धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता गया। बीच-बीच में प्रतीक भी निर्मला को फ़ोन करने लगा।
वह हर बार उससे कहता, “निर्मला माफ़ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। मैं भटक गया था लेकिन वापस सही रास्ते पर आना चाहता हूँ। क्या तुम इजाज़त दोगी?”
बात अब धीरे-धीरे सुधर रही थी। प्रतीक को उसकी गलती का एहसास हो चुका था लेकिन ज़िन्दगी की सच्चाई किसी कोरे काग़ज़ पर लिखी कहानी नहीं होती कि पसंद नहीं आई तो रबड़ से मिटा दो। जो घट गया वह मिटाया नहीं जा सकता। यहाँ तक कि वह तो पूरी तरह भुलाया भी नहीं जा सकता। जीवन में कभी ना कभी भूतकाल आँखों में आकर झांक ही लेता है। प्रतीक अब निर्मला को वापस लाना चाहता था लेकिन अभी तो उसे लंबा इंतज़ार करना था।
गोविंद बीच-बीच में बुलबुल से मिलने आ जाता। अपनी पत्नी और बहन दोनों के लिए बादाम, पिस्ता कई तरह के सूखे मेवे लेकर।
आरती ने बुलबुल की मम्मी को भी बता दिया कि उनकी बेटी प्रेगनेंट है और डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी है तो बुलबुल वहीं उनके पास रहेगी।
बुलबुल अपनी सास और निर्मला के व्यवहार से बहुत ख़ुश थी। साथ ही हैरान भी कि कैसे उन दोनों ने उसे माफ़ कर दिया और उसकी यहाँ कितनी अच्छी देखरेख भी हो रही है।
निर्मला और बुलबुल दोनों के मन में धुकधुकी ज़रूर थी कि माँ क्या करने वाली हैं।
देखते-देखते सात माह बीत गए। अब धीरे-धीरे डिलीवरी का समय नज़दीक आ रहा था। तब आरती ने अपने पूरे परिवार को एक बार फिर अपने पास बुलाया। गोविंद और प्रतीक भी आ गए।
उन्होंने सभी को बुलाकर बिठाया और कहा, “कल मेरी माँ का फ़ोन आया था। उन्होंने हमें वहाँ उनके गाँव बुलाया है। वह चाहती हैं कि निर्मला और बुलबुल की डिलीवरी वहीं पर हो। वह कह रही थीं कि यह उनकी अंतिम इच्छा है।”
धीरज ने कहा, “नहीं-नहीं …”
इसके आगे आरती ने उन्हें कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया। उन्होंने कहा, “अब तो वहाँ भी सारे आधुनिक साधन और अच्छे-अच्छे अस्पताल हैं। सबसे बड़ी बात की निर्मला के मामा की बेटी रुचि, मेरी भतीजी बहुत ही बड़ी और अच्छी गायनेक है और वह वहीं रहती है मेरी माँ के साथ। इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है।”
धीरज चुप, गोविंद और प्रतीक भी शांत थे। सबने आरती की बात पर अपनी-अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी।
दूसरे ही दिन आरती अपनी बेटी और बहू को लेकर गाँव पहुँच गई। वहाँ उन्होंने अपनी भतीजी को अपना राजदार बना लिया। उन्हें उसे सब कुछ बताना ही पड़ा।
अब जब डिलीवरी का समय नज़दीक आया तब आरती ने निर्मला और बुलबुल को अपने पास बुलाकर कुछ ऐसी बात कही, कोई ऐसा उपाय सुझाया जो था तो बहुत मुश्किल लेकिन परिवार और उन सबके भले का एक वही रास्ता था।
बुलबुल ने भी आरती की बातों की गहराई को समझते हुए बड़े ही भारी मन से हाँ कह दिया क्योंकि वह जानती थी कि यही सबसे अच्छा और सुरक्षित रास्ता है।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः