Mulakat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मुलाकात - 2

अब तक आपने पढ़ा जया और आनन्द की दोबारा मुलाकात कहां और कैसे हुई,
अब जानेंगे आगे,..........

जया गुमसुम सी बैठी ही रही,आनन्द अब बेबस सा उसे उसके घर ले जाना चाहता था शादी की बात कर सके उसके घर वालो से ,
जया मुझे तुम से बात करनी है बोलो क्या..?हुआ है तुम्हे,
जया को अब कुछ होश आया उसने खुद को सम्भाला और कहा ,_ आनन्द तुम कहां चले गये थे मुझे अकेला छोड़कर, क्यो किया तुमने ऐसा मेरे साथ और रोने लगी
और बोलती जा रही थी क्या क्या साह मैने,
तुम बिन बताये चले गये बिन कहे चले गये ,मेरी शादी हो चुकी है और मै किस नर्क से गुजरी हूं मै ही जानती हूं
तुमने एक बार ना सोचा तुम्हारे बिन मेरा क्या हाल हुआ होगा ,ना कोई खैर खबर दी तुमने ,तुम्हारे घर और ऑफिस भी गयी थी तुम्हे किसी ने बताया नही घर या ऑफिस मे,कितना ढूँढा तुम्हे एक फोन तक नही किया तुमने पलट कर नम्बर तक बदल लिया तुमने जया बस रोती ही रही , उसने कहा कभी तुमने जानने की कोशिश तक नही की आज तुम्हे मेरी याद आई तो चले आये और चाहते हो मै तुम से बात करूं मुझे कोई बात नही
करनी आनन्द, तुम्हारे कहने से आ तो गयी क्योकि मै तुम जैसी पत्थर दिल नही हूं ,मुझ से कभी मिलने की कोशिश न करना ये कहते हुए अपने आँसू पोछे और उठकर चलने लगी, आनन्द बस देखता ही रह गया ,
जया कैफे से बाहर चली गई, आनन्द ने उसे रोकना चाहा,और भागा जया के पीछे, बहुत बार रोका तब जया रूकी, बोली क्या है आनन्द मुझे जाने दो तमाशा मत करो,

आनन्द ने जया का हाथ पकड़कर अपने दिल की हर बात कहना चाही,
जया ने खुद को छुडाते हुए कहा आनन्द अब मुझे जाने दो ,बड़ी मुश्किल से यहां आयी हूं फिर कभी ना मिलने के लिए, आनन्द को बार-बार कहने से जया फिर कभी मिलने को राजी हो गई और चली गई,

आनन्द बेचैन अधीर टूटा हुआ घर को चल दिया,ना जाने क्या क्या सोचता हुआ चला जा रहा था,

उधर जया रोती हुई अपनू आसूंओ को पोछती हुई सिसकियों को काबू करती हुई घर पहुंची,
देवेन्द्र और घर वालो की गाली और तानो को सहती हुई,

घर के कामों को खत्म करके अपने रूम मे गई ,देखा देवेन्द्र सो चुके थे, उसने चैन की सांस ली और कुर्सी पर बैठ गई, आंखे मूंदकर वो पुरानी यादों मे खो गई,

बारहवी के एग्जाम के बाद ग्रेजुएशन के लिए वो इस शहर मे आई थी , एक रुम मे तीन लड़किया साथ मे रहने लगी कॉलेज मे एडमिशन पर होस्टल रूम यही उसकी जिन्दगी बन कर रह गई,

छुट्टी मे घर जाती तो पापा मां की बीमार के बारे मे ही बात करते भाई और छोटी बहन का साथ बड़ा सूकून देता था, घर से लौटते वक्त सबकी आंखो से आंसू ही बहते थे,जैसे तैसे एक साल निकल गया ,जया को घर बहुत याद आता था,
उसकी रूममेट पल्लवी और साधना उसकी पक्की सहेलिया बन गई दोनो जैसे उसका परिवार हो गई थी,
पल्लवी के मामा उसी शहर मे रहते थे ,मामा की बूटी यानि पल्लवी की मेरी बहन की शादी थी, मामा और मां के कहने से पल्लवी अपनी दोस्तो को भी अपने साथ शादी मे ले गई , जया का बिल्कुल मन नही था पर वो पल्लवी को निराशा नही करना चाहती थी सो वो भी पल्लवी के साथ शादी मे गई, पल्लवी की सहेली इतनी साधारण है ये पल्लवी की मामी को पसन्द नही आया,जया को देखते ही बोली दोस्त स्टेटस के हिसाब से रखने चाहिए,
ये सुनते ही जया की आंखे भर आई,पल्लवी के मामा और मां ने कहा ऐसा नही बोलते, तो मामी का मुंह बन गया उस दिन से मामी जी को जया कभी पसन्द ही नही आई,पर और सब का उससे अच्छा बर्ताव था ,फिर जया को वहां सिर्फ शादी तक ही तो रूकना था ,
रात का खाना खा कर सब सोने चले गये सारा दिन की भागदौड मे सब थक गये थे तो जल्दी से गये,मामा जी बेटा जो कहीं बाहर पढता था उसकी ट्रेन रात में थी तो मामा जी और पल्लवी दोनो जाग रहे थे , पर ट्रेन के लेट होने की वजह से पल्लवी भी सो गई, मामा जी अपने को बेटे को लेने स्टेशन चले गये ,मै अकेली इधर उधर भटकती रही मुझे नींद ही नही आ रही थी, गाड़ी की आवाज सुन कर अपने रूम मे जा कर लेट गई पर नई जगह होने के कारण नींद आ ही नही रही थी,

मामा जी और उनका बेटा दोनो आ गए , आवाज सुन रही थी बेटे को भूख लगी थी और रोटी बनी हुई नही थी,
तो मामा जी किसी को देख रहे थे जो बेटे को रोटी बना कर दे दे, अब जया से नही रहा गया और उसने मामा जी से बोला रोटी मै बना दूं,मामा जी खुश हो गये ,बेटा भूखा था और वो रोटी बनाना नही जानते थे तो हां कर दिया और खुद बेटे के लिए खाना परोसने लगे,
रोटी बना कर जया भी सोने चली गई

अगले दिन जब वो उठी तो सुबह हुई काफी देर पहले हो चुकी थी,और सब नाश्ता कर रहे थे पल्लवी ने बताया जल्दी उठ जया सब तैयार भी हो गये शादी की कोई रस्म होने वाली थी , पल्लवी ने बताया उसका मामा का बेटा
आनन्द आया है पूना से,
उसने पल्लवी को कल रात की घटना का कोई जिक्र नही किया,

आगे जाने के लिए बने रहे हमारे साथ,........


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED