लाश किसकी anurag kumar Genius द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लाश किसकी

लाश किसकी
28 वर्षीय श्याम हफ्ता हुआ एक दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजे को पागलों की तरह पीटने लगा।
"रुस्तम, रुस्तम!"जब दरवाजा ना खुला तो वह चीखने लगा,"दरवाजा खोल रुस्तम!"
तत्काल ही दरवाजा खुला।
"क्यों गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहा है? क्या ताजमहल गायब हो गया या लाल किला पीला हो गया । अरे कौन सी आफत आ गई?"दरवाजा खुलते ही सुबह-सुबह कच्ची नींद से जगा बनियान और तहमत पहने रुस्तम उस पर गुस्से में चढ़ दौड़ा।
"वो..वो राकेश राकेश,"श्याम अपनी उखड़ी हुई सांसों की वजह से ठीक से बोल भी नहीं पा रहा था।
"राकेश! क्या हुआ उसे? वह तो शाम की ट्रेन से ही गांव चला गया । हम दोनों ने ही उसे ट्रेन में बिठाया था ..भूल गया क्या?"
"याद है.. याद है।"
"फिर?"
"उसकी ट्रेन का," उखड़ी सांसों को कंट्रोल कर श्याम ने कहा," एक्सिडेंट हो गया।"
"क्या!" अब रुस्तम बुरी तरह चौंका।
"हां,ये अखबार देख! इसमें एक्सिडेंट की ख़बर छपी है।"
श्याम ने जैसे ही अखबार आगे किया रुस्तम ने झपट कर जल्दी जल्दी ख़बर पढ़ डाली।
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ट्रेन हादसे का पूर्ण विवरण था । आगरा के निकट पटरी से 10 बगियां के उतर जाने से वह भीषण ट्रेन हादसा हुआ था। हादसा रात के 4:00 बजे के आसपास हुआ बताया जाता था और उस समय ज्यादातर लोग सो रहे थे उनकी वह नींद कभी न टूटने वाली चीरनिद्रा में बदल गई। सैकड़ो लोग बे मौत मारे गए । सैकड़ो बुरी तरह घायल हो गए थे और अपनों से बिछड़ गए थे । हालांकि सरकारी मदद वक्त पर पहुंच गई थी। और राहत कार्य में जुट गई थी। आसपास के ग्रामीण इस दुख की घड़ी में भरपूर मदद कर रहे थे।
जिस बोगी में राकेश को उन दोनों ने बैठाया था उसकी हालत सबसे ज्यादा खराब बताई जा रही थी और सबसे ज्यादा लोग इस बोगी में मरे थे। पूरी खबर पढ़ कर रुस्तम की आंखें भर आई । श्याम तो पहले से ही रोने को तैयार जान पड़ता था।
दोनों मित्र अपने उस तीसरे मित्र राकेश के लिए बेहद दुखी थे। वे तीनों ही दिल्ली की एक फैक्ट्री में 4 साल से कम कर रहे थे तीनों में गहरा याराना बन गया था। एक दूसरे के गांव भी घूम आए थे। घर रह आए थे । दिल्ली में तीनों एक ही किराए के कमरे में रहते थे। मकान मालिक इसके लिए राजी नहीं था उसने केवल दो लोगों को रहने की इजाजत दी थी पर रुस्तम ने तीनों साथ रहेंगे नहीं तो कोई नहीं रहेगा जिद करके मलिक को राजी कर लिया था और शुरू से अभी तक इस कमरे में रह रहे थे । तीनों तीनों का व्यवहार अच्छा था। भले लोग थे इसलिए मलिक ने भी उनसे कोई शिकायत नहीं की थी।
कल शाम को ही उन दोनों ने राकेश को सेंट्रल स्टेशन पर ट्रेन में बिठाकर विदा किया था । उस समय अच्छी खासी भीड़ थी पर दोस्तों ने दोस्ती दिखा कर राकेश को खिड़की के पास वाली सीट दिला ही दी थी । वह अकेला होता तो सीट मिलना तो दूर ट्रेन में घुसना भी बहुत मुश्किल था। राकेश हर बार अपनी शादी को टाल देता था पर इस बार शादी की बात को फाइनल करने जा रहा था । सो दोस्तों ने चुहलवाजी का मौका भी नहीं छोड़ा था विदा करते वक्त।
