शारिरीक बनावट का जीवन भविष्य पर प्रभाव नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा ज्योतिष शास्त्र में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

शारिरीक बनावट का जीवन भविष्य पर प्रभाव


शारीरिक बनावट का मनुष्य के जीवन भाग्य भविष्य पर प्रभाव-----

ब्रह्माण्ड का प्रत्येक प्राणी अपने सुख को लेकर जागरूक और दुःख को लेकर चिंतित रहता है ।मनुष्य जिसके पास सोचने समझने की क्षमता है
जिसके कारण उसकी प्रबृति किसी भी विषय को खोजने जानने की होती है। मनुष्य अपनी इसी प्रबृति केकारण विज्ञान का बड़े से बड़ा आविष्कार कर दिया जो ईश्वरीय अवधारणाएं थी
उनको भी अपनी पहुँच के दायरे में समाहित कर लिया ।मनुष्य अपनी खोजी प्रबृति के कारण अपने वर्तमान में भविष्य को जानने के प्रतिजागरूक रहता है ।अमूमन यह जानकारी उसे ज्योतिषित गणित के आधार से प्राप्त होती है ।ज्योतिष सौर्य मंडल की गति पर निर्धारित होती है किसी भी जातक के जन्म के समय ग्रहो की स्थिति नक्षत्र उसके भविष्य की गणना के आधार बनते है ।जिस पल किसी जातक का जन्म होता है उस पल के ग्रहो की स्थिति की गति भविष्य में किस प्रकार की होगी इसी आधार पर ज्योतिष गणना करते हुए उस व्यक्ति के भविष्य का निर्धारण किया जाता है गणना में लग्न और राशि ग्रह गोचर की स्थिति महत्व्पूर्ण होती है यही ज्योतिष का मूल सिद्धान्त है ।ज्यो ज्यो समाज का विकास होता गया ज्योतिष ने भी विकास किया आज कल ज्योतिषीय गणना की बहुत सी विधाए विकसित हुई है जिसमे हस्त रेखा विज्ञान हाथ की रेखाओं के आधार पर किसी व्यक्ति के भविष्य की गणना करना लेकिन इसमें संदेह की गुंजाइस बहुत होती है क्योकि मनुष्य की हस्त रेखा बनती विगड़ती रहती है अतः किसी मनुष्य के भविष्य की सटीक गणना का प्रमाणित सिद्धान्त हस्त रेखा नहीं हो सकता।
ज्योतिष एक नई विधा संख्या ज्योतिष है जो पूर्णतया गणित है और जिसकी शुद्धता है तो इस आधार पर की गयी गणना की सत्यता काफी हद तक प्रमाणित होगी ।इस गणना और कुण्डलिय गणना में समानता है कुंडली में जन्मग पंचाक के आधार पर लिया जाता है जबकि अंक ज्योतिष में जन्मांक आधार गणना का होता है।ज्योतिष गणना की एक पद्धति है शारीरिक बनावट जो अपरिवर्तनीय है जैसे आँख, नाक, भौहे ,आँख की पुतली ,पैर ,चाल ,आवाज आदि इत्यादि जो कभी परिवर्तनीय नहीं है आधुनिक विज्ञानं इसे स्वीकार करता है और मान्यता भी प्रदान करता है जैसे किसी भी व्यक्ति का हस्ताक्षर नहीं बदलता यह विज्ञानं का सिद्धान्त है किसी भी व्यक्ति के अंगूठे अंगुलियो का निशान नहीं बदलता इसे विज्ञानं स्वीकार करता है।आज हम विशुद्ध विज्ञानं वैज्ञानिक स्वीकृत किसी भी व्यक्ति के भाग्य की व्यख्या शारीरिक बनावट के आधार कर रहे है यह एक ऐसी ज्योतिष विधा है जिसके आधार पर व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य को समझ सकता है जान सकता है तो आईये हम शारीरिक बनावट के आधार पर भविष्य की व्याख्या कर रहे है आप स्वयं अपनी सगारिरिक बनावट से अपने भाग्य की सच्चाई जाने----

अजान बाहु --जिस व्यकि के हाथ उसके पैर के घुटने को स्पर्श करते हो वह व्यक्ति अजान बाहु होता है और ऐसा व्यक्ति विश्व स्तर पर अपने नेतृत्व बुद्धि कौशल वाक् पटुता से प्रसिद्धि प्राप्त करता है ।यदि किसी व्यक्ति का हाथ घुटने को नहीं भी स्पर्श करता है और उसके हाथ औसत से लंबे है तब भी वह व्यक्ति धन बैभव यश विद्या का स्वामी होता है ।
महिलाओ में आजान बाहु का होना सर्वथा अनिष्ट कारी होता है।
हाथो की उंगलियां--यदि हाथों की उंगलियां निचे से क्रमशः ऊपर की और पतली होती गयी हो तो महिला हो या पुरुष दोनों ही ख्याति प्राप्त कलाकार खिलाड़ी संगीतज्ञ पेंटर आदि इत्यदि में प्रसिद्धि प्राप्त करेगा।

ललाट ----जिस पुरुष का ललाट ढलाउं ऊँचा होता है वह् मनुष्य राजयोग को निश्चित प्राप्त करता है कदाचित सुख सुविधा भोगी होता है ।महिलाओं में यदि ललाट ढलाऊ ऊँचा है तो उसे हर हाल में वैधव्य भोगना पड़ेगा यदि वैधव्य नही भी होगा तब भी पति का साथ नही होगा यह बात दीगर है कि इस प्रकार की महिलाये सुखी सम्पन्न और प्रतिष्टित अवश्य रहेंगी उनमे एकावली योग प्रवाल होता है।।

