आज की कहानी Arya Tiwari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आज की कहानी


Chapter-1

*💐न माया मिली न राम💐*

किसी गाँव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम हीरा था और दूसरे का मोती. दोनों में गहरी दोस्ती थी और वे बचपन से ही खेलना-कूदना, पढना-लिखना हर काम साथ करते आ रहे थे।
जब वे बड़े हुए तो उन पर काम-धंधा ढूँढने का दबाव आने लगा, लोग ताने मारने लगे कि दोनों निठल्ले हैं और एक पैसा भी नही कमाते।

एक दिन दोनों ने विचार-विमर्श कर के शहर की ओर जाने का फैसला किया। अपने घर से रास्ते का खाना पीना ले कर दोनों भोर होते ही शहर की ओर चल पड़े। शहर का रास्ता एक घने जंगल से हो कर गुजरता था, दोनों एक साथ अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे थे. रास्ता लम्बा था सो उन्होंने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया. दोनों दोस्त विश्राम करने बैठे ही थे की इतने में एक साधु वहां पर भागता हुआ आया. साधु तेजी से हांफ रहा था और बेहद डरा हुआ था। मोती ने साधु से उसके डरने का कारण पूछा.

साधु ने बताया कि- आगे के रास्ते में एक डायन है और उसे हरा कर आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है, मेरी मानो तुम दोनों यहीं से वापस लौट जाओ.
इतना कह कर साधु अपने रास्ते को लौट गया.

हीरा और मोती साधु की बातों को सुन कर असमंजस में पड़ गए. दोनों आगे जाने से डर रहे थे. दोनों के मन में घर लौटने जाने का विचार आया, लेकिन लोगों के ताने सुनने के डर से उन्होंने आगे बढ़ने का निश्चेय किया।
आगे का रास्ता और भी घना था और वे दोनों बहुत डरे हुए भी थे. कुछ दूर और चलने के बाद उन्हें एक बड़ा सा थैला पड़ा हुआ दिखाई दिया. दोनों दोस्त डरते हुए उस थैले के पास पहुंचे. उसके अन्दर उन्हें कुछ चमकता हुआ नज़र आया. खोल कर देखा तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा. उस थैले में बहुत सारे सोने के सिक्के थे. सिक्के इतने अधिक थे कि दोनों की ज़िंदगी आसानी से पूरे ऐश-ओ-आराम से कट सकती थी. दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे, उन्हें अपने आगे बढ़ने के फैसले पर गर्व हो रहा था।
साथ ही वे उस साधु का मजाक उड़ा रहे थे कि वह कितना मूर्ख था जो आगे जाने से डर गया। अब दोनों दोस्तों ने आपस में धन बांटने और साथ ही भोजन करने का निश्चेय किया.

दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए. हीरा ने मोती से कहा कि वह आस-पास के किसी कुएं से पानी लेकर आये, ताकि भोजन आराम से किया जा सके. मोती पानी लेने के लिए चल पड़ा.
*मोती रास्ते में चलते-चलते सोच रहा था कि अगर वो सारे सिक्के उसके हो जाएं तो वो और उसका परिवार हमेशा राजा की तरह रहेगा. मोती के मन में लालच आ चुका था।*

*वह अपने दोस्त को जान से मर डालने की योजना बनाने लगा. पानी भरते समय उसे कुंए के पास उसे एक धारदार हथियार मिला. उसने सोचा की वो इस हथियार से अपने दोस्त को मार देगा और गाँव में कहेगा की रास्ते में डाकुओं ने उन पर हमला किया था. मोती मन ही मन अपनी योजना पर खुश हो रहा था.*
*वह पानी लेकर वापस पहुंचा और मौका देखते ही हीरा पर पीछे से वार कर दिया. देखते-देखते हीरा वहीं ढेर हो गया.*

मोती अपना सामान और सोने के सिक्कों से भरा थैला लेकर वहां से वापस भागा.

*कुछ एक घंटे चलने के बाद वह एक जगह रुका. दोपहर हो चुकी थी और उसे बड़ी जोर की भूख लग आई थी. उसने अपनी पोटली खोली और बड़े चाव से खाना-खाने लगा।*
*लेकिन ये क्या ? थोड़ा खाना खाते ही मोती के मुँह से खून आने आने लगा और वो तड़पने लगा।*                        
*उसे एहसास हो चुका था कि जब वह पानी लेने गया था तभी हीरा ने उसके खाने में कोई जहरीली जंगली बूटी मिला दी थी. कुछ ही देर में उसकी भी तड़प-तड़प कर मृत्यु हो गयी।*

अब दोनों दोस्त मृत पड़े थे और वो थैला यानी माया रूपी डायन जस का तस पड़ा हुआ था.
उस साधु ने एकदम ठीक कहा था कि आगे डायन है, वो सिक्कों से भरा थैला उन दोनों दोस्तों के लिए डायन ही साबित हुआ. ना वो डायन रूपी थैला वहां होता न उनके मन में लालच आता और ना वे एक दूसरे की जाना लेते।

