पथरीले कंटीले रास्ते - 3 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 3

 

3

 

अभी तक आपने पढा , एक सीधा सा लङका रविंद्र सिंह गाँव चक्क राम सिंह में रहता है । कालेज में पढता है । पुलिस में भर्ती का टैस्ट पास कर चुका है और इंस्पैक्टर बनने के सपने देख रहा है कि उसके हाथ से एक मर्डर हो जाता है । वह थाने में पेश होने जाता है । थानेदार मृतक का नाम सुन के चौंक जाता है ।
अब आगे ...

 

थानेदार को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ । ऐसा कैसे हो सकता है । इकबाल सिंह जैसे आदमी से दुश्मनी लेने की बात कोई सोच भी नहीं सकता । गुंडई में एक नम्बर है । वह जिधर भी निकल जाता है , लोग भय से सिर झुका लेते हैं । जिस भी दुकान पर उसके आदमी जा धमकते हैं , वह हर दुकानदार उसे चुपके से लिस्ट के मुताबिक सामान पहुँचा देता है । रेहङीवालों तक से उसका हफ्ता बंधा हुआ है । सरकारी सरंक्षण ने उसे बेखौफ बना दिया है । उसके खिलाफ कभी कोई शिकायत पुलिस थानों में दर्ज नहीं हुई । पूरे जिले में उसका अघोषित राज है । उसका इकलौता बेटा है ये शैंकी उर्फ शिवेंद्र सिंह । तेइस साल का तो हो ही गया होगा । कालेज में मटरगश्ती करने के लिए नाम लिखवा रखा था । पता नहीं कभी कोई क्लास भी लगाई या नहीं । पूरा दिन किसी गाङी में दो चार दोस्त लेकर सैर सपाटे को चला होता था । अपने बाप के नक्शे कदमों पर चल रहा था आजकल । और यह मुंशी बता रहा है कि बाहर बैठे उस सीधे से गँवार दिखते लङके ने शैंकी को मार दिया । असंभव । बिल्कुल असंभव । ऐसे तो हो ही नहीं सकता । फिर उसने सोचा कि अगर मुंशी सच बोल रहा हुआ तो ... । अगर वह शैंकी सचमुच मर गया हुआ तो ... । उसने अपने सिर को झटका दिया ।
सामने मुंशी स्टूल पर कांच के गिलास रख कर उनमें चाय छान रहा था ।
सुन , चाय बाद में छान लीजो । पहले उस लङके को यहाँ बुला ।
जी साब अभी बुलाता हूँ ।
मुंशी चाय को वहीं छोङ कर लङके को बुलाने चल पङा और चंद सैकेंड में ही उसे साथ ले आया ।
बैठ
लङका थानेदार के सामने बैठने से हिचकिचा रहा था । वह सिर झुकाए खङा रहा ।
मैंने कहा - बैठ । थानेदार ने अपनी रौबीली आवाज में दोहराया तो वह डरते डरते कुरसी के अगली ओर होकर उकङू बैठ गया ।
तेरा नाम ?
रविंद्र सिंह
जाट हो ?
न जी , हम कहार होते हैं , पुराने जमाने में हमारे बुजुर्ग डोलियाँ उठाया करते थे ।
अब तो डोलियाँ रही नहीं ?
जी , अब बापू और ताऊजी खेतों में मजदूरी करते हैं ।
तू क्या करता है ?
पढता हूँ सर , राजिन्द्रा कालेज में । एम ए कर रहा हूँ । साथ साथ कई टैस्ट दे रखे हैं । कुछ बैंक के दिये थे । पुलिस इंस्पैक्टर का एग्जाम भी दिया था । पास हो गया । अब अपांइटमैंट लैटर आने वाला है ।
और तूने ये इतना बङा स्यापा खङा कर दिया हम सब की जान को ।
मैंने जानबूझ कर नहीं किया साब वो तो अपनेआप हो गया सर ।
जानता है जो मर गया वो कौन था ?
