संग विज्ञान का - रंग अध्यात्म का - 5 Jitendra Patwari द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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संग विज्ञान का - रंग अध्यात्म का - 5

5: मूलाधार चक्र – चक्र व्यवस्था का आधारस्तंभ

 

किसी भी प्रकार की साधना जाने-अनजाने में हो रही चक्रयात्रा ही है। तो चले इस यात्रा पर ... आरंभ करते हैं मूलाधार चक्र से। चक्रयात्रा का प्रथम चरण है, मूलाधार चक्र।

वैकल्पिक नाम, शरीर में स्थान, रंग, तत्त्व, बीजमंत्र

सबसे नीचे, नींव का चक्र है 'मूलाधार चक्र'। इसे Root Chakra या Base Chakra भी कहा जाता है। स्थूल शरीर में जहाँ दो पैर जुडते हैं उस भाग को, गुदाद्वार एवं जननेन्द्रिय के बीच स्थित भाग (जिस स्थान से भीम ने जरासंघ के दो टुकड़े किए थे वह हिस्सा, जिसे सीवनी, अँग्रेजी में Perineum कहा जाता है उस भाग पर (प्राणशरीर में) मूलाधार चक्र का स्थान है। इससे पहले हमने जिन नाड़ियों के बारे में जानकारी प्राप्त की वह भी यहीं से निकलती हैं।

हर चक्र का एक रंग होता है, बीज मंत्र होता है। लहू का रंग लाल है, जो इस मूलधारचक्र का ही रंग है। बीज मंत्र है 'लं'। मूलाधार चक्र का तत्त्व है 'पृथ्वी तत्त्व' जिसके कारण शरीर आधार तथा स्थिरता प्राप्त करता है। शरीर में जो ठोस हिस्सा होता है वह पृथ्वी तत्त्व को दर्शाता है।

 

पृथ्वी का मूलाधार चक्र

 जैसे हमने अध्याय 4 में जाना कि समग्र पृथ्वी के भी चक्र होते हैं। पृथ्वी का मूलाधार चक्र स्थित है अमेरिका के उत्तर केलिफोर्निया में स्थित माउंट शास्टा (Mt. Shasta)। समुद्रतल से 14,000 फीट ऊंचा यह पर्वत एक सुषुप्त ज्वालामुखी है; लंबे समय से रहस्यवाद और अध्यात्म से जुड़ा है। नेटिव अमरीकन प्रजातियों और अन्य आध्यात्मिक वर्गों की मान्यता के अनुसार यह एक पवित्र एवं हिलिंग पर्वत है।

 

एक परेशानीदायक घटना में २०२१ के बाद में वहाँ कई जगह बड़ी आग फैलती रही है। यह आग, सुनामी, ऑस्ट्रेलिया में आग, अनेक प्रदेशों में भूकंप, त्रासद घटनाएँ, विश्वभर में अनेक स्थानों पर युद्ध का माहौल, कोविड-19, झंझावात के साथ घनघोर वर्षा और हवा के तूफान आदि घटनाएँ इस बात की द्योतक है कि पृथ्वी के मूलाधार चक्र में बड़ी गड़बड़ी हो रही है।

 

चक्र का महत्त्व

मूल+आधार=मूलाधार। स्थूल शरीर और प्राणशरीर दोनों का आधार यह चक्र है। कुंडलिनी शक्ति का स्थान भी यहाँ ही है। कमजोर नींव पर मजबूत इमारत का अस्तित्व संभव नहीं है। अतः आवश्यक है कि यह चक्र स्थिर हो, उचित मात्रा में ऊर्जा ग्रहण करता हो। हठयोग में एक मूलबंध नामक अति महत्त्वपूर्ण क्रिया है, जिसमें इस भाग के स्नायुओं को ऊपर की और खींचना होता है।

आर्थिक सहित, हर भौतिक वस्तु इस चक्र से सम्बन्धित है। इसलिए इस चक्र की स्थिति पर हमारी भौतिक स्थिति का भी आधार होता है। बोनमेरो को ऊर्जा यह चक्र ही प्रदान करता है। रक्त का सर्जन और उसकी गुणात्मकता इस चक्र पर आधारित है। सभी मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे कि सुरक्षा की भावना, मानसिक एवं सामाजिक सहयोग की भावना, अन्न-यह सब इस चक्र से संबंधित है।

मूलाधार चक्र सबसे नीचला चक्र है परंतु उसका सीधा संबंध सबसे ऊपरी चक्र यानी कि सहस्त्रार चक्र से है। शरीर में होर्मोन्स का संतुलन ये दोनों चक्र मिलकर करते हैं। दो में से किसी भी एक चक्र में तकलीफ हो तो दूसरे के कार्य में भी तकलीफ आ सकती है।

 

