सिक्किम यात्रा-२
उठ गये हैं पहाड़
गगनचुंबी हो गये हैं,
आकाश से कुछ कह
उतर रहे हैं धीरे-धीरे।
उतार लाये हैं गंगा
उतार लाये हैं तिस्ता,
लोग अपनी अपनी समझ के अनुसार
कर रहे हैं उन्हें प्यार।
बन रही हैं सड़कें
टूट रही हैं राहें,
हमारे साथ-साथ
खड़े लग रहे हैं पहाड़।
धुँध तो है
वह उड़ जायेगी,
निर्मल गगन में फिर
रश्मियां दिखने लगेंगी।
गंगटोक से हम अगले पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं।
हमें रवांगला जाना है।ड्राइवर कहता है आप चाय बगीचा और नामची का चार धाम देखते जाइये। दर्शनीय स्थल हैं। चाय बगीचा सुन्दर है,ढलान लिए हुये। वहाँ पारंपरिक वेशभूषा लेकर पर्यटक फोटो खींचा रहे हैं।पारंपारिक वेशभूषा को "खो" कहते हैं। चार धाम में बद्रीनाथ, पुरी,द्वारका, रामेश्वर के प्रारूप देखे जा सकते हैं। शिवजी की विशालकाय मूर्ति भी यहाँ स्थापित है। परिसर स्वच्छ और सुन्दर है। वहाँ से रवांगला के लिए चल पड़े। रवांगला में बौद्ध मठ है। भगवान बुद्ध शान्ति अवस्था में विराजमान हैं। वहाँ बैठे भिक्षु से मैंने एक प्रश्न पूछा। पूछा ज्ञान प्राप्त के बाद भगवान बुद्ध पत्नी यशोधरा से मिलते हैं। उनके बीच वार्तालाप होता है। लेकिन उसके बाद यशोधरा का कहीं उल्लेख मिलता है क्या? मैंने तो नहीं सुना है।भिक्षु बोले," उसके बाद उनका कोई उल्लेख नहीं है।"
वहाँ घास पर लेट कर मैंने फोटो खींचाई। रवांगला बौद्ध मठ परिसर बड़ा है अतः वहाँ तीन-चार इलेक्ट्रिक रिक्शे चलते हैं। किराया ३०० रुपये प्रति रिक्शा है।
खाना खाकर हम पेलिंग के लिए रवाना हुये। कुछ दूर जाकर सड़क बन्द मिली। सड़क पर पहाड़ का मलवा आ गया था। सड़क चौड़ीकरण के कारण यह टूट-फूट अधिक थी। पुलिस यातायात को गाँव/बस्ती के रास्ते जाने को कह रही थी। रास्ता कच्चा था और ढलान लिए हुये। लग रहा था कार कभी भी पलट सकती है या गिर सकती है। कार ड्राइवर गोपाल बहुत मध्यम गति से हमें सुरक्षित पक्की सड़क में लाने में सफल हुआ। यह रास्ता लगभग ३-४ किलोमीटर का था। मुझे केरल की प्रायोजित साहसिक यात्रा याद आ रही थी लेकिन यहाँ प्रकृति ने ऐसी यात्रा करवा दी थी। ड्राइवर भी बोल रहा था खतरनाक रास्ता है।पक्की सड़क पर आने के बाद सड़क किनारे बैठी महिलाओं से पुलम और आड़ू खरीदे। उस समय बहुत स्वादिष्ट लग रहे थे, थोड़े मीठे,थोड़े खट्टे।
पेलिंग पहुँचते पहुँचते मूसलाधार बारिश शुरु हो गयी। पेलिंग में ग्लास स्काई वॉक कर सकते हैं। यह २०१८ में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ से अच्छे मौसम में हिमालय( कंचनजंगा ) देखा जा सकता है। पेलिंग लगभग सात हजार फीट की ऊँचाई पर है।
पक्षी अभयारण्य भी है यहाँ। वृक्षों सहित प्राकृतिक सौन्दर्य भी।
