कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 1 Sakera tunvar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कुछ तो है तेरे मेरे दरमियान। - 1

अमरीका के लोस एंजेलिस में सुबह के तकरीबन १० बज रहे थे।

और वहां के एक खुबसूरत से घर में एक औरत किचन में काम करते हुए अपने आप में बातें कर रही थी,या अल्लाह क्या करें हम इस लड़की का,तीन दफा उसे जगाकर आए हैं लेकिन मजाल है की इस लड़की की निंद में जरा सी भी खलल पहुंची हों ।

तभी पीछे से एक आदमी ने उनके दोनों कंधों पर अपना हाथ रखकर कहा, शबीना क्यों आप अपना बीपी बढ़ा रही है बच्ची है...,उठ जाएगी थोड़ी देर में...
तभी उस औरत यानी की शबीना ने कहा शारीक बच्ची नहीं है...माशाअल्लाह पुरे तेईस की हो गई है आपकी लाडली... और आपको बता दूं इसकी अब हाथ पीले करने की उम्र हो गई है।तभी पीछे से एक लड़की ने अपने अब्बू यानी की शारीक को गले लगाते हुए कहा,अब्बू आप अपनी बेगम से कह दें,की अभी हमें अपने हाथ पीले,नीले या लाल बिल्कुल भी नहीं करवाने हैं।
उसकी बात सुनकर शारीक के साथ साथ शबीना के चेहरे पर भी हल्की मुस्कान छा गई।
लेकिन शबीना ने अपनी मुस्कान छिपाकर शारीक से कहा,शारीक यह सब आपके ही लाड़ प्यार का नतीजा है की यह इतनी आलसी होती जा रही है।
शारीक थोड़ा मजाकिया लहजे में,अरे बेगम हमारी बेटी यहां हमारे सामने नखरे नहीं दीखाएगी तो क्या सामने वाले घर जाकर दीखाएगी क्या..??

अरे आपको बता दु की इनकी बहस अभी पुरा आधा घंटा और चलने वाली है,और यह हर रोज इनका रुटीन होता है एक समय दूध वाला दूध देना भुल सकता है लेकिन यह अपनी छोटी सी नोंक झोंक नहीं...चले तब तक आपको हम इनसे पुरी तरह मुख्तलिफ करवा लेते हैं।

शारीक उनका पुरा नाम शारीक अहमद सिद्दीकी है वो तकरीबन सैंतालीस साल के है और पेशे से वह एक बिजनेस मैन है वो लोस एंजेलिस मैं अपनी बेगम साहिबा शबीना एहमद सिद्दीकी और अपनी तेईस साल की बेटी आयत के साथ रहते है।शारीक वैसे हिन्दुस्तान के लखन‌ऊ के रहने वाले हैं और उनका हरा भरा परीवार आज भी लखन‌ऊ में है लेकिन अब उनके उनसे कोई ताल्लुकात नहीं है और उसकी महज वजह थी उनकी मोहब्बत जी हां आपने सही पढ़ा उनकी मोहब्बत...
शारीक का परीवार रीवायतो में मानने वाला था उनके अब्बू शमशेर सिद्दीकी का लखनऊ में एक अलग ही रुतबा था...लखनऊ में सही-ग़लत का फैसला उनकी हवेली पर किया जाता था वो बेशक सच्चे इंसान के कंधे को थपथपाकर सराहना भी करते थे और गलत करने वाले को उसकी सजा भी मिलती थी।

समशेर अहमद सिद्दीकी की बेगम रजीया सिद्दीकी एक सादगी से भरी हुई शख्स थी...और उनके दो बेटे थे सबसे बड़े शाहीद और छोटे शारीक...शाहीद और शारीक दोनों भाइयों के दरमीयां तीन साल का उम्र का फासला था, लेकिन दोनों भाइयों में बेहद मोहब्बत थी... शाहीद ने बड़ी ही कम उम्र में अपने अब्बू का बिजनेस संभाल लिया था। समशेर साहब अपनी बेवा बहन की दोनों बेटीयों को अपने घर में बहु बनाकर लाना चाहते थें, इसलिए जब शाहिद चौबीस साल के हुए तब उनकी फुफु जान की बड़ी बेटी नगमा के साथ उनका निकाह कर दिया गया और इस निकाह से दोनों खुश भी थे और इसी तरह शमशेर साहब का कहना था की जब शारीक भी चौबीस के हो जाएं और अपनी जिम्मेदारीया बखुबी समझने लगेगे तब उनका निकाह भी उनकी छोटी भांजी नाहीद से करवा देंगे।
लेकिन शारीक की तकदीर किसी और के साथ लिखी जा चुकी थीं।