"जल्दी लौट कर आना ,ना शादी-वादी सब करके लोटो!"रुस्तम ने उसे छेड़ते हुए कहा था।
"अभी तो शादी पक्की करने जा रहा हूं । तुम दोनों के बिना मैं शादी तो क्या भगवान के घर भी नहीं जाने वाला!"राकेश ने हंसकर कहा था।
दोनों काफी देर गमहीन खामोश खड़े रहे उनके चेहरों पर दुख की वेदना साफ झलक रही थी।
"राकेश की बूढी मां पर क्या बीतेगी जब उसे पता चलेगा..!" मौन तोड़ते हुए श्याम ने टूटी आवाज में कहना चाह पर बात अधूरी छोड़ दी।
"हौसला रख अभी जरूरी नहीं की राकेश भी मर..,"रुस्तम ने उसे धीरज बनाया।
ट्रेन हादसे को लेकर पूरे देश में शोक की गहरी लहर छाई हुई थी। इतना बड़ा हादसा कैसे हुआ किसकी गलती से हुआ दोषी कौन है जैसी आवाज़ें हर तरफ गूंज रही थी।
रेल हादसे में मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही थी। तीन-चार दिन गुजर जाने के बाद ही वहां अफरा तफरी का माहौल था हर कोई अपनों के लिए चिंतित था । उनकी सलामती के लिए दुआ कर रहा था। जिन्हें अपनों की लाश मिल जाती थी वह रोते-पीटते अपने घर चले जाते थे।
कुछ बदनसीब लाश पोस्टमार्टम हाउस में अपनों का वेट कर रही थी पर उनके पास कोई पहचान का कोई साधन नहीं था और इसीलिए वे लावारिश की तरह पड़ी हुई थी।
उस समय पोस्टमार्टम हाउस में तैनात पुलिस वाले व डॉक्टर के होठों पर मुस्कान आंखों में आंसू झलक पड़े थे जब एक बुजुर्ग महिला ने लावारिस पड़ी कई लाशों में से एक लाश अपने बेटे महेश के रूप में पहचानी थी और फूट-फूट कर रोने लगी थी। वहां मौजूद हर कोई इसलिए खुश था की चलो एक लावारिस समझी जाने वाली लाश को अपना मिल गया । वही दुख से टूट चुकी मां की हालात ने उन्हें भी दुखी कर दिया था।
पुलिस वालों ने बड़ी मुश्किल से बुजुर्ग महिला को धीरज बघा कर बाहर भेजा क्योंकि लाश का भी पोस्टमार्टम नहीं हुआ था पोस्टमार्टम होने के बाद ही लाश को महिला को सौंपने वाले थे पर तभी एक ऐसा वाकया पेश हुआ जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।
महेश की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजी जाती इससे पहले ही वहां एक अन्य बुजुर्ग महिला जो की एक युवक के साथ आई थी ने महेश की लाश अपने बेटे राकेश कैलाश के रूप में पहचानी और फूट-फूट कर रोने लगी।
वहां मौजूद हर कोई सकते में आ गया था। चक्कर में पड़ गया था कि आखिर लाश एक और पहचान वाले दो।
हर किसी के जहन में अब यही सवाल था कि आखिर लाश किसकी है?
"मनीष!,"वहां तैनात सीनियर पुलिस वाले ने एक सिपाही से कहा," बाहर जो महिला बैठी है उसे लेकर आओ!"
" क्या बात है साहब?"बुजुर्ग महिला के साथ आए युवक ने माहौल की गंभीरता को भांप लिया था इसीलिए गंभीर स्वर में पूछा।
अफसर ने उसे बताया तो वह हैरान रह गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है?"युवक ने बेचैन होकर लेकिन थोड़े कड़े शब्दों में कहा,"सामने बेंच पर पड़ी लाश राकेश की ही है। क्या मैं उसे पहचानता नहीं हूं? फिर मैं लाश की पहचान के लिए जरूरी कागजात भी तो दिखाए हैं।"
"कागजात तो बाहर मौजूद महिला ने भी दिखाए हैं और उसके मुताबिक बेंच पर पड़ी लाश उसके बेटे महेश की है!"
