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आसरा। वों सात परियाँ

(अब जब यह सच्ची कहानी आपके लिए लिख रहा हूं तब मैं गांव से वापस लौट आया हूं आपने गुजरात के घर ,उम्मीद है इसे वैसे ही लिख्खू जैसी यह कहानी है।मुझे उम्मीद हे की इस कहानी से आप यकीन करना भी सीखेंगे और कहानी पढ़कर आनंद भी उठाएंगे । मैने जानबूझकर गांव का नाम और अन्य कुछ नाम बदल दिए हे,जिनमे कुछ नाम वही रखे है तो कुछ बातें और किस्से भी वही है।)

एक गांव के आखिर में यह चुना मिट्टी से बना घर था ।कहने में तो सिर्फ चुना और चिकनी मिट्टी का घर पर देखने से कोई पुराना छोटा किला जैसा चारो तरफ करीब 20 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी मिट्टी के बड़े बड़े ईट से बनाई दीवार , ईट की साइज भी ऐसी की करीब एक ईट 4 फीट लंबी और 3 फीट चौड़ी ,2 फीट मोटी थी । आज की एक आलीशान 10 मंजिली बिल्डिंग के बराबर जगह को चारो कोनो में समा ले ऐसा विशाल इस घर की चौड़ाई ,घर के आगे एक 30 बाय 60 फीट बड़ा पत्थर से बना बैठने के लिए ओटला और इसी चबूतरे के पहले घर का पुराना आगे का दोनो तरफ खुलने वाला लकड़ी का बेहद पुरानी कारीगिरी से सजाया गया दरवाज़ा इस मिट्टी के घर की शान को बयां करता था । इसी चबूतरे पर दो नीम के पेड़ मानो यहां बैठने वालों को छाया दे रहे हो । कुछ बच्चें गांव के यही अकसर खेलने आते इसका दूसरा कारण भी यह था कि गांव में इस घर के आगे अच्छा खासा खुला आंगन और उसके बाद खुली जगह थी । जैसा मुझे याद था अब ना जाने क्या बदला और क्या वैसा रहा यह देखने की तमन्ना उझे और उत्साहित कर रही है।