     *यही जीवन का सच भी है.*

हम माया यानी धन-दौलत-सम्पदा एकत्रित करने में इतना उलझ जाते हैं कि अपने रिश्ते-नातों तक को भुला देते हैं, माया रूपी डायन आज हर घर में बैठी है. इसी माया के चक्कर में मानव दानव बन बैठा है, *हमें इस प्रेरक कहानी से ये सीख लेनी चाहिए की हमें कभी भी पैसे को ज़रुरत से अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए और अपनी दोस्ती… अपने रिश्तों के बीच में इसको कभी नहीं लाना चाहिए।*

और हमारे पूर्वज भी तो कह गए हैं-
माया के चक्कर में दोनों गए, *"न माया मिली न राम"*
   *🙏🏿🙏🏽🙏जय श्री कृष्ण*🙏🏻🙏🏾🙏🏼


Chapter -2


      सती सुलोचना 
                                   ============

         सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ हुए एक भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ। उसके कटे हुए शीश को भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया था।

      अपने पती की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जाकर पति का शीश लाने की प्रार्थना की। किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये। क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए।

      रावण के महापराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं- "लक्ष्मण, रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।

      परंतु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे। क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है।

       ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी। लक्ष्मण अपनी सैना लेकर चल पड़े। समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया। युद्ध में अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले आये।

        मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुई उसकी पत्नी सुलोचना के पास जाकर गिरी। सुलोचना चकित हो गयी। दूसरे ही क्षण अन्यंत दु:ख से कातर होकर विलाप करने लगी। पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यकित की हो।

        ऐसी दशा में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा। निर्णय करने के लिये उसने भुजा से कहा- "यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृत्तांत लिख दे। भुजा में दासी ने लेखनी पकड़ा दी। लेखिनी ने लिख दिया- "प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है।

       युद्ध भूमि में श्रीराम के भाई लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कयी वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है। वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है। संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली। अन्त में उन्हीं के बाणों से विद्ध होने से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।

       पति की भुजा-लिखित पंकितयां पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी। पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावणने आकर कहा- 'शोक न कर पुत्री। 

       प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर लोट जाऐंगे। मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। करुण चीत्कार करती हुई सुलोचना बोली- "पर इससे मेरा क्या लाभ होगा,। सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के आभाव की पूर्ती नहीं कर सकेंगे। सुलोचना ने निश्चय किया कि 'मुझे अब सती हो जाना चाहिए।'

       किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती? जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दिया- "देवी ! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो। 

       जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एकपत्नीव्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।"

        सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले- "देवी, तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधी की लिखी को कौन बदल सकता है। आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में पीड़ा हो रही है। सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी। 

        श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- "देवी, मुझे लज्जित न करो। पतिव्रता की महिमा अपार है, उसकी शक्ति की तुलना नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम परम सती हो। तुम्हारे सतित्व से तो विश्व भी थर्राता है। बताओ कि मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ? 

      सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली- "राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ पर आई हूँ। श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।

        पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- "सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की ईनका वध मैंने किया है। मेरे स्वामी को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। 

         यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। आपकी पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली उनकी अनन्य उपसिका हूँ। पर दुर्भाग्य से मेरे पति पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।

      सभी योद्धा सुलोचना को राम शिविर में देखकर चकित थे। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान राम के पास है। 

      जिज्ञासा शान्त करने के लिये सुग्रीव ने पूछ ही लिया कि यह बात उन्हें कैसे ज्ञात हुई कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है। सुलोचना ने स्पष्टता से बता दिया- "मेरे पति की भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुई मेरे पास चली गयी थी। उसी ने लिखकर मुझे बता दिया। 

      व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे- "निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है फिर तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है। श्रीराम ने कहा- "व्यर्थ बातें मन करो मित्र। पतिव्रता के महाम्तय को तुम नहीं जानते। 

     श्रीराम की मुखकृति देखकर सुलोचना उनके भावों को समझ गयी। उसने कहा- "यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ, तो मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे। सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कटा हुआ मस्तक जोरों से हंसने लगा। 

     यह देखकर सभी दंग रह गये। सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे। चलते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की- "भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ। 

    अत: आज युद्ध बंद रहे। श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली। सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गई। लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी। पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो गई।

Chapter -3

विनोद हाईवे पर गाड़ी चला रहा था...

सड़क के किनारे उसे एक 12-13 साल की लड़की तरबूज बेचती दिखाई दी...
विनोद ने गाड़ी रोक कर पूछा "तरबूज की क्या रेट है बेटा? "

लड़की बोली 
"50 रुपये का एक तरबूज है साहब..."