युवक के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ झलकने लगी।
"वह औरत झूठी है!"अचानक युवक तेज स्वर में चिल्ला पड़ा।
"हां साहब यह लाश मेरे बेटे राकेश की ही है!,"बीच में युवक के पास खड़ी वृद्ध महिला ने कहा,"मुझे तो पता ही नहीं चलता कि मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो चुका है उसकी मौत हो चुकी है । यह तो भला हो इस लड़के सुशील का जिसका शहर आना जाना बना रहता है । इसी को एक्सीडेंट की खबर थी और इसी ने मुझे जाकर बताया फिर यहां तक लेकर भी यही आया । भला बड़ा लड़का है सुशील ..साहब!"
अफसर ने सुशील की ओर देखा।
"तुम्हें कैसे पता था कि राकेश दुर्घटनाग्रस्त हुई ट्रेन में सफर कर रहा था?"
अफसर ने पूछा।
"जिस रोज राकेश ट्रेन में बैठा था उसी दिन उसने फोन करके बता दिया था।"
"तुम्हें क्यों बताया था?"
"क्योंकि पूरे गांव में बहुत कम लोगों के पास फोन है। राकेश जब भी मां से बात करना चाहता था तो मेरे को ही फोन करता था मैं उसकी मां से बात करवाता था!"
"यानी तुम्हारा गांव किसी ऐसी जगह पर है जहां सरकारी सुविधाओं की बहुत कमी है वरना आजकल तो हर गांव में हर घर में फोन होता है!"
"आपने सही कहा पर राकेश मुझे इसलिए भी फोन करता था क्योंकि मैं उसके घर के नजदीक ही रहता था!"
तभी मनीष उस औरत को लेकर वहां पहुंचा।
अफसर ने जैसे ही उसे सुशील के बारे में व उसके मकसद के बारे में बताया तो पहले तो वह हैरान रह गई और फिर भड़क कर बोली,"यह दोनों झूठे हैं साहब! लाश मेरे बेटे महेश की है!"
दोनों पार्टियों में आपस में तू तू मैं मैं होने लगी। पुलिस वाले हैरान परेशान खड़े थे। और सोच रहे थे कि आखिर माजरा क्या है।
दोनों पार्टियों की बढ़ती तकरार देख कर अफसर ने उन्हें डांट कर चुप कराया। और बोला," मेरे पास एक आइडिया है जिससे पता चल जायेगा कि लाश किसकी है। कौन सही बोल रहा है और कौन झूठ।", फिर पास खड़े डॉक्टर से अफसर ने कहा," इन दोनों महिलाओं के शरीर से सैंपल लो और लाश के डीएन ए से इनका डीएन ए मिलाकर देखो। पता चल जायेगा कि कौन झूठ बोल रहा है। जो सच बोल रहा है उसे लाश सौंप दी जाएगी और जो झूठ बोल रहा होगा उसे जेल भेजा जाएगा।"
" नही। मेरा कोई बेटा नहीं है।" जब डॉक्टर उन लोगों की ओर बढ़ा तो पहली महिला चिल्ला कर बाहर की ओर भागी।
झूठ के पैर उखड़ चुके थे।
सच उजागर हो चुका था पर अभी यह रहस्य बना हुआ था कि आखिर उस महिला ने राजेश की लाश को अपने बेटे महेश की लाश क्यों बताया था ..झूठ क्यों बोला था आखिर क्या मकसद था उसका।
इसीलिए उसे फौरन पकड़ लिया गया और अफसर ने कड़क कर पूछा,"अब तो साबित हो गया है कि तुम ही झूठी हो और लाश की शिनाख्त वाले कागजात भी झूठे फर्जी हैं पर यह सब क्यों किया? तुमने क्या मकसद था तुम्हारा?"
"मेरा कोई मकसद नहीं था साहब ! मैं तो एक भिखारी हूं। ट्रेन में भीख मांग कर पेट पालती हूं!"वह महिला हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी।
"फिर इतना बड़ा प्रपंच क्यों रचा, कैसे रचा?"
