भाग-1
प्रदीप श्रीवास्तव
कोविड-१९ फ़र्स्ट लॉक-डाउन काल की सत्ताईसवीं सुबह है। रिचेरिया अपॉर्टमेंट की पाँचवीं मंज़िल पर अपने फ़्लैट की बालकनी में बैठी, दूर क्षितिज में एक केसरिया घेरे को बड़ा होता देख रही है। घेरा जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है, वैसे-वैसे उसका केसरिया रंग हल्का होता जा रहा है। चमक बढ़ती जा रही है। रिचेरिया प्रकृति के इस अनूठे खेल को जीवन में पहली बार इतने ध्यान से देख रही है।
इसके पहले उसने बालकनी में ही चिड़ियों के लिए दाना-पानी भी ताज़ा कर दिया है। उसके सिर के ठीक ऊपर बाज़ार में बना एक बड़ा सा घोंसला टँगा हुआ है। उसे उसने साल भर पहले ही लाकर टाँगा था। नीचे एक कोने में दाना-पानी रखा हुआ है।
उसे पंछियों की चहचहाहट सुमधुर संगीत सी लगती है, इसीलिए उसने बालकनी को पंछियों का संगीत-घर बनाने का प्रयास किया था, जिसमें वह सफल हो गई। पंछी कुछ दिनों बाद ही अपनी संगीत महफ़िल सुबह-शाम बालकनी में ही ख़ूब जमाने लगीं। उनका सुरीला रुनझुन संगीत उसकी सुबह-शाम सुरमई बनाने लगीं।
ये पंछी पाँच-छह हफ़्ते में ही उससे इतना हिल-मिल गईं कि उससे कुछ फुट की दूरी पर ही बरतनों को चारों ओर से घेरकर दाना चुगने, पानी पीने लगीं। एक-दूसरे को इधर-उधर धकियाती फुर्र-फुर्र उड़ने बैठने लगीं।
पहले जहाँ हल्की आहट पर ही फुर्र से उड़ जाती थीं, वहीं बाद में उसकी हथेलियों पर भी बैठकर दाना चुगने लगीं। उसके कंधों, सिर पर भी उड़ने बैठने लगीं। पंछियों के इस कलरव में वह अपना सारा स्ट्रेस भूल जाती है, चंडीगढ़ की प्रोफ़ेशनल रेस की थकान, हाँफती, फूलती साँस से इन कुछ पलों में वह बहुत रिलैक्स महसूस करती है।
वह इसे स्वीट बर्ड म्यूज़िक थेरेपी भी कहती है, इसलिए सुबह इनके साथ समय ज़रूर बिताती है। लेकिन शाम को वह इनसे नहीं मिल पाती, क्योंकि देर रात से पहले घर आना हो ही नहीं पाता है।
मगर जब से लॉक-डाउन लगा, तब से वह स्वीट बर्ड म्यूज़िक थेरेपी दोनों टाइम लेने लगी है। लेकिन आज रात न जाने ऐसी कौन सी बात हुई है कि वह बालकनी में पंछियों के बीच होकर भी अकेली है, उदास है।
रोज़ की तरह न हथेली पर दाना लेकर अपनी संगीत मर्मज्ञ इन सहेलियों को बुला रही है, न ही सामने स्टाइलिश फ़ाइबर टेबल पर स्टैंड में टैबलेट लगाकर अपना फ़ेवरेट न्यूज़-पेपर ‘द हिंदू’ खोला है। जो नियमित आधा घंटा योग करती थी, वह भी नहीं किया।
हाँ, जिस तरह एक-टक उगते सूरज को देख रही है, वह मुद्रा ज़रूर त्राटक योग मुद्रा जैसी है। और हाँ! कई चिड़िया हमेशा की तरह उसके आस-पास आईं, उसके कन्धों, सिर पर बैठीं, फुर्र-फुर्र कर उड़ती-बैठती, चींचीं करती हुई चली गईं, जैसे यह पूछती हुई कि सहेली ऐसे गुमसुम इतनी अकेली क्यों बैठी हो?