हाथ का छोटा होना बांगुरा-- हाथ औसत से छोटा हो और उंगलिया अंगूठो से अक्सर मिली रहती हो उसे सामान्य भाषा में बांगुर कहते है जिस व्यक्ति के हाथ इस प्रकार के होते है वहः जीवन में अपने स्वयं के संघर्षो से एक नए स्वयं अस्तित्व की बुनियाद रखता है जिसमे धन बैभव यश सभी समाहित होता है।
भौहे ---आंख के ऊपर दोनों भहों का चंद्रकार आकृति में मिला होना यदि यह बनावट पुरुष में है तो वहः क्रोधी नकारात्मक सोच का षड्यंत्रकारी कामी और एकाकी और विध्वंसकारी होगा ।यदि यही बनावट महिलाओ में है तो जहाँ भी वो रहेंगी वहां दरिद्रता कलह विपत्तियों का न टूटने वाला सिलसिला अपयश अपकीर्ति संसय का वातावरण बना रहेगा।
आँख की बनावट --आंख व्यक्ति के व्यक्तित्व और भाग्य का निर्धारण करती है यदि किसी पुरुष की आंखों का रंग भूरा हो या पुतली भूरि हो तो उस पर विश्वास करना आत्म हत्या के सामान होता है क्योकि भूरि आँख पुरुष की उसके खतरनाक और अविश्वसनीय व्यक्तित्व का द्योतक होता है ऐसा पुरुष स्वयं
स्वयं ना तो संसय में रहता है और दूसरों को कुपित रखता है धन बैभव की कमी ऐसे व्यक्ति के पास नहीं रहती अमूमन ऐसा व्यक्ति तानाशाह प्रबृति का होता है।
यदि महिलाओ की आँखे भूरि है तो वह खूबसूरत विद्वान और धन बैभव की स्वामी होती है संस्कार और विचार में कठोर अवश्य होती है मगर सरस्वती लक्ष्मी की सयुक्त बोध होती है ऐसी महिलाये जहा भी जिस भी परिवार में रहेंगी कोई विपदा जल्दी नहीं आती।

नाक--नाक का औसत से बड़ा होना व्यक्ति व्यक्तित्व का विराटता बैभव शक्ति शाली हेने का भविष्य निर्धारण करता है औसत से छोटी नाक व्यक्ति को कृपण दरिद्र और नकारात्मकता के भविष्य की तरफ ले जाता है।।

कान---कान का भी औसत से बड़ा होना व्यक्ति को बैभव प्रतिष्ठा प्रगति और विकसोन्मुक् स्वस्थ दीर्घायु और वांछित सफलता का व्यक्तित्व बनाता है।वैसे भी बड़ी नाक बड़ा कान शिव पुत्र गणपति जी का होता है जो शुभ के देवता है और प्रत्येक ज्योतिष गणना का शुभारम्भ होता है।छोटी कान शारीरिक शक्ति बलशाली व्यक्तित्व के लक्षण है।
वैसे जितने भी अवतार सनातन धर्म में ईश्वर स्वरुप में है उनमे सभी ने ब्रह्माण्ड में अवतार धारण कर भाग्य को करमार्जित व्यखा को स्थापित करने का मूल्य स्थापित किया है ।जैसे भगवान् राम का पिता आज्ञा से वन गमन और जीवन और समाज के नैतिक मूल्यों और संघर्षो का अनुभव करना और पुनः वापस आकर राम राज्य की स्थापना करना।भगवान् कृष्ण का कारागार में जन्म लेना और विध्वंसकारी प्रबृतियो से लड़ना और पुनः एक सकारात्मक समाज की स्थापना करना ।आदि देव विष्णु जी का झीर सागर में शेष नाग पर विरजना और चरणों में लक्ष्मी का वास कर्म और भाग्य को निरूपित करता है।भगवान शंकर का कैलाश पर विराजना नंदी सवारी काल जीवन बैभव को कर्म की व्यख्या करता है ।प्रकृति और प्राणी की प्रबृति दोनों ही बनावट परिवेश से प्रभावित होती है आतः शारीरिक बनावट से मनुष्य के चाल चलन भाग्य का निर्धारण सत्यता को ही निरूपित करता है।
वैसे समय काल ;ईश्वर और आत्मा तीनो ही परमशक्ति के स्वरुप है और तीनो ही अविनासी अनन्त है।जैसे समय काल को ना तो कैद किया जा सकता है ना देखा जा सकता है ना तो जलाया जा सकता है ना काट जा सकता है समय ना तो जन्म लेता है ना मरता है इसी प्रकार आत्मा और ईश्वर भी ना तो जन्म लेते है ना कैद किया या पकड़ा या बाँधा जा सकता है ना ही जलया जा सकता है ना ही मारा जा सकता है आत्मा कर्म के अनुसार शारीर धारण करती है तो ईश्वर समय और आवश्यकतानुसार ।अतः कर्मानुसार जो प्राणी जिस तरह का आवरण या शारीर धारण करता है वही उसकी प्रबृति होती है और उसी से उसको प्रेरणा मिलती है जिससे उसके भाग्य भविष्य का निर्धारण होता है।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कवि लेखक ज्योतिष विशेषज्ञ