एक दिन मै भी आकाश मे उड़ान भरुगा
डॉक्टर अब्दुल कलाम को आकाश मे पक्षियों की उड़ान बहुत अच्छी लगती थी उनके घर से रामेश्वरम् मन्दिर 10 मिनट के रास्ते पर था वे प्राय: रामेश्वरम जाया करते थे रामेश्वरम मन्दिर के मुख्य पुजारी उनके पिता के मित्र थे वे दोनों घंटो घंटो धर्म और अध्यन पर बाते किया करते थे कलाम बड़े चाव से मन्दिर की सजावट देखते थे भक्तो की तरह सिर झुकाते थे पूजा मे भी शामिल होते थे मन्दिर देखने के बाद वे जब समुद्र पर नजर डालते तो उनके मन मे सागर जैसी उत्ताल तरन्गे उठने लगती वे टकटकी लगाये उनमे खो जाते थे वे सोचा करते थे समुद्र की कोई थाह नही कोई सीमा नही समुद्र की गहराई और उसके विस्तार से बेखबर ये सारस कितनी मस्ती से कभी एक ताल मे पंखो को हिलाते हुए कभी बिना पंख हिलाये वायु मे तेरते हुए जीवन का आनंद ले रहे है एक दिन यह दृश्य देखते देखते उनके मन मे एक विचार आया क्या मनुष्य पक्षियों की तरह नही उड़ सकता तभी एक लहर उनके दिल की गहराई मे उठी ओर पूरे शरीर मे सिहरन बनकर दोड गई कलाम के मुख से निकला एक दिन मै भी इन पक्षियों की तरह आकाश मे उड़ान भरुगा फिर अपने ही शब्दो पर सोचते रह गए उड़ान शब्द से ही उनके मन मे खुशी की एक ऐसी लहर उठी जिसे वे उस समय समझ नि पाए थे
सारी नोकाएँ डूब गयी
रामेश्वरम समुद्र तट पर स्थित था वहाँ रहने वाले को समुद्र से जुड़े व्यापार से आजीविका कमानी पड़ती थी कलाम के पिता बहुत मेहनत करने वाले व्यक्ति थे उनके लिए काम एक पूजा थी खाली रहना उन्हे तनिक भी पसंद नही था किसी ना किसी काम जुटे रहना उन्हे बहुत अच्छा लगता था कलाम जब छ: वर्ष के थे उनके पिता ने इलाके के ठेकेदार अहमद जलालुद्दीन के साथ मिलकर नाव बनाने का काम शुरू कर दिया रामेश्वरम मे नावों द्वारा बहुत बड़ी संख्या मे तीर्थ यात्री शिवलिंग के दर्शन करने आया करते थे धनुषकोडी और रामेश्वरम के बीच यातायात का साधन नोकाएँ ही थी अत: नौका बनाने का व्यापार बहुत अच्छा चला अच्छी आमदनी होने लगी कलाम के पिता जब नोकाएँ बना रहे होते थे तब वे उनके पास खड़े होकर घण्टो उन्हे देखते रहते थे लकड़ी के तख्ते जुड़कर जब नौका अपने पूरे आकार मे आती थी तब कलाम को इतना अच्छा लगता था कि वे तालियां बजाने लगते थे खुशी से उछलते थे और आवाजे निकालते थे उनके पिता को कलाम का इस तरह खुशी प्रकट करना बहुत अच्छा लगता था अहमद जलालुद्दीन सब नौकाओं को किराये पर देकर मल्लाहों से मोटी रकम लेते थे शाम को यह रकम अहमद और कलाम के पिता के बीच बाट ली जाती थी इस प्रकार दोनों परिवारों के दिन अच्छे बीत रहे थे दोनों परिवारों की आमदनी बढ़ती देख लोग चर्चा करने थे इसी बीच कलाम की बड़ी बहन जोहरा को अहमद जलालुद्दीन पसन्द आ गए और कलाम के पिता ने जोहरा का विवाह अहमद जलालुद्दीन के साथ कर दिया काफी दिनों तक नावों के व्यापार से दोनों घरानो को बहुत लाभ पहुँचा था घर मे खुशिया थी कलाम और उनके सभी भाई बहन बहुत खुश थे मां और पिता दोनों अपने बच्चो की खुशियों और व्यापार की तरक्की देख बहुत सुखी थे एक दिन समुद्र मे भीषण तूफान आया सौ मील प्रती घंटे से भी ज्यादा रफ्तार का तूफान उस समय कुछ नावे किनारे पर थी और कुछ तीर्थ यात्रियों को ले जा रही थी सारी नोकाएँ समुद्र ने अपनी उंची उंची लहरों मे समेट ली और उन्हे निगल लिया समुद्र का वह विनाशकारी रूप अब्दुल कलाम के सामने पहली बार आया था वे तो समुद्र को जीवन और सौंदर्य का भंडार मानते थे
क्या कलाम के विचार बदल जायेगे समुद्र को लेकर आगे क्या होगा जानने के लिए बने रहे अगले पार्ट के लिए जो की आप सब के कॉमेंट करने पर जल्द ही लिखा जायेगा
अजय भारद्वाज