भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा - 2 Renu द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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भगवान्‌ के चौबीस अवतारों की कथा - 2

(२) श्रीवराह-अवतार की कथा— ब्रह्मा से सृष्टिक्रम प्रारम्भ करने की आज्ञा पाये हुए स्वायम्भुव मनु ने पृथ्वी को प्रलय के एकार्णव में डूबी हुई देखकर उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजा के रहने के लिये पृथ्वी के उद्धार का प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञा का पालन कर सकें। ब्रह्माजी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाय, वे सर्वशक्तिमान् श्रीहरि की शरण गये। उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजी की नाक से अंगुष्ठ प्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभर में पर्वताकार विशालरूप गजेन्द्र-सरीखा होकर गर्जन करने लगा। शूकररूप भगवान् पहले तो बड़े वेग से आकाश में उछले । उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचा पर कड़े-कड़े बाल थे, सफेद दाढ़े थीं, उनके नेत्रों से तेज निकल रहा था। उनकी दाढ़े भी अति कर्कश थीं। फिर अपने वज्रमय पर्वत के समान कठोर-कलेवर से उन्होंने जल में प्रवेश किया। बाणों के समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए वे जल के पार पहुँचे। रसातल में समस्त जीवों की आश्रयभूता पृथ्वी को उन्होंने वहाँ देखा। पृथ्वी को वे दाढ़ों पर लेकर बाहर आये। जल से बाहर निकलते समय उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिये महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से प्रहार करते हुए आक्रमण कर दिया। भगवान्‌ ने उसे लीलापूर्वक ही मार डाला। श्वेत दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण किये, जल से बाहर निकले हुए तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण वराह भगवान्‌ को देखकर ब्रह्मादिक को निश्चय हो गया कि ये भगवान् ही हैं। वे सब हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे।

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ब्रह्मा से सृष्टिक्रम प्रारम्भ करने की आज्ञा पाये हुए स्वायम्भुव मनु ने पृथ्वी को प्रलय के एकार्णव में डूबी हुई देखकर उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजा के रहने के लिये पृथ्वी के उद्धार का प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञा का पालन कर सकें। ब्रह्माजी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाय, वे सर्वशक्तिमान् श्रीहरि की शरण गये। उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजी की नाक से अंगुष्ठ प्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभर में पर्वताकार विशालरूप गजेन्द्र-सरीखा होकर गर्जन करने लगा। शूकररूप भगवान् पहले तो बड़े वेग से आकाश में उछले । उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचा पर कड़े-कड़े बाल थे, सफेद दाढ़े थीं, उनके नेत्रों से तेज निकल रहा था। उनकी दाढ़े भी अति कर्कश थीं। फिर अपने वज्रमय पर्वत के समान कठोर-कलेवर से उन्होंने जल में प्रवेश किया। बाणों के समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए वे जल के पार पहुँचे। रसातल में समस्त जीवों की आश्रयभूता पृथ्वी को उन्होंने वहाँ देखा। पृथ्वी को वे दाढ़ों पर लेकर बाहर आये। जल से बाहर निकलते समय उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिये महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से प्रहार करते हुए आक्रमण कर दिया। भगवान्‌ ने उसे लीलापूर्वक ही मार डाला। श्वेत दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण किये, जल से बाहर निकले हुए तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण वराह भगवान्‌ को देखकर ब्रह्मादिक को निश्चय हो गया कि ये भगवान् ही हैं। वे सब हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे।