अमावस्या में खिला चाँद - 18 Lajpat Rai Garg द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अमावस्या में खिला चाँद - 18

- 18 -

       शीतकालीन अवकाश के पश्चात् जब कॉलेज खुला तो प्रिंसिपल ने टीचिंग स्टाफ़ की एक मीटिंग बुलाई, जिसका मुख्य मुद्दा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन तथा रक्तदान विषयक साहित्य-सृजन के अग्रणी साहित्यकार डॉ. मधुकांत को आमन्त्रित करना था। जहाँ हिन्दी के विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीकांत ने इसका अनुमोदन किया तथा पूर्ण सहयोग करने का आश्वासन दिया, क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि प्रिंसिपल ने यह चयन अवश्य ही शीतल मैम के सुझाव पर किया होगा, वहीं एक-दो प्राध्यापक ऐसे भी थे, जो इस तरह के आयोजन में लगने वाले समय को समय की बर्बादी मान रहे थे। ये वही प्राध्यापक थे, जो इन दिनों ट्यूशनों से चाँदी कूट रहे थे। प्रिंसिपल ने उन्हें शान्त करने के लिए कह दिया कि इस आयोजन का कार्यभार किसी भी प्राध्यापक पर थोपा नहीं जाएगा, बल्कि ड्यूटी सब की इच्छा जानकर लगाई जाएगी। इतना सुनते ही सभी ने प्रिंसिपल द्वारा रखे प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति दे दी। विज्ञान, अंग्रेज़ी, मैथ, अर्थशास्त्र के विषय पढ़ाने वाले प्राध्यापकों को प्रिंसिपल ने किसी भी प्रकार की ड्यूटी से मुक्त रखते हुए बाकी के स्टाफ़ की विभिन्न कार्यों को सरंजाम देने के लिए ड्यूटियाँ लगा दीं। प्रिंसिपल ने मीटिंग में ही यह जानकारी देते हुए कि शीतल मैम ने डॉ. मधुकांत के साहित्य को अपनी पीएचडी का विषय बनाया है, डॉ. मधुकांत को आमन्त्रित करने, उनके ठहरने तथा स्वागत की ड्यूटी उसे ही सौंप दी। प्रो. विनायक को रक्तदान शिविर के लिए सिविल सर्जन से सम्पर्क करने तथा डॉक्टरों की टीम को सँभालने का उत्तरदायित्व दिया गया। 

……

          23 जनवरी। 

          नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्मदिन।

          पिछले कुछ दिनों की भयंकर ठंड नदारद।

        ओपन एयर थियेटर में आयोजित रक्तदान से सम्बन्धित कार्यक्रम में मंच संचालक के निवेदन पर प्रिंसिपल महोदय ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को स्मरण करते हुए उनके जन्मदिन पर श्रद्धा-सुमन अर्पित किए तथा डॉ. मधुकांत, रक्तदान शिविर के लिए आए डॉक्टरों की टीम व नगर के आमन्त्रित गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा - ‘नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिन के अवसर पर कॉलेज के प्रांगण में प्रथम रक्तदान शिविर के आयोजन की प्रेरणा हमें हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार एवं रक्तदान मिशन के भीष्म पितामह डॉ. मधुकांत से मिली है, जिन्होंने अपनी कथनी को करनी का अमली जामा पहनाते हुए रक्तदान पर चालीस के लगभग साहित्यिक रचनाओं के सृजन के साथ अब तक अढ़ाई सौ के लगभग रक्तदान शिविर भी आयोजित किए हैं। वैसे इनकी साहित्यिक रचनाओं की संख्या पौने दो सौ के लगभग है।’

          प्रिंसिपल के इस कथन पर मंच पर विराजमान सम्मानित अतिथियों तथा उपस्थित विद्यार्थियों की तालियों से ओपन एयर थियेटर गूँज उठा। प्रिंसिपल ने आगे कहा - ‘हमें डॉ. मधुकांत जी के उद्बोधन के पश्चात् रक्तदान शिविर का भी विधिवत शुभारम्भ करना है, इसलिए मैं और समय न लेते हुए डॉ. मधुकांत जी से अनुरोध करता हूँ कि वे आएँ और हमें रक्तदान के विषय में अपने उद्गारों से कृतार्थ करें।’ इसके साथ ही उन्होंने पीछे मुड़कर डॉ. मधुकांत जी से कहा - ‘आइए डॉ. साहब ….।’

       डॉ. मधुकांत ने अपनी कुर्सी से उठते हुए ‘डायस’ की ओर आते हुए हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन किया तथा माइक पर आकर बोले - ‘मेरे रक्तदाता मित्रो! …. कॉलेज के माननीय प्राचार्य महोदय, रक्तदान शिविर के प्रभारी सभी प्राध्यापकगण, युवा छात्रो व छात्राओ! आपके मध्य आकर मैं अपने आपको बहुत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ।’ 

        छात्र-छात्राओं ने तालियों से स्वागत किया। 

        उद्बोधन जारी रखते हुए डॉ. मधुकांत बोले - ‘सर्वप्रथम मैं हमारे महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के पावन अवसर पर उनकी स्मृति में श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ तथा प्राचार्य महोदय, प्राध्यापकगण, नगर के आमन्त्रित प्रबुद्धजनों, प्रतिष्ठित डॉक्टरों की टीम तथा देश के भविष्य हमारे प्यारे विद्यार्थियों का अभिवादन एवं अभिनन्दन करता हूँ। शिक्षक होने के नाते मुझे विद्यार्थियों के बीच आने पर सदैव प्रसन्नता होती है। आज का दिन तो मेरे लिए इसलिए भी विशेष महत्त्व का है, क्योंकि आज इस कॉलेज के प्रांगण से रक्तदान का शुभ संदेश इस नगर के कोने-कोने तक पहुँचेगा। मेरे देश के युवा साथियो, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में जब आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था तो उन्होंने एक नारा दिया था - तुम मुझे खून दो…’ डॉ. मधुकांत पल भर के लिए रुके। जब श्रोताओं की ओर से नारा पूरा नहीं किया गया तो वे बोले - ‘क्या कहा था नेताजी ने…?’

            अब ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा,’ के तुमुल जयघोष से थियेटर गूँज उठा।

         ‘हाँ तो आप सभी को याद है कि नेताजी ने क्या कहा था और यह भी आपको स्मरण होना चाहिए कि नेताजी के आह्वान पर हज़ारों भारतीय नौजवान अपने प्राण न्योछावर करने के लिए आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। उन बहादुर वीरों के बलिदानों की बदौलत आज हम आज़ाद हैं, जिन्होंने अपने रक्त से माँ-भारती के ललाट पर तिलक किया था।…. मुझे आपको बताते हुए गर्व हो रहा है कि 08 सितम्बर, 2022 के ऐतिहासिक दिवस पर मैं भी उन ऐतिहासिक पलों का साक्षी था, जब हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने नई दिल्ली में ‘इंडिया गेट’ पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 28 फुट ऊँची ग्रेनाइट की प्रतिमा का अनावरण किया था। उस पावन अवसर पर आज़ाद हिन्द फ़ौज के फ़ौजियों में से दो सैनिकों तथा अन्य कई सैनिकों के परिवारजनों को सम्मान सहित आमन्त्रित किया गया था। मुझे 97वें वर्षीय श्रद्धेय आर. माधवन से कुछ मिनटों तक संवाद करने का सुअवसर मिला। संवाद के दौरान श्री माधवन जी ने बताया कि उन्हें 1944 में जापान से बर्मा, आज के म्यांमार, पधारे श्री रासबिहारी बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल किया था। उस समय माधवन जी की आयु केवल सत्रह वर्ष थी। प्रिय विद्यार्थियो, कल्पना कीजिए कि उस समय आपके समव्यस्क युवाओं में आज़ादी पाने की कितनी ललक थी! माधवन जी ने मुझे आगे बताया कि उस समय के एक मुसलमान भाई ने एक करोड़ दो लाख रुपए नेताजी को आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना के लिए अर्पित किए थे तो बिहार के आरा ज़िले के सेठ परमानन्द ने अपनी शुगर और टेक्सटाइल मिलों, जिनमें दो हज़ार वर्कर काम करते थे, की सम्पूर्ण सम्पदा नेताजी के चरणों में न्योछावर कर दी थी।’