मगर वह इन सहेलियों से अनजान बनी मूर्तिवत कहीं खोई-खोई सी बैठी ही रही। वह ऐसे अकेली तब से बैठी हुई है, जब आसमान में कई तारे दिख रहे थे, आसमान की चादर काली से कुछ-कुछ स्लेटी होने लगी थी, जो बदल कर अब चमकदार नीली हो गई है। सारे तारे ग़ायब हो गए हैं, नर्म धूप चटख होती जा रही है।
उसके ब्लैक टी का कप अभी भी आधा भरा हुआ है, फ़्लास्क में भी कम से कम दो कप चाय होगी। बालकनी में पछियों की आवाज़, हलचल के सिवा और कोई भी गति नहीं है, सोसाइटी की दूर तक जाती सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ है। मॉस्क लगाए इक्का-दुक्का सफ़ाई कर्मचारी दिखाई दे रहे हैं।
आस-पास के फ़्लैटों की बालकनी में भी हलचल शुरू हो गई है। इस हलचल ने मानो रिचेरिया का त्राटक योग भंग कर दिया है। वह उठी, चाय के बरतन ले जाकर किचन में रखे, फ़्रेश होकर एक गिलास लेमन जूस लिया और ड्राइंग-रूम में बैठकर टीवी देखने लगी है।
इसके पहले वह बेड-रूम में गई थी। वहाँ किंग-साइज़ बेड पर आसमानी कलर की साटन चादर अस्त-व्यस्त हालत में लपेटे, बेसुध सो रही पत्नी को देखा। उसे देखते हुए ही उसने जूस के कई घूँट पिए।
उसने अपने से पंद्रह साल छोटी जेंसिया से चार साल पहले लिवइन रिलेशन बनाए, और फिर जब डेढ़ साल पहले क़ानूनी प्रतिबंधों के चलते गुपचुप शादी की, तब जेंसिया से मुस्कुराती हुई जर्मन दार्शनिक लेखक विचारक, योहान वुल्फगांग फानगेटे की दो बातें कहीं, “मैं जो हूँ, वही हूँ, इसलिए मुझे वैसा ही स्वीकार करो जैसा मैं हूँ।”
उसने दूसरी बात कही थी, “हमें हमेशा वैसा ही रहना चाहिए जैसा होने का हमारा मन कहता है हमें हमेशा वही करना चाहिए जो करने को हमारा मन कहे।” फानगेटे की यह बातें उसके मन में कई हफ़्तों से उमड़-घुमड़ रही हैं।
जर्मन दार्शनिक की बात को ही एलजीबीटीक्यू, के मुक़द्दमे का निर्णय लिखते समय भी कहा गया था। छह सितंबर दो हज़ार अट्ठारह, वह दिन जब इस समूह के रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। तब जर्मन कवि मीडिया, इस समूह, सारे एलीट वर्ग में फिर से चर्चित हो गए थे, लेकिन जब रिचेरिया ने पत्नी से कही थी तब केवल वही सुन रही थी।
विदेशी लेखकों में गेटे उसके सबसे प्रिय लेखक हैं, देश में वात्स्यायन। इसके पीछे वह एक तर्क देती है कि “इन दोनों लेखकों में तुम हिप्पोक्रेसी ढूँढ़ती रह जाओगी, लेकिन वह कहीं नहीं मिलेगी।”
वात्स्यायन के लिए पत्नी से पूरे दावे से कहती है कि “इस महान पुरुष ने जितना बड़ा और जैसा काम किया है, दूसरा न उनसे पहले, न ही उनके बाद में कर पाया। सोचो इनके ज़माने में लोग कितने ख़ुश रहे होंगे। ऐसी मूर्खता के बारे में कोई सोचता भी नहीं रहा होगा कि प्यार करने वालों को सज़ा दी जाए।
“प्यार की हवा में झूमते लोग न होते, तो खजुराहो के अतीव सुंदर टेंपल कैसे बनते। वास्तु-कला की ऐसी आश्चर्यजनक रचना, वात्स्यायन दर्शन, प्रेम के उनके जैसे उपासक के बिना शिल्पकार समझ ही ना पाते कि उनको बनाना क्या है?
“उनकी छेनी-हथौड़ी पत्थर तोड़ती रहती, लेकिन अतिशय प्रेम में डूबी कोई बोलती सजीव सी मूर्ति न गढ़ पाती। वास्तव में प्रेम का अद्भुत, अकल्पनीय, अतुलनीय, अविस्मरणीय, आश्चर्य-जनक वास्तु-शिल्प का उत्कृष्ट नमूना, खजुराहो टेंपल के सिवा और कोई दूसरी इमारत हो ही नहीं सकती। दुनिया के सभी आश्चर्य में इसे नंबर एक पर रखा जाना चाहिए, लेकिन घपलेबाज़ों ने इसे आश्चर्यजनक रूप से आश्चर्य की लिस्ट से ही बाहर कर दिया है।
“वास्तव में इस समाज की यह सबसे बड़ी मूर्खता है। मूर्खता के कारण ही समाज में सब-कुछ के साथ दुख संत्रास सब है, लेकिन प्यार नहीं है। बताओ हम-तुम एक दूसरे को चाहते हैं, प्यार करते हैं, शादी करना चाहते हैं, लेकिन क़ानून की चाबुक हमारे बीच काँटे की तरह घुसी हुई है।”
रिचेरिया तब अतिशय ख़ुश थी, उसने जेंसिया के साथ ख़ूब जश्न मनाया था पब में, ख़ूब पैसा ख़र्च किया था, जब जजों ने छह सितंबर दो हज़ार अट्ठारह को अड़चन वाले सारे क़ानूनी काँटे निकाल फेंके थे।
हालाँकि दो दिन बाद ही उसकी पत्नी जेंसिया ने कहा था, “पहला बड़ा हर्डल तो हमने क्रॉस कर लिया है, लेकिन अभी बहुत से हर्डल्स क्रॉस करने हैं। अभी तो हमें मैरिज का राइट चाहिए। जिससे हमारी कम्युनिटी भी बच्चे अडॉप्ट कर सके या सरोगेसी के ज़रिये पेरेंट्स बन सकें।
“जॉइंट बैंक अकॉउंट खोल सकें, सर्विस वालों को ग्रेच्युटी पाने का राइट मिल सके। गवर्नमेंट जब-तक सोशल मैरिज एक्ट में संशोधन करके, क़ानून को जेंडर न्यूट्रल बना कर हमारी कम्युनिटी की मैरिज को क़ानूनी मान्यता नहीं देती है, हमें अन्य कम्युनिटी की तरह सारे राइट्स नहीं देती है, तब-तक हमारी सफलता, हमारी लड़ाई अधूरी।” यह कहती हुई वह बड़े प्यार से लटक ही गई थी उसके गले में बाँहें डाले हुए।
और जितनी गहराई से उसने लिप-लॉक किस की थी, उतनी ही गहराई से बोली थी, “तुम्हारे जैसा ग्रेट हस्बैंड पाऊँगी, ऐसा मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। एक्चुअली मैं चाहती क्या हूँ, यही ठीक से समझ ही नहीं पा रही थी। बस एक अँधेरी टनल में लड़ती-भिड़ती, गिरती-उठती, दौड़ी-भागी चली जा रही थी। बरसों भागते-भागते जब अचानक ही एक दिन तुमसे टकरा गई, तो तुम टनल के बाहर ले आई।
“बाहर तेज लाइट में तुम्हें देखते ही लगा अरे! मेरी लाइफ़ की लाइट तो तुम ही हो। तुम ही वह हो जो मेरा सपना, मेरे हृदय की आवाज़ हो, जिसे मैं इतने बरसों से जान-समझ ही नहीं पा रही थी। और बस मैं हमेशा-हमेशा के लिए हो गई तुम्हारे साथ, जिससे मेरे जीवन में कभी भी अँधेरा न हो।”
रिचेरिया सोच रही है कि आज भी यह कितनी इनोसेंट बातें करती है, अब इससे इस पॉइंट पर कैसे बात करूँ? यह कैसा फ़ील करेगी?
रिचेरिया इतनी परेशान, मानसिक रूप से इतनी उद्विग्न उस समय भी नहीं हुई थी, जब बाइस वर्ष पहले सन् दो हज़ार में ठंड से ठिठुरती हुई इस शहर में आई थी। शहर से ज़्यादा वह ख़ुद ठिठुर रही थी, काँप रही थी, क्योंकि उसके पास पर्याप्त गर्म कपड़े नहीं थे कि वह उन्हें पहन लेती, ख़ुद को गर्म रख पाती।
वो कठिन दिन वह आज भी भूल नहीं पाई है। जब याद आते हैं वो बीते कल तो उसकी आँखों में आँसू आ ही जाते हैं। क्या शानदार जीवन चल रहा था, बचपन ऐशो-आराम में बीत रहा था। ख़ूब बढ़िया पढ़ाई चल रही थी, वह पढ़ने में थी भी बहुत तेज़ थी। पेरेंट्स का सपना था कि वह डॉक्टर बने, लेकिन उसका नहीं।
