पथरीले कंटीले रास्ते - 1 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पथरीले कंटीले रास्ते - 1

 

पथरीले रास्ते का जंगल

 1 

 

दोपहर के तीन बज रहे थे। सूर्य का तेज मध्यम हो चला था। पर सड़कों पर अभी लोगों का आना जाना न के बराबर है। कोई कोई व्यक्ति किसी मजबूरी के चलते ही बाहर निकलने की हिम्मत दिखा पा रहा था। सुबह नौ बजे से अबतक सूर्य ने अपनी गर्म किरणें धरती पर तरकश के तीरों की तरह बरसा रखी थी। धरती तप कर लाल हो गई थी। जमीन पर पांव पड़ते ही पैर जल जाने निश्चित थे। ऐसे में यह अर्दली पाइप लेकर थाने के बाहर पानी से छिड़काव कर रहा था कि एक युवक साइकिल चलाते हुए आया और सीधे बरामदे में मेज सजाए बैठे सिपाही के पास जा पहुंचा ।

साहब साहब मेरे से एक बंदा मर गया।। यकीन करो साहब मैंने मारना नहीं था। वह खुद ही मर गया।

साइकिल चलाने के श्रम से उस लड़के की सांस उखड़ रही थी। घबराहट के मारे उसका बुरा हाल हो गया था। इतना बोलते हुए वह बुरी तरह से थक गया, लग रहा था कि अगर दो मिनट और यहां ऐसे ही खड़ा रहा तो गश खाकर नीचे जमीन पर ही गिर पड़ेगा। उसने संभलने के लिए मेज का सिरा पकड़ लिया और लंबी सांसें लेकर खुद को संभालने का प्रयास किया। 

मुंशी अपनी मेज पर फाइलों का ढेर लगाए हुए उनमें उलझा हुआ व्यस्त दीखने का प्रयास कर रहा था । साहब शब्द ने उसके कानों में रस घोल दिया। कितना मीठा लगता है यह संबोधन। आज पहली बार किसी ने उसे साहब कहा था वर्ना तो वही पूरा दिन यस साहब, यस साहब, जी सर कहता रहता है। कहना ही पड़ता है। यही दस्तूर है। इससे पहले कि कानों में घुली मिश्री गायब हो जाय, उसने सिर उठाकर अपने सामने हाथ बांधे खड़े हुए युवक को देखा। युवक मुश्किल से बीस इक्कीस साल का रहा होगा। कद कोई छः फुट का तो होगा ही होगा। । रंग थोड़ा सा सांवला  था। कंधे चौड़े। शरीर मेहनत की वजह से मजबूत हो गया था । चेहरे पर हल्की हल्की मूँछ जैसे आईब्रो पैंसिल से बनाई गई है। । करीने से संवारे हुए बाल। मजबूत कद काठी के बावजूद मासूमियत चेहरे पर बिखरी हुई थी। इस समय पसीना पसीना हो रहा था। अपनी घबराहट को काबू करने की असफल कोशिश कर रहा था। 

उस लड़के को इस तरह बेचैन और घबराया हुआ देख कर वह करुणा से भर गया। पर ड्यूटी तो ड्यूटी है न। इस नौकरी में दया और करुणा के लिए जगह बहुत कम है या सच कहा जाय तो है ही नहीं। किसी से थोड़ा सा अपनेपन से बात कर लो तो वह सिर पर सवार हो जाता है। फिर पूरा दिन अफसरों की गाली सुनते हुए खुद को कोसते रहो। नहीं वह कमजोरी नहीं दिखाएगा। उसने अपने आप को कठोर बना लिया। अगले ही पल उसके चेहरे पर बेगानापन और कडकपन झलकने लगा। 

युवक ने दोबारा चिरौरी की - साहब।

उसने दोबारा सिर उठाया और बरामदे में दीवार के साथ सटा कर रखे गये लोहे के बैंच की ओर बैठने के लिए इशारा किया और फिर से अपनी फाईलों में व्यस्त हो गया ।  युवक बिना बोले चुपचाप बैच पर जा बैठा और अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करने लगा। । थोड़ी-सी देर में उसकी सांस सामान्य होने लगी। बेचैनी थोड़ा काबू में आई। वह कुछ देर हाथ में पकड़ी हुई साइकिल की चाबी को घुमाकर उससे खेलता रहा। जब खेलते खेलते थक गया तो चाबी को जेब में डाल कर सीधा बैठ गया। धीरे धीरे वह प्रकृतिस्थ हो  गया तो उसने इधर उधर नजर दौड़ाई।

यह थाना एक पुरानी जीर्ण शीर्ण इमारत  में स्थित था। बाहर आंगन के एक कोने में नयी पुरानी जंग खाई कारों, जीपों के टूटे फूटे कबाड़ के ढेर लगे थे। शायद ये सारी गाङियाँ किसी दुर्घटना की शिकार रही होंगी। सालों तक खिंचते मुकदमों की वजह से यहां धूप, आंधी और बरसात झेल रही थी। उनसे थोड़ी दूरी पर बने रास्तें के दोनों ओर कुछ गमले रखे हुए थे जिनमें कभी मौसमी फूलों के पौधे लगाए गए होंगे पर पानी और संभाल के अभाव में इस समय सब  कुम्हला गये थे । गमलों में खङी सूखी टहनियां इसकी गवाही दे रही थी। वह रास्ता जहां पहुंचता था वहां बरामदा था । उसी बरामदे में बिछे दो लोहे के जंगाल खाये बैंचो में से एक बैंच पर इस समय वह बैठा था और इस सिपाही के खाली होने का इंतजार कर रहा था। इस बरामदे को पार करने के बाद एक कमरा था। उस कमरे के भीतर एक और कमरा था जो शायद थानेदार का कमरा होगा। उस कमरे में सामने सिर्फ दो खाली कुर्सियां दिखाई दे रही थी। उसने गर्दन उचका कर झांकने की कोशिश की पर थानेदार साहब कहीं दिखाई न दिये। थानेदार साहब शायद कहीं दौरे पर गये होंगे।  वह चुपचाप बैठा हुआ काफी समय इसी तरह चारों ओर गर्दन घुमा घुमा कर देखता रहा, देखता रहा।  अगर किस्मत ने साथ दिया होता तो ऐसे ही किसी पुलिस स्टेशन में वह नियुक्ति पा जाता। पर आज वह अपराध स्वीकार करने के लिए यहां आया हुआ है। एक ऐसा अपराध जो उससे अचानक हो गया। वरना वह भी किसी थाने में थानेदार होता। 

सोचों में डूबे डूबे उसे अपने पिता याद आए। बेचारे ! न जाने उन्होंने उसे और उसके भविष्य को लेकर कितने सपने पाल कर रखे हुए थे। बेटा बड़ा होगा। पढेगा। सरकार में नौकर हो जाएगा। खूब कमाएगा। घर की गरीबी को दूर करने में मदद मिलेगी। लडकियां अच्छे घरों में ब्याही जाएंगी और क्या चाहिए। उसके दादा मजदूर थे। पूरा दिन हाडतोड कर दिहाड़ी करते तब जाकर परिवार को आधापेट रोटी नसीब होती। उनके पांच बच्चे थे। दो लड़के  और तीन लडकियां। जैसे तैसे तीनों बाप बेटों ने दिन-रात मेहनत करके तीनों लडकियों की शादी की थी। ताऊजी किसी जमींदार के साथ सीरी हो गये। वे अभी भी बहुत गरीबी में जीवन काट रहे हैं। ताई इधर-उधर छोटे मोटे काम करती है। चार बच्चे हैं। दो लड़के दो लड़कियां। सब मेहनत मजदूरी करते हैं और यूं ही मेहनत मजदूरी करते करते दुनिया छोड़ जाएंगे। और आने वाली पीढ़ी को भी विरासत में यही गरीबी और मजबूरियां दे जाएंगे।