"ऐसा करने को मुझे बोला गया था साहब! बदले में मुझे ₹100000 देने का वादा किया गया था।"
"क्या?"उसकी बात सुनकर अफसर दंग रह गया।
"मैंने पहले मना कर दिया था साहब, लफड़े वाला काम मैं नहीं करती पर मुझसे कहा गया था कि कोई लफड़ा नहीं होगा तब मैं राजी हो गई थी!"
"किसके कहने पर तू राजी हुई थी?"अफसर ने गुस्से में कड़क आवाज में कहा तो औरत को थूक घटना भी मुश्किल जान पड़ा।
"बोल।"अफसर जोर से दहाड़ा।
महिला कांपने लगी है और फिर से हाथ जोड़कर रुआसे स्वर में बोली,"मेरा कोई कसू र नहीं है। साहब मुझे जाने दो।"
"जो पूछा वह बता कमबख्त औरत!"
महिला ने आसपास देखा और फिर एक तरफ हाथ से इशारा कर दिया।
"इसने कहा था वह सब करने को।"
सब ने उस ओर देखा। महिला ने मनीष की ओर इशारा किया था और मनीष इस समय बौखलाया हुआ खड़ा था वह तुरंत ही दांती पीसते हुए भिखारी को मारने दौड़ा पर अफसर ने बीच में ही उसे थाम लिया।
"यह झूठ बोल रही है सर ! मैंने इससे कुछ भी करने को नहीं कहा था!"
"तुम्हारे माथे का पसीना और चेहरे पर फैला डर साफ-साफ बता रहा है कि भिखारिन सच बोल रही है! और तुम भी ज्यादा नाटक ना करके सच फौरन बोल दो क्योंकि अभी मैं प्यार से कह रहा हूं । नाटक करोगे तो मैं पुलिसया तरीका अख्तियार करूंगा इसके बारे में तुम अच्छी तरह जानते हो कि गूंगे भी बोलने लगते हैं!"
मनीष को काटो तो खून नहीं । उसके कसबल ढीले पढ़ते चले गए । उसने सूखे होठों पर जुबान फेरी और स्वीकार किया की वह भी भिखारिन साथ वह मिला हुआ है।
"लाश की शिनाख्त के फर्जी कागज़ात तुमने बनाकर दिए.. है ना?"अफसर ने पुछतांच शुरू की।
मनीष बगले झांकने लगा।
"जो पूछा जा रहा है वो बताते जाओ। मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है।" अफसर ने बेहद सर्द लहजे में कहा।
"वो.. वो मुझे भेजे गए थे।" आखिरकार मनीष बोला।
"भेजे गए थे.. किसने भेजे थे?"
" रुस्तम ने।"
रुस्तम का नाम सुनकर राकेश की मां और सुशील दोनों चौक पड़े।
"यह रुस्तम कौन है और उसका इस झमेले से क्या लेना देना है?"अफसर ने फिर पूछा।
"यह नहीं हो सकता,"बीच में राकेश की बूढी मां थोड़े तेज स्वर में बोली,"रुस्तम तो राकेश का अच्छा दोस्त है । वह ऐसा भला क्यों करेगा?"
अफसर के पूछने पर उसे बताया गया कि रुस्तम राकेश का दोस्त है और दिल्ली में उसके साथ ही काम करता है।
"आखिरी यह झमेला क्या है? मनीष मुझे शुरू से बताओ।"अफसर अचानक जो असमंजस में पड़ा था झल्ला कर मनीष से बोला।
"दुर्घटनाग्रस्त रेल की एक बोगी से जब राकेश की लाश निकाली तो मैने फोन पर रुस्तम को बताया?"
"1 मिनट 1 मिनट,"अफसर ने उसे बीच में रोक कर पूछा,"तुम राकेश को कैसे जानते थे और तुमने रुस्तम को उसके बारे में क्यों बताया क्या राकेश और रुस्तम की दोस्ती से भी तुम वाकिफ थे?"
"रुस्तम मेरे गांव का है सर ,मेरा दोस्त है । दिल्ली में उसने ही राकेश से मुझे मिलवाया था और अपनी दोस्ती के बारे में बताया था!"
" हूं। खैर आगे बोलो?"
"मैंने तो केवल रुस्तम को राकेश के बारे में इसलिए बताया था ताकि उसे अपने दोस्त की मौत की खबर पता चल जाए पर..!"
