मणिपुर ABHAY SINGH द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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मणिपुर

राहुल गांधी और अखिलेश यादव की रॉकिंग स्पीच के बीच इस महत्वपूर्ण भाषण को सुना जाना चाहिए।
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भारत का इतिहास बाहरी आक्रमणों से भरा पड़ा है। और इसका इपीसेन्टर, उत्तर पश्चिम के खैबर दर्रे से जुड़ता है।

जहां से आर्य आये, सिकन्दर आया, बैक्ट्रियन, पार्थियन, शक कुषाण हूण और मुसलमान आये।

और जिनकी कुंठा मध्यकालीन इतिहास से जुड़ी है, वे सुरक्षा के नाम पर इस्लाम और पाकिस्तान को कोसते हुए दिन गुजारते है।
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पर जिनकी भविष्य पर नजर है, जो मौजूदा भू राजनीतिक हालात को समझते है, वे उत्तर पश्चिम नही, उत्तर पूर्व की बात करते है।

जहां से इतिहास में मात्र दो बार हमला हुआ।
पहला हमला, आजाद हिंद फौज और जापानियों की संयुक्त टुकड़ियों ने किया।

इम्फाल, मणिपुर के इलाकों में म्यांमार की तरफ से हमला, इतिहास की अकेली नजीर थी। फिर उत्तर पूर्व से दूसरा हमला, 1962 में अरुणाचल याने नेफा की ओर से चीन हुआ।

और तब पहली बार, हिमालय हमारी सुरक्षा में नाकाम रहा। जब आप देख चुके हों, कि नैचुरल बैरियर सुरक्षा में नाकाम रहे, तो ह्यूमन बैरियर बनाने की जरूरत होती है।
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ह्यूमन बैरियर सिर्फ सेना नही होती। यह उन इलाकों के रहवासी होते हैं।

ऐसे लोग, जिनके भीतर राष्ट्रीयता की उद्दाम भावना हो। जो मन प्रण से देश के साथ, बिना शको शुबहा के, हृदय से जुड़े हों।

जो ऐसे किसी अवसर पर, सूचना दें, और दुश्मन के खिलाफ मिलिशिया बन जाये।

इतिहास गवाह है कि हिटलर की फौजो को रूसी ग्रामीणों ने नाकों चने चबवा दिए। खेत जलाए, कुएं जहरीले कर दिए, और थकी अधमरी जर्मन फौज को रूसी सेनाओं ने ऐसी मात दी, कि वह मानव सँघर्ष के सुनहरे हर्फ में दर्ज है।

पर उतनी दूर भी मत जाइये।

1965 से लड़ाई में कश्मीरियों की वफादारी के किस्से खोजिए, पढिये। पाकिस्तानी घुसपैठियों से उनके संघर्ष के किस्से जानिए। दिल बाग बाग न हो जाये, तो कहना।

फिर मुक्तिवाहिनी ने इंडियन आर्मी से मिलकर, पाकिस्तान की फौज को कैसी धूल चटाई, यह भी इसी धरती की दास्तान है।
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अब चीन से लगी सीमाये देखिए। कश्मीर से मणिपुर तक, हर राज्य में एथनिक अंसतोष है।

उत्तर पूर्व में जातीय संघर्षों का इतिहास रहा है।
केंद्र की हर सरकार उन्हें शांत, समरस रखने का प्रयास करती रही है। अलग राज्य दिए, ऑटोनोमस काउंसिल्स दी और 70 साल में धीरे धीरे उन फाल्ट लाइंस को भरा।

पहली बार ऐसा हुआ है, जब वहां सरकारी स्तर पर अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का खेल हो रहा है। मणिपुर की समस्या सिर्फ इतनी है कि 55% मैतेई के वोट जिसे मिले..,

तो इस छटांक भर के उसकी सत्ता आ जायेगी, लम्बे समय तक बनी रहेगी। इसलिए उन्हें खुली छूट मिली हुई है। तो प्रतिक्रिया दूसरी तरफ से भी है।
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उचित होता कि यह खेल, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश में सीमित रखा जाता। चाइनीज बार्डर स्टेट को, उत्तर पूर्व को बक्श देते।

आदत से मजबूर योद्धा, वही दांव हर जगह चलता है, जिससे उसने ज्यादातर युद्ध जीते थे। तो भाजपा आदत से मजबूर है।

दूसरे दांव उसे आते नही। इस अक्षमता की कीमत मणिपुर चुका रहा है। मगर उसकी लोकेशन चेतावनी देती है, कि यह मसला महज एथनिक क्लैश का नही, राष्ट्रीय सुरक्षा का बन सकता है।

सरकारों को वहां सस्ती और घटिया राजनीति के युजुअल तरीकों की जगह, नई नीति, नए चेहरे के साथ शांति और निवारण करना चाहिए।
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और इसकी शुरुआत मणिपुर पर बात करने, और मणिपुर के प्रतिनिधियों की सुनने से होनी चाहिए।

उनका एंगर देखिए, रिजेंटमेंट देखिए, कष्ट देखिए।

और फिर जो जरूरी हो, वह कीजिए।