भाग -4
वह ऐसे बोलती चली जा रही थी, जैसे बहुत दिन से भरी बैठी थी और उसे छेड़ दिया गया। निखत और खुदेजा ने कल्पना भी नहीं की थी कि वह इतना कुछ जानती ही नहीं बल्कि बोलेगी भी। दोनों अंदर ही अंदर खौलने लगी थीं। लेकिन ऊपर से बिल्कुल नॉर्मल दिखने का प्रयास करती हुई उसकी बातों को ऐसे समझती सुनती रहीं, जैसे उन्हें बहुत अच्छी लग रही हैं। लेकिन अंततः माहौल कुछ तनावपूर्ण सा होने लगा। डोर कहीं हाथ से छूट न जाए इसलिए निखत ने बड़ी चालाकी से कहा, “सुनो बड़ी भारी-भारी बातें हो गई हैं, चलो एक-एक आइसक्रीम और खाते हैं।”
लेकिन उसका मन उखड़ चुका था, बार-बार कहने पर भी, कुछ भी खाने को तैयार नहीं हुई। जब तीनों अपने घरों को चलीं तो फिर से आपस में ऐसे बातें करने लगीं जैसे कि कुछ देर पहले तक तनाव जैसी कोई बात थी ही नहीं, जबकि भीतर ही भीतर तनाव में तीनों थीं।
उस दिन अपने घर फोन पर बातें करते समय उसने पेरंट्स से सारी बातें बताईं, पिता ने कहा, “तुम केवल अपने काम से मतलब रखो, ऑफ़िस के बाक़ी लोग जैसे उनसे दूर रहते हैं तुम भी अलग रहो। ऐसे धर्मान्धियों से बहस करने की ज़रूरत नहीं है।”
उसे भी लगा कि निखत, खुदेजा से फ़्रेंडशिप करके ग़लती की। दोनों की हरकतें बहुत डाउटफ़ुल हैं। ऑफ़िस में सभी लोगों के बीच ग़लत मैसेज अलग कन्वे हुआ। सभी ने मुझसे भी उतना ही बड़ा गैप बना लिया है, जितना उन दोनों से बनाया हुआ है। मुझे अब इन सारी चीज़ों को बदलना पड़ेगा। भले ही समय लगे, लेकिन यह ज़रूरी है। नहीं तो इस तरह की बहस किसी दिन बड़ी प्रॉब्लम खड़ी कर देगी।
उसकी बार-बार की कोशिश को निखत, खुदेजा की रहस्यमयी मुस्कानें, बटर कोटेड बातें बार-बार कमज़ोर करती रहीं। ऐसे ही एक दिन निखत ने अपने एक और बेस्ट फ़्रेंड जयंत अवस्थी से उसे परिचित कराया। निखत की तरह ही जयंत भी बहुत जल्दी ही उसके बहुत क़रीब आ गया। उसकी सनातनी धर्म से प्रभावित लाइफ-स्टाइल उसके ऊपर बड़ी तेज़ी से हावी होती चली गई।
उसे बार-बार महसूस होता कि यह तो उन्हीं बातों विचारों को मानता, आचरण में लाता है जिसे वह मानती है। उसकी इस सोच के चलते नज़दीकियाँ इतनी तेज़ी से बढ़ीं कि वह जयंत के साथ लिव इन में रहने लगी। जैसे-जैसे जयंत क़रीब आया निखत खुदेजा से गैप बढ़ता गया। ऑफ़िस में भी लोगों ने उसके इस गैप को देखा, महसूस किया।
लिव-इन में रहते हुए कुछ दिन ही बीते थे कि एक दिन उसकी माँ ने फोन पर एक-दो दिन की छुट्टी लेकर घर आने के लिए कहा, तो वह बोली, “अम्मा वर्क-लोड बहुत है, छुट्टी मिल पाना मुश्किल है, क्या काम है बताओ न?” उसके बार-बार कहने पर माँ ने बताया कि, एक जगह उसकी शादी की बात चल रही है। लड़के की फोटो भेज रही हूँ, देख कर बताओ तुम्हें पसंद है या नहीं, लड़के को तुम्हारी फोटो पसंद है। तुम्हें देखने आना चाहते हैं।”
यह सुनते ही उसने कहा, “अम्मा इतनी जल्दी मैं शादी नहीं करूँगी। अभी नौकरी करते हुए एक साल भी नहीं हुआ है। मुझे ठीक से अपना कैरियर बना लेने दीजिए।”
