वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र चुनौतीयां एव समाधान नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र चुनौतीयां एव समाधान


वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय लोकतंत्र चुनौतियां एव समाधान -


लोक तंत्र के वर्तमान स्वरूप को स्थिर करने में चार महत्वपूर्ण क्रांतियों की मुख्य भूमिका है- 1-1668 में इंग्लैंड की रक्तहीन क्रांति ।

2-1776 में अमेरिकी क्रांति।,

3-1789 कि फ्रांसीसी क्रांति एव।

4-19 सदी की आद्योगिक क्रांति की भूमिका प्रबल रही है ।

प्रशासकीय एव राज्य विधियों कि पृष्टभूमि में संसद कि स्वीकृति होनी चाहिये इसको इंग्लैंड कि गौरवपूर्ण क्रांति ने सुनिश्चित कर दिया ।वर्षो कि परतंत्रता के बाद भारत ने भी संसदीय लोकतंत्र को स्वीकारा ।

भारत के वैदिक काल मे सभा समिति विदथ जैसी संस्थाओं तथा कुछ गणराज्यो कि उपस्थिति से लोकतंत्र के प्रमाण मिलते है।

(क)-
लोक तंत्र का अर्थ-

अंग्रेजी में लोकतंत्र को डेमोक्रेसी कहते है जिसकी उतपत्ति ग्रीक मूल शब्द डेमोस तथा करेशिया से हुई है डेमोस का अर्थ है जन साधारण क्रेशी का अर्थ है शासन अर्थात लोकतंत्र का आशय जनता के शासन से है ।

(ख)-
लोकतंत्र के दार्शनिक आधार -

1-व्यक्ति को व्यवस्था की इकाई मानना ।।

2-व्यक्ति कि गरिमा में विश्वास।।

3- स्वतंत्रता एव अधिकारप्रदान
करना।।

4-समाज मे विशेषाधिकारों का समापन ।।

5- मानवीकृत विभेदन से प्रतिषेध।।

6- सीमित तथा संवैधानिक शासन।।

7-भागीदारी परक शासन।।

8- उत्तरदायी शासन।।

9- नियमित चुनांव।।

(ग) -
भारतीय लोकतंत्र कि यात्रा-

भारतीय संविधान निर्माताओं में एक बाबा साहब आम्बेडर के अनुसार लोक तंत्र का अर्थ ऐसी जीवन पद्वति जिसमे स्वतंत्रता, समता ,और बंधुता समाज जीवन के मूल सिद्धांत होते है ।

26 जनवरी 1950 को उपरोक्त वर्णित सिंद्धान्तों कि प्राप्ति के लिए भारत मे लोकतंत्र कि विधिवत स्थापना हुई ।

भारत विश्व कि सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमे विविधता में एकता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है ।भारतीय संस्कृति इस विषय मे अन्य संस्कृतियों से भिन्न है ।

अभी भी भारत अपनी प्राचीनतम परम्पराओं को संजोने के साथ उसमें नवीनता लाता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक एव आर्थिक प्रगति किया है।

भारत दुनियां में एक मात्र ऐसा राष्ट्र है जिसने हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता के बाद प्रथम दिन से ही मतदान का अधिकार देकर राजनैतिक न्याय स्थापित किया अमेरिका ब्रिटेन जैसे अनेको देशों में राजनैतिक न्याय की स्थापना करने में वर्षो लग गया ।

तंत्र निष्पक्ष और पारदर्शी चुनांव एक अच्छे लोकतंत्र की स्थापना कि कुंजी है क्योंकि चुनांव ही वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता अपने सम्प्रभुता का स्थानांतरण करती है भारत अपनी चुनांव प्रणाली पर निश्चित रूप से गर्व कर सकता है ।

निष्पक्ष निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता से भारत मे सत्ता का समयबद्ध हस्तांतरण हुआ जबकि भारत के साथ ही स्वतंत कई देशों में तानाशाही तथा सैन्य शासन भी लागू हो गया ।

आज तक भारत मे मात्र एक बार आपात काल का प्रयोग हुआ जिसमें जनता ने यह महशूस किया कि सरकार द्वारा लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है तब भारत कि इसी जनता ने आपातकाल का जबाब दिया तथा सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता के बाद प्रथम बार बिपक्ष में बैठी।

भारत के न्याय ने कई बार मूल अधिकारों कि रक्षा के लिए संसदीय कानूनों तथा कार्य पालकीय आदेशो को अवैध घोषित कर व्यक्तिगत स्वतंत्रता कि रक्षा कर लोकतांत्रिक तत्वार्थ को जीवित रखा।

(घ)-
भारतीय लोकतंत्र कि चुनौतियां -

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने कई आयामो को प्राप्त किया है परंतु 26 जनवरी -2021 को लाल किले पर होने वाली घटनाओं ने यह स्प्ष्ट कर दिया कि भारतीय लोकतंत्र के समक्ष अभी भी अनेको चुनौतियां है।