पीछे की सीट पर बैठी विनोद की पत्नी बोली 
"इतना महंगा तरबूज नही लेना जी...चलो यहाँ से..."

विनोद बोला "महंगा कहाँ है... इसके पास जितने तरबूज है कोई भी पांच किलो के कम का नही होगा...
50 रुपये का एक दे रही है तो 10 रुपये किलो पड़ेगा हमें... बाजार से तो तू बीस रुपये किलो भी ले आती है... "

विनोद की पत्नी ने कहा ''तुम रुको मुझे मोल भाव करने दो...”

फिर वह लड़की से बोली 
"30 रुपये का एक देना है तो दो वरना रहने दो..." 

लड़की बोली "40 रुपये का एक तरबूज तो मै खरीद कर लाती हूँ आंटी...आप 45 रुपये का एक ले लो...इससे सस्ता मै नही दे पाऊँगी..."

विनोद की पत्नी बोली
"झूठ मत बोलो बेटा...सही रेट लगाओ...
देखो ये तुम्हारा छोटा भाई है न? इसी के लिए थोड़ा सस्ता कर दो..." 
उसने खिड़की से झाँक रहे अपने चार वर्षीय बेटे की तरफ इशारा करते हुए कहा...

सुंदर से बच्चे को देख कर लड़की एक तरबूज हाथों मे उठाते हुए गाड़ी के करीब आ गई..फिर लड़के के गालों पर हाथ फेर कर बोली 
"सचमुच मेरा भाई तो बहुत सुंदर है आँटी..."

विनोद की पत्नी बच्चे से बोली "दीदी को नमस्ते बोलो बेटा..."

बच्चा प्यार से बोला "नमस्ते दीदी...''

लड़की ने गाड़ी की खिड़की खोल कर बच्चे को बाहर निकाल लिया फिर बोली
"तुम्हारा नाम क्या भैया? "

लड़का बोला "मेरा नाम गोलू है दीदी..." 

बेटे को बाहर निकालने के कारण विनोद की पत्नी कुछ असहज हो गई..तुरंत बोली "अरे बेटा इसे वापस अंदर भेजो... इसे डस्ट से एलर्जी है..."

लड़की उसकी आवाज पर ध्यान न देते हुए लड़के से बोली 
"तु तो सचमुच गोल मटोल है रे भाई...तरबूज खाएगा?"

लड़के ने हाँ मे गर्दन हिलाई तो लड़की ने तरबूज उसके हाथों मे थमा दिया...

पाँच किलो का तरबूज गोलू नही संभाल पाया...तरबूज फिसल कर उसके हाथ से नीचे गिर गया और फूट कर तीन चार टुकड़ों मे बंट गया...तरबूज के गिर कर फुट जाने से लड़का रोने लगा...

लड़की उसे पुचकारते हुए बोली... 
''अरे भाई रो मत...मै दूसरा लाती हूँ...''
फिर वह दौड़कर गई और एक और बड़ा सा तरबूज उठा लाई...

जब तक वह तरबूज उठा कर लाई इतनी देर मे विनोद की पत्नी ने बच्चे को अंदर गाड़ी मे खींच कर खिड़की बन्द कर ली...

लड़की खुले हुए शीशे से तरबूज अंदर देते हुए बोली "ले भाई ये बहुत मिठा निकलेगा।” 

विनोद चुपचाप बैठा लड़की की हरकतें देख रहा था...

विनोद की पत्नी बोली 
"जो तरबूज फूटा है मै उसके पैसे नही दूँगी...वह तुम्हारी गलती से फूटा है..."

लड़की मुस्कराते हुए बोली "उसको छोड़ो आंटी...आप इस तरबूज के पैसे भी मत देना... ये मैने अपने भाई के लिए दिया है..."

इतना सुनते ही विनोद और उसकी पत्नी दोनों एक साथ चौंक पड़े...

विनोद बोला "नही बिटिया तुम अपने दोनों तरबूज के पैसे लो..."

फिर सौ का नोट उस लड़की की तरफ बढ़ा दिया...लड़की हाथ के इशारे से मना करते हुए वहाँ से हट गई...और अपने बाकी बचे तरबुजों के पास जाकर खड़ी हो गई...

विनोद भी गाड़ी से निकल कर वहाँ आ गया था...आते ही बोला... 
"पैसे ले लो बेटा वरना तुम्हारा बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा..." 

लड़की बोली 
"माँ कहती है जब बात रिश्तों की हो तो नफा नुकसान नही देखा जाता...आपने गोलू को मेरा भाई बताया मुझे बहुत अच्छा लगा... मेरा भी एक छोटा सा भाई था मगर.."

विनोद बोला "क्या हुआ तुम्हारे भाई को? "

वह बोली...'
"जब वह दो साल का था तब उसे रात में बुखार हुआ था...सुबह माँ हॉस्पिटल मे ले जा पाती उससे पहले ही उसने दम तौड़ दिया था...मुझे मेरे भाई की बहुत याद आती है...
उससे एक साल पहले पापा भी ऐसे ही हमे छोड़ कर गुजर गए थे...''

