Letter From Me - 2 Rudra S. Sharma द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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Letter From Me - 2

Friends! what I sense, feel or observed, based on the same, do according to you, am I am doing any mistake, if you are comfortable or ok with answering for the same, pls. let me know once, belief on me, no matter what the things or feels, I not even try but at any condition gone to do my best, l have no expectations, even from me, from my own rather then others side so it's gone to be easy for me for compromise anything or any point of feels.

Kyaa aap keval mera mn rakhne k liye mujhe jhelte ho, if is it the thing, main clear kr du, esme koi burai nahi, yadi kabhi kuch jyada ho Raha ho to mujhse kh skte ho ..

Dekho main kisi ko tb bhee mana nahi karne ki soch skta jb tk saari duniyao k jitne bhee feels aur sari things ki comfortability se jyada esme discomfort nahi shape Lee le or as per my capacity mere pass yh last option n bache,

पहले भी बताया था कि यदि किसी चीज या अहसास को short and sweetly कहना हैं यानी गागर में सागर भरना हैं तो गागर भी उतनी बड़ी होनी चाहिए, be practical man! it's all about practicality मेरे पास और कोई विकल्प नहीं हैं, rather then what I am doing at this point of time, just because of that, I am doing what I am doing now

It's completely based on the intuition or subconsciously processed but senseless senses or feels expression

It's completely based on that

See! Hr kisi ki khubi खामी, पक्ष विपक्ष same and endless hote h, as per the senses it's completely ok if we are comfortable with that or not, If you are feeling even a single point of discomfort, and feel me mediator for that, just tell me .. aap mana Karo yaa Jaan se hi maar do, nothing matters more needed rather then your natural sense or senses of comfortability, yahan tk ki if you are comfortable in, nahi batana, it's also alright bro!

It's also ..!

At any point of time, Bina kisi bhee cheej k hr ek aspects ko jitna ho ske utna परखे, hr sambhav कसौटी या आधारों pr कसे casually or intentionally bhee nahi ho pata h, Jo baat samay Lee kr k kisi bhee baat ko khne me h, vo I don't know how with any previous experience, kee ja skti h,

And in my case hr experience ko to the point smajhna, math ko solve karne ki tarah h, genuineness bani rahe esliye phle past k experiences ko bhee yaad nahi rakh kr hr baar with skretch, shuruat se kisi bhee math ko solve karna chhahata hunn main

At the same point of time without judging any aspects, bs based on as per everything and every feels high to low comfort, bs I want to do the things naturally too ..

Hr kisi ki apni khubi aur खामी हैं, aadha glass bhara bhee h yani positivity bhee h, aur aadha khaali bhee, I want's to give my best in both the scenarios aadha glass bhara h to usko pura bhar du, aur at the same time pure glass ko khaali bhee kr du, yadi mera bs chale too क्योंकि मुझसे संबंधित सभी की यानी की hr अहसास और वस्तुओं की comfortability glass k bharane me bhee ho skti h, aur it's completely natural yadi unki comfortability glass ko aadha khali rh dene se lekh pura khaali rh dene me hi kyoo n hoo .. bt unki comfortability सर्वोपरि

पता हैं भगवान ने सब कुछ अच्छा और at the same time बुरा भी क्यों बनाया, यहाँ तक कि पहले अच्छा फिर बुरा और इसी क्रम को लगातार क्यों चलाया, पहले सृजन or creation then distroy kyon, क्योंकि उनकी comfortability उनसे संबंधित अब की comfortability में रही होगी, या फिर इस point pr bhee हैं; वो किसी की भी comfortability से at any condition कभी compromise नहीं kr skta hain, he or she I mean God means everybody's destroyer manager and the generator means everybody कभी नही kr skte

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Mere anubhav me bhagwan yani vo, jo sb kuchh h, esliye sabhi k liye samarpan, bhakti aur prem k alawa mujhe kuch nahi sujhata, Sb se bura tb lagata h, jb koi mujhse koi eccha karta h aur koshish karne pr bhee main Puri nahi kr pata kyoki mere sab kuch ki eccha Puri n kar sakne se theek asankhya narak bhagwan de de, vo theek h, usme km asubidha hoti h, कई बार नींद मेरे मन और दिमाग पर हावी हो जाती हैं, तब उसका अहसास naturally इतना कल्पना पट पर गहरा यानी की sense of visualisation me स्पष्ट हों जाता हैं कि फिर छोटी से छोटी चीजों कि ओर भी ध्यान लें जाना या उनको ध्यान में रख पाना इसलिये नहीं हो पता कि नींद का अहसास मेरे मन को drive करने लगता हैं, same चीज़ कल बात करते वक्त भी हुई, अभी मुझे नहीं पता कि नींद होती भी क्या हैं, बेहोशी थोड़ी भी नहीं हैं, तो मैं कुछ भी कर सकता हूं, सच कहूँ तो यही मेरी हर समस्याओं की एक परेशानी हैं।