" पर क्या?"
"पर बातों ही बातों में वह बोला कि उसके दिमाग में एक ऐसा प्लान आया है जिससे वह पन्द्रह लाख रुपए आसानी से कमाए जा सकते हैं।"
"कैसा प्लान और 15 लाख रुपया आसानी से कैसे कमाए जा सकते थे?"
मनीष ने अपने अफसर की तरफ ऐसे देखा जैसे किसी मूर्ख की तरफ देख रहा हो इसीलिए अवसर थोड़ा हड़बड़ा गया और फिर संभल कर बोला," समझा, सरकार ने ट्रेन हादसे में करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को 15-15 लाख देने का वादा किया है और रुस्तम का प्लान राकेश की लाश के जरिए वही 15 लाख हासिल करने का प्लान था ।. एम आई राइट?"
"जी हां।"
"बहुत खूब! वैसे भी भिखारिन को कैसे फिट किया?"
"ट्रेन में सफर के दौरान रुस्तम की इससे अक्सर मुलाकात हो जाती थी एक दो बार बातचीत भी हुई थी।"
"इसे राकेश की फर्जी मां बनने के लिए रुस्तम ने तैयार किया?"
"हां।"
"और लाश की शिनाख्त के लिए फर्जी कागजात तुमने तैयार कर कर भिखारी को दिए क्योंकि रुस्तम ने 15 लख रुपए आसानी से कमाने के जब तुम्हें प्लान सुनाया तो तुम लालच में आगे और फौरन राजी हो गए क्यों?"
"हां। एक भिखारी को देकर 7,7 लाख रुपए मैं और रुस्तम रखने वाले थे ऐसा ही तय हुआ था!"
"यानी इस सारे गेम का मास्टरमाइंड रुस्तम है और तुम उसके साझेदारी पर उसने इतना घिनौना काम क्यों किया अपने दोस्त की दोस्ती का जरा भी ख्याल ना आया?"
"वह अपने जुए ,शराब की लत के चलते दिल्ली के एक व्यक्ति का बड़ा कर्जदार बन गया था और दिल्ली का वह दादा टाइप व्यक्ति अपने पैसे मांग रहा था जान से मारने की धमकी देता था और रुस्तम को पैसे जुटाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।"
"ऐसे में उसे राकेश की मौत के बारे में पता चला। सरकार ने मरने वालों को 15-15 लख रुपए देने की घोषणा की तो रुस्तम को रास्ता सूझ गया.. क्यों?"
"हां।"कहकर मनीष ने सर झुका लिया।
"पर तुमने और रूस्तम ने यह नहीं सोचा कि राकेश घरवाले भी तो लाश लेने आएंगे?"
"रुस्तम ने कहा था राकेश के घर वालों को शायद पता भी ना लगे और लगेगा भी तो घर में केवल बूढ़ी मां है वह कुछ नहीं कर पाएगी क्योंकि उसका गांव ऐसी जगह पर है जहां आज भी बिजली पानी फोन की कोई सुविधा नहीं है। पर बाई चांस वहां से आता भी कोई तो उसे राकेश की लाश नहीं मिलती। ऐसे बड़े हादसों में कई लाशे इतनी बुरी छती ग्रस्त हो जाती हैं की वे गायब ही मानी जाती है ।"
"पर तुम लोगों की किस्मत खराब निकली सुशील को न सिर्फ ट्रेन हादसे की जानकारी हुई बल्कि वह वक्त रहते हैं राकेश की बूढी मां को यहां ले भी आया।
मनीष बगले झांकने लगा।
"तुम लोगों को शर्म आनी चाहिए अचानक अफसर मनीष और भिखारिन पर भड़क पड़ा," दुख तकलीफ के वक्त जहां लोगों को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए वही तुम जैसे कुछ गंदे लोग ऐसे घृणित काम करते हैं। तुम जैसे इंसानियत के दुश्मनों का एक ही मुकाम है और वह है जेल।"
मनीष और भिखारिन तो तुरंत जेल भेज दिए गए और रुस्तम को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल पहुंचा दीया गया। श्याम को सारी बात पता चली तो उसे इस सारे घटनाक्रम पर अभी भी यकीन ही नहीं हो रहा।