आठवां वचन ( एक वादा खुद से) - 2 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आठवां वचन ( एक वादा खुद से) - 2

सौरभ और उसके मम्मी पापा के जाने के बाद अभिषेक अपने कमरे में आया।

मेघना फर्श पर बैठी घुटनों में सिर दिए रो रही थी।

"यह क्या हो गया है अभिषेक को? कैसा पागलपन सवार हो गया है इनके दिमाग पर ?क्या करना चाहते हैं ? वह ऐसा नहीं कर सकते? मैं अभिषेक के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती...! नहीं नहीं कभी नहीं ....! मैं उनकी बात नहीं मानूंगी बिल्कुल नहीं मानूंगी...! हर समय सिर्फ अपनी मर्जी चलाते हैं। बड़े हैं तो क्या हर समय मुझे इसी तरीके से अपने हिसाब से चलाते रहेंगे...!" मेघना ना जाने क्या-क्या बोले जा रही थी।



तभी अभिषेक कमरे में आया और उसके बगल में आकर बैठ गया।

"यह क्या बात हुई मेघना तुम बाहर क्यों नहीं आई? सौरभ और उसके मौसा जी मौसी जी खास तुमसे मिलने आए थे। तुम्हें कुछ देर उनके पास बैठना चाहिए था। वह लोग इंतजार करते करते चले गए!" अभिषेक ने उसके कन्धे पर हाथ रख बोला।



"पर वह लोग आये ही क्यों ? यह क्या हो गया है आपको ? क्या करना चाहते हैं आप?" मेघना ने गुस्से से चीखते हुए पूछा।



अभिषेक ने आज पहली बार उसे गुस्से में देखा था।

"मुझ पर भरोसा है ना तुम्हें?" अभिषेक ने कहा।

"हां मुझे भरोसा है आप पर , लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि आप कुछ भी करने लग जाएंगे और मैं बिना कोई सवाल जवाब किए आपकी सारी बातें मान लूंगी। " मेघना अब भी रोए जा रही थी।



"मैं तुम्हारे लिए कभी कुछ गलत कर सकता हूं? मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही सोच रहा हूं?" अभिषेक ने समझाना चाहा।

"लेकिन यह सब क्यों ?" मेघना सुबकते हुए बोली।



अभिषेक उसके और नजदीक आकर बैठ गया और उसने मेघना का हाथ अपने हाथों के बीच ले लिया और उसका सिर अपनी बाजू पर टिका लिया।

"मुझे गलत मत समझो मेघना। हां यह सही है कि तुम्हारी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला मैंने तुम्हें बिना बताए ले लिया, उसके लिए मैं माफी चाहता हूं; पर मुझे लगा कि शायद मुझे इतना अधिकार है कि मैं तुम्हारे बारे में निर्णय ले सकूं!" अभिषेक ने कहा।



"आपको सारे अधिकार है अभिषेक! आप मेरे बारे में कोई भी निर्णय ले सकते हैं और मैं आपकी हर बात मानने के लिए भी तैयार हूं पर मैं यह बात मान सकती...! कभी नहीं मान सकती ..!आप अपनी ही पत्नी की शादी किसी और से कराने के बारे में सोच भी कैसे सकते हो?" मेघना ने दुखी होकर कहा।

"इसीलिए क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो मेरी जिम्मेदारी हो तुम्हारी खुशियां तुम्हारा अस्तित्व सब मेरी जिम्मेदारी है और मैं तुम्हें कभी दुखी नहीं देख सकता प्लीज मेघना मुझे समझने की कोशिश करो।"



"आप समझने की कोशिश कीजिए अभिषेक मेरे बारे में इतना बड़ा फैसला लेते आपके दिल में जरा भी तकलीफ नहीं हुई ? लेकिन मेरा दिल इतना बड़ा नहीं है। मेरे दिल में मेरी जिंदगी में आपके अलावा किसी के लिए कोई जगह नहीं है और यह मेरा आखिरी फैसला है।" सिसकते हुए मेघना बोली और कमरे से बाहर निकल गई।

" मेघना.....!....! मेघना सुनो तो सही मेरी बात! इस तरीके से नहीं करते! "अभिषेक उसे बुलाता रह गया।

रात के नौ बज चुके थे पर मेघना अब तक कमरे में नहीं आई थी। अभिषेक ने जाकर किचन में देखा पर मेघना वहां भी नहीं थी। उसकी मां संगीता थी।

"बेटा क्या बात है ? कुछ चाहिए क्या?"