विनोद की पत्नी बोली...
"ले बिटिया अपने पैसे ले ले..."

लड़की बोली "पैसे नही लुंगी आंटी..."

विनोद की पत्नी गाड़ी मे गई फिर अपने बैग से एक पाजेब की जोड़ी निकाली...जो उसने अपनी आठ वर्षीय बेटी के लिए आज ही तीन हजार मे खरीदी थी... लड़की को देते हुए बोली...
''तुमने गोलू को भाई माना तो मै तुम्हारी माँ जैसी हुई ना...अब तू ये लेने से मना नही कर सकती...''

लड़की ने हाथ नही बढ़ाया तो उसने जबरदस्ती लड़की की गोद मे पाजेब रखते हुए कहा 
"रख ले...जब भी पहनेगी तुझे हम सब की याद आयेगी..."

इतना कहकर वह वापस गाड़ी मे जाकर बैठ गई...

फिर विनोद ने गाड़ी स्टार्ट की और लड़की को बाय बोलते हुए वे चले पड़े...
विनोद गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था कि भावुकता भी क्या चीज है...कुछ देर पहले उसकी पत्नी दस बीस रुपये बचाने के लिए हथकण्डे अपना रही थी...कुछ देर मे ही इतनी बदल गई जो तीन हजार की पाजेब दे आई...

फिर अचानक विनोद को लड़की की एक बात याद आई 

"रिश्तों मे नफा नुकसान नहीं देखा जाता"

विनोद का प्रॉपर्टी के विवाद को लेकर अपने ही बड़े भाई से कोर्ट मे मुकदमा चल रहा था...
उसने तुरंत अपने बड़े भाई को फोन मिलाया...फोन उठाते ही बोला "भैया मै विनोद बोल रहा हूँ..."

भाई बोला "फोन क्यों किया? "

विनोद बोला 
"भैया आप वो मैन मार्केट वाली दुकान ले लो...मेरे लिए मंडी वाली छोड़ दो...
और वो बड़े वाला प्लॉट भी आप ले लो...मैं छोटे वाला ले लूंगा...
मैं कल ही मुकदमा वापस ले रहा हूँ..." 
सामने से काफी देर तक आवाज नही आई...

फिर उसके बड़े भाई ने कहा "इससे तो तुम्हे बहुत नुकसान हो जाएगा छोटे..."

विनोद बोला...
"भैया आज मुझे समझ मे आ गया है रिश्तों मे नफ़ा-नुकसान नही देखा जाता...एक दूसरे की खुशी देखी जाती है...उधर से फिर खानोशी छा गई...
फिर विनोद को बड़े भाई की रोने की आवाज सुनाई दी...

विनोद बोला 
"रो रहे हो क्या भैया?" 

बड़ा भाई बोला "इतने प्यार से पहले बात करता तो सब कुछ मै तुझे दे देता रे...अब घर आ जा... दोनों प्रेम से बैठ कर बंटवारा करेंगे...''

इतनी बड़ी कड़वाहट कुछ मीठे बोल बोलते ही न जाने कहाँ चली गई थी...कल जो एक एक इंच जमीन के लिए लड़ रहे थे वे आज भाई को सब कुछ देने के लिए तैयार हो गए थे...

कहानी का मोरल:- 
त्याग की भावना रखिये...अगर हमेशा देने को तत्पर रहोगे तो लेने वाले का भी हृदय परिवर्तन हो जाएगा...
याद रखे रिश्तों मे नफा-नुकसान नही देखा जाता...
अपनो को करीब रखने के लिए कभी कभी अपना हक भी छोड़ना पड़ता है...

Chapter -4
*मिडिल क्लास...*

'मिडिल-क्लास' मतलब थोडी सी अमीरी और थोडी सी गरीबी का होना

    ये किसी वरदान से कम नहीं है  
          कभी बोरियत नहीं होती.
    जिंदगी भर कुछ ना कुछ आफत
           लगी ही रहती है, 

न इन्हें तैमूर जैसा बचपन होता है 
   न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा
               फिर भी 
अपने आप में उलझते हुए व्यस्त रहते हैं

      मिडिल क्लास होने का भी 
           अपना फायदा है
चाहे BMW का भाव बढ़े या AUDI का 
या फिर नया i phone लाँच हो जाये
         कोई फर्क नहीं पड़ता

        मिडिल क्लास लोगों की 
   आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल
   और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही 
                चली जाती है

         मिडिल क्लास लोगों की 
            आधी ज़िन्दगी तो 
       'बहुत महँगा है' बोलने में ही 
               निकल जाती है

              इनकी 'भूख' भी... 
  होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है. 
        दरअसल महंगे होटलों की 
मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान
       'फूड-आइटम्स' नहीं बल्कि 
    अपनी 'औकात' ढूंढ रहा होता है.

