भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा - 9 Renu द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा - 9

कल्कि-अवतारकी कथा


कलियुग के अन्तमें जब सत्पुरुषोंके घर भी भगवान्‌ की कथामें बाधा होगी, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य पाखण्डी हो जायँगे और शूद्र राजा होंगे, यहाँतक कि कहीं भी स्वाहा, स्वधा और वषट्कारकी ध्वनि नहीं सुनायी पड़ेगी। राजा लोग प्रायः लुटेरे हो जायँगे, तब कलियुगका शासन करनेके लिये भगवान् बालकरूपमें संभल ग्राममें विष्णुयशके घरमें अवतार ग्रहण करेंगे।

परशुरामजी उनको वेद पढ़ायेंगे। शिवजी शस्त्रास्त्रोंका संधान सिखायेंगे, साथ ही एक घोड़ा और एक खड्ग देंगे। तब कल्किभगवान् ब्राह्मणोंकी सेना साथ लेकर संसारमें सर्वत्र फैले हुए म्लेच्छोंका नाश करेंगे। पापी दुष्टोंका नाश करके वे सत्ययुगके प्रवर्तक होंगे। वे ब्राह्मणकुमार बड़े ही बलवान्, बुद्धिमान् और पराक्रमी होंगे। धर्मके अनुसार विजय प्राप्तकर वे चक्रवर्ती राजा होंगे और इस सम्पूर्ण जगत्को आनन्द प्रदान करेंगे। (महाभारत, वनपर्व)


श्रीव्यासजीके अवतारकी कथा—


चेदि देशके राजा वसुपर अनुग्रह करके देवराज इन्द्रने एक दिव्य विमान दिया था, जिसपर बैठकर वे आकाशमें सबके ऊपर विचरते थे अतः उनका नाम उपरिचर वसु पड़ गया था। एकबार राजा उपरिचर वसु अपनी ऋतुस्नाता पत्नी गिरिकाको, जिसने पुत्रोत्पत्तिकी कामनासे उचित समयपर समागमकी प्रार्थना की थी, उसे छोड़कर मृगयाके लिये वनमें चले गये। वनमें ऋतुराज वसन्तकी अद्भुत शोभा देखकर राजाको कामोद्दीपन हुआ, जिससे उनका वीर्य स्खलित हो गया। राजाने यह विचारकर कि मेरा वीर्य भी व्यर्थ न जाय और रानीका ऋतुकाल भी व्यर्थ न हो, अतः वटपत्रपुटकमें रखकर एक बाज पक्षीके द्वारा उस वीर्यको रानीके पास भेजा। संयोगवश मार्गमें एक दूसरे बाजसे संघर्ष हो जानेके कारण वह वीर्य यमुना नदीमें गिर गया, जिसे ब्रह्माजीके शापसे मछलीरूपधारिणी अद्रिका नामकी अप्सरा पी गयी और कालान्तरमें जब मत्स्यजीवी मल्लाहोंके जालमें वह मछली फैंसी और मछुओंने उसके पेटको चीरा तो उसमें अत्यन्त सुन्दर एक पुत्र और एक कन्यारत्नको पाया। मछुओंने उन दोनों सन्तानको राजा उपरिचर वसुको निवेदन किया। राजाने पुत्र तो स्वयं ले लिया, जो आगे चलकर मत्स्य नामक बड़ा धर्मात्मा राजा हुआ। कन्याके शरीरसे मछलीकी गन्ध आती थी, अतः उसे दासराज नामक मल्लाहको सौंप दिया। वह रूपके साथ-साथ सत्यसे युक्त थी। अतः उसका सत्यवती नाम पड़ा।

एक बार तीर्थयात्राके उद्देश्यसे विचरनेवाले महर्षि पराशरने उसे देखा तो शुभ संयोग देखकर बुद्धिमान् पराशरने उसके साथ समागमकी इच्छा प्रकट की। सत्यवतीने संकुचित होकर अपने कन्यात्वके दूषित होने, दिन होनेके कारण नदीके आर-पार दोनों तटोंपर उपस्थित लोगों द्वारा देखे जाने तथा अपने शरीरसे मछलीकीसी दुर्गन्धि निकलनेकी बात कही। समर्थ ऋषिने तीनों कठिनाइयाँ तत्काल दूर कर दीं। आशीर्वाद दियातुम्हारा कन्या-भाव सुरक्षित रहेगा। शरीरसे सुन्दर सुगन्धि निकलेगी, जो एक योजनतक फैलेगी और कुहराकी सृष्टिकर चारों ओर अँधेरा कर दिया। तब तो वरदान पाकर प्रसन्न हुई सत्यवतीने उन अद्भुतकर्मा महर्षि पराशरके साथ समागम किया और तत्काल ही एक शिशुको जन्म दिया। यही शिशु पराशरजीसे उत्पन्न होनेसे पाराशर्य, यमुनाजीके द्वीप (जलसे घिरे भूभाग)-में उत्पन्न होनेसे द्वैपायन, वेदोंका व्यास (विस्तार) करनेसे वेदव्यास नामसे विख्यात हुआ। इन्होंने मातासे कहा—‘आवश्यकता पड़नेपर तुम मेरा स्मरण करना, मैं अवश्य दर्शन दूंगा। इतना कहकर माताकी आज्ञा ले श्रीव्यासजीने तपस्यामें मन लगाया। श्रीव्यासजीने देखा कि प्रत्येक युगमें धर्मका एक-एक पाद लुप्त होता जा रहा है। मनुष्योंकी शक्ति और आयु क्षीण हो चली है, यह सब देख-सुनकर उन्होंने वेद और ब्राह्मणोंपर अनुग्रह करनेकी इच्छासे वेदोंका व्यास (विस्तार) किया। वेदमें सबका अधिकार न होनेसे सर्व-साधारणको वेद-तात्पर्य सुलभ करानेकी दृष्टिसे, आपने पाँचवें वेदतुल्य महाभारत (इतिहास ग्रन्थ)-की रचना की। फिर वेदोंका अर्थ स्पष्ट करनेके लिये ही महापुराणोंकी रचना की। परंतु मनमें जैसी शान्ति चाहिये वैसी शान्ति नहीं होनेसे, अपनेको अकृतार्थ-सा मानकर, खिन्नताको प्राप्त श्रीव्यासजीने देवर्षि नारदजीकी प्रेरणासे श्रीमद्भागवत-महापुराणकी रचनाकर परम विश्राम पाया। परमहंसाचार्य श्रीशुकदेवजी आपके पुत्र हैं।