सर शैंकी था । रामपुरा में रहता है । सारे दिन में गाँव में दो तीन गेङियाँ मारने जरुर आया करता था ।
औए , गेङियाँ मारता था तो तुझे क्या था । एक आध चक्कर लगाकर वापिस चला जाता होगा । तूने तो उसे जान से ही मार दिया । जानता है , अब मुकद्दमे चलेंगे । फिर तुझे कत्ल के इल्जाम में सजा हो जाएगी । जवानी जेल में गुजर जानी है । “
युवक के चेहरे पर कई रंग आये , कई गये । वह कुछ कहने के लिए मुँह खोलने ही वाला था कि तभी फोन की घंटी बज उठी । थानेदार ने फोन उठाया । उधर फोन पर एस पी साहब थे ।
जयहिंद साबजी - थानेदार ने सावधान मुद्रा में खङे होकर सैलूट मारा ।
जयहिंद
सुन , तेरे एरिया में वो गाँव है न , चक्क राम सिंहवाला । वहाँ इकबाल सिंह के बेटे का कत्ल हो गया है । गाँव वाले उसे आदेश अस्पताल में लाये हुए हैं । दो चार सिपाही लेकर फौरन वहाँ अस्पताल में पहुँचो । मामला संभालो ।
जी साबजी अभी तुरंत निकलते है । साबजी एक और खास बात बतानी थी जी । जिस लङके ने यह मर्डर किया है , उसे हम हिरासत में ले लिये है । वारदात की रिपोर्ट बन रही है ।
ओह गुड । यह अच्छी खबर है । उस लङके की सिक्योरिटी का पूरा ध्यान रखना । कोई उसे नुक्सान न पहुँचाने पाये ।
जी साब ।
और अस्पताल से हर छोटी बङी रिपोर्ट मुझे देते रहना ।
जी साब , जयहिंद साब ।
साहब ने फोन रख दिया ।
थानेदार ने सिपाहियों को बुलाकर गाङी निकलवाई । फिर चार पाँच सिपाहियों को थाने में मुस्तैद रहने को कहा । अपना सर्विस रिवाल्वर निकालकर चैक किया ।
इस लङके को लाकअप में बंद कर दो । सुबह कोर्ट में पेश करना पङेगा ।
तब तक बग्गा सिंह अपने साथ दो चार गाँव वाले लेकर थाने में हाजिर हुआ । थानेदार जीप में बैठने जा रहा था कि बग्गा सिंह ने उसके पैर पकङ लिये - साहब जी । मेरा लङका है जी रविंद्र । बिल्कुल सीधा सादा है । जी पढाई में बहुत होशियार है । सजा हो गयी तो हम बरबाद हो जाएंगे । लङके की जिंदगी का सवाल है ।
साहब जी रहम करो ।
तुम लोग बैठो , मैं थोङी देर में आता हूँ ।
बैठाओ भई इन्हें । उन्होंने सिपाही को कहा ।
साहब जीप पर सवार हुए । जीप धूल उङाती हुई चली गयी । बग्गा सिंह ने अपने साफे के पल्ले से अपनी आँखें पौंछी ।
क्या सोचा था और क्या हो गया । कहाँ तो आस लगाये हुए था कि बस एक दो साल तकलीफ के बाकी हैं । रविंद्र की पढाई खत्म हो जाएगी तो वह कहीं न कहीं अफसर तो लग ही जाएगा । एक बार नौकरी मिली तो बस फिर घर की गरीबी ने तो दूर हो ही जाना है । फिर वह दरवाजे में लगी नीम की छाँव में मंजा बिछाकर बैठेगा । आते जाते लोगों से बातें करेगा । उन्हें रोक कर चाय लस्सी पिलाएगा । लोग उसकी किस्मत की तारीफ करेंगे । कोई कोई जल भुन भी जाएगा तो जले उसकी जूती से ।
पर अब तो सारे अरमान धरे के धरे रह गये । उल्टे खर्चे को जगह हो गयी । वकीलों के घर भरने पङेंगे । कोर्ट कचहरी के धक्के खाने पङेंगे सो अलग ।
हे रबजी ये बैठे बिठाये कैसी विपदा आन पङी है ।