  इनके जीवन में वैलेंटाइन नहीं होता
       'जिम्मेदारियाँ' जिंदगी भर
  परछाईं की तरह पीछे लगी रहती हैं

     मध्यम वर्गीय दूल्हा-दुल्हन भी 
   मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं मानो जैसे 
          किसी भारी सदमे में हों

   अमीर शादी के बाद चलते बनते हैं             
                    और...
      मिडिल क्लास शादी के बाद 
      टेन्ट बर्तन वालो से उलझते हैं

    एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी
              गीजर बंद करके 
         तब तक नहाता रहता है 
           जब तक कि नल से 
   ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए.

रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला
 मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त 
       नास्तिक हो जाता है, और 
    प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक.

      दरअसल मिडिल-क्लास तो 
   चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, 
     जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, 
           अल्पमत-पूर्णमत 
        हर प्रकार की सरकार 
        पूरा दम से बजाती है.

मिडिल क्लास को आज तक बजट में 
        कुछ नहीं मिला है,

        फिर भी हिम्मत करके 
        मिडिल क्लास आदमी 
             पैसा बचाने की
       बहुत कोशिश करता है,
                 लेकिन 
      बचा कुछ भी नहीं पाता.

हकीकत में मिडिल क्लास की हालत 
         पंगत के बीच बैठे हुए
     उस आदमी की तरह होती है 
       जिसके पास पूड़ी-सब्जी 
   चाहे इधर से आये, चाहे उधर से
         उस तक आते-आते 
           खत्म हो जाती है

      मिडिल क्लास के सपने भी
        लिमिटेड होते हैं ❤️💔
             टंकी भर गई है, 
          मोटर बंद करना है
      गैस पर दूध उबल गया है
        चावल जल गया है
इसी टाईप के सपने आते हैं

     दिल में अनगिनत सपने लिए 
     बस चलता ही जाता है...
           चलता ही जाता है.
       और चला जाता है ❤️💔

Chapter -5

🙏🕉️ *मुश्किल दौर* 🕉️🙏


एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती हैं और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी.

अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया.
 
सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतरा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला.
 
अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था.

जब छात्र ने अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था उबलने के बाद वह कठोर हो गया है अब बारी थी चाय के कप को उठाने की जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी.

अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली.

आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है.

🌺तात्पर्य:-🌺
सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किले आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं.
🌹🙏 🙏🌹

Chapter -6
एक पुरानी कहानीं 

एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।उसके बाल भी सफ़ेद होने लगे थे।एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक *दोहा* पढ़ा -
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*"घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय।* 
*एक पलक के कारणे, युं ना कलंक लगाय।"*
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अब इस *दोहे* का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला। 

तबले वाला सतर्क होकर तबला बजाने लगा। 
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जब यह दोहा गुरु जी ने सुना तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।
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दोहा सुनते ही राजकुमारी ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
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दोहा सुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।

राजा बहुत ही अचम्भित हो गया।
सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या! अचानक एक दोहे से सब अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं ? 
 
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक सामान्य नर्तकी होकर तुमने सबको लूट लिया।
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जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरुजी कहने लगे - "राजा ! इसको नीच नर्तकी मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है क्योंकि इसके दोहे ने मेरी आँखें खोल दी हैं। दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ।" यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
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राजा की लड़की ने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरा विवाह नहीं कर रहे थे। आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने वाली थी। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी, कि जल्दबाज़ी न कर, हो सकता है तेरा विवाह कल हो जाए, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?
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युवराज ने कहा - महाराज ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैं आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मारने वाला था। लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।"
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जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया । राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया - "क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो।" राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।
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यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?" उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना नृत्य बन्द करती हूँ "हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी

Chapter -7


*प्रभु सेवा की अनुठी रीत* :

वनवास के दौरान माता सीता जी को प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था।
कुदरत से प्रार्थना की "हे वन देवता ! आसपास जहाँ कहीं पानी हो, वहाँ जाने का मार्ग कृपा कर सुझाईये।
तभी वहाँ एक मयूर (मोर) ने आकर श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है, चलिए मैं आपका मार्ग पथ-प्रदर्शक बनता हूँ, किंतु मार्ग में हमारी भूल चूक होने की संभावना है।
श्रीरामजी ने पूछा ~ वह क्यों ?
तब मयूर ने उत्तर दिया कि ~ मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा,
उसके सहारे आप‌ जलाशय तक पहुँच ही जाओगे।
यहां पर एक बात स्पष्ट कर दूं कि मयूर के पंख, एक विशेष समय एवं एक विशेष ऋतु में ही बिखरते हैं, अगर वह अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है और वही हुआ।
अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, तब उसने मन में ही कहा कि वह कितना भाग्यशाली है, कि जो जगत की प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ।
*'मेरा जीवन धन्य हो गया, अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही।'*
तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, अपने जीवन का त्यागकर मुझ पर जो ऋणानुबंध चढ़ाया है, मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा ....
"तुम्हारे पंख अपने सिर पर धारण करके।"
तत्पश्चात अगले जन्म में "श्री कृष्ण अवतार"- में उन्होंने अपने माथे(मुकुट) पर मयूर पंख को धारण कर वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था।