बारिश की रिमझिम जारी है। हम दार्जिलिंग की ओर बढ़ रहे हैं। रंगीत नदी मटमैली दिख रही है, तेज बहाव के साथ। ड्राइवर गोपाल हमें होटल में छोड़कर गंगटोक( गांतोक, स्थानीय नाम) वापिस चला गया। होटल आगमन कक्ष में बढ़िया दार्जिलिंग चाय पिला कर स्वागत किया जाता है साथ में गले में पीला गमछा डाला जाता है। दार्जिलिंग में चाय बगीचा, मालरोड, चिड़ियाघर, बौद्ध मठ,शान्ति स्तूप देखने गये। चिड़ियाघर से लौटते समय कार तक आने के लिए ढलान पर चलना पड़ा था और फिर समतल सड़क के किनारे पैदल रास्ते पर। एक जगह पर थोड़ा ऊँचा-नीचा भाग था तो मैंने बिना पीछे देखे साथी के लिए हाथ पीछे कर दिया। जब मेरा हाथ पकड़ा नहीं गया तो मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक महिला थी, वह मुझे देख मुस्कुरा रही थी। वह समझ गयी थी कि मामला क्या है।
यहाँ टायगर हिल से सूर्योदय देख सकते हैं। यातायात दार्जिलिंग में परेशान करने वाला है। दो किलोमीटर तय करने में एक घंटा तक लग जाता है कहीं कहीं पर।
टॉय ट्रेन की यात्रा करने गये। " रेल स्टेशन दयनीय लग रहा था। शौचालय में पानी नहीं था। उससे जुड़ा प्रतीक्षालय में कुर्सियां अच्छी थीं लेकिन गंध/बदबू के कारण वहाँ बैठना संभव नहीं था। हाथ सुखाने की मशीन थी लेकिन पानी के अभाव में वह व्यर्थ लग रही थी, उस समय। भाप इंजन और डीजल इंजन वाली ट्रेनें नैरो गेज पर चलती हैं। दो जगह रूकती हैं। वहाँ पर्यटक १० और २० मिनट के लिए दर्शनीय चीजों को देख सकते हैं, फोटो खींच सकते हैं।"घुम"से ट्रेन लौट जाती है।
अराधना" फिल्म की शूटिंग यहाँ हुयी थी। राजेश खन्ना जीप में अपने दोस्त के साथ होते हैं,गाना चलता है। लेकिन शर्मिला टैगोर की डेट नहीं होने के कारण वह दार्जिलिंग नहीं आ पाती है तब ट्रेन का दृश्य जिसमें शर्मिला टैगोर ट्रेन में होती है, मंबई में स्टुडियो में बना कर फिल्माया जाता है( अनु कपूर के अनुसार)। गीत है " मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू----।"
दार्जिलिंग से सुबह बागडोरा के लिए निकले। कुछ किलोमीटर तक सड़क और रेललाइन साथ-साथ चलते हैं। "आराधना" फिल्म मन में घूमती है। हरियाली मनमोहक है। फिर आते हैं चाय के लम्बे-चौड़े , हरे-भरे बगीचे। महिलाओं की कतार जो चाय पत्तियां तोड़ने जा रही हैं,वे दिखती हैं। आगे बगीचे में छाता लिए पत्तियां तोड़ती दिखती हैं। कार ड्राइवर संजय बताता कि इन्हें मजदूरी बहुत कम मिलती है। उनके कार्य- घंटे बताता है। इतने में एक विशालकाय हाथी सड़क पार कर रहा होता है। संजय कार धीमी करता है और कहता है हाथी देखना अच्छा होता है,सगुन होता है ना। हमने कहा "हाँ"। संजय ने हमें हवाई अड्डे में छोड़ा। वह मुझे महाभारत के संजय की याद दिला रहा था।
*** महेश रौतेला