अनचाहा रिश्ता... - 3 Suhani द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनचाहा रिश्ता... - 3

राधिका असमंजस से उसे जाते हुए देखती रही । वो उसके पीछे बाहर जाने लगी तो दरवाजा बंद हो गया।
राधिका दरवाजा खटखटाते हुए बोली " दरवाजा खोलिए , हमे जाना है यहां से । आप हमें कैद करके नही रख सकते । हम नही मानते इस शादी को "
वो पुकारती रही लेकिन बाहर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई ।
थक हारकर राधिका बेड के किनारे बैठ गई वो बेड के कोने से सिर टिका लिया ।
" ये हम कहां फंस गए ? मां बाबा कितना परेशान होंगे हमारे लिए । और हमारी शादी का क्या होगा ? " यही सब सोचते हुए वो बहुत परेशान थी ।
उसकी आंखों में नमी आ गई थी ।
कुछ ही देर में उसे नींद आ गई ।
अगली सुबह जब राधिका की नींद खुली तो उसने पाया कि वो बेड के उपर सो रही थी ।
उसने याद किया तो उसे अच्छे से याद था कि वो बेड के उपर आकर नही लेटी थी ।
तो क्या उत्कर्ष ने उसे बेड पर लेटाया था ! सोचते हुए उसकी धड़कने बढ़ चुकी थी । उसने आस पास कमरे को देखा तो अब वो बहुत आकर्षक नजर आ रहा था।
रात में लाइट की रोशनी में वो सिर्फ कमरे को देख पा रही थी लेकिन अभी सूरज की रोशनी में उसका दिल उस बड़े से खूबसूरत कमरे को निहारने का कर रहा था ।



कुछ पल कमरे की सुंदरता में खोए हुए वो वापिस अपनी अभी की परिस्थिति के बारे में सोचने लग गई । उसका दिल बहुत ज्यादा घबरा रहा था ।
वो बिस्तर से नीचे उतरी और सामने की बड़ी सी दीवार को देखने लगी । दीवार पर कई सारी फोटो फ्रेम्स थी जो उत्कर्ष की थी।
पूरी दीवार उसी से भरी हुई थी । वहीं राधिका की नजर एक बड़े से ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी जिसके शीशे को परदे से ढका गया था ।
राधिका ने जाकर उस परदे को हटाया तो उसे अपना अक्स शीशे में दिखाई देने लगा ।
पूरा दुल्हन का लिबास । शादी का लाल जोड़ा , हाथों में चूड़ियां , मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र । अपने आप ही राधिका के हाथ अपने गले के मंगलसूत्र पर चले गए ।
क्या वाकई में उत्कर्ष उसके साथ धोखे से शादी कर चुका था ।
तभी कमरे का दरवाजा खुला तो राधिका ने झट से दरवाजे की तरफ देखा ।
सामने उत्कर्ष खड़ा था ।
राधिका पर नजरें जमाए हर वो उसकी तरफ कदम बढ़ाने लगा ।
राधिका ने उसे करीब आते देखा तो कदम पीछे लेने लगी ।
" आप क्यों हमारे करीब आ रहे हैं ? हमे जाने दीजिए यहां से । हमारे मां बाबा को इंतजार होगा हमारा "
उत्कर्ष ने बाजुएं बांधी और बोला " लहंगा बहुत भारी है आपका । साड़ी भिजवा रहे हैं , पहनकर तैयार हो जाइए । हमे पूजा में बैठना है "
" कैसी पूजा ? "
" हमारे यहां शादी के बाद पति पत्नी कुल देवी की पूजा करते हैं । उसके बाद निजी जिंदगी की शुरुवात " बोलकर वो राधिका के करीब बढ़ने लगा ।
" देखिए , हम पति पत्नी नही हैं । आप हमारे पास नही आ सकते "
बोलते हुए राधिका पीछे की तरफ कदम लेने लगी ।
उत्कर्ष बिना कुछ कहे उसकी तरफ बढ़ता रहा । उसकी आंखें लगातार राधिका को निहार रही थी जिससे राधिका को उससे डर भी लग रहा था ।
थोड़ा पीछे जाकर राधिका खिड़की से टकरा गई ।
उत्कर्ष उसके बेहद करीब आकर खड़ा हुआ और बोला " माफ कीजिएगा राधिका जी ,लेकिन करीब आने से आप हमें नही रोक सकती " बोलकर उसने चेहरा आगे बढ़ाया तो राधिका ने कसकर आंखें बंद कर ली।
अगले ही पल राधिका को हल्की सी हलचल सुनाई दी तो उसने आंखें खोल दी । उत्कर्ष अभी भी सामने था लेकिन पीछे खिड़की के परदों को खोल रहा था ।
ये देखकर राधिका की सांस में सांस आई ।
परदों को खोलते वक्त उत्कर्ष का सीना राधिका के चेहरे से लग रहा था ।
राधिका बहुत करीब से उसे देख पा रही थी । परदे खोलकर उत्कर्ष ने राधिका को देखा और बोला " get ready "
" हम नही होंगे "
" अगर नही हुई तो हम अपने हाथों से आपको तैयार करेंगे " बोलकर वो कुछ कदम उसे देखते हुए उल्टे चला और फिर कमरे से बाहर निकल गया ।
राधिका बेबस सी बस उसे देखती रही । शादी को वो मानना नही चाहती थी और उत्कर्ष की बातों को वो टाल नहीं पा रही थी ।
अगले ही पल दो से तीन मेड कमरे के अंदर चली आई । सबके हाथों में बड़े बड़े थाल थे ।
उन्होंने दरवाजा बंद किया और बोली " आइए साहिबा , हम आपको तैयार कर देते हैं "
राधिका ने कुछ जवाब नही दिया ।
मेड उसे तैयार करने लगीं ।
कुछ देर बाद राधिका पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी ।
लाल रंग की खूबसूरत सी साड़ी जो उसके गोरे बदन पर बहुत खिल रही थी । आधी बाजू तक पहनी हुई लाल रंग की चूड़ियां , मांग में सिंदूर और गले में सुंदर सा मंगलसूत्र और हीरों का हार जिसकी चमक देखकर ही उसकी ऊंची कीमत का अंदाजा लगाया जा सकता था । सिर पर ओढ़ाई गई लाल रंग की चुनरी , जिसे हल्का सा चेहरे पर भी लाया गया था । वो किसी रानी के लिबास की तरह लग रही थी और नीचे फर्श पर भी फैली हुई थी ।
राधिका को तैयार करने वाली मेड भी उसके उपर से नजरें नही हटा पा रही थी । वो भी उसकी सुंदरता पर मोहित हो चुकी थी । शायद ही उन्होंने किसी इतनी सुंदर लड़की को पहले देखा था ।



राधिका में अभी सब कुछ बिलकुल सही था सिवाय उसके उतरे हुए चेहरे के ।
वो तैयार हुई तो तीनों मेड कमरे से बाहर निकल गई । राधिका अब कमरे में अकेली थी । वो अपने हालात के बारे में सोच ही रही थी कि तभी उत्कर्ष दरवाजे के पास आकर उसे देखने लगा।
वो भी पूजा के लिए तैयार हो चुका था । रेड शर्ट और ब्लैक पैंट पहने वो दरवाजे से टिककर खड़ा राधिका को उपर से नीचे तक निहार रहा था।
राधिका को देखते हुए उसकी आंखों में चमक थी मानो आंखें भी मुस्कुरा रही थी ।


क्या चलने लगा है उत्कर्ष के दिल और दिमाग में ? क्या आगे बढ़ेगा ये अनचाहा रिश्ता ?