शारीक दिल्ली से अपना एम.बी.ए. का कोर्स कर रहे थे तब उनकी कोलेज में मुलाकात शबीना से हुई,शबीना एक सुलझी हुई,साफ दिल की लड़की थी। दिखावे में वह बेहद खुबसूरत और पढ़ाई में उतनी ही इंटेलिजेंट।...शबीना एक यतीम थी और उसकी परवरिश दिल्ली के एक यतीमखाने में ही हुई थी,अपनी मेहनत के बलबूते पर स्कोलरशीप लेकर इतने बड़े कोलेज में एडमिशन लिया था।शबीना की सादगी उसकी खुबसूरती हमेशा लोगों की मदद के लिए खड़ा रहना यह सब धीरे धीरे शारीक के दिल में उतरता गया,और आखीरकार मोहब्बत पर किसका जोर होता है हो गई बेइंतहा मोहब्बत उन्हें शबीना से,और शबीना शारीक की उनकी परवाह करना उनके लिए सबसे लड़ जाना ऐसे प्यार के लिए तो वह बचपन से तड़पी थी और हो गई उन्हें भी शारीक से मोहब्बत... ।

लेकिन उन्हें पता था यह मोहब्बत का सफर उनके लिए आसान नहीं होने वाला था।
दो साल बाद शाहिद के घर पर एक शहजादे की पैदाइश हुईं...और उसी खुशी के मौके पर शारीक ने शबीना को घरवालों से मिलवाने का तय किया।
और वो पल भी आ गया जब शारीक ने शबीना को अपने घरवालों से मुख्तलिफ करवाया।
पुरे घर में सन्नाटा छाया हुआ था,एक ओर होल के बीचों बीच सोफे पर शमशेर साहब बैठे हुए थे उनके चेहरे को देखकर कोई भी आसानी से बता सकता था की वह बेहद गुस्से में थे...शाहिद और रजिया बेगम दोनों के चेहरे पर शारीक को लेकर फिक्र दिख रही थी,और उन्हें अंदाजा भी था कहीं न कहीं की अगले पल सबकुछ बिखरने वाला था।

नगमा एक और अपने छह दिन के बेटे को गोद में लेकर बैठी थी,उसे बेशक अपने देवर से बेहद लगाव था लेकिन अपनी बहन का सोचकर शारीक के लिए उनकी नाराजगी भी साफ दिख रही थी। वहीं एक तरफ नाहीद अपनी अम्मी को गले लगाएं सुबक रही थी।
तभी उस हौल में शमशेर साहब की एक रौबदार आवाज गुंजती है,क्या लेगी आप हमारे बेटे की जिंदगी से जाने का...हम आपको पुरे एक करोड़ देते हैं उसके साथ साथ गाड़ी बंगला जो चाहीए वो सब मिलेगा लेकिन हमारी जिंदगी से बहुत दूर चली जाइए...
तभी बीच में शारीक, अब्बू आप शबीना से ऐसे बात नहीं कर सकते...
शमसेर साहब, ये लड़की आपसे कोई मोहब्बत नहीं करती इनका आपके पैसे पर दिल आ गया होगा और इसमें इसकी भी कोई ग़लती नही है यतीम है तो लाजमी है इतनी चकाचौंध देखकर किसी का भी दिल आ जाए दौलत पर।

