साँसत में काँटे - भाग 4 (अंतिम भाग) Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साँसत में काँटे - भाग 4 (अंतिम भाग)

भाग -4

उसके अब्बू कुछ देर सोचने के बाद बोले, “हमारी यही तो ग़लती, ग़लतफ़हमी है कि, हम जिन दहशतगर्दों को अपना फ़रिश्ता समझते रहे, वो एक दरिंदे से ज़्यादा और कुछ भी नहीं हैं, जो अपनी दरिंदगी से मज़हब को बदनाम कर रहे हैं, और हम-लोग आँख मूँद कर उनको मदद करते आ रहे थे। 

“जिन्हें हम काफ़िर समझ रहे हैं, उनके बीच जाने से डर रहे हैं, मुझे मालूम है कि हम उनके बीच इन दरिंदों से ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे। हमें वह कुछ भी नहीं होने देंगे। तुम जम्मू, दिल्ली की बात छोड़ो पूरे मुल्क में हर मुस्लिम काफ़िरों के बीच में सबसे ज़्यादा सुरक्षित है, तरक़्क़ी कर रहा है। 

“यहाँ काफ़िरों के साथ इतने ज़ुल्म हुए हैं, वो दिल्ली देश-दुनिया की तमाम जगहों में जा बसे हैं, हम हमेशा उनके ख़िलाफ़ साज़िश करते रहे लेकिन मैं अब भी आँख मूँद कर यक़ीन करता हूँ कि जब हम उनके बीच में होंगे तो वो हमें कोई नुक़्सान नहीं पहुँचाएँगे, बल्कि हमारी मदद ही करेंगे। 

“इज़्ज़त लुटने के बाद अब हम यहाँ नहीं रह सकते, जैसे भी हो एक-दो दिन में छोड़ कर चल देंगे। अभी तो उन शैतानों ने हमारी अस्मत ही लूटी है, एक ना एक दिन वह हमारी जान भी ले लेंगे।” 

उसके अब्बा की बात सबने मान ली और अगले दिन पड़ोसी मियाँ ज़ाकिर को अपना घर बेच देना और जो पैसा मिले उसे लेकर चल देना निश्चित हुआ। लेकिन शैतान तो जैसे उनके सिर पर सवार हो चुका था। उसी दिन वह चारों फिर आ धमके, गोश्त चावल की दावत उड़ाई, लाख मिन्नत के बावजूद सारी महिलाओं को जानवरों की तरह रौंदा। 

और भोर होते-होते जाते समय उसके छोटे भाई हमज़ा को भी साथ लेते गए। परिवार रोता रहा, हाथ-पैर पकड़ता रहा, उसके अब्बू ने अपनी टोपी, और कुछ ही देर पहले एक बार फिर अस्मत तार-तार होने के बावजूद उसकी अम्मी ने उनके पैरों पर अपनी चुन्नी डालकर गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उसने राइफ़ल की बट उन दोनों के सिर पर मार दिया, उनका सिर फट गया, वह दोनों ही बेहोश हो गए। 

उन्हें जब होश आया तो बाहर घना कोहरा छाया हुआ था। हर तरफ़ सन्नाटा था। लड़कों ने उनकी मरहम पट्टी करवाई थी। पूरे घर में मातमी सन्नाटा छाया हुआ था। मोहल्ले में यह बात फैल चुकी थी कि दहशत गर्द फ़ारूक़ अब्दुल्लाह के घर आते-जाते हैं। हमज़ा के जाने के सदमे से वह उबर भी न पाए थे कि एक दिन बाद ही सेना आ धमकी। 

सेना को ख़ुफ़िया सूचना मिल चुकी थी कि दरिंदे आतंकियों का फ़ारूक़ के घर आना-जाना लगा हुआ है, उनका एक बेटा भी आतंकी बन चुका है। पहले तो फ़ारूक़ ने साफ़ इनकार किया। उन्हें दहशतगर्दों का डर था कि यदि उन्हें पता चलेगा कि उन्होंने सेना को बात बताई है तो वह हमज़ा को मार डालेंगे। लेकिन सेना की सख़्ती के आगे उनका झूठ नहीं टिक सका, उन्होंने सच बता ही दिया। 

परिवार अब दहशतगर्दों और सेना के बीच दो पाटों में फँस गया था। अब वहाँ से न निकल सकते थे न ही कुछ और कर सकते थे। उनकी एक-एक साँस साँसत में पड़ी थी। काम-धंधा जो भी था सब देखते-देखते चौपट हो गया था। 

फ़ारूक़ जब घर की औरतों को देखते तो उनकी आँखों में ख़ून के आँसू आ जाते कि उनकी बेटियों और बीवी की इज़्ज़त को दहशतगर्दों ने उनके ही घर में घुसकर उनके, लड़कों के, सामने ही बार-बार तार-तार किया है। 

उनको लगता जैसे कि वह सब उनके सामने बेपर्दा ही खड़ी हैं, वह उनकी तरफ़ नज़र उठा कर देखने की भी हिम्मत न कर पाते। शर्म से ज़मीन में गड़ जाते। उन्हें अपना पूरा घर सेना की नज़रों में घिरा हुआ दिखता। 

एक दिन मुँह अँधेरे उनका एक पड़ोसी अशरफ़ वाणी छुपता-छुपाता हुआ आया। आते ही उसने सबसे पहले घर का दरवाज़ा बंद किया। और फ़ारूक़ मियाँ को दहशतगर्दों का पैग़ाम सुनाया कि तुमने सेना को हमारे बारे में बता कर बहुत बड़ा गुनाह किया है, कुफ़्र किया है, अल्लाह ता'ला के काम में रुकावट डाली है। तुमसे इसका हिसाब लेकर रहेंगे। देखते हैं सेना कब-तक वहाँ मँडराएगी। 

अशरफ़ जल्दी से दहशतगर्दों का पैग़ाम देकर तुरंत घर भाग गया। वह सेना के डर से थर-थर काँप रहा था, एक तरफ़ सेना तो दूसरी तरफ़ दहशतगर्दों की राइफ़लें उसे अपनी ही तरफ़ घूमी दिख रही थीं। वह किसी भी सूरत में नहीं चाहता था कि भूलकर भी वह किसी भी तरह से सेना की नज़र में आए। 

फ़ारूक़ को अब अपने पूरे परिवार के ख़ात्मे का डर सताने लगा। पूरा परिवार रोने लगा कि हो न हो दहशतगर्दों ने उसके बेटे हमज़ा को मार दिया होगा। 

उसने सोचा कि जब मरना ही है तो एक कोशिश और करते हैं, सेना को बताते हैं और उससे कहते हैं कि, वह हमें यहाँ से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दे। कम से कम परिवार के बाक़ी बचे सदस्य तो सुरक्षित रहेंगे। 

लेकिन उनकी बीवी ने कहा कि, “हो सकता है मेरा हमज़ा अभी ज़िन्दा हो, तुम अशरफ़ के मारफ़त ही दहशतगर्दों तक पैग़ाम भेजो कि, हम-सब तुम्हारे साथ हैं, तुम हमारे बेटे को मारो नहीं, तुम हमें कोई नुक़्सान नहीं पहुँचाओ, हमने सेना को कुछ बताया नहीं है। 

“सेना ने जो भी पता किया है, अपने लोगों से पता किया है। हमारा परिवार तो हमेशा से मुजाहिदों की मदद करता रहा है। ख़ानदान के कई सदस्य मुजाहिदों के साथ काफ़िरों को क़त्ल करते रहे हैं, काफ़िरों के साथ लड़ते हुए ही शहीद हुए हैं। तुम लोग हमें सेना के घेरे से बाहर निकाल लो, हम हमेशा तुम्हारे लिए काम करते रहेंगे। बेटा हमज़ा तो तुम्हारे साथ है ही।” 

इस बात पर पूरे परिवार में बड़ी माथा-पच्ची हुई। आख़िर एक योजना बनी और अशरफ़ के मारफ़त पैग़ाम आतंकियों तक पहुँचा दिया गया। आतंकियों ने भी जवाब दे दिया कि, अल्लाह के लिए जिहाद के रास्ते पर चलने को तैयार हो गए हो तो हम तुम्हें वहाँ से निकाल लाएँगे। 

यह पैग़ाम सुनकर फ़ारूक़ के परिवार ने बड़ी राहत की साँस ली। अगले ही दिन अशरफ़ ने बताया कि अबकी जुम्मे को मस्जिद में नमाज़ के लिए बड़ी संख्या में लोग आएँगे। यह सभी नमाज़ी नमाज़ के बाद सेना पर पत्थरबाज़ी शुरू कर देंगे। इसी बीच वह लोग तुम्हें मौक़ा पाते ही निकाल ले जाएँगे, तुम लोग भी तैयार रहना। 

पूरा परिवार तैयार हो गया। जुम्मे का इंतज़ार होने लगा। जिसमें बहत्तर घंटे बाक़ी थे। उन्हें यह बहत्तर घंटे बहत्तर दिनों से लंबे लगे और नमाज़ के बाद जब योजनानुसार लोगों ने सेना की टुकड़ी पर अकारण पत्थरबाज़ी शुरू कर दी, तो इसी बीच वह दहशतगर्द उनके घर आ धमके और फ़ारूक़ की छद्म योजना का शिकार हो गए। 

सेना की एक टुकड़ी आस-पास पहले से लगी हुई थी। उसने दहशतगर्दों को घेर लिया। सेना से उनकी जो मुठभेड़ उनके घर के बाहर ही होनी थी, दहशतगर्दों के उनके घर में घुस जाने के कारण मामला बिगड़ गया। 

छह दहशतगर्द थे, उनमें उनका बेटा हमज़ा भी था, जो अब पूरी तरह से ट्रेंड आतंकवादी बन चुका था। बाहर से जब सेना ने उन्हें हथियार डालने के लिए कहा तो उन सबने घर के अंदर से ही गोलाबारी शुरू कर दी। 

फ़ारूक़ ने हमज़ा से कहा, “बेटा सेना बहुत बड़ी है, हथियार डाल दो, सब-लोग बच जाएँगे, तुम अपने परिवार में मिल गए हो। यह दहशतगर्द भी गिरफ़्तार हो जाएँगे।” उसको इस बात का एहसास नहीं था, कि उसका हमज़ा अब उसका बेटा नहीं रहा, उसका ब्रेनवाश हो चुका है, वह जिहाद के रास्ते पर जा चुका है, उसके दिमाग़ में बस एक ही मक़सद, एक ही बात है, जिहाद करना और शहीद होने पर उसे जन्नत में बहत्तर हूरें मिलेंगीं, और जो भी उसके रास्ते में रुकावट बनेगा वह उसका, मज़हब का सबसे बड़ा दुश्मन होगा। 

सेना और दहशतगर्दों के बीच फ़ायरिंग चल ही रही थी कि हमज़ा को अपने अब्बा की बात इतनी नागवार गुज़री कि उसने राइफ़ल की नली उनकी तरफ़ ही घुमा दी और क्षण भर में उसके अब्बा और दोनों भाई वहीं ढेर हो गए। दोनों बहनें बीच में आईं तभी सेना की ओर से हो रही गोलियों की बौछार का वो शिकार हो गईं। 

इसी बीच सेना ने आख़िर कई ग्रेनेड अंदर फेंक दिए और एक सेकेण्ड में सब-कुछ समाप्त हो गया। उसका सारा परिवार, दहशतगर्द वहीं ढेर हो गए। घर भी भरभरा कर गिर गया। वह भी उसी के नीचे दब गई। छत का एक बड़ा टुकड़ा उसके ऊपर तिरछा गिर कर उसका कवच बन गया। वह उसी के नीचे बच गई। 

और आज दस साल बाद भी रक्त-चौक के शिल्पी को अपने हाथों से सज़ा देने के लिए भटक रही है। झंडारोहण के बाद जोकर और भीड़ जब आगे चली तो वह भी उसी के पीछे चल दी, लेकिन तभी उसे ढूँढ़ते हुए पहुँचे उसके दो रिश्तेदार उसे पकड़ कर घर ले गए। दवा दी, फिर बेड पर लिटा कर उसी से उसे बाँध दिया। वह चीखती रही मुझे छोड़ो, मैं उसे सज़ा देकर तुरंत लौट आऊँगी, छोड़ो . . . छोड़ो मुझे . . .

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