना नहीं पाते।

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