और उसके अलावा उनकी बहन यानि की शारीक की फुफी जान ने कहा,पता नहीं किसका गंदा खून है...उनकी बातें सुनकर शबीना ने अपने दोनों कानों पर हाथ रख लिए और उसकी आंखों से बेतहाशा आंसू बह रहे थे।
शारीक का ग़ुस्सा भी अब सातवें आसमान पर था उन्होंने शबीना का हाथ थामा और कहा, बहुत सुन ली मेने सबकी बातें अब आप लोग मेरा फैसला सुने...में आज ही शबीना से निकाह कर रहा हूं...
शमशेर साहब,तो आप भी हमारा एक फैसला सुन लिजीए अगर आपने इस लड़की से निकाह किया तो आपके लिए इस घर के सारे दरवाजे बंद होंगे,इस घर के हर शख्स के लिए आप मर चुके हैं हम में से किसी के भी साथ आपका कोई ताल्लुक नहीं रहेगा....।

और उस दिन के बाद शारीक साहब सबके रोकने के बाद भी नहीं रुके... शबीना ने भी उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की के उसकी वजह से वह अपने परिवार से रिश्ता न तोड़ें लेकिन उन्होंने शबीना को समझाया की उनकी मोहब्बत इतनी पाक है की एक दिन सबको इसका अहसास होगा।

फिर उसी दिन उन्होंने शबीना से निकाह किया... कुछ दिन उन्होंने दिल्ली में जोब की उसके बाद एक कंपनी की और से उन्हें लोस एंजेलिस भेजा गया और वहां जाकर तकरीबन तीन साल बाद उनके यहां एक प्यारी सी गुड़िया की पैदाइश हुईं और आयत के पैदा होने के बाद उन्होंने वही पर अपना बिजनेस स्टार्ट किया,जो माशाअल्लाह बहुत कामयाबी की ओर बढ़ रहा था।

उन्हें हर कामयाबी के बाद अपने परिवार की बहुत याद आती, लेकिन उनका इगो उन्हें एक दफा मिलने से रोक लेता। शबीना ने भी बहुत कोशिश की के एक बार मिल लें और उनका दिल भी करता लेकिन उन्हें उनके अब्बू की बातें याद आ जाती।

अब उनका एक छोटा सा परीवार था, जिसमें उनकी बेगम और एक बेहद खुबसूरत बेटी थीं जिसकी परवरिश बेशक परदेश में हुई थी लेकिन उसके लहु का कतरा कतरा हिन्दुस्तान का दिवाना था।उसे अपने अम्मी अब्बू के साथ हुई सारी ज्यादती का इल्म था,और अपने दादा जान के प्रति नाराजगी भी थी... लेकिन उसका हमेशा दिल करता की वह एक मर्तबा अपने परिवार से मिले।

तो यह थी शारीक अहमद सिद्दीकी के सत्ताइस साल पहले की कहानी।


अब नाश्ता करने के बाद शारीक साहब अपने ओफिस की ओर बढ़ ग‌ए और आयत अपनी युनिवर्सिटी की तरफ...और शबीना बेगम अपने कामों में मशरूफ।

लोस एंजेलिस की एक बड़ी सी युनिवर्सिटी में एक क्लास पुरी तरह से स्टुडेंट से भरा हुआ था,हां लेकिन उस स्टूडेंट्स में से ज्यादातर गोरे दिख रहे थे लेकिन हां उसमें क‌ई भारतीय भी थे।

यह हिस्टरी का क्लास चल रहा था और आयत सिद्दीकी उस क्लास के बीचों बीच की सीट पर बैठकर अपनी क्लास का लुफ्त उठा रही थी।

आज की हिस्टरी की क्लास में इंडियन कल्चर के बारे में पढ़ाया जा रहा था।
आयत मास्टर्स कर रही है...उसने अपना ग्रेजुएशन हिस्टरी सब्जेक्ट के साथ ही कंम्पलिट किया...आयत अपनी अम्मी की तरह एक होनहार स्टूडेंट थी,वो हर बार टोप करती थी।टेन्थ में टोप करने के बाद सबको यही लगा था की आयत साइंस में दिलचस्पी दिखाएगी... लेकिन आयत ने आर्ट्स स्ट्रीम चुनी ।


★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
यह बताना जरुर की आपको कहानी की शुरुआत कैसी लगी?
बेशक एक लंबे अरसे के बाद कुछ लिखने जा रही हुं... लेकिन जो भी कमियां थीं मेरी लेखनी में उतने समय से उसी पर काम किया है और मेरे ख्याल से आपको यह कहानी बहुत पसंद आने वाली है।