राजनीतिक लोकतंत्र कि सफलता के लिए आर्थिक लोकतंत्र एव सामाजिक लोकतंत्र से गठबंधन आवश्यक है ।आर्थिक लोकतंत्र का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने विकास की समान भौतिक सुविधाएं मीले ।जनता के मध्य आर्थिक विषमता न हो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण ना कर सके ।एक ओर निर्धनता दूसरी ओर विपुल सम्पप्पन्नता के वातावरण में लोकतंत्रत्मक राष्ट्र का निर्माण संम्भवः नही है ।वही सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है कि सामाजिक स्तर पर विशेषाधिकारों का अभाव हो परन्तु भारत मे अभी भी ये दोनों स्थापित नही हो सके है ।भारत मे अभी भी 1% सम्पन्न समाज के पास 85 % से अधिक संपत्ति है 63 अरबपतियों कि कुल सम्पत्ति राष्ट्रीय बजट के बराबर है ।इस असमानता के साथ ही देश लैंगिग ,जातीय ,धार्मिक भेदभाव वास्तविक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित होने से रोकता है।

राजनीति का अपराधीकरण चुनावो में धनबल का प्रयोग भारतीय चुनावों की बड़ी समस्या रही है ।

भारत के लगभग हर लोग सभा मे लगभग 40 प्रतिशत सांसाद गंभीर आपराधिक पृष्ठ भूमि से रहते है।

इसके साथ ही देश मे गरीबी ,भ्रष्टाचार, चालबाजियों ने दैनिक जीवन मे निराशा का प्रसार करते हुए चुनांव व्यवस्था को प्रभावित किया है ।बाहुबल धनबल के बढ़ते हुए महत्व राजनीतिक जीवन मे जातिवाद सांप्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार के प्रभाव से राजनीतिक प्रभाव से राजनीतिक परिदृश्य को विषाक्त कर दिया ।

भारत कि कठिन दुरूह तथा लम्बी न्यायिक प्रक्रिया ने देश मे न्याय में बिलम्ब कि स्थिति ला दी है कई बार कुशासन के कारण न्याय की निष्पक्षता स्वंय कठघरे में आ गयी है न्याय में देरी कई बार अन्याय के समान हो जाती है न्यायपालिका में आठ करोड़ से अधिक मामले विचाराधीन है।

उपनिवेशिक विरासत से आई सिविल सेवा तथा पुलिस सेवा स्वंय को स्वामी मानती है जबकि लोक तंत्र में इनको सेवा प्रदाता समझा जाता है ।

इसके साथ ही पितृ सत्ता ,खाप पंचायत जैसी अवधारणाओं ने लोक तंत्र को कमजोर किया है यह एक गम्भीर चिंता का विषय है भारत मे समूह कि प्राथमिक इकाई परिवार तथा समाज दोनों ही लोकतांत्रिक नही रह गए है।।

1- बेहताशा बढ़ती जनसँख्या एव सीमित संसाधन।

2- अपराध एव भ्र्ष्टाचार।

3-नक्सली समस्या।

4-धार्मिक उन्माद एव दंगे

5-छोटे छोटे समूहों में बिभाजित समाज।
6- समाजिक आर्थिक असमानता।

7- बढ़ती बेरोजगारी ।

8-दिशा दृष्टि हीन नई पीढ़ी।।

(च)-
समाधान-

1-व्यपाक चुनांव सुधार कि आवश्यकता।

2-प्रशाशनिक ढांचागत सुधार।।

3-नई पीढ़ी में राष्ट्र प्रमुख कि अवधारणा कि दृढ़ता एव राष्ट्र में विश्वास को आस्था में परिवर्तित करना।

5-छोटे छोटे जातिगत आधार पर बंटे समाज समूहों को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में संगठित करना एव समग्र राष्ट्रीय समाज का निर्माण करना।

6- त्वरित न्याय प्रक्रिया को सुनिश्चित करना एव न्याय पालिका पर बोझ को कम करना।

7- युवा वर्ग में राष्ट्र के प्रति विश्वास पैदा करना एव उन्हें राष्ट्र के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाने के लिये दीर्घकालिक प्रभवी योजना का कार्यान्वयन।

8- कृषि सुधार एव बंजर भूमि को उपजाऊं बनाने हेतु नीतिगत निर्णय के साथ साथ क्रियान्वयन।

9- पर्यावरण संरक्षण के प्यापक प्रशासनिक एव सामाजिक समन्वयक प्रयास।

10- संतुतिल उद्योगीकरण एव व्यपाक रोजगारपरक।

11- राजिनिक सुचिता के निर्धारण के गम्भीर प्रयास।।

12- महिलाओं को और अत्यधिक एव जागरूक बनाने के और गंभीर एव प्रभवी प्रायास।

13 - बालिका एवं महिलाओं के विरूद्ध हो रहे सामाजिक अन्याय जैसे बलात्कार , यौन शौषण ,दहेज उत्पीड़न ,हत्याएं आदि पर प्रभावी रोक के उपाय।

14- जल जीवन एवं वन जीवन सिद्धांत को बुनियादी आवाज संस्कार के रूप में निश्चित करना।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।