गाली देने वाली लड़की - भाग 2 pooja द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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गाली देने वाली लड़की - भाग 2

अब अद्वय दिन में ऑफिस जाता तो दीवा नाइट शिफ्ट में। अब दोनों का वीकली ऑफ भी अलग-अलग दिन था। लेकिन ऐसा चूहे-बिल्ली का खेल कब तक चल सकता है? दीवा अक्सर सोचती कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसकी मैरिड लाइफ को एक महीने की खुशी भी नसीब नहीं हो सकी।

एक रात वह नाइट शिफ्ट में इसी उधेड़बुन में थी कि उसके मैनेजर ने उसे एक घंटे की डेडलाइन में एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट देने को कहा। वह सर-सर करती रह गई लेकिन बॉस अपने केबिन में लॉक हो चुका था। एक गंदी गाली बुदबुदाकर उसने अपने गृहस्थी के ख्यालों को समेटा और फाइल देखी तो उसका हलक सूख गया और वह एक ही सांस में पूरी बोतल खाली कर गई।

यह देख सामने बैठे रितेश ने कहा, लगता है आप परेशान हैं। मैं कुछ हेल्प करूं क्या?

न चाहते हुए भी दीवा को हां बोलना पड़ा। रितेश ने पांच मिनट तक फाइल देखी और कहा कि मेरे पास इसकी लास्ट प्रोग्रेस रिपोर्ट है। मैं तुमसे शेयर करता हूं। स्टार्टिंग के चार-पांच पॉइंट ऐड कर अपडेट कर देना। पांच मिनट में रिपोर्ट तैयार हो जाएगी।

दीवा ने ऐसा ही किया। एक घंटे का काम दस मिनट में निपटाकर वह कैफेटेरिया चली गई। खराब कॉफी मशीन को देखकर उसके मुंह से गाली निकलने ही वाली थी। वो तो उसने बगल में खड़े रितेश को देख लिया जो अपने फ्लास्क से कॉफी निकालकर उसकी ओर बढ़ा रहा था। उसने कहा, लगता है नाइट शिफ्ट का आइडिया कम है तुमको। खाना तो लाई हो न? कैंटीन भी बंद रहती है।

अब तो दीवा के मुंह से सच में गाली निकल गई। हंसी से लोटपोट होता हुआ रितेश बोला कि लड़कियां वाकई कितनी क्यूट लगती हैं गाली देते हुए। उसे शादी से पहले का अद्वय याद आया कि पहले सभी लड़कों को लड़की के मुंह से गाली अच्छी लगती है लेकिन फिर वही गाली उनके लिए निकले तो बर्दाश्त नहीं कर पाते।

दीवा ने कॉफी का सिप लेते हुए उसे सिर से पैर तक घूरा। उसे रितेश बड़ा चेप किस्म का बंदा लगता था। लेकिन उसे लगा कि बिना इसके रात काटना मुश्किल होगा। इसलिए दीवा ने उसे इनसल्ट करके भगाने का ख्याल फिलहाल मुल्तवी कर दिया।


दीवा को खाना बनाना खास पसंद नहीं था। उसने इस काम को सर्वाइवल स्किल की तरह सीखा था तो फर्स्ट नाइट शिफ्ट में रितेश के खाना ऑफर करने के बाद अब वह रितेश का ही टिफिन शेयर करती थी। रितेश ने उसे दो-तीन दिन बिना टिफिन के देखा तो खुद ही उससे आकर पूछ लेता था खाने चलें। और अब तो वो उसे अपनी फूड चॉइस भी बताने लगी थी।

कुछ नाइट शिफ्ट साथ बिताकर दीवा को लगा कि रितेश असल में चेप नहीं लोगों को लेकर कंसर्न रहता है। जो कि आज के दौड़भाग वाले शहर में लोगों को बड़ी अजीब सी चीज लगती है। लोगों के टास्क बिना कहे सॉल्व कर देना। कई बार बिना मांगे सजेशन दे देना, किसी को खाना ऑफर कर देना, किसी की वॉटर बॉटल रीफिल कर लाना, न जाने वो ऐसी हरकतें क्यों करता था। शायद इसलिए ऑफिस में सब उसे चेप कहते थे।


एक दिन सब्जी में नमक थोड़ा ज्यादा होने पर वह पूरे टाइम गिल्ट में रहा। दीवा को खीझकर बोलना पड़ा कि हो जाता है यार। तुमको हमेशा परफेक्ट क्यों बनना होता है? उस शिफ्ट में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई।

अगले महीने की शुरुआत में अद्वय ने नाइट शिफ्ट ली थी ताकि वो दीवा के साथ कुछ टाइम बिता सके। दीवा को ये पता चलते ही उसने अपनी शिफ्ट चेंज करवा ली। अद्वय इस बात पर दीवा से नाराज रहा, लेकिन उसे पता नहीं था कि दीवा के मन में क्या-क्या चल रहा है, वरना वो उससे उलझने के बजाए, उसे मनाने और बात को सुलझाने की कोशिश जरूर करता।

ऐसा नहीं था कि दीवा ने उसे हिंट नहीं दिए थे, लेकिन अद्वय अपने रिश्ते के इश्यूज के हिंट पकड़ ही नहीं पा रहा था। इसलिए उनके बीच अब बातचीत लगभग बंद ही थी। जब भी कुछ कहना-सुनना होता तो सरकास्टिक कमेंट, टॉन्ट, एक-दूसरे की हफ्तों, महीनों, सालों पुरानी बातों पर की कमियां निकालने से लेकर दीवा की गालियों और फिर अबोलेपन पर आकर बात खत्म हो जाती।

इधर, अद्वय से झगड़कर जब दीवा डे शिफ्ट में आई तो उसने रितेश की कॉफी, उसके टिफिन, उसके साथ सुट्टा ब्रेक को बड़ा मिस किया। बाद में उसे अहसास हुआ कि वह रितेश को ही मिस कर रही है। उसने रितेश को डे शिफ्ट में आने के लिए कहा, लेकिन रितेश दिन में अपने म्यूजिक एलबम के लिए काम और मीटिंग्स करता, इसलिए उसके लिए ये पॉसिबल नहीं था। दीवा इसी बात पर उससे भी लड़ ली। हालांकि, रितेश ने चुप रहना ही बेहतर समझा।