*"तात्पर्य यही है कि"*
अगर *भगवान को ऋण उतारने के लिए पुनः जन्म लेना पड़ता है, तो हम तो मानव हैं, न जाने हम कितने ही "ऋणानुबंध" से बंधे हैं। उसे उतारने के लिए हमें तो कई जन्म भी कम पड़ जाएंगे।*

*"अर्थात" जो भी भला हम कर सकते हैं, इसी जन्म में हमें कर लेना चाहिये..!!*
   *🙏🏿🙏🙏🏽जय श्री कृष्ण*🙏🏻🙏🏼🙏🏾

Chapter -8

             *li.मुर्ख-बारहसिंघा.li*


एक समय की बात है| एक बारहसिंगा एक तालाब पर पानी पी रहा था| अभी बारहसिंगे ने एक-दो घूंट पानी ही पिया था कि उसकी दृष्टि तालाब के पानी में दिखाई देते अपने प्रतिबिम्ब पर पड़ी| अपने सुन्दर सींगों को देखकर वह प्रसन्न हो उठा-‘वाह! कितने सुन्दर हैं मेरे सींग!’

तभी उसकी नजर अपने पतले पैरों पर पड़ी – ‘ओह! कितने भद्दे हैं मेरे ये पैर? कितना अच्छा होता यदि मेरे पैर भी मेरे सींगों की भांति ही सुंदर होते|’ यह सोचकर वह निराश हो गया| अचानक उसके चौकन्ने कानों ने शिकारियों के आने की आहट सुनी| खतरा भांपते ही वह वहां से भाग खड़ा हुआ| बहुत जल्दी वह लम्बी-लम्बी छलांगें मारता हुआ एक पहाड़ी पर पहुंच गया|

वह पहाड़ी के दूसरी ओर घने जंगल में उतरा और तेजी से दौड़ पड़ा| परंतु हाय रे भाग्य! अभी उसने कुछ ही छलांगें भरी थीं कि उसके सींग एक घनी झाड़ी की टहनियों से उलझ गए| सींगों के अचानक उलझ जाने के कारण उसे एक तेज झटका-सा लगा उसे रुकना पड़ा| उसकी तलाश में शिकारी भी पहाड़ी पर चढ़कर अब घने जंगल में दाखिल हो रहे थे| उसने पेड़ों की टहनियों में फंसे सींग छुड़ाने के लिए जोर लगाया| मगर सफलता नहीं मिली| वह बुरी तरह छटपटाने लगा, मगर कोई लाभ न हुआ बल्कि उसके छटपटाने से झाड़ी को बुरी तरह हिलती देख शिकारी भी उस ओर आकर्षित हुए और उसके बिल्कुल करीब आ गए|

बारहसिंगा समझ गया कि उसका अन्त निकट आ गया है| उसने शिकारियों की ओर याचना भरी दृष्टि से देखा| मगर शिकारी क्या जाने दया भाव? एक शिकारी ने तीर चलाया, जो ठीक निशाने पर लगा और बारहसिंगा अधमरा-सा होकर नीचे भूमि पर गिर गया| मृत्यु करीब थी| बारहसिंगे ने मरने से पहले सोचा – ‘मैं अपने पतले पैरों से घृणा करता था, जबकि यही पैर मुझे सुरक्षित यहां तक लाए और जिन सींगों पर मुझे इतना अभिमान था, वे ही मेरी मृत्यु का कारण बने! किसी ने ठीक ही कहा है, किसी चीज का सुंदर उपयोगी होना बेहतर है|’ यही सोचता-सोचता बारहसिंगा चल बसा..!!

*मित्रों" सुंदरता नहीं गुणों को देखो..!!*
    *🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय श्री कृष्ण*🙏🙏🏿🙏🏽

Chapter -9
*🕉️ रात्रि कहानी 🕉️*  

      *सेठ जी की परीक्षा*


बनारस में एक बड़े धनवान सेठ रहते थे। वह विष्णु भगवान् के परम भक्त थे और हमेशा सच बोला करते थे ।

एक बार जब भगवान् सेठ जी की प्रशंशा कर रहे थे तभी माँ लक्ष्मी ने कहा , ” स्वामी , आप इस सेठ की इतनी प्रशंशा किया करते हैं , क्यों न आज उसकी परीक्षा ली जाए और जाना जाए कि क्या वह सचमुच इसके लायक है या नहीं ? ”

भगवान् बोले , ” ठीक है ! अभी सेठ गहरी निद्रा में है आप उसके स्वप्न में जाएं और उसकी परीक्षा ले लें। ”

अगले ही क्षण सेठ जी को एक स्वप्न आया।

स्वप्न मेँ धन की देवी लक्ष्मी उनके सामनेँ आई और बोली ,” हे मनुष्य ! मैँ धन की दात्री लक्ष्मी हूँ।”

सेठ जी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और वो बोले , ” हे माता आपने साक्षात अपने दर्शन देकर मेरा जीवन धन्य कर दिया है , बताइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?”