संबंधित शारीरिक अंग एवं अन्तःस्त्रावी ग्रंथियाँ

 यह चक्र ओवरी एवं टेस्टिकल्स से जुड़ा है; इन दोनों अंग पर उसका सीधा असर होता है; अस्थि, दांत, नाखून से प्रोस्टेट, बड़ी आंत, गुदा भी उससे संबंधित है, गोनाड (सेक्स ग्रंथि) और एड्रीनल ग्रंथि से जुड़ा है। (एड्रीनल का संबंध मणिपुर चक्र से भी है। )

 

 चक्र की स्थिति का स्वपरीक्षण

 

संतुलित मूलाधार चक्र

कुछ प्रश्नों के उत्तर अपने-आप से प्रामाणिकता से प्राप्त करें।

ü  क्या मैं लोगों पर आसानी से विश्वास कर सकता हूँ?

ü  लोगों के साथ सहजता से मिलजुल सकता हूँ?

ü  मुझमें मजबूत इच्छाशक्ति एवं आत्मविश्वास है?

ü  अधिकतर कार्य उत्साहपूर्वक करता हूँ?

ü  मेरा वजन आदर्श वजन के करीब रहता है?

ü  भूतकाल की दुःखद यादों को मैं भूल सकता हूँ?

ü  भविष्य के बारे में सदा उत्साहित रहता हूँ?

ü  मेरा विसर्जन तंत्र उचित रूप से कार्य कर रहा है?

ü  अन्य लोगों का सान्निध्य तो पसंद है पर खुद के साथ एकांत में भी खुशी से रह सकता हूँ?

ü  क्या मेरी रोग प्रतिरोधक शक्ति अच्छी है?

यदि अधिकतर प्रश्नों के उत्तर 'हाँ' में हैं तो समझो मूलाधार चक्र संतुलित है, उचित मात्रा में ऊर्जा प्राप्त कर रहा है।

 

असंतुलन के लक्षण

यह आवश्यक नहीं कि चक्र संतुलित ही हो। यदि असंतुलित हो तो क्या हो सकता है?

ü  मेरी प्राथमिक आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं हो रही है, उचित मात्रा में खाना नहीं मिल रहा है, पैसे की तंगी रहती है, यौन आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं हो रही हैं ऐसा लगे तो समझ लीजिये मूलाधार चक्र में तकलीफ है और पृथ्वी तत्त्व से संपर्क छूट गया है।  गया

ü  आयोजन अनेक करें पर अमल किसी पर भी न करें, हर कार्य में विलंब होता हो तो समझ लीजिये कि मूलाधार चक्र में तकलीफ है। यदि बीमारी बार-बार आती हो, बार-बार सब भूल जाते हों, नींद में तकलीफ हो, शरीर का विसर्जनतंत्र बार-बार बिगड़ता हो तो समझो मूलाधार चक्र को ठीक करने का समय आ चुका है। कमर के नीचले हिस्से में दर्द (जो आजकल सामान्य है) तो वह भी कमजोर मूलाधार चक्र के कारण ही है।

ü  सुरक्षा की भावना से जुड़ा चक्र होने के कारण 'डर का एहसास' इस चक्र के केंद्र में है। डर किसी भी प्रकार का हो सकता है-शारीरिक या मानसिक रूप से अकेलेपन का डर, स्वयं से प्यार करने में डर, कोई नया कदम उठाने में लगता डर, आर्थिक मामलों में डर, किसी भी प्रकार के बदलाव को स्वीकार करने में डर और अंत में कोविड-19 का डर। याद रहे 'डर' काल्पनिक होता है। जो अवांछित घटना नहीं हुई परंतु भविष्य में होगी ऐसा वर्तमान में विचार (परिणामतः वर्तमान में उस अघटित घटना का अनुभव लेना) ही 'डर' होता है।

ü  चिंता और डर कितनी सीमा तक काल्पनिक हो सकता है उसका एक उदाहरण। मेरे एक मित्र की संपत्ति का मूल्य वर्ष २००५ में भी कम से कम 100 करोड़ से ज्यादा था। अधिकतर लोगों के लिए यह मूल्य इतना है कि चिंता का कोई कारण ही नहीं रहता। फिर भी यह मित्र हमेशा अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में चिंतित रहता था। व्यवसाय में नुकसान के बाद उसकी मानसिक स्थिति ऐसी हो गयी थी। मूलाधार चक्र दूषित हो गया था। इस स्थिति का असर शरीर पर पड़ा और वह केंसर के रोग का शिकार हो गया। यह उसका सौभाग्य था कि इस रोग से बाहर आ गया और अब पूर्णतः स्वस्थ है।

 

Jitendra Patwari

Author - चक्रसंहिता (Thorough guide about Chakras and healing modalities, available in Hindi and Gujarati)

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