मैंने मेरी परेशानी किसी को अब तक नहीं बताई, मुझे नहीं लगता कि कोई मुझे या मेरी दिक्कत को समझ सकता हैं, खुद को पर्याप्तता के साथ मेरी जगह पर रख कर देख सकता हैं, but I feel koi to hoga who have that much sensitivity or maturity, नींद अंधेरा हैं, The sense of ignorance और किसी चीज के लिए सजगता, alartness or cognition yani ki ujala; मैं seriously कह रहा था कि मैं अंधेरे की सुनता हुं, जो कि क्यी बार control k bahr होता हैं तो यह दुनिया के हर नशे के समान हो जाता हैं, फिर I have sense of ignorance and cognition both, I able to be their controller too but when I foget what is ignorance, but then may be due to the habit when ignorence's sense strikes I gone lost कई बार नींद को भूल जाने का मन किया, pr वो भी indirectly हैं तो मुझसे संबंधित ही तो मैं उसका कैसे न ध्यान रखूं? मेरे लिए सब समान हैं, सभी जो हमसे संबंधित हैं, उनको एक के बाद एक और एक के साथ एक समय के आकार को स्वीकार करके ध्यान देना या सर्वश्रेष्ठ cognition (परमात्मा) की इच्छा मालूम होने से मैं इसी को कर्तव्य मान कर चलता हूं। मेरे हिसाब से पुरुष यानी कि alartness या होशस्त्री या शक्ति यानी कि ignorence या बेहोशी  क्योंकि दोनों ही हमसे संबंधित हैं तो मैं कैसे किसी को बड़ा या छोटा देखू?

जब शक्ति समर्पण, प्रेम और भक्ति वश शिव के लिए पूरी तरह बेहोश होकर प्रकृति हो सकती हैं तो शिव को भी तो उस पर समर्पित होने में कोई आपत्ति नहीं हैं,

Some one Pls. help me out, वैसे तो मैं खुद अपने मन का दीपक रहता हूं पर जब अंधेरे के साथ न्याय करने की बात आती हैं तो बाहर के मन के दीपक की सुनने के अलावा कोई option nhi rh jati h

बेहोशी की जितनी खूबी हैं, उतनी खामी भी हैं, होश की भी जितनी खूबी हैं उतनी खामी भी हैं, इसलियें मैं नहीं चाहता कि बेहोशी केवल शक्ति, प्रकृति या स्त्री की झोली में ही आयेंं, इसलियें यदि तुम्हारे पास होश हैं तो तुम भी मेरी मदद करों जब मेरे पास होश नहीं होता हैं।

Meri tarah yani, sabhi k akele pn ki tarah Bano ..!  Buddha ne sach kaha h ki what we think passionately, we become; मैने ठान लिया कि किसी भी हाल में मुझे कोई मेरा सच्चा संबंधी बने तब भी और सच्चा संबंधी n बने तब भी सब के साथ रहना ही हैं, हर हाल में सभी के साथ रहना h, Aaj dekho sabhi k akele pn k roop me main SB k sath hunn aur vh bhee saman roop se, tb bhee jb koi mujhe positively nahi leta aur tb bhee jb mere jaisa koi mujhe samajh sakne se positively lekr अमृत रूपी दवा बना लेता हैं।

 हर व्यक्ति का जितना मजबूत पक्ष होता हैं, उतना ही मजबूत विपक्ष भी होता हैं, ऐसे ही न्यायालय में तरीकों पर तारीके नहीं बड़ती, जो हमारे शुभ चिंतक होते हैं या हम जिनके शुभ चिंतक होते हैं; वह हमारा और हम उनका पक्ष ही देखते हैं और वह भी हमारा पक्ष ही देखते हैं यानी ऐसे ग्लास को जो आधा भरा हैं और आधा खाली हैं, पूरा भरना चाहते हैं, जहर जो औषधि भी हैं, उसको खुद के लियें और उनके लिये भी पूरी तरह दवाई की तरह ही उपयोग करना चाहते हैं, इसलियें जो हमारे हमेशा अच्छे पेहलू को ही देखते हैं और दिखाते भी हैं, यदि हम उनके बुरे पेहलु को देखे और दिखायें भी तो हम, हमारे पक्ष में हमेशा रहने वाले के ’ विपक्ष ’ में रहने वाले अच्छे वकील तो बन सकते हैं पर एक अच्छे न्याय करने वाले न्यायाधीश नहीं।

