अपने हिस्से का दुःख! रेखा श्रीवास्तव द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अपने हिस्से का दुःख!

                          रेड लाइट पर गाड़ियाँ खड़ी हुई थीं कि शमिता की नज़र बगल वाली गाड़ी पर चली और फिर दोनों की नज़रें एक साथ टकराईं। एक गाड़ी में कुछ बड़े बच्चे को लेकर महिला मकान था और दूसरी गाड़ी में एक बच्चे को पुरुष के लिए रखा गया था।  

         तभी ग्रीनलाइट हुई और दोनों ने अपनी-अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी। 2 घंटे बाद शमिता के पास एक फोन आया - "क्या हम आज शाम के साथ कॉफी पी सकते हैं?"

"क्यों अभी भी कुछ शेष है?" शमिता ने झुंझलाकर कहा.

"हाँ कुछ बातें करना है, जो आज सितारे देखने का मन कर आया।" आशीष ने संयत स्वर में कहा।

"कुछ ख़ास बात?" शमिता को पता चला।

        आशिष का 5 साल बाद ऐसा करना उसकी कुछ समझ में नहीं आया, बात पर पता नहीं चला कि उस बच्चे के साथ होना एक सवाल है तो खड़ा होना ही है। लेकिन क्या? ये उसे ना समझ आया और फिर वो अपने अतीत में ही डूब गया। विवेक के आने के करीब 1 साल बाद पता चला कि विवेक स्पेशल इंजिनियर है। बहुत मेहनत से खोज कर उसने ऐसे बच्चों के केंद्र के बारे में पता लगाया और इसमें उद्यमशीलता की सोच भी शामिल है। फिर वहां से डे केयर में रखना शुरू कर दिया। बैंक से अरेस्ट के बाद विवेक को ले कर घर चला गया। जब सुधार नहीं हुआ और शमिता को आशीष से अधिक विवेक का समय मिल गया। एक और साल गुजरा कि आशीष ने दो टुकड़े कहा - "मैं 1 साल का समय दे सकता हूं तुम छुट्टी लो या फिर कुछ भी ठीक नहीं होना चाहिए तो मैं इस मैरिड लाइफ को और नहीं झेल पाऊंगा।" 

     और फिर क्या हुआ उन्होंने सहमति से तलाक ले लिया। लुकाछिपी उसकी आँखें गालों पर लपक गयीं। बीच में विवेक ने अपनी आँखें तोड़ दीं - "माँ क्या हुआ"

"कुछ नहीं" कह कर उसने अपने से चिपका लिया। मयस्सर चेस कब छोड़ी है, यादों के भंवर में डूबती तैरती है वह कब सो गई पता ही नहीं चला।  

         सप्ताहांत पर समय निश्चित किया गया था कि वे फ़्लॉपी हाउस में मिल सकते हैं। उनका बेटा 8 साल का था और आशिष का बेटा 3 साल का था। 

         आशीष पहले से ही फिल्मी हाउस में ग्यान थे, शमिता जैसी ही आशीष ने उठ कर वॉक किया था।  

"क्या बात है?" शमिता ने स्कॉर्पियो से किया सवाल।

"क्या न हाल पूछा न चलो और न पूछा तो सीधे से पूछ लिया।" आशीष ने कहा हुआ हुआ।

"क्या हमारे बीच ऐसा कुछ बाकी है?" शमिता के स्वर में तल्खी थी। 

"यार, मैं चाहता था कि हम एक दूसरे की जिंदगी में झांकें।" आशिष ने सीधी बात की।

शमिता ने कहा- ''जैसा पहले था वैसा ही कुछ बदलाव है वैसा नहीं।'' 

"लेकिन मेरे कहने का या इस प्रश्न का मतलब यह है कि तुम विवेक को कैसे पढ़ रहे हो? वह पीछे कहां रहता है और झूठे काम के दौरान कहां रहता है?" आशिष ने साफ कर दिया। 

 "मैं नहीं समझता इन बातों का कोई मतलब है, ये तुमने मुझे क्यों बुलाया?"

    "क्या हम फिर से एक साथ नहीं रह सकते?" 

"क्या कहा? विवेक अभी भी वही है।"

"जानता हूं, लेकिन जब से हम अलग हुए, उसके बाद की कहानी बहुत अलग है। मैंने कलिग से अपनी शादी कर ली हमारी लाइफ सही चल रही थी, इस बीच दिव्या का हमारी जिंदगी में आना हुआ लेकिन 1 साल बाद पता चला पता चला कि वह भी 'स्पेशल इंजिनियर' है और उसके बाद उसने मेरा साथ छोड़ दिया। यह अंकल किफे में ही कुछ तो कमी है, पहला बच्चा भी स्पेशल इंजिनियर था और दूसरा भी, जबकि मां अलग-अलग हैं हो सकता है और टैब से डिविक को मेरे पास छोड़ दिया जाए।" अपरिपक्व आशीष ने गहरी सांस ली।

"मैं क्या चाहता हूँ?" शमिता को पता चला।

"मैंने यही कहा था और शायद एक ही तरह का दंड मुझको मिला हो सकता है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम लोग एक साथ रहें। दोनों बच्चे एक साथ रहें ताकि उन्हें अच्छी कंपनी मिले ताकि अच्छी तरह से काम किया जा सके।" 

"नहीं, कभी नहीं सोचा कि मैं इस बात के लिए राजी हो जाऊंगी। हम अपने-अपने हिस्सों की जिंदगी जीते हैं, फिर कैसे मैं दोस्त और तुम मेरे दुख क्यों जियोगे? यही कहा था ना।" शमिता ने अपना पर्स उठाया और तेजी से बाहर निकल गई।