फिर भी उसने मेहनत ईमानदारी से पढ़ाई की, एम.बी.बी.एस. में एडमिशन भी हो गया, लेकिन कुछ महीने बाद ही वह हुआ जिसकी उसने, उसकी माँ ने कल्पना भी नहीं की थी, सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है।
फ़ादर उम्र के साथ-साथ और भी ज़्यादा उन्मुक्त बिंदास जीवन शैली पब, क्लब, सब कुछ एंजॉय करना चाहते थे। लेकिन मदर इसके उलट और ज़्यादा परंपरावादी होती जा रही थीं। दोनों विपरीत ध्रुवों की ओर बढ़ते जा रहे थे, उनके बीच दूरी लम्बी ही होती जा रही थी। इस मुद्दे पर दोनों में रोज़ झगड़ा होना दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
और उस दिन भयानक रूप में सामने आ गया, जब फ़ादर एक ऐसे क्लब के मेंबर बने, जिसमें केवल कपल ही जा सकते थे। हर वीक-एंड पर लेट-नाइट ग्रैंड पार्टी होती थी। फ़ादर के अत्यधिक प्रेशर पर मदर पहली बार गईं। वहाँ उन्होंने जो कुछ भी देखा, जो भी हो रहा था, और जो होने वाला था उसे जानकर वह बर्दाश्त नहीं कर पाईं, पार्टी बीच में ही छोड़ कर वापस चल दीं। इससे फ़ादर इस बुरी तरह नाराज़ हुए कि रास्ते भर उनसे लड़ते हुए घर पहुँचे।
और वह तूफ़ान खड़ा किया, जिसकी मदर और उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। रिचेरिया ने उन्हें मदर पर हाथ उठाते हुए देखा तो बीच में आकर पुलिस बुलाने की धमकी दी, इससे उन्होंने मदर को तो नहीं लेकिन उसे दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए।
इससे ग़ुस्सा होकर उसने पुलिस बुला ही ली। पुलिस के आने से मामला शांत तो हुआ, लेकिन उसके जाते ही उन्होंने बेहद कड़ाई से डाइवोर्स की बात कह दी।
तब ग़ुस्से से भरी उसकी मदर ने भी उसी कड़ाई से कह दिया कि “अब यही एक रास्ता है भी। तुम न कहते तो यह मैं ख़ुद कहती, क्योंकि मैं उन औरतों की लाइन में खड़ी नहीं हो सकती, जो एंजॉयमेंट के लिए अपने, पराए हस्बैंड के अंतर को मिटाकर अदर पर्सन से रिलेशन बनाएँ।
“और न ही उस पर्सन को अपना हसबैंड बनाए रह सकती हूँ, जो अपने एंजॉयमेंट के लिए अपनी वाइफ़ को पार्टी के नाम पर लोगों के बीच उछालता रहे, उसे दूसरे के हस्बेंड से फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए कहे, ख़ुद दूसरे की वाइफ़ से बनाने में लगा रहे।”
बस इसके साथ ही आनन-फ़ानन में डायवोर्स हो गया। उसकी मदर ने यह भी कहा कि “ऐसे इंसान के घर में रहना, पैसे लेना मेरे लिए गंदगी में रहते हुए गंदगी लेने जैसा है।” और वह उसको लेकर अलग किराए के मकान में रहने लगीं।
रिचेरिया भी फ़ादर की वास्तविकता जानने के बाद उनसे घृणा करने लगी थी। वह मदर के साथ एक छोटे से कमरे में भी शान्ति महसूस करती थी। मदर ने नौकरी शुरू की, कि ज़िन्दगी किसी तरह आगे बढ़े। लेकिन यह इतना आसान था क्या?
उनकी कमाई से खाना-पीना, मकान का किराया आदि तो निकलने लगा, लेकिन उसकी पढ़ाई का ख़र्च निकलना नामुमकिन हो गया। फ़ीस नहीं जमा कर पाने के कारण वह सेकेण्ड ईयर का एग्ज़ाम नहीं दे पाई। पढ़ाई बंद हो गई। उसे डॉक्टर बनाने का माँ का सपना, और अपना अच्छा करियर बनाने का उसका सपना, पत्थर पर गिरे शीशे की तरह चूर-चूर हो गया। जिसके तीखे नुकीले टुकड़े आज भी उसके हृदय में चुभते हैं, उसे रह-रह कर दर्द देते हैं।
उसकी मदर उस दिन ऑफ़िस नहीं गईं। दिन-भर रोती रहीं। उसने भी स्वयं पर बहुत कंट्रोल किया था, लेकिन आँसू निकल ही आ रहे थे। फिर भी उसने मदर को समझाया कि कोई बात नहीं, नए सिरे से कैरियर बनाएँगे। लेकिन अगले दिन जब उसकी आँख खुली तो किचन में मदर को फँदे से लटकते देखा।