हर कोई इतना सामर्थ्य वान नहीं हैं की ही पल तुम सभी k साथ रह पायें, मैं तुम्हारा अकेला पन हर वक्त तुम्हारी हमेशा साथ रहने की जरूरत, अपेक्षा pr खरा उतरूंगा pr I hope you able to understand ..

n krne ki meri aadat nahi, koi mere paksh me ho tb bhee aur koi mere paksh me n ho tb bhee, main to unke hi paksh me hunn jinke liye bhakti, samarpan aur Prem hKisi ka koi bhee effort ya mere paksh me पहल या initiation mere liye bhale hi temperory ho, but Main sabhi k liye Jaisa shuru se thaa, abhi hunn hmesha rhunga

वास्तविकता में तो सब कुछ सही हैं और सब कुछ गलत भी हैं, मैं भी जितने आधारों पर सही हूं उतने ही आधारों pr glt bhee hunn pr jaise jinse मैं प्रेम और भक्ति वश समर्पण का भाव रखता हूं, जैसे प्रेम का चश्मा उनका केवल सुखद पेहलु ही मुझे दिखाता हैं, जो मुझसे प्यार करते हैं उन्हें भी मेरा असुविधाजनक पहलू दिखाई नहीं देता, और हाँ श्रेष्ठता इसमें नहीं हैं कि हमसे कितने प्यार करते हैं, इसलिए ही श्रेष्ठता इसमें हैं की हम कितनो से प्यार करते हैं, नानक ने कहा हैं, hm कितने ही तर्क करें, तर्क यानी बुद्धि के आधार पर उसको समझे, कभी समझ नहीं सकते, ऐसे ही बुद्धि से मैं कभी समझ आ नहीं सकता, नानक की trh koi hona चाहिए, जिसके पास प्रेम, भक्ति और समर्पण का चस्मा हों,मैं उसकी समझ से ओझल यानी दूर हुआ ही कब था, उसका समझने का अहसास, समझ भाव यानी अनुभव ही मेरी समझ हैं।

महावीर स्वामी ने कहा हैं, जो गर्म लोहा तुम खुदके हाथ में नहीं ले सकते किसी और k हाथ में कैसे दे सकते हों, आज दूसरे अब मेरे लिए जैसे हैं, यदि मेरी भी मनस्थिति उनके जैसी हो जाए तो क्या मैं किसी मेरे जैसे k लिए उनके जैसा नही होऊंगा, मजबूरी और बेबसता वश मुझे होना पड़ेगा पर फिर मेरे जैसा कोई यदि मेरी मजबूरी को न समझ सके तो यह क्योंकि मेरे लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण असुविधाजनक होने से होगा, मैं कैसे यही दुर्भाग्य दूसरो को दे सकता हूं, नहीं, , कदापि नहीं बिलकुल भी नहीं, उस सर्वसमर्थ चेतना परमात्मा की कृपा से मुझमें इतनी shanubhuti या समान अनुभूति हैं कि जिससे इस वक्त तो मैं ऐसा नहीं हो सकता मैं या भी नहीं कहता कि केवल मेरा एक पहलू ही देखो, पर मेरी पूरी वास्तविकता को देखे बिना, मुझे पूरा जानें बिना कोई भी निस्कर्ष पर पहुंच जाओ, मत मुझे पूरा जानें बिना किसी भी निष्कर्ष पर मत मत पहुंच जाओ।

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।। लेखन परिचय ।।

ज्ञान असीम हैं, सभी में हैं, सभी के पास में हैं, उससे सब को समझौता अबरदास्त होना चाहियें, गुरु और शिष्य के संबंध में यानी उच्च या नीच पर विश्वास नहीं रखता मैं, हाँ ! गुरु से गुरु का संबंध, सही यही हैं, यही सही हैं।

सही गलत दों हैं और वास्तविकता एक मात्रता का नाम, इसका मतलब हैं जहाँ सही और गलत हों सकता हैं वहाँ भृम या सत्य की ओर इशारे हों सकतें हैं.. सत्य नहीं! और जहाँ न सही हैं और न ही गलत वहीं का यानी वही हैं सत्य..!