        नेताजी के लिए तथा उनके उद्देश्य को समर्पित भारतीयों के अद्वितीय योगदान का बखान सुनकर हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। जब कोलाहल थमा तो डॉ. मधुकांत ने अपना वक्तव्य जारी रखते हुए कहा - ‘आज हम लाखों-करोड़ों भारतीयों के त्याग और बलिदानों के फलस्वरूप आज़ाद हैं। लेकिन, आज भी देश अनेक समस्याओं से जूझ रहा है, जिनका निदान हम सबको मिलकर करना है। … हर रोज़ हज़ारों लोग अस्पतालों में मृत्यु से जूझते पाए जाते हैं, उनमें से बहुत-से मरीज़ों को बाह्य साधनों से रक्त उपलब्ध करवाकर बचाया जा सकता है। इसलिए हमें आज एक प्रण करना होगा कि कोई भी देशवासी रक्त की कमी के कारण अपनी जान न गँवाए। यह सम्भव होगा हमारे द्वारा रक्तदान करने से। समय की माँग है कि स्वैच्छिक रक्तदान करने के लिए अधिक-से-अधिक दानवीर आगे आएँ। 

        ‘आज आपके इस कॉलेज में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है। यह स्वतन्त्रता संग्राम में शहीद हुए लाखों वीरों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है -

                       शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले 

     वतन पर मिटने वालों का यही बाक़ी निशां होगा।’ 

           हॉल फिर से तालियों से गूंजने लगा।

        वक्तव्य जारी रखते हुए डॉ. मधुकांत आगे बोले - ‘भारतीय संस्कृति और सभ्यता में दान की बड़ी महिमा गाई गई है। सन्त कबीर के इस दोहे से आप सभी भलीभाँति परिचित होंगे -

चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घट्यो नीर।

दान दिए धन ना घटे, कह गए दास कबीर।।

हमारे इतिहास में असंख्य दानवीरों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने दान के लिए अपना प्रण निभाते समय अपना सर्वस्व दे दिया, किन्तु अपने प्रण को झूठा नहीं होने दिया। 

        ‘मित्रो, दूसरी बात, जैसे दान देने से धन नहीं घटता, वैसे ही रक्तदान करने से आपके शरीर में रक्त की मात्रा कम नहीं होती। दान किए गए रक्त की आपूर्ति बहुत शीघ्र हो जाती है।

       ‘आज का यह रक्तदान उत्सव विश्व के श्रेष्ठ उत्सवों में से एक है, क्योंकि आज यहाँ इतना पवित्र कार्य होने जा रहा है, जिसके द्वारा अनेक बीमार व्यक्तियों के जीवन की रक्षा हो सकेगी।  

                        रक्तदान महायज्ञ है, कभी भी करके देख।

तुमको कुछ होगा नहीं, जीवन बचें अनेक।।

हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान उस व्यक्ति से सबसे अधिक खुश होते हैं, जो उसके बनाए इंसान की नि:स्वार्थ सेवा करता है। ऐसे व्यक्ति की कोई कामना अधूरी नहीं रहती, क्योंकि ईश्वर सदा उसके अंग-संग रहता है।

         ‘आपने सुना और पढ़ा होगा, रक्तदान को महादान की संज्ञा दी गई है, क्योंकि इस दान से मानवता मुखर होती है। धर्म, जाति, वर्ग का भेद नहीं रहता। न रक्तदाता को पता होता है कि उसका रक्त किस धर्म, जाति या वर्ग के व्यक्ति के काम आएगा और न ही लेने वाले को पता चल पाता है कि उसकी शिराओं में चढ़ाया जा रहा रक्त किस धर्म, जाति या वर्ग के रक्तदाता का है। 

किस जाति, किस धर्म का, जाने नहीं ईमान।

खून का रिश्ता एक है, जाने सकल जहान।।

         ‘मित्रो! यदि मैं अपनी बात करूँ तो आज मुझे पछतावा हो रहा है कि मैंने जीवन के पाँच दशक बीत जाने के बाद इस दिशा में कदम उठाया। यदि कहीं आपकी उम्र में मुझे भी किसी ने प्रेरित कर दिया होता तो मैं भी रक्तदान का शतक लगा चुका होता!