माँ ने समझाने की बड़ी कोशिश की, कि बेटा लड़का और परिवार अच्छा मिल गया है, इस तरह मना करना अच्छा नहीं है। अच्छा संयोग बार-बार नहीं आता। लेकिन वह जयंत से अलग होने की सोच कर ही विचलित हो उठती इसलिए अपनी ज़िद पर अड़ी रही। पिता जी ने भी समझाने की कोशिश की लेकिन वह भी असफल रहे। यह सब कई दिन चला।
फिर एक दिन माँ ने कहा, “देखो बेटा, तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हूँ। तुम्हारी दोनों बहनों की समय से शादी हो गई, दोनों अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों के साथ कितना ख़ुश हैं यह तुम भी जानती हो। समय से शादी, बच्चे हो जाना अच्छे ख़ुशहाल जीवन के लिए ज़रूरी है। शादी कर लेने से कैरियर थोड़ी न बर्बाद हो जाता है।”
लेकिन वह फिर भी नहीं मानी क्योंकि वह जयंत को जीवनसाथी मान चुकी थी, उसे छोड़ना उसके लिए असंभव था। बातों के बीच ही उसने सोचा कि जयंत के बारे में बता देना ही ठीक रहेगा। उनसे कहती हूँ कि जयंत भी बहुत अच्छा है। बीस बिसवा का सरयूपारी ब्राह्मण है, बस उसका रंग मुझसे थोड़ा दबा हुआ है। उसका साँवला रंग मुझे बहुत ख़ूबसूरत लगता है। बाक़ी सब ठीक है। यह सोचते ही उसने उसी दिन जयंत से सारी बातें बता कर कहा, “अब हमें शादी कर लेनी चाहिए। मैं पेरेंट्स को ज़्यादा दिन तक वेट नहीं करा सकती।”
लेकिन वह बड़े आश्चर्य में पड़ गई कि शादी का नाम सुनते ही जयंत के चेहरे की रंगत ही बदल गई। बातों को दोहराने पर उसने कहा, “रुको, शादी की इतनी भी क्या जल्दी है। आजकल कहीं कोई इतनी जल्दी शादी करता है। अपने पेरेंट्स को समझाओ। फिर मुझे भी तो अपने पेरेंट्स से बात करनी पड़ेगी। वो लोग भी परम्परावादी हैं।”
जल्दी ही शादी की बात दोनों के बीच तनाव का कारण बनने लगी। शादी के लिए वह जितना दबाव डालती जयंत उतना ही ज़्यादा टालमटोल करता। बात ज़्यादा आगे बढ़ी तो जयंत ने कहा, “ठीक है, मैं अपने पेरेंट्स से बात कर लेता हूँ। तुम अपने पेरेंट्स से बात करके बताओ।”
उसने अगले दिन जैसे ही पेरेंट्स से बात की वैसे ही मानों घर में भूचाल आ गया, वो किसी भी सूरत में इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हुए, वह भी जयंत के लिए अडिग रही। बात इतनी बढ़ी कि पेरेंट्स ने उसे कुल-ख़ानदान का कलंक बताते हुए रिश्ता ही ख़त्म कर दिया। इससे वह बहुत आहत हुई। जयंत के घर से भी निराशा ही मिलेगी वह यही सोचती रही, लेकिन दो दिन बाद ही जब जयंत ने उससे कहा, “मेरे पेरेंट्स हमारी शादी के लिए तैयार हैं। तुम से मिलना चाहते हैं। इसलिए तुम्हें संडे को मेरे साथ घर चलना है।” तो यह सुनकर वह बहुत ख़ुश हो गई।
लेकिन जब संडे को उसके घर गौतम बुद्ध नगर पहुँची, और वहाँ जो देखा, उससे उसके होश उड़ गए। घर के अंदर पहुँचते ही उसे बंद कर लिया गया। वहाँ जयंत के माँ-बाप, पारिवारिक सदस्यों के नाम पर एक मौलवी, उसके कुछ दोस्त थे। जिसे वह जयंत समझ कर अपना सर्वस्य सौंंप चुकी थी, वह वास्तव में जुबेर अंसारी था। कुछ मिनट ही हुआ कि अंदर से निखत, खुदेज़ा भी आ गईं। निखत बड़े ही अंदाज़ के साथ बोली, “वाक़ई हम बहुत ख़ुशनसीब हैं, हमारी प्यारी फ़्रेंड हमारे घर आई है।”
वह उन सबको हक्का-बक्का देखती रह गई। उसे कुछ कहने सुनने-समझने का अवसर दिए बिना ही, तमंचे के बल पर उसका आनन-फानन में जबरन धर्माँतरण किया गया। इस्लाम क़ुबूल करवा कर जुबेर से निकाह करवा दिया गया। उसके विरोध करने पर सबसे पहले निखत और खुदेजा ने उसकी लात-घूँसों से जमकर पिटाई की। खाँटी आवारा-बदमाश लड़ाकी औरतों की तरह उसे, उसके धर्म-संस्कृति को गन्दी-गन्दी गालियाँ दीं यह कहते हुए कि, “इस्लाम के बारे में बहुत बोल रही थी न, बुला लो अपने करोड़ों देवी-देवताओं को, बचा लो अपने को।” उसका मोबाइल छीन कर तोड़ दिया।
जबरन निकाह के बाद उस घर में उसे बंद रखा गया और जुबेर रोज़ उसके साथ हैवानियत करता रहा। उसे हमेशा बाँधकर रखा जाता। उसी घर में उसने जुबेर उसके दो साथियों, मौलवी को भी निखत और खुदेजा के साथ मांस-मदिरा खाते-पीते, अय्याशी करते भी देखा। बाहर हमेशा सिर से लेकर पैर तक बुर्क़े में ढंकी रहने वाली दोनों कामुकता अय्याशी की विकृत खोल में पूरी की पूरी ढंकी-मुंदी मिलीं। वह पूरा घर उसे बेहद शातिर जेहादी षड्यंत्रकारियों का अड्डा मिला।
एक से बढ़कर एक संदेहास्पद लोग आते। तरह-तरह की योजनाओं पर चर्चा होती। किसको कौन सा काम सौंपा गया था, वह कितना कर पाया, किसे कितना पैसा दिया गया था, वह काम को ठीक से कर रहा है या नहीं, विभिन्न तरह की बातें होतीं। यह जानकर उसके होश उड़ गए कि उनके तमाम संगठन मिलकर देश-दुनिया में अपने समुदाय के आख़िरी व्यक्ति तक यह संदेश पहुँचाने में लगे हुए हैं कि जो जहाँ भी है, वह चाहे किसी भी उम्र का है, वह हिंदू, सिक्ख, ईसाई आदि धर्मों की किसी भी उम्र की महिला को अपने जाल में फँसाए, इसके लिए वह उसी महिला के धर्म का होकर उससे मिले। जल्दी से जल्दी निकाह कर बच्चे पैदा करे। इस दौरान भी दूसरी लड़कियों महिलाओं पर निगाह रखे।
अपने समाज की लड़कियाँ, महिलाएँ भी इसी तरह से उन समुदाय की महिलाओं को चंगुल में फँसाएँ, उनका परिचय अपने समुदाय के पुरुषों से करवाएँ, उनके बीच दोस्ती क़ायम करवाने में मदद करें। यह सुनकर भी वह हैरान परेशान रह गई कि, पहले समाचारों आदि में जो सुना करती थी वह सही है कि, विदेशों से आने वाली अकूत धन-राशि जो ज़्यादातर गल्फ कंट्रीज़ से आती है, उसका पूरा प्रयोग यहाँ पर लोगों का येन-केन प्रकारेण धर्माँतरण, मस्ज़िद, मदरसा, मज़ार, क़ब्रिस्तान बनाने के लिए हो रहा है।
इस काम में लगे लोगों को ख़ूब पैसा दिया जा रहा है। अगर वह क़ानून के शिकंजे में फँसते हैं तो उसे पूरी क़ानूनी मदद देने की चाक-चौबंद व्यवस्था है। उसे भगाने-छुपाने में पूरा समुदाय एकजुट होकर खड़ा रहता है। इन सब के पीछे इनका एकमात्र उद्देश्य भारत राष्ट्र को समाप्त कर इसे इस्लामी राष्ट्र में परिवर्तित करना है।