सही अर्थों के अभिव्यक्ति कर्ता की सबसें बड़ी प्राथमिकता/धर्म होता हैं ईमानदारी या सत्यनिष्ठा यानी कि जिसें वह व्यक्त कर रहा हैं उसमें यथावत्ता अर्थात् उसकी वास्तविकता की प्रगटता अतः अभिव्यक्ति में यथावत्ता की समाविष्टि हैं कि नहीं इससें या इस कसौटी से किसी भी पाठक को अभिव्यक्ति की यथा योग्यता की जाँच करना यथा योग्य मुझें समझ आती हैं; अभिव्यक्ति सही हैं या गलत इस आधार पर किसी भी अभिव्यक्ति को जाँचना अज्ञानता मात्र हैं क्योंकि जिसें जिस योग्यता से सही सिद्ध किया जा सकता हैं; उतनी ही योग्यता से वह गलत भी सिद्ध हो सकता हैं क्योंकि जो जितना या जितनें यथा अर्थों में सही हैं उसका उतना ही या उतनें ही यथा अर्थों में गलत भी सिद्ध होना यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर देखें तो वास्तविकता हैं अतः मेरी अभिव्यक्ति में भी क्या सही और क्या गलत देखना हैं तो मेरी अभिव्यक्ति आपके लियें नहीं हैं अखंड मौन भी जो सर्वाधिक अनुकूल अभिव्यक्ति हैं वह भी नहीं क्योंकि यदि आप ऐसा पूर्ण गहरायी से करेंगें तो जानेंगे कि सभी की तरह मैं आपके लियें जितना अनुकूल हूँ उतना ही अनुचित भी और वैज्ञानिक, यथार्थ या जैसा होना ही चाहियें वैसा दृष्टिकोण यदि नहीं भी रहा तो, केवल सकारात्मक दृष्टिकोण रहा तब भी ठीक; आप नकारात्मकता पर ध्यान नहीं देंगे पर यदि नकारात्मक दृष्टिकोण रहा तो आप केवल बुराई देख अपनें अहित का कारण खुद होंगें। अभिव्यक्ति करना आकारिता के आयाम में आता हैं जो कि द्वैत होनें सें दोगलयी तो होंगी हीं अतः होती भी हैं अंततः यदि द्वैत नहीं चाहियें तो अखंड मौन ही समाधान हों सकता हैं क्योंकि वास्तविक आकार रिक्तता यानी परम् या एकमात्र सत्य की अभिव्यक्ति संभव नहीं क्योंकि अभिव्यक्ति के माध्यम् से उसके इशारे मात्र ही संभव हों सकतें हैं।

किसी के भी संबंध में पूरी जानकारी का आभाव; इस बेचारगी की हमारें साथ उपस्थिति होने पर भी.. यदि हम कहनें वालें अर्थात् अभिव्यक्ति देने वालें के संबंध में या वह जो कह रहा है उसकें संबंध में अपनी निर्णायक धारणा बना लेना बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण हैं जो कि; जो कह रहा हैं उसकी पूरी बात पर किसी भी अनावश्यक या आवश्यक कारणों वश पर्याप्त ध्यान नहीं दें पाने से स्वाभाविक हैं अतः ऐसा ना हों इसका ध्यान रख लेना जरूरी हैं।