         ‘आपका कॉलेज शहर का अग्रणी शिक्षण संस्थान है। यहाँ रक्तदान शिविर के आयोजन से शहर में बहुत अच्छा संदेश जाएगा। मुझे बताया गया है कि प्रथम शिविर के लिए सौ विद्यार्थियों और दस प्राध्यापकों ने अपने नाम लिखवाए हैं। मैं इन सभी रक्तदाताओं को हार्दिक बधाई देता हूँ तथा इनके मंगलमय भविष्य की कामना करता हूँ। रक्तदाताओं की एक श्रृंखला बननी चाहिए, जो शुरू होने के बाद ख़त्म होने का नाम न ले।

ज्योत से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो।

राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो।

       ‘मेरी दिली तमन्ना है कि अधिक-से-अधिक विद्यार्थी इस महायज्ञ में अपनी आहुति डालें। कृपया वे विद्यार्थी हाथ उठाएँ, जो अगले रक्तदान शिविर में रक्तदान के इच्छुक हैं….’

        एक साथ सैंकड़ों हाथ उठ गए। यह देखकर सिविल सर्जन ने माइक लेकर सबका धन्यवाद किया तो आमन्त्रित सेठ जगन्नाथ ने तत्क्षण घोषणा कर दी कि सभी रक्तदाता विद्यार्थियों को वे अपनी ओर से एक-एक हेलमेट उपहार स्वरूप भेंट करेंगे और भविष्य में लगने वाले रक्तदान शिविरों के लिए भी वे पर्याप्त मात्रा में हेलमेट उपलब्ध करवाएँगे।

            इस घोषणा के साथ ही हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। 

       डॉ. मधुकांत ने विद्यार्थियों से शान्त होने का निवेदन किया और वक्तव्य जारी रखते हुए कहा - ‘मैं सेठ जगन्नाथ की उदारता का तहेदिल से स्वागत करता हूँ तथा उन्हें बधाई देता हूँ कि उन्होंने विद्यार्थियों को नेक काम में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है। यहाँ मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि रक्तदाताओं को हेलमेट उपहार में देने का मनोरथ विद्यार्थियों को किसी प्रकार का प्रलोभन देना नहीं है, बल्कि इस उपहार के माध्यम से एक सन्देश देने का प्रयास है कि हेलमेट पहनने से सड़क पर दुर्भाग्यवश दुर्घटनाग्रस्त होने पर भी जीवन-स्रोत रक्त को व्यर्थ जाने से रोका जा सकता है और परिणामस्वरूप अमूल्य मानव-जीवन की रक्षा की जा सकती है।

         ‘अन्त में मैं प्राचार्य महोदय को विश्वास दिलाता हूँ कि जब भी मुझे रक्तदान से सम्बन्धित किसी भी कार्यक्रम के लिए याद किया जाएगा, मैं अवश्य अपनी उपस्थिति दर्ज करवाऊँगा। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार। अब आप सभी मेरे साथ जयकारा लगाएँगे - 

             ‘रक्तदाता की जय हो, भारतमाता की जय हो’

             कुछ क्षणों तक इस जयकारे की प्रतिध्वनि वातावरण में गूँजती रही।

             डॉ. मधुकांत ने अपना उद्बोधन ‘जय हिन्द, वन्देमातरम्’ कहकर समाप्त किया।

           कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व मुख्य अतिथि, डॉक्टरों की टीम तथा सेठ जगन्नाथ को स्मृति

-चिह्न देकर सम्मानित किया गया तथा प्रिंसिपल महोदय ने मुख्य अतिथि तथा आमन्त्रित महानुभावों का पधारने के लिए धन्यवाद किया तथा रक्तदान करने जा रहे रक्तदाताओं को शुभकामनाएँ दीं।

         इसके बाद राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का पटाक्षेप हुआ, तथा रक्तदान के लिए जिन छात्र-छात्राओं तथा प्राध्यापकों ने नाम लिखवाए थे, वे प्रिंसिपल महोदय की अगवानी में मुख्य अतिथि, सिविल सर्जन तथा सेठ जगन्नाथ के साथ शिविर की ओर बढ़ने लगे।

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