प्रेत वाधा एव वास्तु नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा ज्योतिष शास्त्र में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत वाधा एव वास्तु


प्रेत बाधा एव वास्तु---

भूत प्रेत अपार शक्ति सम्पन्न एव इनकी बिभिन्न प्रकार की जातियां होती है भूत प्रेत पिचास राक्षस यम साकिनी डाकिनी चुड़ैल गंधर्व आदि
यदि महादशा में चंद की अंतर्दशा और चंद्र दसापति राहु से भाव 6 8 या 12 में बलहीन हो तो व्यक्ति पिचास दोष से ग्रस्त होता है वस्तु शास्त्र के अनुसार पूर्वा भद्र पद उत्तरा भद्र पद जेष्ठा अनुराधा या स्वाती या भरणी नक्षत्र में शनि की स्थिति होने पर शनिवतार को गृह निर्माण आरम्भ नही करना चाहिए अन्यथा वह घर राक्षसों पिचासो का घर हो जाएगा जन्म कुंडली मे यदि लग्न भाव आयु भाव अथवा मारक भाव मे यदि पाप प्रभाव है तो जातक निर्बल स्वस्थ का होता है अथवा उंसे दीर्घायु प्राप्त नही होती चंद्रमा लग्नेश तथा अष्टमेश का अस्त होना स्प्ष्ट करता है कि जातंक अस्वस्थ और अल्पायु होगा इसी प्रकार चंद्रमा लग्न लग्नेश अष्टमेश पर पाप प्रभाव इन ग्रहों की पाप के साथ युति कुण्डली में कही कही पर चन्द्र की राहु केतु के साथ युति जातंक भूत प्रेत के प्रकोप की आशंका की पुष्टि करता है चंद्र केतु की युति अगर लग्न में तथा मंचमेश और नवमेश भी राहु के साथ सप्तम भाव मे है फलतः भूत प्रेत बाधा शारिरिक बौद्धिक समस्या के साथ आयु पर प्रभाव डालती हैं।
उपर्युक्त ग्रह योगो से प्रभावित कुंडली वाले जातंक मानसिक अवसाद से अनिद्रा जैसी बीमारियों से ग्रस्त रहते है उनके आत्म हत्या करने की संभावना प्रबल रहती है।।

1-वस्तु शास्त्र और भूत प्रेत बाधा--

*घर के अंदर आते ही समय सीढियां नज़र आये और उसके नीचे पानी का साधन तब बुरी आत्माओं से पीड़ित का योग बनता है।।
*ब्रह्म स्थान में गढ्ढा हो और जिसमे घर के पाइप के पानी मिलते हो तो प्रेत योग से हानि योग बनता हैं।।
दक्षिण पश्चिम में मन्दिर बना हो पूजा करने से बुरी आत्माओं का योग बनता है जिसे लोग देवताओं की चौकी कहते है वास्तव मे वह गुरु राहु का योग होता है।।
2-मादी के द्वारा प्रेत आत्मा को जानना--
बाधक स्थान 6, 8,12 वे भावो में या पूर्व पुण्य को दर्शाने वाले त्रिकोण में पीड़ित प्रेत बाधा को दर्शाता है बिभिन्न ग्रहों के साथ मादी की युति दुरात्माओं के प्रकार और आत्मा का प्रेत या दुरात्मा बन जाने का कारण बताती है जैसे अस्वभाविक दुर्घटना से मृत्यु मृत्य के पश्चात दाह संस्कार में ऊँचीत विधाओं में त्रुटियों का रह जाना।

3-प्रेत आत्मा के पूर्व जन्म में मृत्यु का कारण--
जन्म कुंडली मे मादी मंगल की राशि या नवांश में स्थित हो तो जातंक की कुंडली मे प्रेत बाधा योग बना रहता है परेशान करने वाली प्रेतात्मा पिछले जन्म में अस्वभाविक मृत्यु से मारा होता है और यदि शनि के साथ मादी युति है तो दरिद्रता की पीड़ा के कारण मृत्यु हुई होगी मादी और राहु की युति हो तो सर्प काटने,विषपान, के कारण तथा जलीय राशि से पीड़ित राशि से पीड़ित डूबने से मृत्यु हुई होगी शुभ ग्रहों के साथ सयुक्त मादी पिछले जन्म में स्वभाविक मृत्यु दर्शाती है जबकि अशुभ ग्रहों के साथ अस्वभाविक मृत्यु को दर्शाता है।।

4-प्रेतात्मा का लिंग पता करना---

जातंक की जन्म कुंडली मे मादी का विश्लेषण करके जातंक की प्रेत बाधा का पता कगते है फिर उस प्रेतात्मा के मृत्यु का कारण जानते है फिर प्रेतात्मा का जातंक के साथ सम्बन्ध प्रेतात्मा की मृत्यु का कारण ज्ञात करते है यदि जातंक की जन्मकुंडली में मादी चर राशि मे है जातंक को परेशान करने वाली प्रेतात्मा बहुत पहले मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है और स्तर राशि मे है तो प्रेतात्मा को मरे अधिक समय नही हुआ होगा यदि मादी चौथे भाव मे या चौथे भाव के स्वामी के साथ संबंध रखता है तो प्रेतात्मा जातंक के कुटुंब से समन्धित होगा इसी प्रकार प्रेतात्मा की मृत्यु का समय करने के लिये मादी के अंशो के द्वारा उसके मृत्यु के समय की आयु ज्ञात कर सकते है मादी के प्रारंभिक अंशो से बचपन आरोही अंशो से बृद्ध आयु की सूचना प्राप्त होगी।।

5-अभिभावक शाप दोष-- जन्म कुंडली के द्वारा भूत प्रेत या अभिभावक शाप का योग भी ज्ञात कर सकते है सामान्य तौर पर कोई भी अपने बालक को श्राप नही देता है फिर भी यदि। पूर्वजो या पितरों की कोई इच्छा शेष रहने पर जिसके कारण पितृ योनि में उनको भटकना पड़ता है ऐसी स्थिति में वे अपने बालको से अपनी इच्छा पूर्ति की इच्छा रखते है इसलिये वे अपने व वंशजो कष्ट देकर अपनी इच्छा को बाध्य करते है सूर्य बाधक स्थान में मंगल की राशि या नवांश में स्थित हो अथवा सिंह राशि मे किसी पाप ग्रह की स्थिति हो पितृ दोष योग का निर्माण होता है यदि चन्द्रमा बाधक स्थान में मंगल की राशि या नवांश में है या कर्क राशी कोई पाप ग्रह हो मातृ शाप दोष योग है जिसके कारण जातक को अनेको समस्याओं रुकावटों का सामना करना पड़ता है।।

6-श्राद्ध कर्म ----पितृ दोष के निवारण के लिये या पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये पितरों को संतुष्ट करना होता है उसकी आराधना उसकी पूजा पाठ करनी होती है जिसके लिये सबसे उपयुक्त समय श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष होता है पितरों की शांति के लिए किसी तीर्थ स्थान पर जाकर श्राद्ध कर्म पिंडदान तर्पण करना चाहिये जिससे पीतर संतुष्ट हो और शुभ आशीर्वाद प्रदान करे और स्वय मोक्ष प्राप्त करे अतः श्राद्ध पक्ष पितृ पक्ष में निश्चित रूप से विधि विधान से श्राद्ध कर्म श्रद्धा के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिये अवश्य करना चाहिये।।

7-वैदिक अनुष्ठान--
पितृ दोष निवारण या प्रेत वाधा निवारण के लिये घर पर वैदिक अनुष्ठान स्वय करना चाहिये यदि स्वय करना सम्भव नही हो तो विद्वत ब्रह्मण द्वारा सम्पन्न करवाना चाहिये जिसमे महामृत्युंजय जप नवग्रह शांति हेतु नवग्रह स्त्रोत पाठ पित्र दोष अनुष्ठान श्री मद भागवत कथा अनुष्ठान आदि से सभी प्रकार के प्रेत बाधा पितृ श्राप आदि से मुक्ति पाया जा सकता है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश