सुनहरी तितलियों का वाटरलू - भाग 2 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुनहरी तितलियों का वाटरलू - भाग 2

भाग-2

वह पहले डायवोर्स फिर बेटी की पढ़ाई बंद होने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाईं, ख़ुद को ख़त्म कर लिया। रिचेरिया के लिए एक लंबा सुसाइड लेटर छोड़ा था, जिसमें तमाम बातों के साथ-साथ बेटी को सम्बोधित करते हुए लिखा था . . . ‘मेरी प्यारी रिच, मैं तुमसे यह तो नहीं कहना चाहती कि यह करना, यह नहीं करना। बस अपने जीवन की उस सबसे बड़ी भूल, ग़लती को पहली बार बता रही हूँ, जिसके कारण मेरा जीवन ऐसा बीता, मुझे यह क़दम उठाना पड़ रहा है, और मेरी प्यारी बेटी को अनाथ होना पड़ रहा है। मेरी ग़लतियों से तुम कुछ सीख-समझ लोगी तो मेरा पक्का विश्वास है कि जिन मुश्किलों का सामना मुझे करना पड़ा, उससे तुम बची रहोगी। 

‘मेरी वह भूल, ग़लती यह है कि जिस माँ-बाप ने मुझे जन्म दिया, ख़ूब अच्छी परवरिश दी, प्रातः संध्या बाबा विश्वनाथ की पूजा अर्चना में मुझे भी ज़रूर सम्मिलित करते थे, अक़्सर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कराने, गंगा मैया की आरती के लिए ले जाते थे, बी एच यू (बनारस हिन्दू विश्व-विद्यालय) में पढ़ा रहे थे। 

‘जिनके कारण मैं हिंदी, अँग्रेज़ी के अलावा संस्कृत भाषा में भी पारंगत थी, तीनों भाई-बहन, माँ-बाप की प्राण-प्यारी छोटी बहन, बेटी थी, ऐसे ख़ूबसूरत प्यारे परिवार को इस गंदे धोखेबाज़ आदमी के झूठ, बहकावे में आकर उन्हें रोता, अपमानित महसूस करता, दुःख-संताप में तड़पता छोड़ कर चल दी, इसके साथ हो ली, जो दुर्भाग्य से मेरा पति, तुम्हारा पिता था। 

‘अपनी थीसिस कम्प्लीट करने के सिलसिले में एक बार कहीं गई थी, वहीं परिचय हुआ, फिर ये आए दिन मिलने लगा, सनातन संस्कृति की ख़ूब चर्चा करता, ख़ूब लुभावनी बातें करता, उसी में मैं उलझती चली गई। पढ़ाई भी बर्बाद हो गई। 

‘एक मंदिर में शादी कर जब उसे सब-कुछ मान लिया, तब वह वास्तविक रूप में सामने आया। मैं हक्का-बक्का ठगी सी रह गई, लेकिन कुछ भी नहीं कर सकती थी, विवश थी, कहाँ जाती, किसके पास जाती, परिवार को तो ख़ुद ही त्यागा था, किस मुँह से उनके पास जाती, मदद माँगती। 

‘मुझे कटी पतंग सा निःसहाय देख इसने मुझे यातना-प्रताड़ना देने की हर वो हद पार की जो ये कर सकता था। फिर एक दिन गले पर पैर रख कर धर्मांतरण के लिए विवश कर दिया। जबकि शुरू में कहता था कि उसके लिए ऐसी बातें कोई मायने नहीं रखती। ऐसे में मुझे हर क्षण लव-जिहाद की शिकार अपनी एक सहपाठनी याद आती। 

‘जिसे सिब्तैन नाम के एक जेहादी ने छद्म नाम शिवांश बन कर फँसाया, दैहिक शोषण किया, यातना दी, वह धर्मान्तरण के लिए तैयार नहीं हुई तो बाँके से उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर के एक बड़ी सी गठरी में भर कर रेलवे ट्रैक के पास झाड़ियों में फेंक दिया। 

‘कई दिन बाद जब पुलिस खोज पाई तो उसे कुछ ही टुकड़े मिले, बाक़ी कुत्ते हज़म कर चुके थे, सिर छह महीने बाद, वहाँ से पाँच किलोमीटर दूर एक गंदे तालाब में मिला। मैं हमेशा ही इस डर में जीती रही कि एक न एक दिन मेरे भी टुकड़े कुत्तों का आहार बनेंगे। 

‘क्षमा माँगती हुई पहली बार बता रही हूँ कि ननिहाल के विषय में तुम्हें पहले जो कुछ बताया था, वह सब ग़लत बताया था कि हम एक प्रतिष्ठित क्रिश्चियन परिवार से हैं। सत्य यह है कि हम प्रतिष्ठित सनातनी परिवार से हैं। 

‘आख़िर में केवल इतना कहूँगी कि जो अपनी धर्म-संस्कृति, माँ-बाप, परिवार का अपमान करता है, उनका महत्त्व नहीं समझता, उन्हें त्याग कर किसी और के साथ हो लेता है, उसका मान-सम्मान, स्वयं उसका नष्ट होना सुनिश्चित होता है। बिलकुल मेरी ही तरह। 

‘मुझे विश्वास है कि तुम इन बातों का आशय ठीक से समझ कर अपने भविष्य के लिए सही रास्ता चुन लोगी . . .’ 

रिचेरिया ने क़ानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने से लेकर, अंतिम संस्कार तक सब अकेले ही संपन्न किया। माँ का सुसाइड लेटर पढ़ने के बाद उसने किसी भी रिश्तेदार, दोस्त को कोई सूचना नहीं दी। उसके मन में एक कठोर भावना ने इन सभी के लिए घृणा की भावना भर दी थी। माँ का इस तरह जाना उसे इतना कष्टदाई लगा कि दिल्ली छोड़कर चंडीगढ़ चली आई। क्योंकि उसका भी मन वहाँ इतने सदमें झेलने के बाद बहुत घुटन महसूस कर रहा था। 

चंडीगढ़ में जीवन चलाने के लिए एक ब्यूटी-पार्लर में काम करने लगी। काम सीख कर जल्दी ही अपना ब्यूटी-पार्लर शुरू कर दिया। पूँजी का काम मदर और उसकी ज्वेलरी से पूरा हुआ, तब शहर आज के जैसा इतना बड़ा नहीं था और न ही आज की तरह गलाकाट प्रतिस्पर्धा से भरा। वह जल्दी ही सफल होती चली गई और अब एक नहीं दो बड़े-बड़े ब्यूटी-पार्लर की मालकिन है। 

बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए वह रात-दिन इस क़द्र लगी रही थी, कि उसे यह बात तब याद आयी कि बिज़नेस के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन की भी ज़रूरतें होती हैं, और यदि वह पूरी न हों तो क्या फ़ायदा किसी बिज़नेस, रुपए-पैसे का, जब एक दिन उसके ब्यूटी-पार्लर में जेंसिया उसी की तरह बतौर स्ट्रगलर नौकरी के लिए आई। टाइट जींस, टी-शर्ट में। वह उसे पहली ही नज़र में बड़ी आकर्षक लगी। उसकी आँखें उसके शरीर के हर उभरे हिस्से से होकर लौटतीं, तुरंत ही फिर वहीं चली जातीं। 

जेंसिया की हालत और उसकी बातों से उसे यह पता चल गया कि उसे नौकरी की सख़्त ज़रूरत है। उसने उससे हाथ मिला कर नौकरी मिलने की बधाई दी, और ब्यूटी-पॅार्लर स्पा ऐसे दिखाया जैसे वह उसकी एम्प्लॉयी नहीं, बल्कि कोई वी वी आई पी गेस्ट है। 

जेंसिया जहाँ अत्याधुनिक पॉर्लर स्पा देख रही थी, वहीं वह उसके अंगों में डूबती ही चली जा रही थी। उससे हाथ मिलाने के बाद तो उसका मन कर रहा था कि उसे पकड़े ही रहे, छोड़े ही नहीं। हाथों की छुअन, नर्माई उसे भीतर तक गुदगुदाती ही चली जा रही थीं। 

उसके मन में ज़ोरों से यह इच्छा उभरने लगी थी कि वह जेंसिया को हर उस जगह स्पर्श करे, जहाँ-जहाँ से उसकी आँखें हट ही नहीं पा रही हैं। उसने जेंसिया को उसकी योग्यता से ज़्यादा सैलरी पर तुरंत ही नौकरी पर रख ही नहीं लिया, बल्कि तुरंत ही ज्वाइन करने के लिए कह दिया था। 

उसने जेंसिया को ज़्यादा कुछ बताने की ज़रूरत महसूस नहीं की थी, क्योंकि इसी फ़ील्ड का उसे काफ़ी एक्सपीरिएंस पहले से ही था। वह दिन भर बार-बार काम देखने के बहाने उसके आस-पास ही मँडराती रही थी, जिससे उसे देखती रह सके। 

उस दिन वह देर रात तक जेंसिया को याद करती रही, उसे ही महसूस करती रही। उसे लगता जैसे जेंसिया स्पा की सारी ख़ुश्बू, नए फ़्रेगरेंस के रूप में उसके दिलो-दिमाग़ में बस गई है। अगले ही दिन जेंसिया से ही बात-चीत करके उसने यह जान लिया कि वह सिंगिल है या कोई है उसके जीवन में। 

उसे बहुत ख़ुशी हुई, यह जानकर कि जेंसिया भी उतनी ही अकेली है, जितनी कि वह ख़ुद। जल्दी ही उसने महसूस किया कि जिस तरह का जितना इंट्रेस्ट जेंसिया में वह ले रही है, कुछ वैसा ही इंट्रेस्ट जेंसिया भी उसमें लेने लगी है। 

लेकिन यह संकोच उसे ज़्यादा मोटे पर्दे के पीछे धकेल देता है कि वह एम्प्लॉयी है और रिचेरिया एंप्लॉयर। यह मोटा पर्दा हटाने के लिए वह उसे लंच अपने साथ कराने लगी। पॉर्लर बंद होने के बाद उसे अपनी गाड़ी में किसी न किसी रेस्त्रां में ले जाने लगी। खाने-पानी पीने की चीज़ें लेकर गाड़ी में ही खाते-पीते हुए लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाती। 

छुट्टी के दिन रॉक-गार्डन, रोज़-गार्डन, नवजीवन अभ्यारण या झील ले जाती या फिर मूवी देखने। जल्दी ही दोनों पब, ड्रैग-नाइट भी साथ एंजॉय करने लगी थीं। फिर ज़्यादा लंबा समय नहीं लगा, जेंसिया रिचेरिया के आग्रह पर उसके फ़्लैट में ही साथ रहने लगी। 

उसके आने पर रिचेरिया ने महसूस किया जैसे कि कोई ऐसी रोशनी उसके साथ आ गई है, जिसने उसके फ़्लैट के हर कोने से अँधेरे, अकेलेपन, मायूसी, ऊब जैसी परेशान करने वाली हर चीज़ ग़ायब कर दी है, ख़त्म कर दी है। 

जेंसिया जब उसके साथ रहने आई थी, तो रिचेरिया ने अंदर पहुँचते ही उसे बाँहों में समेटे हुए बेड-रूम में लम्बा समय बिताया था। वह उस समय को अब भी अपने जीवन का सबसे रोमांचक, सबसे ख़ुशगवार समय मानती है। 

लेकिन अब वह ख़ुद को उस मोड़ पर पा रही है, जहाँ उसे महसूस हो रहा है कि अब वह घटना घटने वाली है, जो उसके जीवन के लिए सबसे निर्णायक साबित होगी। 

लॉक-डाउन की सत्ताईसवीं सुबह के दस बज गए हैं, लेकिन वह जेंसिया को जगाने की हिम्मत नहीं कर पा कर रही है, जबकि और दिनों में वह देर होने पर उसके गालों को सहला कर, किस करके या और प्यारी सी शरारतें करके जगा देती है। जेंसिया भी उठ कर उससे बच्चों सरीखी लाड़-प्यार जताने लगती है। 

लेकिन आज रिचेरिया ने प्रतीक्षा करने की ठान ली है। नाश्ते के लिए सूजी का हलवा बनाया, वही लेकर खाती हुई एक-एक न्यूज़ चैनल देखने लगी है। मीठे के साथ कुछ तीखा भी खाने की इच्छा के चलते उसने मठरी, चिली सॉस, कुछ नमकीन भी ले ली है। वैसे सामान्यतः वह सुबह नाश्ते में दो अण्डों का ऑमलेट ब्लैक-टी के साथ लेती है। लेकिन लॉक-डाउन ने हर चीज़ डिस्टर्ब कर दी है। 

उसने नाश्ता पूरा ही किया था कि तभी जेंसिया भी आ गई। उसने वही हल्की नीली साटन चादर लपेट रखी है। आते ही उसने गुड-मॉर्निंग बोल कर कहा, “क्या यार आज उठाया ही नहीं, इतना लेट हो गई हूँ। ग्यारह बजने वाले हैं। जागने के बाद आधे घंटे से मैं यही सोचती लेटी हूँ कि तुम आओगी, मुझे किस करोगी, और स्वीट-स्वीट बोलोगी, जेंसिया, जेंसिया डार्लिंग, फ़्रेश होकर आओ नाश्ता तैयार है।”

इसी समय रिचेरिया ने उसे फ़्लाइंग किस किया तो जेंसिया ने अपना गाल उसी की तरफ़ ऐसे घुमाया, मानो वो उसे चूम ही लेगी। वह जल्दी से तैयार होकर आई, रिचेरिया को गले लगा कर प्यार जताया और उसी की बग़ल में सट कर बैठ गई। 

रिचेरिया ने उसका नाश्ता उसके सामने रख दिया। उसने नाश्ता करते हुए कहा, “जो भी हो, यह लॉक-डाउन ऐसे नए-नए एक्सपीरियंस करवा रहा है जिसके बारे में किसी ने कभी इमेजिन भी नहीं किया होगा। एक महीना होने जा रहा है और क़ैदियों की तरह सब घर में अब भी बंद हैं। सब-कुछ होते हुए भी मन का कुछ भी नहीं कर सकते। सबसे ज़्यादा इंट्रेस्टिंग बात तो यह है कि हम क़ैदी हैं। और क़ैद से भागने न पाएँ यह रिस्पॉन्सिबिलिटी भी निभा रहे हैं।” 

रिचेरिया उसकी बातें सुन ज़रूर रही थी, लेकिन उसका मन उसी उलझन में उलझा हुआ था, जिसके कारण बहुत देर तक वह त्राटक योग मुद्रा में, भोर में ही बालकनी में बैठी थी, फिर भी उसने कहा, “इसके लिए रिस्पॉन्सिबल हम-लोग ही हैं। नेचर के सिस्टम में इंटरफेयर करेंगे तो वह भी रिएक्ट तो करेगी ही।”

“हाँ, ये बात तो है। मैं कल ही उस नोबेल प्राइज़ विनर साइंटिस्ट का स्टेटमेंट पढ़ रही थी, जिसने सबसे पहले एड्स के बारे में बताया था, उसने क्लियरली कहा है कि चीन के साइंटिस्ट्स ने कोरोना वायरस के जीनोम के सिक्वेंस को चेंज करने की कोशिश की है, उनकी ग़लत कोशिशों के कारण ही वायरस इतना ज़्यादा ख़तरनाक बन गया है। 

“वुहान, चीन की जिस वायरस लैब में ये चीनी साइंटिस्ट्स बरसों से यह दुस्साहस भरी कोशिश कर रहे हैं, उस लैब की सेफ़्टी सिस्टम बहुत ही ज़्यादा पुअर है, इसमें कोई शक नहीं है कि वायरस वहीं से लीक हुआ है, और पूरी मानवता ख़तरे में पड़ गई है। लाखों लोग मर गए हैं, पता नहीं कितने और लोग मरेंगे।

“उनके इस स्टेटमेंट से तो मैं बहुत ही ज़्यादा डिसएप्वाइंट हूँ। उनके हिसाब से तो नेचर के सिस्टम के साथ जो छेड़-छाड़ की गई है, नेचर भी अपना रिएक्शन दिए बिना शांत नहीं होगी, वह अपना काम पूरा करके ही रहेगी। यह सब सोच कर मूड बड़ा अपसेट हो जाता। 

“सारे एक्सपर्ट्स एक ही बात कह रहे हैं कि इसकी वैक्सीन बनने, लोगों तक पहुँचने में कम से कम दो साल लग जाएँगे, ऐसे में तो मरने वालों की गिनती लाखों में नहीं, करोड़ों में होगी। प्रेजेंट टाइम में जो स्टेटस है, उससे तो नहीं लगता कि लॉक-डाउन जल्दी ख़त्म होगा। बिज़नेस के लिए तो बड़ी प्रॉब्लम हो गई है। हम बिज़नेस की जिस फ़ील्ड में हैं, उसके लिए तो और भी ज़्यादा। 

“नो डाउट सोशल डिस्टेंसिंग का जो ट्रेंड चल रहा है, उससे तो ओपन होने के बाद भी, काफ़ी टाइम तक कस्टमर आने में अवॉइड करेंगे। बिज़नेस कैसे चलेगा समझना बहुत मुश्किल हो रहा है। वैक्सीन आने में अभी इतना लंबा समय है। साइंटिस्ट यह भी कह रहे हैं कि कोविड-१९ को नेचर ही कंट्रोल करेगी। लोगों में हर्ड इम्युनिटी डेवलप होगी, वही उन्हें सेफ़ करेगी। यह सब सोचती हूँ तो बहुत टेंशन होती है।”

जेंसिया अपनी लम्बी बात पूरी करती हुई कुछ गंभीर हो गई, तो उसे बड़ी अनिच्छा से सुन रही रिचेरिया ने कहा, “कोई टेंशन करने की ज़रूरत नहीं है। मैं इतना अरेंजमेंट कर चुकी हूँ कि बिज़नेस हमेशा के लिए पैक भी कर दूँ तो भी लाइफ़ जैसी चल रही है, वैसी ही चलती रहेगी।”

जेंसिया नाश्ता करके रिचेरिया की जाँघों पर ही सिर रखे हुए सोफ़े पर ही लेटी है। रिचेरिया ने उसके गालों पर उँगलियाँ फिराते हुए यह कहा, तो जेंसिया ने उसकी उँगलियों को पकड़ते हुए पूछा, “मैं बहुत देर से फ़ील कर रही हूँ कि तुम काफ़ी अपसेट हो, क्या बात है, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न।”

रिचेरिया ने कुछ देर तक उसकी आँखों में देखने के बाद कहा, “तुम सही फ़ील कर रही हो, एक बहुत ही इंपॉर्टेंट बात तुमसे डिस्कस करना चाहती हूँ, यदि तुम्हारा मूड बात करने का हो तो।” 

यह सुनते ही कुछ सशंकित सी जेंसिया ने तुरंत ही उठते हुए पूछा, “ओह श्योर, क्यों नहीं, बताओ न ऐसी कौन-सी बात है, जिसने तुमको इतना अपसेट कर दिया है।”

रिचेरिया ने उसकी आँखों में कुछ क्षण ऐसे देखा जैसे कुछ पढ़ना चाहती हो, उसके बाद पूछा, “क्या मैं तुम्हारे लिए आज भी उतनी ही अट्रैक्टिव हूँ, तुम मुझे आज भी उतना ही प्यार करती हो जितना पहले करती थी?” 

इतना सुनते ही जेंसिया ने आश्चर्य से उसे देखते हुए कहा, “हेअ . . .यह क्या पूछ रही हो तुम, हो क्या गया है तुम्हें? ऐसा क्वेश्चन तुम्हारे दिमाग़ में आया ही क्यों? तुम . . . मैं . . . मैं बिल्कुल कुछ समझ नहीं पा रही हूँ।”