"नहीं मां मुझे कुछ नहीं चाहिए मेघना कहां है दिखाई नहीं दे रही! "अभिषेक बोला।

"पता नहीं बेटा यहां तो नहीं आई शाम से क्यों क्या हुआ? "संगीता ने पूछा।

"वही जिसकी मुझे आशंका थी!"

"वह तो होना ही था, इतनी बड़ी बात को स्वीकार करना इतना आसान नहीं होता। "संगीता बोली।

"पर स्वीकार तो करना ही होगा ना मां! "अभिषेक ने कहा।

"जब मुझे और तेरे पापा को मानने में ही इतना वक्त लग गया तो मेघना को मनाना बहुत मुश्किल होगा। और तुझे पता नहीं यह क्या फितूर चड़ गया है।" संगीता झुंझला कर बोली।

" मां तुम फिर शुरू हो ;गई तुम्हें तो मेघना को समझाना चाहिए।"

"पर मैं उसे कैसे समझाऊं कि मेरे घर और मेरे बेटे को छोड़कर किसी और को अपना ले! यह मुझसे नहीं होगा ।" संगीता की आंखों में आंसू भर आये।



"पर माँ मेघना मुझे नहीं छोड़ रही है मैं उसे छोड़ रहा हूं। वह मुझे छोड़कर नहीं जा रही है मैं उसे छोड़कर जा रहा हूं। यह बात तुम समझती क्यों नहीं हो? वह मेरा साथ नहीं छोड़ रही है मैं उसका साथ छोड़ कर जा रहा हूं मां! तेरा बेटा उसके साथ गलत कर रहा है। मैंने उसे धोखा दिया है मैंने उसका साथ छोड़ा है उसकी कोई गलती नहीं है। और फिर अभी उसकी उम्र ही क्या है मात्र 23 साल, कैसे काटेगी वह अपनी पूरी जिंदगी मेरे बिना अकेले? "

"पर बेटा यह जो तू कर रहा है वह बिल्कुल भी सही नहीं है। यह कोई तरीका नहीं होता! " संगीता बोली।

"जो भी तरीका हो मैं नहीं जानता सही है या गलत है? पर मैं उसे नहीं देख सकता ऐसे। और मैंने उसके बारे में जो फैसला लिया है वही होगा। सब आगे बढ़ जाएंगे , सब भूल जाएंगे और धीरे-धीरे अपनी जिंदगी में लग जाएंगे पर उसकी जिंदगी तो मेरे बिना खत्म ही हो जाएगी । वह किसके सहारे जियेगी। इस घर में जब मैं ही नहीं रहूँगा उसके साथ!"



" हम सब है न बेटा।" संगीता बोली

"तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रही हो माँ एक बार सिर्फ एक बार उसे बहू नहीं अपनी बेटी की तरह रख कर सोचो तुम्हें समझ में आ जाएगा कि जो मैं कर रहा हूं वह गलत नहीं कर रहा हूं। उसके साथ कभी गलत नहीं हो सकता है न मैं कभी कर सकता। और न मैं उसके साथ कुछ गलत कभी होने दूंगा और इसीलिए मैंने यह निर्णय लिया है। और मेरी इस बात को उसे मानना ही होगा। " अभिषेक सख्ती से बोला।

"लेकिन बेटा? " संगीता बोली,

"अगर मेरी जगह मेघना और मेघना की जगह मै होता तब भी तुम यही कहती माँ। तब क्या तुम मुझे नहीं मनाती नई जिंदगी की शुरुआत करने के लिए फिर मेघना क्यों नहीं? "अभिषेक बोला तो संगीता ने भरी आंखों से उसकी तरफ देखा।



©️डॉ. शैलजा श्रीवास्तव ®️