हीर रांझा - 1 pooja द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर रांझा - 1

चेनाब नदी के किनारे एक खूबसूरत जगह है- तख़्त हजारा। यहाँ बहने वाले दरिया की लहरें और बगीचे की खुशबू की वजह से इसे पूरब का स्वर्ग कहा जाता है। यही रांझाओं की धरती है जो मस्ती से यहाँ रहते हैं।


इस बस्ती के नौजवान खूबसूरत और बेपरवाह किस्म के हैं। वे कानों में बालियाँ पहनते हैं और कंधे पर नए शॉल रखते हैं। उनको अपनी खूबसूरती पर गर्व है और सभी इसमें एक-दूसरे को मात देते दिखते हैं।


इसी बस्ती का मुखिया था जमींदार मौजू चौधरी। वह आठ बेटे और दो बेटियों का बाप था। वह बहुत धनी और खुशहाल था और कुनबे में सभी उसका सम्मान करते थे। सभी बेटों में वह रांझा को सबसे ज़्यादा प्यार करता था। इस कारण रांझा के बाकी भाई उससे बहुत जलते थे।

बाप के डर से वे रांझा पर सीधे वार नहीं कर पाते थे लेकिन पीछे ताना मारते रहते थे जिससे रांझा के दिल को ऐसे चोट लगती थी जैसे सोये हुए आदमी को अंधेरे में सांप डंक मारता हो।


फिर एक अंधेरी रात ऐसी भी आई जब रांझा पर कयामत का कहर बरपा। उस रात उसका बाप मौजू चल बसा। रांझा के भाइयों और भौजाइयों ने उसपर अब खुलेआम बार-बार ताना कसना शुरू कर दिया।


वे रांझा को कहते, "आलसी बैठकर रोटी तोड़ता है और दो आदमी के बराबर दूध पी जाता है, वो भी मक्खन मार के।" भाइयों ने रांझा से छुटकारा पाने के लिए षडयंत्र करना शुरू कर दिया और एक योजना बनाई.।

रांझा के सभी भाई मिलकर जमीन की माप-जोख करनेवाले काज़ी के पास गए और उसे रिश्वत देकर अच्छी जमीनों को आपस में बाँट लिया। बंजर और बेकार जमीन रांझे के हिस्से में आई। यह सब देखकर रांझा के दुश्मनों की खुशी का तो ठिकाना नहीं था।


अब वे समाज में घूम-घूम कर कहने लगे कि अब रांझा को भाइयों ने जाल में अच्छा फांसा है। रांझा को भी वो अपमानित करते हुए कहते थे, "यह आदमी खेत कैसे जोत सकता है जिसके सर पर बड़े-बड़े बाल हैं लेकिन दिमाग में दही भरा है। ऐसे आदमी से कौन औरत शादी करेगी जो जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर सकता।"



रांझा की बेइज्जती करने में भाई भी पीछे नहीं थे, वे कहते, "उसने तो औरतों की तरह चूड़ियाँ पहन रखी हैं। दिन भर बाँसुरी बजाता रहता है और रात भर गाता रहता है। अगर वह जमीन को लेकर लड़ने आता है तो आने दो। देखते हैं कि क्या कर लेता है? हम सब की ताकत के आगे वह अकेला कुछ नहीं कर सकता।"


रांझा भारी दिल लिए अपने बैलों को लेकर खेत जोतने चला लेकिन उसकी आत्मा रो रही थी और धूप की तल्खी उसके दुख को और बढ़ा रही थी। खेत जोतते हुए जब थक गया तो वह छाया में जाकर लेट गया और आराम करने लगा।उसकी भौजाई साहिबा उसके लिए खाना लेकर आई और वह अपना दर्द उससे कहने लगा, "भौजी, मुझे खेत जोतना अच्छा नहीं लग रहा। जमीन बहुत कठोर है। मेरे हाथों में फफोले और पैरों में छाले पड़ गए हैं। पिताजी जिंदा थे तो कितने अच्छे दिन थे। जाने वे कहाँ चले गए और ये बुरे दिन मुझे देखने पड़ रहे हैं।"


साहिबा ताना मारते हुए बोली, "वैसे तुम तो बस अपने पिता के ही दुलारे थे। माँ के लिए तुम शर्मसार करने वाले बेटे थे।"