यह मैं आपको इस लिए बता रहा हूं क्यों की आज में 20 वर्ष बाद अपने नानी और नानाजी के घर आया हुं,..जी हां यह मेरे मम्मी का गांव है या यूं कहे मेरे मामाजी जो 4 थे मतलब मेरे दो मामा अब स्वर्गवासी हो चुके है उनका निधन हो चुका है। अब एक मामा आज भी यहां रहते हे और एक मुंबई में , मैं गुजरात में रहता हूं और काफी वर्षो के बाद इस दीपावली घूमने का मन किया तो चला आया । मैने लगभग 400 की. मीटर का सफर अपनी मोटरसाइकिल से तय किया है,बस अब पहुंचने ही वाला हूं । अब मै गांव के मुख्य सड़क पर था जहां से गांव की गलियों में घुसना होगा । गांव की पहली झलक ने मुझे साफ संकेत दे दिया की अब गांव बदल गया है। गली में मोटरसाइकिल घुमाते ही पुराने पत्थर के घरों की जगह अब सीमेंट कांक्रीट के घरों ने ले ली है,बस बदला नहीं तो इस गली का यह छोटा रास्ता जो पतला भी पहले जैसा है और गलियों में घुमावदार भी , आह मंदिर भी अब मट्ठी का नही पक्का सीमेंट का बन गया है,..पूरा दिन मोटरसाइकिल से आते आते अब शाम हों गई है और मुझे थकान भी पर में उत्साहित हूं मामा के उस पुराने मट्टी के बने घर को देखने बस कुछ सेकेंड की देरी और मेरे सामने मामा के घर का नजारा आया । ओह…यह क्या चबूतरा वही था मामा का घर भी पर अब वह पहले जैसा नहीं रहा दीवार नदारत थी और वह पुराना मिट्टी का घर भी मानो खंडहर बन गया था ,जैसे तैसे मेने मोटरसाइकिल घर के पास ले गया और शांति से देखने लगा उन दो नीम के बड़े पैडों को जो अब भी खड़े थे ।बस अब मोटरसाइकिल खड़ी कर उतरा और आसपास देखने लगा की इस खंडहर जैसे घर के बगल में बने एक पक्के घर से मेरे सबसे छोटे मामा बाहर निकले और नजदीक आए यह देखने की कौन हूं मैं ,जैसे मामा नजदीक आते गए वैसे वैसे उन्होंने मुझे पहचान लिया और चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ बोल पड़े ..।
अरे दीपू कब आया गांव…!?
और आते ही खूब बाते शुरू हो गई ,..में भी अपना बैग कंघे पर लटकाए उनके साथ उस नए घर की तरफ चल दिया।
शाम अब रात में बदल गई थी मैं भी थकान से रात का खाना खाकर लकड़े के चारपाई पर आंगन में लेट गया बगल में तीन और चारपाई लगी थी जिसपर धीरे धीरे पड़ोस के एक बुजुर्ग और मेरे मामा के दोनो बेटे के साथ ही मामा भी बाहर आकर अपने चारपाई पर लेट गए , और फिर सभी चारपाइयों को बीच मामाजी के बड़े लड़के मतलब मेरे एक भाई ने आग जला दी जिससे ठंड के इस मौसम में गरमाहट आ गई । यह नवम्बर का महीना है तो काफी अच्छी ठंड यहां इस महीने में होती है , खैर मेने मेरा ठंड का जैकेट पहना था और सर पर उन की टोपी और मेरे बिस्तर में नीचे मोटा गद्दा के साथ ओढ़ने के लिए बड़े दो कंबल ठंड का अहसास बिलकुल नहीं होने दे रहे थे । अब जो बुजुर्ग मेरे पास की चारपाई पर आ कर बैठे थे वो मेरे मामाजी के चाचा थे और हमेशा वह यही आंगन में रात को सोया करते है जिन्हे में नाना ही कहता हूं । अब उन्होंने मुझे पूछा ।
दीपक कब आया तू गांव …
मैने तुरंत आग की तरफ देखते हुए नानाजी को कहा ।
नाना ..आज शाम को पहुंचा हूं ।
अब उन्होंने मुझे देखते हुए कहा
हम..बहुत वर्षो बाद आया है…शहर रास आ गया है तुम लोगो को …गांव में वैसे भी क्या हे।
उनकी बात का मैने कोई ज़वाब नही दिया बस उन्हें चुपचाप देख रहा था । उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ….।
वहां गुजरात में केसे है सब …तेरी मौसी और उनका परिवार सब ठीक है ना….!
मैने उन्हे देखा और कहना शुरू किया ।
हा नाना मौसी भी ठीक है तीनो ….।.और उनके परिवार के सदस्य भी ..अच्छा काम चल रहा है सबका ।
मेरी बात सुनकर कुछ पल के लिए नाना शांत हो गए अपने हाथ को चारपाई पर बैठे हुए आग के आगे सेकने के बाद बोले ।
हम्मम…चलो अच्छा है…सब ठीक है…।
हमारी बाते हो रही थी की तभी मामा के बेटे अजय ने मेरा मोबाइल ले कर उसमे से मेरे मम्मी की एक पुरानी तस्वीर देख ली और मुझसे कहने लगा ।
दादा यह आपकी मम्मी हे ना…।
मैने हां में सर हिलाया ..यह तस्वीर काफी पुरानी थी लगभग 1983 की ब्लैक एंड व्हाइट इसमें मेरी मम्मी के साथ मेरी तीनो मौसी और मेरी ,मेरे बड़े भाई की भी तस्वीर थी ।
उसकी बाते सुनकर अब नाना ने भी वह तस्वीर देखने की इच्छा जताई तो अजय ने मोबाई में तस्वीर खोल कर नाना को दिखाई जिसे देख वो काफी खुश हुए और लाइन से तस्वीर में जो थे सबके नाम कहते कहते मोबाइल वापिस कर दिया और मुझे कहने लगे ।
दीपक अरे तू तो आधा तेरी मम्मी और आधा पापा पर गया है पर चेहरा मोहरा बिलकुल अपनी मां का है जैसा तेरी मां जयश्री का था ।
जयश्री मेरी मां का नाम था जो अब स्वर्गवासी है 2000 के वर्ष के दौरान लंबी बीमारी से उन्ही मृत्यु हो गई थी । नाना उनके चाचा थे तो नाना को सबके नाम याद है,इस लिए वो सीधे नाम ले कर बात कर रहे है। कुछ देर यूं ही यहां वहा की बाते होती रही फिर मेने उनसे पूछा नाना पहले इस गांव में ऐसा कुछ हुआ था क्या जो कोई अच्छी कहानी बताते है…..सात पारियों वाली आसरा की…नाना ने मुझे देखा और आग सकते हुए फिर कहा ।

हां…बात सच है पर तू क्या करेगा अब सुनकर ….आजकल जमाना बदल गया है और यह सब बातो को लोग आज नहीं मानते….।
मैने बीच में उनकी बात काटकर कहा नाना पर मुझे सुनना है…क्या कहानी है वो…।
अब नाना ने कहा तू अभी सो जा आराम कर थक गया होगा ..।
मैने उन्हे जवाब देते हुए कहा ।
नही…मै थका नही हूं वैसे भी गुजरात में सोने में देर हो जाती है…और नौ दस बजे तो वहा कोई सोता नही बल्कि रात का खाने की तैयारी होती है….हमलोग तो कम से कम रात ग्यारह बजे के बाद ही सोने जाते है…..और वैसे भी मुझे नींद नहीं आ रही है…।
हमारी बाते बगल में मामाजी भी अपने बिस्तर में लेट कर सुन रहे थे । अब नाना ने कुछ सोचा और कहना शुरू किया ।

…बात बहुत पुरानी है जब तेरी मां ग्यारह बारा वर्ष की होगी उसके साथ उसकी छोटी बहन मालन भी मुझे याद है। यहां गांव की स्कूल से पढ़कर आती और घर में खूब काम करती थी दोनो बच्चियां तेरे नाना के तब दो लड़के जालिंदर और सज्जन के बाद यह तेरी मम्मी और मौसी ऐसे तब चार बच्चे थे । तेरे नाना का नाम बापुराव जो आसपास के कई गांवों में मशहूर था । एक हिसाब से कहूं तो शायद जागीरदारी थी मतलब अच्छे खासे आमिर खानदान के सब । वो समय बहौत अच्छा था गांवों में पानी की कमी नहीं थी हर तरफ हरियाली और खुशहाल लोग , हर खेत खिले और लहलहाते हुए थे । मानो सर्व यही गांव में था । पर जल्द ही यह हालात बदलने लगे और बरसात कम होने लगी । पर फिर भी उसके बाद भी आने वाले कई वर्ष बहौत अच्छे और खुशनुमा थे । इन्ही वर्षो के दौरान तेरे और दोनो मामा का भी जन्म हुआ और दोनो मौसी का भी । पर जयश्री और मालन दोनों लड़कियां बहुत प्यारी और समझदार ,स्नेह करने वाली बपुराव के घर पर जन्मी थी । अब बापुराव जो तेरा नाना था उसने हमेशा जीवनभर लोगो के झगड़े सुलझना ,पंचायतों में फैसले में सच का साथ देना और समाज सुधारने का काम किया ,पर कही नौकरी नहीं की । दोनो बड़े लड़के जलिंदर और सज्जन के बाद यह दोनो बहने थी । स्कूल से घर आने के बाद दोनो बहने यह पड़ोस के एक व्यापारी और जागीरदार के खेत में जाती और वहां धान को चिड़ियों और पक्षियों से बचाने का काम करती जिसमे एक सुबह तो दूसरी दोपहर एक दूसरे के साथ यह काम बड़े उत्साह से करती हालाकि उनके पिता इन्हे यह नहीं करने देते पर पड़ोस के जागीरदार अमीर काका का उनके साथ संबंध अच्छे थे तो बापूराव भी अपना समझ कर कुछ नही बोलता । दिन ऐसे ही बीत रहे थे की एक दिन दोपहर के समय मालण आमिर काका के खेत पर आई और जयश्री को घर जाकर कुछ खाने कोंकहाते हुए खुद खेत में गुलेल से पक्षियों को खेत से दूर करने। में लग गई ।…हालाकि यह खेत दूर हे नही यही नजदीक है पर दोनो 16से 17वर्ष की लड़कियां जो काफी खुश थी इस काम में वह तो अभी नादान ही थी । नाना की कहानी सुनते हुए ना जाने कब मै इस कहानी में जा पहुंचा मुझे याद ही नहीं रहा अब मेरे कानो में नाना की आवाज किसी फिल्म के बैकग्राउंड आडियो वाइस जैसी चल रही थी और सामने थियेटर के बड़े परदे पर दृश्य उभर रहे थे । मेरी मां मतलब जयश्री खेतों के बगल में बनाए बांध के रास्ते हस्ते मुस्कुराते घर की तरफ आ रही थी और मौसी मतलब मालन अब खेत में हुरर हाउ की आवाज देते हुए गुलेरी से पक्षियों को खेत से दूर रख रही है,एक तरफ हेरभरे खेतो और बांध के आसपास के खूबसूरत जंगली फूलों के बीच जयश्री घर की तरफ लगातार आ रही है इस समय दोपहर होचुकी है तभी ठीक घर से पहले एक गांव की पगडंडी के पास विशालकाय इमली के पेड़ के नजदीक ही जयश्री को आभास हुआ की कुछ लड़कियां अपने सर पर कुछ सामान के पोटली उठाकर उसी पगडंडी पर आगे आ रही है और जब उसने गौर से देखा तो वाकई वह लड़किया बहौत सुंदर थी उनके कपड़े भी अलग तरह से बनाए गए सफेद चमचमा रहे है,खुबसूरती से बनाए गए बाल लंबे और उनका सिंगार जिसे देख जयश्री मोहित हो उठी और उसे पता भी नहीं चला की कब वह लड़किया उसके नजदीक आ कर उससे कुछ बात करने लगी …पहले तो जयश्री को यह बड़ा ही अदभुत लगा पर जब उनमें से एक ने रास्ता पूछा तब जयश्री ने वह रास्ता बताया और फिर एक ने जयश्री से नाम पूछा तो उसने बताया अपना नाम …एक गांव के जाने के लिए रास्ता बताते हुए जयश्री ने कहा
वो…यहां से आगे जाओगे तो उस खेती के पास मेरी एक बहन है मालण नाम है उसका आगे आप उससे रास्ता पूछना आपको वह रास्ता बता देगी ..और बोलना जयश्री ने भेजा है उसने ही यहां से रास्ता बताया है..।
इतना कहते ही जयश्री मुस्कुराई उसे उन लड़कियों से बात करना बहौत अच्छा लग रहा था । बाते खत्म होने के बाद अब वह सात लड़किया अद्भुत प्रकाश के साथ आगे बढ़ी ।



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