अगली सुबह ग्रहु की आंख खुलती है अपनी मौसी के जागने पर रात देर से सोने की वजह से उसे सुबह उठने में आलस आ रहा था सुबह उठने के बाद ग्रहु नहा कर तैयार होती है और बच्चों के साथ नाश्ता करके रूम में चली जाती है यहां पर उसे कुछ ज्यादा काम नहीं था बस छोटे-मोटे हेल्प के लिए बुलाया गया था क्योंकि कल मौसी के घर में पूजा हवन और भंडारा था जिसमें काम के लिए उसकी जरूरत थी
दूसरी तरह संस्कार सुबह दस बजे सो कर उठा और ब्रश करने के बाद सीधे अपने घर के सामने बने घर की तरफ चला गया वहां जाकर वो अपने ही हम उम्र के लड़के के साथ बैठकर बातें करने लगा थोड़ी देर में श्वेता दो कप चाय बनाकर बाहर आती है एक कप अपने भाई को देती और दुसरा कप बहुत ही प्यार से संस्कार के चेहरे को देखते हुए उसे देती है
संस्कार मुस्कुराते हुए श्वेता को देख रहा था वही श्वेता के चेहरे पर भी स्माइल थी जिसे वो अपने भाई से छुपा रही थी चाय देने के बाद वो भी वही खड़ी होकर दोनों से बातें करने लगती है और छुप छुप कर संस्कार को देखने लगती है
तभी घर के सामने बने सड़क पर से एक बाइक गुजरती है जिस पर यही कोई पच्चीस छब्बीस साल का लड़का सवार था उसको तीनों जन देखते हैं और जब बाइक उनकी आंखों से ओझल हो गई तब संस्कार अपने सामने बैठ लड़के से कहता है
" देव आशीष आ गया है वैसे कब है बड़ी मामी के घर पर पूजा "
तो इस पर देव जो श्वेता का बड़ा भाई है उसके कुछ बोलने से पहले श्वेता कहती है
" पूजा तो कल ही है इसलिए तो सब आज ही आ रहे हैं थोड़ी देर पहले कोमल बुआ और उनकी बेटी शालिनी भी आई है "
श्वेता ने संस्कार को सुनने के लिए जानबूझकर शालिनी शब्द पर जोर देते हुए कहा था जिसे संस्कार अच्छे से समझ भी रहा था लेकिन उसने कुछ कहा नहीं और देव से बातें करते हुए श्वेता को सुनता है
" देव मैं तो बड़ी मामी के घर पर जाने ही वह नहीं हूं मेरा मन नहीं करता है वहां जाने का तुम तो देखते ही हो सारा दिन मैं यही तुम्हारे पास रहता हूं "
संस्कार की बात को सुनकर देव मुस्कुराते हुए कहता है " हां तुम सही कह रहे हो भाई मेरा भी मन नहीं करता वहां पर जाने का "
वही संस्कार की बात को सुनकर श्वेता खुश हो गई
दुसरी तरफ मौसी के घर पर अब बहुत सारे लोग आ गए थे जिस वजह से घर भरा भरा सा लग रहा था तो ग्रहु का भी मन लगने लगा था खास कर जब से आशीष आया था वो अपने बड़े भाई के पास बैठकर पढ़ाई की बातें करती या फिर आशीष के फोन में गाना सुनती उसे कोई कुछ भी नहीं कहता था और दो-तीन लड़कियां भी आ गई थी जिसके साथ भी उसका फ्रेंडशिप हो गया था
शाम के वक्त मौसी किचन के अन्दर अपनी देवरानी से खाना बनाने की तैयारी पर बात कर रही थी की तभी छोटी मौसी रहती है
" भाभी आज परिवार बहुत ज्यादा हो गया है तो चावल पकाने के लिए आप काव्य की मम्मी से उनका बड़ा वाला भगोना मंगवा दीजिए सही रहेगा "
अपनी देवरानी की बात को सुनकर मौसी हां कहती है और किचन से बाहर निकल कर आंगन में आती है जहां ग्रहु और शालिनी बैठ कर बातें कर रही थी
मौसी शालिनी से कहती है " शालिनी बिटिया तुम काव्य की मम्मी के पास जाओ और उनसे उनका सात लिटर वाला भगोना मांग कर लाओ मै कॉल कर के बता देती हु काव्या की मम्मी को और हा अपने साथ ग्रहु को भी लेते जाना "
शालिनी हां कहती है और दो लड़कियां बातें करते हुए घर से बाहर चली गई जैसे जैसे ग्रहु अपने कदम आगे बडा रही थी उसे अपने दिल में अजीब सी घबराहट हो रही थी जिसे वो समझ नही पा रही थी
यही कोई बीस पच्चीस कदम चल कर दोनों लड़कियां एक बड़े से घर के सामने आ कर रूकती है उस घर के बाहर नीम के बेड के पास दो लड़कियां बैठकर बातें कर रही थी
शालिनी उन दोनों को देखते हुए एक से कहती है " काव्य बड़ी मम्मी कहां है मुझे भगोना लेना है "
दोनों लड़कियां ग्रहु को अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से घूर कर देखने लगती हैं और काव्य जल्दी से कहती है
" मम्मी तो चाची के घर गई है रुको बुला देती हूं "
इतना कहकर वा अपने घर के सामने बने घर की तरफ देखते हुए तेज आवाज में कहती है " मम्मी शालिनी आई है आपको बुला रही "
काव्य के इतना कहते ही संस्कार जो उसी घर के बाहर बैठकर दो-तीन लड़कों से बात कर रहा था वो अपना सर घूमाकर उस तरह देखा है जहां से आवाज आई थी
ग्रहु भी उसी तरफ देख रही थी दोनों की आंखें पहली बार एक दूसरे की आंखों से मिलती है दुर से भी दोनो एक दूसरे का चेहरा साफ देख पा रहे थे संस्कार बस ग्रहु को देखता ही रह जाता है वही गुहु एक नजर उसकी तरह दिखती है फिर अपना चेहरा फेर लेती है उसके ऐसा करते हैं संस्कार का दिल बेचैनी से तड़प उठता है