” कुछ नहीं ! मैं तो बस इतना बताने आयी हूँ कि मेरा स्वाभाव चंचल है, और वर्षों से तुम्हारे भवन में निवास करते-करते मैं ऊब चुकी हूँ और यहाँ से जा रही हूँ। ”

सेठ जी बोले , ” मेरा आपसे निवेदन है कि आप यहीं रहे , किन्तु अगर आपको यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं भला आपको कैसे रोक सकता हूँ, आप अपनी इच्छा अनुसार जहाँ चाहें जा सकती हैं। ”

और माँ लक्ष्मी उसके घर से चली गई।

थोड़ी देर बाद वे रूप बदल कर पुनः सेठ के स्वप्न मेँ यश के रूप में आयीं और बोलीं ,” सेठ मुझे पहचान रहे हो?”

सेठ – “नहीं महोदय आपको नहीँ पहचाना।

यश – ” मैं यश हूँ , मैं ही तेरी कीर्ति और प्रसिध्दि का कारण हूँ । लेकिन
अब मैँ तुम्हारे साथ नहीँ रहना चाहता क्योँकि माँ लक्ष्मी यहाँ से चली गयी हैं अतः मेरा भी यहाँ कोई काम नहीं। ”

सेठ -” ठीक है , यदि आप भी जाना चाहते हैं तो वही सही। ”

सेठ जी अभी भी स्वप्न में ही थे और उन्होंने देखा कि वह दरिद्र हो गए है और धीरे-
धीरे उनके सारे रिश्तेदार व मित्र भी उनसे दूर हो गए हैं। यहाँ तक की जो लोग उनका गुणगान किया करते थे वो भी अब बुराई करने लगे हैं।

कुछ और समय बीतने पर माँ लक्ष्मी धर्म का रूप धारण कर पुनः सेठ के स्वप्न में आयीं और बोलीं , ” मैँ धर्म हूँ। माँ लक्ष्मी और यश के जाने के बाद मैं भी इस दरिद्रता में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता , मैं जा रहा हूँ। ”

 
” जैसी आपकी इच्छा। ” , सेठ ने उत्तर दिया।

और धर्म भी वहाँ से चला गया।

कुछ और समय बीत जाने पर माँ लक्ष्मी सत्य के रूप में स्वप्न में प्रकट हुईं और बोलीं ,”मैँ सत्य हूँ।

लक्ष्मी , यश, और धर्म के जाने के बाद अब मैं भी यहाँ से जाना चाहता हूँ. “

ऐसा सुन सेठ जी ने तुरंत सत्य के पाँव पकड़ लिए और बोले ,” हे महाराज , मैँ आपको नहीँ जानेँ दुँगा। भले ही सब मेरा साथ छोड़ दें , मुझे त्याग दें पर कृपया आप ऐसा मत करिये , सत्य के बिना मैँ एक क्षण नहीँ रह सकता , यदि आप चले जायेंगे तो मैं तत्काल ही अपने प्राण त्याग दूंगा। “

” लेकिन तुमने बाकी तीनो को बड़ी आसानी से जाने दिया , उन्हें क्यों नहीं रोका। ” , सत्य ने प्रश्न किया।

सेठ जी बोले , ” मेरे लिए वे तीनो भी बहुत महत्त्व रखते हैं लेकिन उन तीनो के बिना भी मैं भगवान् के नाम का जाप करते-करते उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकता हूँ , परन्तु यदि आप चले गए तो मेरे जीवन में झूठ प्रवेश कर जाएगा और मेरी वाणी अशुद्ध हो जायेगी , भला ऐसी वाणी से मैं अपने भगवान् की वंदना कैसे कर सकूंगा, मैं तो किसी भी कीमत पर आपके बिना नहीं रह सकता।

सेठ जी का उत्तर सुन सत्य प्रसन्न हो गया ,और उसने कहा , “तुम्हारी अटूट भक्ति नेँ मुझे यहाँ रूकनेँ पर विवश कर दिया और अब मैँ यहाँ से कभी नहीं जाऊँगा। ” और ऐसा कहते हुए सत्य अंतर्ध्यान हो गया।