तुम प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष या दूर - पास हुआ तों क्या.. हों तों मुझसें संबंधित हीं; हों तों मेरी संबंधी हीं.. और संबंधी या संबंध बड़ा हों या छोटा, मेरे लियें तों सब समान ही हैं; मेरे लियें तों हर संबंध; हर संबंधी समान हैं जिससें में सभी से एक सा यानी अनंत अर्थात् असीम प्रेम करता यानी रखता हूँ; अंततः संसार हैं तो मोक्ष का द्वार ही अन्यथा दूसरों की परम् या सर्वश्रेष्ठ अर्थ सिद्धि के लियें दिखानें मात्र के लियें ही सही और नहीं भी.. पर परमात्म स्वयं माया या भृम अर्थात् संसार को उसका निर्माण कर उसकी स्वीकृति, संचालन कर उस पर नियंत्रण और उसकी पुनः निर्मितता हेतु विनाश कर उससें मुक्ति के लियें महत्व नहीं देतें; उसे महत्व देकर महत्वपूर्ण नहीं कहतें..? वह संसार कों जड़ हों या चैतन्यता सभी के लियें महत्वपूर्ण होनें से महत्व देते हैं..! मैं चाहूँ तों अभी मुक्ति या मोक्ष को उपलब्ध हों जाऊँ क्योंकि मेरा मुझ पर पूर्ण नियंत्रण हैं जिससें मैं जब चाहें इस भृम या संसार को स्वीकृति को तों जब चाहें तब संसार से मुक्ति को उपलब्ध हों जाऊँ पर मुक्ति अर्थात् कुछ एकमात्र सर्वश्रेष्ठ उद्देश्यों में से एक सें अभी इस समय इस लियें वंचित रह रहा हूँ कि सभी मुझसें संबंधित का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य पूर्ति अर्थात् आत्म नियंत्रण में जरूरी होनें से सहयोग कर सकूँ। मैं प्रेम वश उनकी सहूलियत के लियें हर सम्भव प्रयास करूँ क्योंकि यदि किसी भी कारण वश वह थोड़ी सी भी परेशानी में हैं तो वह मेरी सबसें बड़ी परेशानी हैं; वह यानी उनकी और मेरी परेशानी मुझें चैन से नहीं रहनें देती और मेरी सहूलियत मेरे लियें सबसें अधिक महत्वपूर्ण हैं; मैं बेचैनी में नहीं रह सकता।

मेरी हर अभिव्यक्ति पूर्णतः जितना मुझें जाननें का मार्ग हैं उतना ही तुम्हें खुदकों भी जाननें के लियें किया गया इंतज़ाम हैं इसलियें इस पर पर्याप्त ध्यान दें देना ज़रूरी हैं।

जाननें से हर चीज़ का समाधान हैं अर्थात् तुम्हारी या मेरी हर समस्या का; यह कहना गलत नहीं कि जानना ही समाधान हैं क्योंकि अज्ञानता सभी समस्याओं की जननी हैं; इससें ही हर समस्याओं का आकार हैं; यह सभी आकारों की जननी हैं और समाधान अजन्मा निराकार हैं; वह निराकार जों मेरी हर आकार की निर्मितता अर्थात् अभिव्यक्ति का उद्देश्य हैं। वह निराकार जो मेरी सबसें बड़ी जरूरत या प्राथमिकता की पूर्ति हैं; वह निराकारता जिसमें सभी की और मेरी उद्देश्य पूर्ति हैं; वही निराकार जिसमें सभी की सुकून या सहूलियत अर्थात् मेरे लियें मेरी सभी परेशानियों से मुक्ति हैं।

सार -

रिक्तत्व की सन्निकट प्रकटता हैं शरुप्ररा अर्थात् मेरी प्रत्येक शब्द प्राकट्यता, सत्य मतलब की अज्ञान से मुमुक्षा ही जिसके प्रति जागरूकता को आकार दें सकती हैं अतः मुक्ति की योग्य इच्छा ही इसके प्रति जागृति उपलब्ध करायेंगी, मतलब साफ हैं कि मेरी हर बात केवल योग्य मुमुक्षु के ही समझ आयेंगी अतएव मुमुक्षा लाओं, नहीं समझ आनें के बहानें मत बनाओं क्योंकि ऐसा करना खुद के प्रति लापरवाही हैं, जो खुद की परवाह के प्रति जागरूक नहीं, वह कहाँ से मुक्ति की तड़पन अर्थात् मेरी अभिव्यक्ति को अहसास यानी समझ में लानें की पात्रता लायेंगा और योग्यता के आभाव से निश्चित मर्म सें इसकें चूक जायेंगा, इशारें जिस ओर हैं वह दृश्य का अहसास, भावना, विचार, कल्पना यानी हर आकार के अहसासों से भी सूक्ष्म तथा परे यानी दूर का अहसास हैं, मेरे दर्शायेंप शब्द, उनके माध्यम् से लक्ष्य बनायें भावों, भावों के सहयोग से लक्षित विचारों और उनके माध्यम से हर काल्पनिकता की ओर संकेत दियें जा रहें हैं यानी हर आकारों को रचनें की योग्यता की मध्यस्थता उस अंतिम ध्येय तक सटीकता से इशारा करनें में ली जा रही हैं जिससें उस आकर रिक्तत्वता की योग्यता के परिणाम से आकार रिक्तता के अहसास पर सटीकता के साथ किसी भी जागरूकता या ध्यान को लें जाया जा सकें अतएव आपका ध्यान मन के सभी दायरों से परें देख पायेंगा तो ध्येय उसका हैं।

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