सेठ जी अभी भी निद्रा में थे।

थोड़ी देर बाद स्वप्न में धर्म वापस आया और बोला , “ मैं अब तुम्हारे पास ही रहूँगा क्योंकि यहाँ सत्य का निवास है .”
सेठ जी ने प्रसन्नतापूर्वक धर्म का स्वागत किया।

उसके तुरंत बाद यश भी लौट आया और बोला , “ जहाँ सत्य और धर्म हैं वहाँ यश स्वतः ही आ जाता है , इसलिए अब मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूँगा।

सेठ जी ने यश की भी आव -भगत की।

और अंत में माँ लक्ष्मी आयीं।

उन्हें देखते ही सेठ जी नतमस्तक होकर बोले , “ हे देवी ! क्या आप भी पुनः मुझ पर कृपा करेंगी ?”

“अवश्य , जहां , सत्य , धर्म और यश हों वहाँ मेरा वास निश्चित है। ”, माँ लक्ष्मी ने उत्तर दिया।

यह सुनते ही सेठ जी की नींद खुल गयी। उन्हें यह सब स्वप्न लगा पर वास्तविकता में वह एक कड़ी परीक्षा से उत्तीर्ण हो कर निकले थे।


मित्रों, हमें भी हमेशा याद रखना चाहिए कि जहाँ सत्य का निवास होता है वहाँ यश, धर्म और लक्ष्मी का निवास स्वतः ही हो जाता है । सत्य है तो सिध्दि, प्रसिध्दि और
समृद्धि है।

     *सदैव प्रसन्न रहिये।*

     Chapter -10
*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳*



💐💐 *भाई-भाई "विपत्ति" बांटने के लिए होते हैं...न की "सम्पति" का बंटवारा करने के लिए....* 💐💐

 
राम लखन भरत भाईयों का बचपन का एक प्रसंग

जब ये लोग गेंद खेलते थे। तो लक्ष्मण राम की साइड उनके पीछे होता था, और सामने वाले पाले में भरत शत्रुघ्न होते थे। तब लक्ष्मण हमेशा भरत को बोलते राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते है, तभी वो हर बार अपने पाले में अपने साथ मुझे रखते हैं...... 

लेकिन भरत कहते नहीं राम भैया सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते हैं, तभी वो मुझे सामने वाले पाले में रखते हैं। ताकि हर पल उनकी नजरें मेरे ऊपर रहे, वो मुझे हर पल देख पाए, क्योंकि साथ वाले को देखने के लिए तो उनको मुड़ना पड़ेगा।

फिर जब भरत गेंद को राम की तरफ उछालते तो राम जानबूझ कर गेंद को छोड़ देते और हार जाते, फिर पूरे नगर में उपहार और मिठाईयां बांटते खुशी मनाते। 

सब पूछते राम जी आप तो हार गए फिर आप इतने खुश क्यों है, राम बोलते मेरा भरत जीत गया। फिर लोग सोचते जब हारने वाला इतना कुछ बांट रहा है तो जीतने वाला भाई तो पता नहीं क्या -क्या देगा.....

लोग भरत जी के पास जाते हैं। लेकिन ये क्या भरत तो लंबे लंबे आंसू बहाते हुए रो रहे हैं। 

लोगो ने पूछा- भरत जी आप तो जीत गए है, फिर आप क्यों रो रहे है ? भरत बोले- देखिये मेरी कैसी विडंबना है, मैं जब भी अपने प्रभु के सामने होता हूँ तभी जीत जाता हूँ। 

मैं उनसे जीतना नहीं मैं उनको अपना सब हारना चाहता हूं। मैं खुद को हार कर उनको जीतना चाहता हूं.... 

इसलिए कहते हैं, भक्त का कल्याण भगवान को अपना सब कुछ हारने में है, सब कुछ समर्पण करके ही हम भगवान को पा सकते है... एक भाई दूसरे भाई को जीताकर खुश हैं।

दूसरा भाई अपने भाई से जीतकर दुखी है। इसलिए कहते है खुशी लेने में नही देने में है.....

जिस घर मे भाई -भाई मिल कर रहते है। भाई -भाई एक दूसरे का हक नहीं छीनते उसी घर मे राम का वास है....

जहां बड़ो की इज्जत है। बड़ो की आज्ञा का पालन होता है, वहीं राम है।

जब एक भाई ने दूसरे भाई के लिए हक छोड़ा तो रामायण लिखी गयी, और जब एक भाई ने दूसरे भाई का हक मारा तो महाभारत हुई....

इसलिए असली खुशी देने में है छीनने में नहीं। हमें कभी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए, न ही झूठ व बेईमानी का सहारा लेना चाहिए। 

जो भी काम करें उसमें सत्य निष्ठा हो... यही सच्चा जीवन है। यही राम कथा का सार है।

 🚩🚩🌹🌹🪷🪷
🪭🪭🍀🍀🪴🪴